Tuesday, February 21, 2012

क्यों ठीक कहा न ?


           ये सर्वे करने वाले बड़े अजीब होते हैं। न जाने किस-किस विषय पर सर्वे करते हैं। अपना समय तो खराब करते ही हैं, साथ ही दूसरों का दिमाग भी। अब देखो न 'सेव द चिल्ड्रन' एनजीओ को, क्या जरूरत थी यह बताने की कि हमारे देश में छह साल तक के करीब एक चौथाई बच्चे रोज भूखे रह जाते हैं। क्या जरूरत थी यह बताने की कि देश के करीब 30 फीसदी परिवारों को बढ़ती महंगाई के कारण अपने भोजन में कटौती करनी पड़ रही है। लगता है इस एनजीओ में काम करने वालों लोगों के बच्चे भी भूखे रह रहे होंगे, तभी तो देश को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।
          मेरे पास सर्वे करने आते तो मैं बताता इनको देश के बारे में। मुझसे पूछते तो मैं बता देता भारत कितनी तरक्की कर रहा है। प्रधानमंत्री ट्वीटर पर आ गए हैं। सोनिया गांधी अपने लाड़ले सपूत राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रही हैं। प्रियंका गांधी अपनी मम्मी के सपने को साकार करने अपने बच्चों तक को मंच पर ले आईं हैं। मुम्बई में मोनो रेल दौड़ रही है। सूचना प्रसारण मंत्री कपिल सिब्बल 'आकाश' को लेकर सातवें आकाश पर हैं। महंगाई बढ़ रही है। भारत ने फ्रांस से 50 हजार करोड़ का रक्षा सौदा किया है। भारत में आतंकवादी हमला करने वाला राष्ट्रीय दामाद अजमल आमीर कसाब की बड़े 'भाई साहब' की तरह खातीरदारी हो रही है। कसाब की सुरक्षा पर अभी तक भारत सरकार लगभग 30 करोड़ से अधिक खर्च कर चुकी है। फेसबुक कंपनी ने कानपुर आईआईटी के विद्यार्थी सिद्धार्थ अग्रवाल को 70 लाख सालाना का पैकेज दिया है। हमारे देश का चावल, गेहूं और फल विदेशों में भेजा रहा है।
            आज भी हमारे देश के पास बहुत पैसा है। लेकिन सर्वे करने वालों को कौन समझाए कि आतंकवाद जैसी आयातित आपदा कभी भी आ सकती है। कौन समझाए कि हमारे देश के बच्चे भले ही भूखे मर जाएं लेकिन हम आतंकवादियों को भूखों नहीं मरने देते! क्योंकि 'अतिथि देवो भव:' पर हमारा अटूट विश्वास है। सर्वे करते तो पता चलता कि हमने अभी तक किसी भी आतंकवादी को भूखे नहीं मरने दिया। यह हमारी विश्व-मानवी संवेदनशीलता का परिचायक है। संसद पर हमला करने वाला मोहम्द अफजल हो या फिर अजमल आमिर कसाब। सर्वे करने वालों ने यही तो बताया कि हर रोज चार बच्चे सूखे सोते हैं। अच्छा हुआ उन्होंने यह नहीं बताया कि उनके पास पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं, पढऩे के लिए किताब नहीं है।
           बताते हैं कि सर्वेक्षण दिसम्बर और जनवरी में नाइजीरिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, पेरू और भारत में किया गया। इसमें गांव और शहरों के 1000 से अधिक लोगों से बात की गई है। सर्वेक्षण के मुताबिक हर साल देश में पांच साल तक के 17.2 लाख बच्चों की मौत हो जाती है। इनमें से आधे से अधिक की मौत जन्म के बाद पहले ही महीने में हो जाती है। दुनिया के 187 देशों के मानव विकास सूचकांक में भारत को 134वां स्थान हासिल है।
              मामूल है कि कुछ होना जाना नहीं फिर भी कुछ न कुछ तो करना ही है, आग लगाने के लिए। अच्छा भला देश चल रहा है, लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों इन्हें तो अपने सर्वेक्षण से काम है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है ये सर्वेक्षण करने वाले भारत की तरक्की से जलते हैं। किसे नहीं पता कि हमारे देश में कुपोषण के शिकार बच्चों की मौत हो रही है। किसे नहीं पता कि हमारा देश में भुखमरी है। बेमतलब के सर्वेक्षण करने बैठ जाते हैं।
              शायद इन्हें पता ही नहीं है कि ये सर्वे-फर्वे की रिर्पोट तो हम जैसे नेताओं के पास ही आनी है। जब हमें कुछ करना ही नहीं है तो क्यों इन बातों पर ध्यान लगाओ। अपना बच्चा तो भूखा नहीं सो रहा है न ! दूसरे के बच्चों के सोने-जागने का हमने ठेका थोड़े ही ले रखा है। क्यों ठीक कहा न!


