Friday, February 20, 2015

मन की बात


सुमित राठौर
'मन' बहुत चंचल होता है। ऐसा मैंने पढ़ा है। शायद आपने भी पढ़ा होगा। 'मन' दिमाग का वह अवयव है, जो अक्सर उथल-पुथल मचाता रहता है। वैसे अगर कोई संतोषी व्यक्ति हो तो वह अपने 'मन' पर नियंत्रण रख सकता है। हमारे बुजुर्ग भी कह गए हैं कि 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'। बुजुर्गों की इस समझाइश पर दिल्ली के कुछ नेताओं के 'मन' ऐसे ही हो गए हैं। दिल्ली में कुछ समय पहले मुख्यमंत्री बनने का 'मन' तो कई नेताओं का कर रहा था। पार्टी की सेवा का कुछ तो प्रतिसाद मिलना चाहिए न... ऐसी बातें उनके 'मन' में चलती रहती थीं। लेकिन बोलें किससे? पार्टी के बड़े नेताओं के 'मन' में तो कुछ और ही चल रहा था। सबके 'मन' की बात अलग-अलग ही सुनाई दे रही थी। दिल्ली के चुनाव में हाय...हाय..चिक...चिक के बीच भी 'मन' की कुछ बातें जुबां पर आ रही थीं लेकिन मुझे लगता है कि दूसरा 'मन' पार्टी के अनुशासित सिपाही होने की दुहाई दे रहा होगा, शायद इसीलिए ही अपना 'मन मसोस' कर बैठ गए होंगे। मुख्यमंत्री कुर्सी के दावेदार थे लेकिन 'मन' की बात नहीं बोल पाए इसलिए किसी और की चल गई। बड़े नेता के 'मन' की चली तो मुख्यमंत्री पद के रूप में बाहर से प्रत्याशी आयातित करना पड़ा। 'मन' भी नहीं कर रहा था लेकिन फिर भी वोट मांगने के लिए गली-गली घूमना पड़ा। 'मन' सोच रहा था कि काश हमें ही मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बना देते तो कितना अच्छा होता। लेकिन चुनाव परिणाम क्या आया सब कुछ बदला-बदला सा नजर आया। एक 'मन' दु:खी था, तो दूसरा 'मन ही मन मुस्कुरा' रहा था। मैंने देखा कि नेताजी का एक 'मन' तो पार्टी की हार का मातम मना रहा था तो दूसरा 'मन' उन महाशय को धन्यवाद देने के लिए उत्साहित था जिनकी वजह से वे प्रत्याशी घोषित नहीं हो पाए। ऐसा लगा जैसे 'मन' यह कहने की कोशिश कर रहा हो कि चलो अच्छा हुआ जो एन वक्त पर हमारे कागजात सामने आ गए। यदि मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बना दिया जाता तो हमारे ऊपर ही पूरा ठीकरा फूट जाता। पूरी राजनीति पर सवाल उठाए जाते, लोग ताने मारते सो अलग...। उनके 'मन' में एक ही बात चल रही थी। 'मन को हार कर नहीं बैठना चाहिए।' इसी प्रकार दूसरे नेताजी को ही देख लो। मैडम का आदेश मिलते ही कूद गए चुनाव मैदान में। जनता के 'मन' से ऐसे बाहर हुए कि एक भी नेता विधानसभा तक नहीं पहुंच पाया। दोनों ही लोगों के 'मन' की बात आज उजागर होकर हमारे पास आ चुकी है। दोनों ही कह रहे हैं कि चलो... आज हमारे 'मन' मुताबिक काम नहीं हुआ तो कोई बात नहीं, कल हो जाएगा। मन मुताबिक किसी को कुछ मिलता भी तो नहीं...। लगता है दोनों के 'मन मिल गए'। इससे पहले कि आपका 'मन' इसे पढ़कर ऊबने लगे, मैं अपने 'मन की बात' समाप्त करता हूं।