ये सर्वे करने वाले बड़े अजीब होते हैं। न जाने किस-किस विषय पर सर्वे करते हैं। अपना समय तो खराब करते ही हैं, साथ ही दूसरों का दिमाग भी। अब देखो न 'सेव द चिल्ड्रन' एनजीओ को, क्या जरूरत थी यह बताने की कि हमारे देश में छह साल तक के करीब एक चौथाई बच्चे रोज भूखे रह जाते हैं। क्या जरूरत थी यह बताने की कि देश के करीब 30 फीसदी परिवारों को बढ़ती महंगाई के कारण अपने भोजन में कटौती करनी पड़ रही है। लगता है इस एनजीओ में काम करने वालों लोगों के बच्चे भी भूखे रह रहे होंगे, तभी तो देश को बदनाम करने की कोशिश की जा रही है।
मेरे पास सर्वे करने आते तो मैं बताता इनको देश के बारे में। मुझसे पूछते तो मैं बता देता भारत कितनी तरक्की कर रहा है। प्रधानमंत्री ट्वीटर पर आ गए हैं। सोनिया गांधी अपने लाड़ले सपूत राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनने के सपने देख रही हैं। प्रियंका गांधी अपनी मम्मी के सपने को साकार करने अपने बच्चों तक को मंच पर ले आईं हैं। मुम्बई में मोनो रेल दौड़ रही है। सूचना प्रसारण मंत्री कपिल सिब्बल 'आकाश' को लेकर सातवें आकाश पर हैं। महंगाई बढ़ रही है। भारत ने फ्रांस से 50 हजार करोड़ का रक्षा सौदा किया है। भारत में आतंकवादी हमला करने वाला राष्ट्रीय दामाद अजमल आमीर कसाब की बड़े 'भाई साहब' की तरह खातीरदारी हो रही है। कसाब की सुरक्षा पर अभी तक भारत सरकार लगभग 30 करोड़ से अधिक खर्च कर चुकी है। फेसबुक कंपनी ने कानपुर आईआईटी के विद्यार्थी सिद्धार्थ अग्रवाल को 70 लाख सालाना का पैकेज दिया है। हमारे देश का चावल, गेहूं और फल विदेशों में भेजा रहा है।
आज भी हमारे देश के पास बहुत पैसा है। लेकिन सर्वे करने वालों को कौन समझाए कि आतंकवाद जैसी आयातित आपदा कभी भी आ सकती है। कौन समझाए कि हमारे देश के बच्चे भले ही भूखे मर जाएं लेकिन हम आतंकवादियों को भूखों नहीं मरने देते! क्योंकि 'अतिथि देवो भव:' पर हमारा अटूट विश्वास है। सर्वे करते तो पता चलता कि हमने अभी तक किसी भी आतंकवादी को भूखे नहीं मरने दिया। यह हमारी विश्व-मानवी संवेदनशीलता का परिचायक है। संसद पर हमला करने वाला मोहम्द अफजल हो या फिर अजमल आमिर कसाब। सर्वे करने वालों ने यही तो बताया कि हर रोज चार बच्चे सूखे सोते हैं। अच्छा हुआ उन्होंने यह नहीं बताया कि उनके पास पहनने के लिए कपड़े नहीं हैं, पढऩे के लिए किताब नहीं है।
बताते हैं कि सर्वेक्षण दिसम्बर और जनवरी में नाइजीरिया, पाकिस्तान, बांग्लादेश, पेरू और भारत में किया गया। इसमें गांव और शहरों के 1000 से अधिक लोगों से बात की गई है। सर्वेक्षण के मुताबिक हर साल देश में पांच साल तक के 17.2 लाख बच्चों की मौत हो जाती है। इनमें से आधे से अधिक की मौत जन्म के बाद पहले ही महीने में हो जाती है। दुनिया के 187 देशों के मानव विकास सूचकांक में भारत को 134वां स्थान हासिल है।
मामूल है कि कुछ होना जाना नहीं फिर भी कुछ न कुछ तो करना ही है, आग लगाने के लिए। अच्छा भला देश चल रहा है, लेकिन फिर भी पता नहीं क्यों इन्हें तो अपने सर्वेक्षण से काम है। कभी-कभी तो ऐसा लगता है ये सर्वेक्षण करने वाले भारत की तरक्की से जलते हैं। किसे नहीं पता कि हमारे देश में कुपोषण के शिकार बच्चों की मौत हो रही है। किसे नहीं पता कि हमारा देश में भुखमरी है। बेमतलब के सर्वेक्षण करने बैठ जाते हैं।
शायद इन्हें पता ही नहीं है कि ये सर्वे-फर्वे की रिर्पोट तो हम जैसे नेताओं के पास ही आनी है। जब हमें कुछ करना ही नहीं है तो क्यों इन बातों पर ध्यान लगाओ। अपना बच्चा तो भूखा नहीं सो रहा है न ! दूसरे के बच्चों के सोने-जागने का हमने ठेका थोड़े ही ले रखा है। क्यों ठीक कहा न!