Wednesday, May 2, 2012

आत्मा भी नीलाम होना चाहती है, खरीदोगे क्या!


            जीवन में ज्यादा दौड़ भाग नहीं करनी चाहिए। क्या करना है दौड़ भाग करके? कुछ लोग सोचते हैं कि अभी दौड़ भाग करने से बुढ़ापा शांति से कट जाएगा। लेकिन ऐसा सही नहीं है। बुढ़ापा शांति में काटने की सोचने वाले दरअसल गलत सोचते हैं। अब मोहनदास करमचंद को ही लो। मोहनदास करमचंद मतलब महात्मा गांधी...! महात्मा गांधी ने भी काफी दौड़ भाग की। नंगे बदन न जाने कहां-कहां नहीं गए। यह सोचकर कि देश जब आजाद हो जाएगा तो आने वाली पीढ़ी मुझे याद रखेगी। उन्हें भी नहीं पता था कि लंदन में उनकी स्मृति से जुड़ी जब कुछ वस्तुओं को नीलाम करने की नौबत आएगी तब हमारी सरकार के पास केवल 81 लाख रुपए भी नहीं होंगे। उन्हें क्या पता था कि लंदन में उनकी हत्या के समय वहां से उठाई गई घास और मिट्टी आठ लाख रुपए में, चश्मा 27 लाख रुपए और चरखा 22 लाख रुपए में नीलाम होगा और हमारी सरकार चुपचाप तमाशा देखती रहेगी।
         देशवासियों को चिंता करने की बात है कि हमारा देश इतना गरीब हो गया कि हमारे पास 81 लाख रुपए भी नहीं हैं! क्योंकि 81 लाख रुपए होते तो क्या हम बापू की स्मृतियां नहीं खरीद लेते? अब ये बात अलग है कि हम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल की यात्रा में 205 करोड़ खर्च कर सकते हैं, कसाब की सुरक्षा में 30 करोड़ से ज्यादा लुटा सकते हैं, शराब कारोबारी विजय माल्या को 3000 करोड़ की आर्थिक सहायता दे सकते हैं, विश्वकप जीतने वाले क्रिकेट खिलाडिय़ों को 1-1 करोड़ खुशी में दे सकते हैं, विश्व के सबसे अमीर लोगों में शामिल मुकेश अंबानी 50 अरब रुपए का अपना घर बनवा सकते हैं, शाहरुख खान और ऋतिक रोशन 4.5 करोड़ सिर्फ टैक्स में ही दे सकते हैं, अफगानिस्तान को 50 करोड़ की आर्थिक सहायता दे सकते हैं। यह बात भी अलग है कि हमारे देश के लगभग 800 सांसद हर साल 4000 करोड़ की राशि विकास कार्यों के लिए खर्च करते हैं। सांसद विकास के लिए इतने गंभीर रहते हैं कि उन्हें नीलामी जैसे काम के लिए 81 लाख रुपए खर्च करना फालतू लगता है।
       आज हमारा देश आर्थिक रूप के अलावा भी और कई मामलों में गरीब हो गया है। हम नैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैचारिक व धार्मिक जैसे कई मामलों में गरीब हो गए हैं! हम इतने गरीब हो गए हैं कि अपने महापुरुषों को ही भूल गए हैं! अब इस गरीबी में क्या दौड़ भाग करें। बहुत गरीबी छा गई है इस देश में। सरकार के पास 81 लाख रुपए नहीं थे तो सरकार को विश्व बैंक से लोन लेना चाहिए था!
        महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टाइन ने सही ही कहा था कि आने वाली पीढ़ी इस बात पर विश्वास नहीं करेगी कि गांधी नाम का एक हाड़-मांस का इन्सान इस धरती पर जन्मा था। सरकार भी उन्हें भूल चुकी है। कल ही बापू मेरे सपने आए थे। कह रहे थे कि मेरे आदर्श, मेरे सिद्धांत, चश्मा, चरखा सबकुछ तो नीलाम हो चुका है अब आत्मा ही बची है। आत्मा भी नीलाम होना चाहती है, सरकार के पास इसके भी दाम हैं या फिर मुझे इसे भी विदेश में बिकवाना होगा! हो सके तो मुझे जल्दी सूचना देना, क्योंकि मेरे पास समय बहुत कम है....।




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