Wednesday, May 30, 2012

'मन' मोहने वाले अर्थशास्त्री


                 देशवासी भले ही प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह के अर्थशास्त्री होने पर शक करते हो, लेकिन मैं नहीं करता। सबसे बड़ा और समझदार अर्थशास्त्री वही है जो अपनी कंपनी को घाटा पहुंचाए बिना सभी को संतुष्ट करते चलता है। जब से मनमोहन सिंह ने कांग्रेस कंपनी संभाली है तब से देखो न कंपनी कितने फायदे में चल रही है। काफी उठापठक के बाद भी यह कंपनी देश चला रही है।
               वैसे इस कंपनी को संभालने वाले कई आए और गए लेकिन हमारे प्रधानमंत्री के नेतृत्व में कंपनी पूरी दुनिया में छा गई। हां! कई बार भारतीय जनता पार्टी, तृणमूल कांग्रेस, अण्णा डीएमके, टीम अण्णा, योग गुरू बाबा रामदेव और जनता दल के सुब्रहण्यम स्वामी जैसी प्रतिद्वंदी कंपनियों ने कांग्रेस कंपनी को काफी नुकसान पहुंचाने की कोशिश की लेकिन नतीजा कुछ नहीं निकला। हमारे प्रधानमंत्री का अर्थशास्त्र तो इतना बढिय़ा है कि उन्होंने तेल, कोयला, दूरसंचार, दवा जैसी किसी भी कंपनी को घाटा नहीं उठाने दिया। तेल कंपनियों ने जब भी नुकसान का शोर मचाया उन्होंने तुरंत दाम बढ़ा दिए। चाहे भले ही जनता को दिक्कत हुई हो। तीन साल में 16  बार दाम बढ़ाकर यही तो किया है। गरीब किसान कर्ज के बोझ तले भले ही आत्महत्या कर रहे हों लेकिन शराब कारोबारी विजय माल्या को कभी भी घाटा नहीं होने दिया।
                यह हमारे प्रधानमंत्री का अर्थशास्त्र ही तो था जिसमें उन्होंने विजय माल्या की किंगफिशर एयर लाइन को घाटे से उबारने के लिए तीन हजार करोड़ रुपए का कर्ज दिया। यह हमारे प्रधानमंत्री का अर्थशास्त्र ही तो है जिसमें उन्होंने रिलायंस तेल कंपनी के मालिक मुकेश अंबानी का दुनिया में सबसे महंगा आशियाना बनवाने में मदद की। अगर मुकेश अंबानी घाटे में होते तो क्या ऐसा संभव था कि अरबों रुपए का महल तैयार हो पाता। अब बात इस कंपनी के कर्मचारियों की करते हैं।
               यह प्रधानमंत्री का ही अर्थशास्त्र है जिसमें उन्होंने अपने मंत्रियों को आपस में मिल बांटकर भ्रष्टाचार करने की शक्ति प्रदान की। अब तो टीम अण्णा ने भी पूरी दुनिया में बता दिया कि इस कंपनी के 15 मंत्री भ्रष्टाचार में लिप्त हैं। पी. चिदंबरम, कपिल सिब्बल, कमलनाथ, सलमान खुर्शीद, प्रणब मुखर्जी जैसे कर्मचारियों ने किस प्रकार अपने-अपने कार्यकाल में अपने-अपने विभाग में भ्रष्टाचार किया यह भी सभी बता दिया है। 2-जी स्पेक्ट्रम आंबटन घोटाला, राष्ट्रमंडल खेल जैसे घोटालों की मदद से किसी को भी निराश नहीं किया, यह भी हमारे प्रधानमंत्री की ही अर्थशास्त्र है। घोटाले के आरोप में इन्हीं की कंपनी के एक कर्मचारी सुरेश कलमाड़ी गिरफ्तार हुए तो उन्होंने एक दूसरे मंत्री ए. राजा को भी जेल भेज दिया। ए. राजा भी कहीं नाराज न हो जाएं इसलिए उन्होंने कनिमोझी को भी जेल भिजवा दिया था।
              भले ही हमारे देश में रुपए का संकट चल रहा है, देश की प्रतिष्ठा दांव पर है, महंगाई से आम आदमी दम तोड़ रहा है लेकिन अपनी म्यांमार की यात्रा में 50 अरब डॉलर की सहायता देना भी अर्थशास्त्र ही तो है। पहले निवेश करना, फिर कमाना। यह हमारे प्रधानमंत्री का अर्थशास्त्र ही तो है जिसके कारण उन्होंने कंपनी की मालकिन सोनिया गांधी के दिमाग पर जादू कर दिया है। मालकिन जो कहती हैं वही करते हैं। यही तो एक अच्छे अर्थशास्त्री की निशानी है। इसलिए हमारे प्रधानमंत्री के बारे में भले ही कोई कुछ भी कहे लेकिन देशवासियों को 'मन' मोहने वाला अर्थशास्त्री दूसरा कभी मिलने वाला नहीं है।