 

Wednesday, February 15, 2012

बोलो! अब करोगे वादा


        ये वादा करने वाले भी बड़े अजीब होते हैं। कुछ लोग तो वादा निभाते हैं और कुछ लोग निभाने का नाटक करते हैं। कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो वादा करते हैं और अगले ही पल भूल जाते हैं। लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो वादा करके बड़े बुरी तरह फंस जाते हैं। अब अपने चुन्नीलाल नेताजी को ही लो। पिछले विधानसभा चुनाव में उन्होंने हमारे क्षेत्र की जनता से कई वादे किए थे। हालांकि उनकी सरकार तो बनी नहीं लेकिन बेचारे चुन्नीलाल का चैन जरूर उड़ गया।
        आप तो जानते ही होंगे अपने चुन्नीलाल नेताजी को। वही नेताजी जिन्होंने एक चुनावी सभा में जनता से वादा किया था कि जब तक मैं इस गांव का विकास नहीं कर दूंगा यहां से जाऊंगा नहीं। उनकी 'जब तक' की बात पर 'अब तक' जनता उन पर निगाह रखे हुए है। बेचारे चुनाव में प्रचार करने आए थे। लेकिन न तो सीट मिली और न ही कुर्सी। लेकिन गांव वालों ने नेताजी को पकड़कर रख लिया है। कह रहे हैं कि जब तक विकास नहीं करोगे तब तक जाने नहीं देंगे। इसलिए अब चुन्नीलाल का चेहरा मुरझा गए हैं। उनके कपड़े भी मटेले हो गए हैं और दाढ़ी भी बढ़ गई है।
        भई! बड़े बुजुर्गों ने कहा है कि-बोलने से पहले सोच लिया करो। लेकिन कुछ हंै कि मानते ही नहीं। ऐसा ही बिना बोले चुन्नीलाल ने बड़े-बड़े वादे किए और अब बंध गए।
        अपने धीर सिंह कक्का ने चुन्नीलाल नेताजी को ऐसा पकड़कर रखा है कि पूछो मत! जब वादा किया था तो चुन्नीलाल के चेहरे पर चमक थी। सोच रहे थे कि सरकार बनते ही यह चमक हम बनाए रखेंगे। लेकिन चुनवा परिणाम आने के बाद चमक तो गई साथ ही साथ चुल्लू भर पानी भी नसीब नहीं हो रहा कि कहीं डूब कर मर जाएं! धीर सिंह कक्का ने नेताजी की बढ़ी हुई दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए कहा- क्यों भाई चुन्नी। अब करोगे जनता से वादा! अब काहे को परेशान हो रहे हो। तुमही तो कह रहे थे कि चाहे कुछ भी हो जाए हमरे गांव का विकास किए बगैर यहां से जाऊंगा नहीं। गांव का विकास करके ही यहां से जाएंगे। वोट बटोरने के लिए बड़ी बकबक कर रहे थे कि चाहे काले झण्डे दिखाओ, गोली मारो हम यहां से हिलेंगे नहीं!
       कक्का इतना कहकर निकले ही थे कि चुन्नीलाल को चुन्नु ने घेर लिया, चिढ़ाते हुए बोला- क्यों नेताजी क्या है इरादा/ अब करोगे जनता से वादा। इस पर तपाक से नेताजी बोले नहीं, नहीं....।


सुमित 'सुजान', ग्वालियर

  

Friday, February 3, 2012

लैपटॉप जी! रोटी टपका दो


   
                                        

