Wednesday, September 19, 2012

हमारी स्वीट् भाषा हिन्दी...


         आज का दिन रामदीन जी के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा। अभी एक स्कूल में हिन्दी दिवस पर 'स्पीच' देकर आ रहे हैं। मैं भी उनके साथ गया था। 'प्रोगाम' काफी अच्छा रहा। शिक्षक होने के नाते रामदीन जी की 'नॉलेज' अच्छी है, जिसका अनुभव मुझे भी हुआ। लेकिन रास्ते में लौटते वक्त थोड़ा विवाद हो गया।
        रामदीन जी जब बोल रहे थे तब मैंने देखा कि सभी उनको कितने ध्यान से सुन रहे हैं। माइक को थामते हुए रामदीन जी ने कहा कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है। हमें हिन्दी का सम्मान करना चाहिए। उनके ये शब्द बोलते ही बच्चे काफी देर तक तालियां बजाते रहे।
       अब आपको तो पता ही है कि तालियां कितना उत्साह बढ़ाती हैं, सो रामदीन का भी उत्साह बढऩे लगा। आगे वह बोले कि पूरी दुनिया में सबसे 'स्वीट्' भाषा यदि कोई है तो वह हमारी हिन्दी ही है। हिन्दी की इसी 'क्वालिटी' के कारण कई देशों अमेरिका, चाइना, जापान, मलेशिया और न जाने कहां-कहां लोग हिन्दी सीखने की कोशिश कर रहे हैं।
       रामदीन जी बोले- 'हिन्दी भाषा की सरलता के कारण इसे बोलने और लिखने में भी काफी आसानी होती है। यही कारण है कि आज हमारी 'कंट्री' में करोड़ो लोग हिन्दी बोलते हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि आज हिन्दी को कई लोग भूलते जा रहे हैं। 'नो वडी वांट टू स्पीक हिन्दी'। इसलिए हमको हिन्दी भाषा का सम्मान दिलाने के लिए यह जरूरी है कि हम सभी हिन्दी को अधिक से अधिक 'यूज' करें और दूसरों को भी 'यूज' करने के लिए निवेदन करें। यदि हम इस प्रकार का प्रयास लोगों के बीच जाकर करेंगे तो 'डेफीनेटली' हम हिन्दी को विश्व की सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा के रूप में स्थापित कर सकेंगे। आप लोगों ने मुझे जो बोलने का अवसर दिया इसके लिए 'थैंक्यू'।' इसके बाद रामदीन जी मंच पर आ गए।
      कार्यक्रम यहां भी खत्म नहीं हुआ। कार्यक्रम के अंत में रामदीन जी के उपन्यास 'वन डे' का विमोचन भी किया गया। अंग्रेजी भाषा में लिखित इस उपन्यास की सभी ने तारीफ की।
      घर लौटते वक्त रामदीन जी फूले नहीं समा रहे थे। वह बोले-'आई डोंट थिंक देट' स्कूल वाले मुझे इतना 'रेसपेक्ट' देंगे। 'आई नेवर फॉरगेट दिस रेसपेक्ट'। फिर उन्होंने पूछा अच्छा छोड़ो, तुमने तो पूरी 'स्पीच' सुनी है तो तुम मुझे कितने 'प्वाइंट' देगो? मैं क्या करता। काफी देर तक तो चुप रहा। लेकिन फिर मुझे बोलना ही पड़ा-'आई विल गिव यू जीरो मार्स्क'। क्योंकि हम जैसे लोगों की वजह से ही हिन्दी को उसका सही सम्मान नहीं मिल पा रहा है। मेरी बात रामदीन जी समझ गए कि मैं क्या कहना चाहता हूं। अरे...आप समझे या नहीं? 

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