Friday, May 25, 2012

आओ पिता का पता लगाएं


    भारत बड़ा अजीब देश है। अजीब इसलिए क्योंकि यहां काफी कुछ अजीब घटित होता है। बात-बात में बात पुलिस तक पहुंच जाती है, कभी-कभी तो न्यायालय तक भी। छोटी-छोटी बातों के लिए न्यायालयों को परेशान किया जाता है। दुकान खाली नहीं हो रही, चैक बाउंस हो गया, दुर्घटना का क्लेम लेना है, मकान मालिक से किरायेदार का झगड़ा, मिया-बीबी का झगड़ा जैसी छोटी-छोटी बातों के लिए उच्च न्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय तक के चक्कर कट जाते हैं। न्यायालय के पास वैसे ही काम बहुत है, अब एक नया मामला सुलझाना है। यहां रामसेतु को बचाने, कालेधन को वापस लाने की बात हो रही है ऐसे में पुत्र के पिता का पता लगाना अजीब ही तो है। न्यायालय भी क्या करे, मामला आया है तो निपटाना तो पड़ेगा ही। शायद इसलिए ही पिछले 2 साल से यही पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि उत्तरखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और आंध्रप्रदेश के पूर्व राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी ही रोहित शेखर के असली पिता हैं या नकली। बड़ा अजीब मामला है। हम 2 वर्षों से यही पता नहीं लगा पा  रहे हैं कि तिवारी ही रोहित के पिता हैं क्या? शायद भारत ही दुनिया में एकमात्र ऐसा देश होगा जहां कौन किसका पिता है इस बात पर न्यायालय फैसला करता है। पहले पॉलीग्राफ टेस्ट, फिर डीएनए टेस्ट। जब डीएनए टेस्ट के लिए खून का नमूना देने के लिए मना करे तो पुलिस द्वारा जबरदस्ती खून निकालने का फैसला। यह तो हमें भगवान को शुक्रिया अदा करना चाहिए कि रोहित की तरह किसी और लडक़े को ऐसी सद्बुद्धि नहीं दी। सोचो देश की 121 करोड़ की आबादी है, अगर इस आबादी में से केवल 5-10 हजार लावारिस लडक़े किसी पर भी पिता होने की ओर इशारा कर देते तो पिता का पता लगाने में न्यायालय की क्या हालत हो जाती! न्यायालय का पूरा समय तो यही पता लगाने में बीत जाता कि रामू के पिता कौन है और मोहन के कौन? आए दिन पिता का पता लगाने का मामला चलता। पुलिस भी शांति व्यवस्था को छोडक़र जगह-जगह खून के नमूने लेने के लिए दौड़ भाग करती नजर आती। चैनल वाले भी चकरघिन्नी हो जाते। कभी मुम्बई में सुनवाई होती तो कभी दिल्ली में। ऐसा लगता है कि या तो रोहित का दिमाग राकेश रोशन की फिल्म 'कोई मिल गया' के रोहित (ऋतिक रोशन) की तरह कमजोर है, या फिर इस कलयुग में रोहित श्रवण कुमार बनने की कोशिश कर रहे हैं। माता उज्ज्वल शर्मा तो हैं ही, बस पिता की टोकरी खाली है। न्यायालय का फैसला आ जाए तो वह भी भर जाएगी। दोनों को तीर्थयात्रा कराना होगी शायद रोहित को। इस श्रवण कुमार के बारे में श्रवण करते-करते न जाने कितने लोगों के कान पक चुके हैं। ऐसा लगता है कि वाकई में रोहित का दिमाग कमजोर है, क्योंकि ऐसा नहीं है तो उन्हें पहले ही न्यायालय की शरण में आ जाना चाहिए था। 86 वर्ष के तिवारी को बार-बार न्यायालय के चक्कर लगवाना अच्छी बात नहीं है। खुद 31 साल के रोहित यदि पहले ही न्यायालय पहुंच जाते तो मामला कभी का निपट गया होता। बड़ी अजीब स्थिति है, न्यायालय ने तिवारी का खून लेने का पुलिस द्वारा जबदस्ती खून निकलवाने की बात कही है। ऐसा लगता है कि तिवारी खून का नमूना न देकर अपनी जगह सही हैं। क्योंकि सोचने वाली बात यह है कि जिस व्यक्ति की पूरे देश में बदनामी हो चुकी हो, 86 वर्ष की उम्र में तीर्थ स्थानों की जगह न्यायालय के चक्कर लगाने पड़ रहे हो, अखबारों की सुखिर्यों और समाचार चैनलों में बार-बार नाम उछाला जा रहा हो, जिस व्यक्ति का जमीर मर चुका हो ऐसे व्यक्ति के शरीर में शायद ही खून की एक बूंद भी निकले। न्यायालय को पिता का पता लगाने के लिए कोई दूसरी तरकीब सोचनी चाहिए। इस बात पर पहले ही ध्यान दे देते तो 2 साल का समय बर्बाद न होता। खैर अभी भी देर नहीं हुई है। पिता का पता लगाने के लिए दूसरी विधि क्या हो सकती है इस विषय पर चिंतन करना चाहिए। आओ चिंतन करते हैं और पता करते हैं!!

