Tuesday, October 28, 2014

सरकारी किराएदार

 व्यंग्य/झुनझुना
आज शाम को खन्ना जी घर पर आए। बेचारे बहुत परेशान थे। खन्ना जी हमारे साथ बैंक में कैशियर हैं। दिन भर बैंक ग्राहकों से उलझते रहते हैं। शायद आज भी किसी से झगड़ कर आ रहे थे। मुझे लगा कि आज भाई साहब फिर कोई किस्सा सुनाएंगे। सोचा कोई हंसी मजाक का किस्सा होगा लेकिन मैटर तो बहुत ही गंभीर निकला। मेरे पूछे बगैर ही बोले- ''यार आजकल तो किरायेदार रखना ही बेकार है। एक तो लोगों की मदद करो ऊपर से ये सिर पर चढ़ जाते हैं।''
खन्ना जी बोले-''देखो तो कितनी नाइंसाफी है। यार वह अपना शुक्ला है न, हमारा किरायेदार, आजकल काफी परेशान कर रहा है।''
हां...हां...! क्या किया शुक्ला ने- मैंने पूछा।
उन्होंने बताया कि चार वर्ष पहले मैंने शुक्ला जी को अपने मकान के चार कमरे किराये पर दिए थे। शुरुआत में व्यवहार काफी ठीक था। लेकिन एक दो साल बीतने के बाद समय पर किराया देना ही बंद कर दिया। कभी भी समय पर किराया नहीं दिया, और न ही किराया बढ़ाया। आज जब मैंने मकान खाली करने की बात कही तो कहने लगा कि मैं मकान खाली नहीं करूंगा।
समस्या गंभीर थी लेकिन हंसी आ गई!
हंसी यह सोचकर आई कि दिल्ली में आजकल लोगों को क्या हो गया है। सभी को आजकल कब्जे की ही पड़ी है। एक बार किसी को कब्जा मिल जाए तो मजाल है कि आप मकान खाली करा सको। मैंने खन्ना जी से कहा कि-''आपकी समस्या तो बिल्कुल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की तरह ही है।''
''अरे आप तो एक शुक्ला जी से परेशान हो, हमारे मोदी जी तो ऐसे 21 शुक्लाओं से परेशान हैं।''
खन्ना जी बोले-''क्या मतलब।''
''मैंने बताया कि जिस प्रकार आप शुक्ला जी को लेकर परेशान हैं ठीक इसी प्रकार हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी देश के उन नेताओं से परेशान हैं जो सरकारी बंगलों पर कब्जा किए हुए हैं। ये नेता अपने आपको सरकारी किरायेदार मानते हैं, इनसे भी मकान खाली कराना बड़ी 'टेढ़ी खीर' साबित हो रहा है।''
''तत्कालीन संप्रग सरकार के समय इन 'शुक्लाओं' को ठिकाना दिया गया था। उन्हें जब पता लगा कि अच्छे दिन आ गए तो उन्होंने फिर कब्जा करने का ही मन बना लिया। अच्छे दिन तो सभी के लिए होंगे ना इसलिए मस्ती से रह रहे थे। अभी भी कुछ किराएदार तो 'नाक में दम' किए हुए हैं।''
''आपके शुक्ला तो आम आदमी हैं लेकिन ये सभी तो पूर्व में मंत्री रहे हैं। मंत्री क्या होता है, जानते हो न...।''
''इनके देश में ऐसे कई बंगले होंगे, लेकिन फिर भी सरकारी बंगला खाली करने का मन ही नहीं करते। शायद कुछ दबाकर रखा होगा, अपने कार्यकाल का। समेटने में देरी हो रही होगी। कहीं कोई फाइल होगी, जिसके कारण ही देरी हो रही हो। खैर सरकारी माल, सरकारी होता है। बिजली, पानी, मरम्मत सभी सरकार की चिंता।''
खन्ना जी बोले-''अच्छा!''
''हां और नहीं तो क्या- मैंने कहा!''
''मैंने कहा- आपको नहीं पता''
''इन मंत्रियों के अलावा सरकारी अधिकारी व कर्मचारी भी सालों से सरकारी फ्लैट में कब्जा जमाए बैठे हैं।''
खन्ना जी बोले- ''मुझे लगता है कि मेरा मकान तो गया। क्योंकि जब मंत्री ही बंगले खाली नहीं कर रहे तो अपनी औकात ही क्या। हमारे पास तो कोई सोर्स सिप्पा भी नहीं है कि हम कहीं से दबाव बनाकर अपना मकान खाली करा सकें।''
उनकी चिंता को देखते हुए मैंने कहा- ''क्यों न आप भी प्रधानमंत्री मोदी की तरह कोई रास्ता निकालते।''
खन्ना जी बोले-''क्या मतलब।''
मैंने कहा- ''आप क्यों न प्रधानमंत्री की तरह अपने शुक्ला जी की बिजली पानी की सप्लाई बंद कर दो। ये मंत्री लोग तो बेशर्म होते हैं। मोटी खाल वाले। जनता से इतनी बेज्जती होती है कि उन्हें कोई फर्क ही नहीं पड़ता। भ्रष्टाचार करके पहले ही बदनाम हो गए होते हैं।, हां! लेकिन मुझे लगता है कि शुक्ला जी इतने बेशर्म नहीं होंगे। जब बिजली और पानी बंद हो जाएगा तो अपने आप आपको चाबी देकर चले जाएंगे।''
''मेरी बात में खन्ना जी को दम लगा। शायद इसलिए काफी देर बाद उनके चेहरे पर मुस्कुराहट आई। वह कुर्सी से उठे और नारा लगाया-नरेन्द्र मोदी जिंदाबाद।''
इस नारे से खन्ना जी में इतनी स्फूर्ति आ गई कि उन्होंने शुक्ला जी के जाने के बाद जब भी कोई किरायेदार रखा तो उससे मकान भी खाली करा लिया।