- सुमित राठौर
बीस साल पुराने एक मामले की सुनवाई करने बैठे एक जज साब काफी
गुस्से में दिखाई दे रहे थे। एक चापलूस वकील ने पता कर लिया था कि जज साब
आज ही मामले को निपटाने वाले हैं। मामला एक सड़क दुर्घटना का था।ब बिल्कुल
सलमान खान जैसा। आपराधिक मामले भी कितने अजीब होते हैं। गवाह बदल जाते हैं,
वकील बदले जाते हैं, थानेदार बदल जाते हैं और तो और जज साब भी बदल जाते
हैं। लेकिन कुछ नहीं बदलता है, तो वह होता है घटना स्थल। मजे बात देखिए कि
जिस फुटपाथ पर यह हादसा हुआ था, वहां आज आलीशान इमारतें खड़ी हो गई हैं।
लेकिन पुलिस की फाइलों में वहां आज भी फुटपाथ ही है।
खैर अपन तो मामले पर आते हैं। आरोपी कटघरे में है। जज साब पूरे ध्यान से आरोपी पक्ष के वकील की दलीलें सुन रहे हैं। दूसरा पक्ष कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि उनके पास सबूतों का अभाव है। जज साब फैसला सुनाने ही वाले थे कि एक 20 साल का युवक कटघरे में आकर खड़ा हो गया, और न्याय की गुहार करने लगा। जज साहब ने सवाल किया कि तुम कौन? तो युवक ने बताया कि मैं इस मामले का एक मात्र सबूत हूं। युवक ने कहा-’जज साब! मेरा नाम आलोक है। 20 साल पहले जो व्यक्ति इन साहब की गाड़ी के नीचे आकर मरा था, वह मैं ही था। युवक की बात पर सुनवाई कक्ष में सन्नाटा पसर गया।
इस बीच सन्नाटे को चीरते हुए आरोपी के वकील का एक सवाल आया। सवाल था कि तुम कैसे सबूत हो सकते हो? यह मामला तो 20 साल पुराना है। तुम्हारी उम्र ही 20 साल है। आलोक ने बताया कि जज साब मेरा पुनर्जन्म हुआ है। फैसले में देरी हो रही थी, इसलिए मैंंने सोचा कि मैं खुद सबूत बनकर मामले को निपटाने में आपका साथ दूं। मुझे सब याद आ गया है। सामने वाले साहब ने ही शराब के नशे में मुझ पर गाड़ी चढ़ा दी थी। आलोक ने कहा कि जज साब जिस प्रकार ‘करण अर्जुन‘ जैसी पुनर्जन्म वाली फिल्में हिट हो सकती हैं, जिस प्रकार भगवान विष्णु ने राम का अवतार लेकर दुष्ट रावण का सत्यानाश किया था, ठीक उसी प्रकार मेरा भी पुनर्जन्म हुआ है। आलोक के तर्क जज साहब को समझ आ रहे थे। क्योंकि वह घटना के बारे में पूरी हकीकत बयां कर रहा था। लेकिन जब फैसला सुनाया तो आरोपी को रिहा कर दिया गया। सबूत के अभाव में ऐसा फैसला दिया गया।
फैसले के बाद जज साब ने आलाेक के सिर पर प्यार भरा हाथ फेरते हुए कहा-’बेटा मुझे तुम्हारी एक-एक बात सही लग रही थीं। लेकिन तुम तो जानते हो कि हमारे हाथ कानून से बंधे हैं। मैंने कानून की किताबें तोते से भी अच्छी तरह रटी हैं। मुझे कहीं भी पुनर्जन्म सबूत के रूप में दिखाई नहीं दिया। कानून में पुनर्जन्म सबूत होता तो तुम्हारी सही दलीलों को हम भी सही मान लेते...।’
खैर अपन तो मामले पर आते हैं। आरोपी कटघरे में है। जज साब पूरे ध्यान से आरोपी पक्ष के वकील की दलीलें सुन रहे हैं। दूसरा पक्ष कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि उनके पास सबूतों का अभाव है। जज साब फैसला सुनाने ही वाले थे कि एक 20 साल का युवक कटघरे में आकर खड़ा हो गया, और न्याय की गुहार करने लगा। जज साहब ने सवाल किया कि तुम कौन? तो युवक ने बताया कि मैं इस मामले का एक मात्र सबूत हूं। युवक ने कहा-’जज साब! मेरा नाम आलोक है। 20 साल पहले जो व्यक्ति इन साहब की गाड़ी के नीचे आकर मरा था, वह मैं ही था। युवक की बात पर सुनवाई कक्ष में सन्नाटा पसर गया।
इस बीच सन्नाटे को चीरते हुए आरोपी के वकील का एक सवाल आया। सवाल था कि तुम कैसे सबूत हो सकते हो? यह मामला तो 20 साल पुराना है। तुम्हारी उम्र ही 20 साल है। आलोक ने बताया कि जज साब मेरा पुनर्जन्म हुआ है। फैसले में देरी हो रही थी, इसलिए मैंंने सोचा कि मैं खुद सबूत बनकर मामले को निपटाने में आपका साथ दूं। मुझे सब याद आ गया है। सामने वाले साहब ने ही शराब के नशे में मुझ पर गाड़ी चढ़ा दी थी। आलोक ने कहा कि जज साब जिस प्रकार ‘करण अर्जुन‘ जैसी पुनर्जन्म वाली फिल्में हिट हो सकती हैं, जिस प्रकार भगवान विष्णु ने राम का अवतार लेकर दुष्ट रावण का सत्यानाश किया था, ठीक उसी प्रकार मेरा भी पुनर्जन्म हुआ है। आलोक के तर्क जज साहब को समझ आ रहे थे। क्योंकि वह घटना के बारे में पूरी हकीकत बयां कर रहा था। लेकिन जब फैसला सुनाया तो आरोपी को रिहा कर दिया गया। सबूत के अभाव में ऐसा फैसला दिया गया।
फैसले के बाद जज साब ने आलाेक के सिर पर प्यार भरा हाथ फेरते हुए कहा-’बेटा मुझे तुम्हारी एक-एक बात सही लग रही थीं। लेकिन तुम तो जानते हो कि हमारे हाथ कानून से बंधे हैं। मैंने कानून की किताबें तोते से भी अच्छी तरह रटी हैं। मुझे कहीं भी पुनर्जन्म सबूत के रूप में दिखाई नहीं दिया। कानून में पुनर्जन्म सबूत होता तो तुम्हारी सही दलीलों को हम भी सही मान लेते...।’