Wednesday, May 16, 2012

हमारी प्यारी बूढ़ी संसद

          
           जानते हैं बुढ़ापे की खास बात क्या होती है। वह खास बात यह है कि बुढ़ापा एक बार आता है तो आते ही चला जाता है। दूसरी खास बात यह भी है कि व्यक्ति बूढ़ा होने पर कभी भी अपनी बुराई को सुन नहीं सकता। भले ही वह दिनभर दूसरों की बुराई करता रहे। ठीक इसी तरह हमारी संसद भी बुढ़ापे में प्रवेश कर गई है। संसद की 60वीं सालगिरह बड़े धूमधाम से सांसदों द्वारा मनाई गई। एक बात समझ नहीं आई कि हमने 59 वर्ष कब बिता दिए पता ही नहीं चला। लगता है सरकार ने सोचा होगा कि संसद की वर्षगांठ के जश्न में जनता का ध्यान इस बात से हटाया जाए कि हमारी कितनी किरकिरी हुई है। सभी सांसदों ने भारतीय लोकतंत्र की न सिर्फ बढ़ाई की बल्कि इसे दुनिया में सबसे बेहतर भी बताया। हां! सही बात है, भारत में लोकतंत्र है। यहां नक्सली अपनी बात मनवाने के लिए जिलाधीश, विधायक तक का अपहरण कर लेते हैं। कभी-कभी तो हमारे जवानों को ही मौत के घाट उतार देते हैं। हां! भारत में लोकतंत्र है। यहां घोटाले का पैसा नीचे से लेकर ऊपर तक बंटता है। अब देखो न 2जी स्पेक्ट्रम के आबंटन में हुए घोटाले में तत्कालीन दूरसंचार मंत्री ए. राजा, कनिमोझी और बड़ी-बड़ी दूरसंचार कंपनियों के अधिकारी जेल की हवा खा चुके हैं। हमारे यहां लोकतंत्र है, वह इस बात से भी साबित होता है कि हमने उत्तरप्रदेश के सबसे बड़े माफिया राजा भैया को ही उनके अनुभव के आधार पर जेल मंत्री बनाया। हमारे यहां राजनीति करने वाले राजद सांसद राजनीति प्रसाद राज्यसभा में लोकपाल बिल को ऐसे फाड़े देते हैं जैसे उनसे किसी ने उनकी जायदाद मांग ली हो। हम आतंकवाद को समाप्त करने के लिए अमेरिका में बड़े बोल बोलते हैं और यहां संसद पर हमला करने वाले मोहम्मद अफजल गुरु और मुम्बई पर हमला करने वाले कसाब को देशभक्तों की तरह पालते हैं। यहां सांसदों को खरीदा जाता है। भ्रष्टाचार समाप्त करने वालों को पीटा जाता है और जो राष्ट्रमंडल खेल के नाम पर बड़े खेल कर चुके कुछ लोगों को अपने नजदीक बिठाकर उनकी पीठ थपथपाई जाती है। संसद भी बूढ़ी हो चुकी है। इसे भी अपनी बुराई स्वीकार नहीं। अब देखो न बुढ़ापे की तरह संसद की गरिमा, सुरक्षा, कार्यप्रणाली जो एक बार बिगड़ी तो लगातार बिगड़ती चली जा रही है। यहां पहले कभी एक अपराधी घुसा होगा और बिल्कुल बुढ़ापे की तरह अपराधियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अब यहां 163 सांसद हत्या, लूट, डकैती जैसे मामलों से जूझ रहे हैं, जिनकी जांच चल रही है। लेकिन कुछ भी कहो जिस प्रकार घर में बुजुर्ग व्यक्ति सबसे प्यारे होते हैं, उसी प्रकार हमारी भी बूढ़ी संसद बड़ी प्यारी है। बेचारी संसद, बूढ़ी संसद!!

