चोर कई तरह के होते हैं। जैसे चप्पल चोर, पर्स चोर, आभूषण चोर आदि। सब चोरी करते हैं। इनके चोरी करने के तरीके भी अलग-अलग होते हैं। लेकिन कुछ चोर अलग किस्म के होते हैं। बिल्कुल टीम अण्णा से निकाले गए मुफ्ती शमीम काजमी और स्वामी अग्निवेश की तरह। ये ऐसे चोर होते हैं जो हमारे जज्बातों, बयानों और हमारी योजनाओं की चोरी करते हैं। स्वामी अग्निवेश ने भी जनता की भावनाओं को चोरी कर सरकार को सारी बात बताई और आन्दोलन कमजोर किया। कुछ ऐसा ही मुफ्ती शमीम काजमी कोर कमेटी की बैठक में मोबाइल से रिकार्डिंग कर कर रहे थे। काजमी, अग्निवेश बातें चोर हैं! जो बातें चुराकर दूसरों को बेचते थे!
चोर कोई भी हो, वह जब भी पकड़ा जाता है, हमेशा यही कहता है कि मैंने चोरी नहीं की। ठीक उसी प्रकार, जिस प्रकार काजमी ने कहा कि मोबाइल में रिकार्डिंग का बटन धोखे से दब गया होगा। उन्हें रिकार्डिंग करना आती नहीं। भले ही उनके मोबाइल में रिकार्डिंग की क्लीपिंग हों। एक बात यह भी है कि चोर कभी भी अपने आपको चोर कहलवाना पसंद नहीं करता। बेचारा वह भला आदमी कबसे कह रहा था कि मुझे रिकार्डिंग करना आती ही नहीं लेकिन कमेटी के सदस्यों ने उनकी एक न सुनी। सीधे बाहर निकाल दिया। ये गलत बात है!
ऐसा लगता है टीम अण्णा को एक बैठक बुलाकर अपनी कमेटी का नाम बदलना चाहिए। टीम अण्णा को अपनी कोर कमेटी का नाम बदलकर इसे कोर की जगह 'चोर' कमेटी कर देना चाहिए। क्योंकि इसके दो कारण है। एक तो यह कि पिछले एक साल में ही 25 लोगों की इस कमेटी से स्वामी अग्निवेश और काजमी जैसे 2 चोर बाहर हो चुके हैं। दूसरा यह है कि 'चोर' शब्द का टीम अण्णा से गहरा नाता है। मनीष सिसौदिया ने 'चोर की दाढ़ी में तिनका' मुहावरे का प्रयोग करके पहले भी फहीजत कर दी थी। और अरविन्द केजरीवाल भी देश के सांसदों को 'चोर', लुटेरे और हत्यारे की संज्ञा देकर काफी बदनामी करा चुके हैं.
अण्णा हजारे कई बार अनशन कर चुके हैं। कई बार अपनी बात को भी मनवा चुके हैं। कई लोगों की बात भी मानते हैं। लेकिन मेरी बात न मानते हैं, न ही सुनते हैं। सरकार भले ही झूठे आश्वासन देकर अनशन तुड़वा देती है लेकिन उनकी टीम तो कहीं का न छोड़ेगी। इसलिए मेरी बात मान लें तो अच्छा है। कब से चिल्ला रहा हूं कि...भ्रष्टाचार हमारी रग-रग में समा चुका है। देश आज नहीं तो कल सुधर ही जाएगा। लेकिन पहले अपनी टीम को ही सुधार लो....।