    अरे यार बंशीराम इधर तो आओ। कहां जा रहे हो? कुछ नहीं राजू भैय्या देखने जा रहे हैं कि सरकार बनने पर कौन क्या-क्या बांट रहा है! जरा रुको! हम भी चल रहे हैं।
    बंशी भाई सुना है हमारे बच्चों को मुफत में लैपटॉप दिए जा रहे हैं।
    हां! तुमने सही सुना है।
    वैसे यह लैपटॉप होता क्या है? हमारे गांव में इसका क्या काम है?
    अरे बंशी धीरे बोल, यदि किसी पार्टी के नेता ने सुन लिया कि यहां के गांव के लोगों को लैपटॉप के बारे में नहीं पता है तो कम्बख्त अपना घोषणा पत्र घड़ी करके रख देंगे। वैसे तू मोटे तौर पर यह समझ ले कि यह कम्प्यूटर की तरह होता है, जिससे कई सारे काम किए जा सकते हैं।
    लैपटॉप आएगा तो हमारे बच्चों को काफी फायदा होगा। वे अपना पाठ लैपटॉप में भी पढ़ सकते हैं। पूरी दुनिया की जानकारी भी लैपटॉप पर मिल जाएगी।
    अच्छा..!
    हां! और नहीं तो क्या!
    अरे मर गए राजू भैय्या!
    बच्चों से याद आया कि आज हम अपने बच्चों को क्या खिलाएंगे? हमारे घर में तो खाना ही नहीं बना है। लगता है आज भी भूखे पेट सोना पड़ेगा। दो दिन में बेचारा हमारा मुन्ना बिना खाने के दुबला हो गया है। अब तो ऐसा लगता है कि रोटी की व्यवस्था होनी चाहिए।
    रोटी की व्यवस्था पर क्यों?
    लो आपको भी नहीं पता!
    चलो हम बताते हैं.....।
    कुछ दिन पहले प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इस बात को राष्ट्रीय शर्म बता चुके हैं कि भारत में आज भी 42 फीसदी बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। लाखों बच्चों को भूखे पेट सोना पड़ता है। आज भी कई घर ऐसे हैं जहां खाने के लिए अन्न का दाना नहीं है। डॉक्टर भी मानते हैं कि हमारे बच्चों को इलाज की नहीं बल्कि पोषक आहार की जरूरत है।
उत्तर प्रदेश में लैपटॉप बांटने वाले नेताओं को शायद यह भी नहीं पता होगा कि देश में सबसे ज्यादा कुपोषण के शिकार बच्चे हमारे प्रदेश में ही है।
    आंख मूंदकर बैठे इन नेताओं को यह भी नहीं दिखता है कि जिस सीट से यह चुनाव लडऩे जाएंगे उस स्थान में बच्चों और उनके परिवारों की क्या स्थिति है!!
क्या मतलब है तुम्हारा?
    अरे... राजू भैय्या... मतलब यह है कि हमारे प्रदेश में 41 जिले हैं जिनमें सैकड़ों बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के रायबरेली में 58  प्रतिशत, भाजपा सांसद वरुण गांधी के पीलीभीत में 45 प्रतिशत और मुलायम सिंह के मैनपुरी में 43 प्रतिशत बच्चे कुपोषण के शिकार हैं। बेचारे बच्चों को खाने के लिए भोजन नहीं है। मैनपुरी तो कुपोषण के मामले में ऊंचे पायदान पर है।
    क्या तुम्हें पता है कि पिछले साल हमारा 541.33 टन अनाज सड़ गया था। यह स्थिति तब है जब सरकार की लगभग डेढ़ दर्जन योजनाएं चल रही हैं।
    राम...राम...राम... बंशी। जब तुम्हें इतना सब कुछ पता है तो काहे को इन नेताओं के भाषण सुनने जा रहे हो, काहे अपने खाने की व्यवस्था नहीं करते।
    अरे... राजू भैय्या! खाने की व्यवस्था करने ही तो जा रहे हैं! रामबती चाची का छोकरा आया था, कहकर गया है कि आज चौराहे पर नेताजी की सभा है। सभा में आने वाले को खाना-पीना सबकुछ मिलेगा।
अब समझमें नहीं आ रहा है कि कब तक सभा में जाकर खाना खाते रहेंगे। ये नेता ऐसा नहीं कर सकते क्या कि लैपटॉप का लॉलीपॉप अपने पास रख लें और हमारे लिए रोटी की व्यवस्था कर दें।
    हे... भगवान! अब तो इन नेताओं को बुद्धि दो...! इनसे कहो कि हमें लैपटॉप नहीं रोटी चाहिए...! लैपटॉप तो सारे काम करेगा ना! बस रोटी भी टपका दे।
                                                सुमित 'सुजान'