Wednesday, May 9, 2012

अब बचेगा देश!



          क्रिकेटरों को सांसद बनना एक अच्छी शुरुआत है। जिस प्रकार संसद का कायाकल्प हो रहा है उसे देखकर ऐसा लगता है कि आने वाले कुछ सालों में संसद दिल्ली के फिरोजशाह कोटला मैदान में लगेगी। क्रिकेटरों को सांसद बनाया जा रहा है और सांसदों को क्रिकेटर।
            क्रिकेटर और नेता जितनी तेजी से एक दूसरे के क्रियाकलापों को जितनी तेजी से बदल रहे हैं यदि इसी प्रकार से चलता रहा तो देश के सभी क्रिकेट स्टेडियम विधानसभाओं में बदल जाएंगे। विधानसभाओं में क्रिकेट के मैच हुआ करेंगे। अब देखो मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर ने राज्यसभा का सांसद बनने के लिए अपनी स्वीकृति दे दी है। सुना है उन्हें 103 नम्बर की सीट भी मिल गई है। इससे पहले भी क्रिकेट की दुनिया से संबंध रखने वाले नवजोत सिंह सिद्दु, मोहम्मद अजहररुद्दीन और कीर्ति आजाद जैसे क्रिकेटर संसद की दहलीज पर पहुंच चुके हैं। ये सभी कभी संसद भवन में दिखाई देते हैं तो कभी टीव्ही चैनलों पर क्रिकेट की कमियां बताते रहते हैं।
            नेताओं में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के नेता शरद पवार सांसद रहते हुए क्रिकेट की पिच तक पहुंच चुके हैं। उन्हें क्रिकेट इतना पसंद आता है कि उन्हें भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) का अध्यक्ष बनाया गया है। इसके अलावा वे अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट कांउसिल के भी अध्यक्ष हैं। इसी प्रकार पत्रकार से सांसद बने राजीव शुक्ला भी बीसीसीआई के उपाध्यक्ष और आईपीएल टूर्नामेंट के कमिश्नर हैं। पूर्व मंत्री शशि थरूर को भी क्रिकेट का काफी शोक था और उन्होंने अपनी महिला मित्र के साथ आईपीएल की एक टीम भी तैयार की थी। इसी प्रकार ललित मोदी ने भी क्रिकेट के नए स्वरूप आईपीएल की शुरुआत की। सुरेश कलमाड़ी भी राष्ट्र मण्डल खेलों में बड़ा खेल कर चुके हैं।
           यदि कामकाज के बदलाव का यह खेल ऐसे ही चलता रहा तो हो सकता है कि एक दिन क्रिकेटर गांधी टोपी में दिखाई देंगे और नेता आईपीएल में मिलने वाली ओरेंज केप में। जरा सोचिए कितना मजा आएगा  जब चोरी-छुपे बिकने वाले नेताओं की खुलेआम बोलियां लगेंगी। अगर ऐसा हो गया तो कितना बढिय़ा होगा। क्योंकि देश में 1 लाख 76  हजार करोड़ वाला टू-जी स्पेटक्ट्रम घोटाला और 10 लाख करोड़ कोयला आवंटन घोटाला निलामी नहीं होने के कारण ही हुआ है। यदि निलामी हो गई होती तो सब कुछ ठीक रहता। ऐसा लग रहा है अब देश में कुछ स्थितियां ठीक हो रही हैं। नेताओं की निलामी होगी और क्रिकेटर संसद चलाएंगे तो घोटाले सुनने को नहीं मिलेंगे। क्रिकेटर एक-दूसरे पर कुर्सियां भी नहीं फेंकेंगे, कोई बिल नहीं फाडेंगे, लोकसभा की आसंदी को भी नहीं घेरेंगे, माइक भी नहीं तोड़ेंगे। अब लगता है देश बच जाएगा!!

Wednesday, May 2, 2012

आत्मा भी नीलाम होना चाहती है, खरीदोगे क्या!


            जीवन में ज्यादा दौड़ भाग नहीं करनी चाहिए। क्या करना है दौड़ भाग करके? कुछ लोग सोचते हैं कि अभी दौड़ भाग करने से बुढ़ापा शांति से कट जाएगा। लेकिन ऐसा सही नहीं है। बुढ़ापा शांति में काटने की सोचने वाले दरअसल गलत सोचते हैं। अब मोहनदास करमचंद को ही लो। मोहनदास करमचंद मतलब महात्मा गांधी...! महात्मा गांधी ने भी काफी दौड़ भाग की। नंगे बदन न जाने कहां-कहां नहीं गए। यह सोचकर कि देश जब आजाद हो जाएगा तो आने वाली पीढ़ी मुझे याद रखेगी। उन्हें भी नहीं पता था कि लंदन में उनकी स्मृति से जुड़ी जब कुछ वस्तुओं को नीलाम करने की नौबत आएगी तब हमारी सरकार के पास केवल 81 लाख रुपए भी नहीं होंगे। उन्हें क्या पता था कि लंदन में उनकी हत्या के समय वहां से उठाई गई घास और मिट्टी आठ लाख रुपए में, चश्मा 27 लाख रुपए और चरखा 22 लाख रुपए में नीलाम होगा और हमारी सरकार चुपचाप तमाशा देखती रहेगी।
         देशवासियों को चिंता करने की बात है कि हमारा देश इतना गरीब हो गया कि हमारे पास 81 लाख रुपए भी नहीं हैं! क्योंकि 81 लाख रुपए होते तो क्या हम बापू की स्मृतियां नहीं खरीद लेते? अब ये बात अलग है कि हम राष्ट्रपति प्रतिभा देवी पाटिल की यात्रा में 205 करोड़ खर्च कर सकते हैं, कसाब की सुरक्षा में 30 करोड़ से ज्यादा लुटा सकते हैं, शराब कारोबारी विजय माल्या को 3000 करोड़ की आर्थिक सहायता दे सकते हैं, विश्वकप जीतने वाले क्रिकेट खिलाडिय़ों को 1-1 करोड़ खुशी में दे सकते हैं, विश्व के सबसे अमीर लोगों में शामिल मुकेश अंबानी 50 अरब रुपए का अपना घर बनवा सकते हैं, शाहरुख खान और ऋतिक रोशन 4.5 करोड़ सिर्फ टैक्स में ही दे सकते हैं, अफगानिस्तान को 50 करोड़ की आर्थिक सहायता दे सकते हैं। यह बात भी अलग है कि हमारे देश के लगभग 800 सांसद हर साल 4000 करोड़ की राशि विकास कार्यों के लिए खर्च करते हैं। सांसद विकास के लिए इतने गंभीर रहते हैं कि उन्हें नीलामी जैसे काम के लिए 81 लाख रुपए खर्च करना फालतू लगता है।
       आज हमारा देश आर्थिक रूप के अलावा भी और कई मामलों में गरीब हो गया है। हम नैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, वैचारिक व धार्मिक जैसे कई मामलों में गरीब हो गए हैं! हम इतने गरीब हो गए हैं कि अपने महापुरुषों को ही भूल गए हैं! अब इस गरीबी में क्या दौड़ भाग करें। बहुत गरीबी छा गई है इस देश में। सरकार के पास 81 लाख रुपए नहीं थे तो सरकार को विश्व बैंक से लोन लेना चाहिए था!
        महान वैज्ञानिक अलबर्ट आइन्स्टाइन ने सही ही कहा था कि आने वाली पीढ़ी इस बात पर विश्वास नहीं करेगी कि गांधी नाम का एक हाड़-मांस का इन्सान इस धरती पर जन्मा था। सरकार भी उन्हें भूल चुकी है। कल ही बापू मेरे सपने आए थे। कह रहे थे कि मेरे आदर्श, मेरे सिद्धांत, चश्मा, चरखा सबकुछ तो नीलाम हो चुका है अब आत्मा ही बची है। आत्मा भी नीलाम होना चाहती है, सरकार के पास इसके भी दाम हैं या फिर मुझे इसे भी विदेश में बिकवाना होगा! हो सके तो मुझे जल्दी सूचना देना, क्योंकि मेरे पास समय बहुत कम है....।