Friday, May 25, 2012

आओ पिता का पता लगाएं


    भारत बड़ा अजीब देश है। अजीब इसलिए क्योंकि यहां काफी कुछ अजीब घटित होता है। बात-बात में बात पुलिस तक पहुंच जाती है, कभी-कभी तो न्यायालय तक भी। छोटी-छोटी बातों के लिए न्यायालयों को परेशान किया जाता है। दुकान खाली नहीं हो रही, चैक बाउंस हो गया, दुर्घटना का क्लेम लेना है, मकान मालिक से किरायेदार का झगड़ा, मिया-बीबी का झगड़ा जैसी छोटी-छोटी बातों के लिए उच्च न्यायालय से लेकर उच्चतम न्यायालय तक के चक्कर कट जाते हैं। न्यायालय के पास वैसे ही काम बहुत है, अब एक नया मामला सुलझाना है। यहां रामसेतु को बचाने, कालेधन को वापस लाने की बात हो रही है ऐसे में पुत्र के पिता का पता लगाना अजीब ही तो है। न्यायालय भी क्या करे, मामला आया है तो निपटाना तो पड़ेगा ही। शायद इसलिए ही पिछले 2 साल से यही पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि उत्तरखण्ड के पूर्व मुख्यमंत्री और आंध्रप्रदेश के पूर्व राज्यपाल नारायण दत्त तिवारी ही रोहित शेखर के असली पिता हैं या नकली। बड़ा अजीब मामला है। हम 2 वर्षों से यही पता नहीं लगा पा  रहे हैं कि तिवारी ही रोहित के पिता हैं क्या? शायद भारत ही दुनिया में एकमात्र ऐसा देश होगा जहां कौन किसका पिता है इस बात पर न्यायालय फैसला करता है। पहले पॉलीग्राफ टेस्ट, फिर डीएनए टेस्ट। जब डीएनए टेस्ट के लिए खून का नमूना देने के लिए मना करे तो पुलिस द्वारा जबरदस्ती खून निकालने का फैसला। यह तो हमें भगवान को शुक्रिया अदा करना चाहिए कि रोहित की तरह किसी और लडक़े को ऐसी सद्बुद्धि नहीं दी। सोचो देश की 121 करोड़ की आबादी है, अगर इस आबादी में से केवल 5-10 हजार लावारिस लडक़े किसी पर भी पिता होने की ओर इशारा कर देते तो पिता का पता लगाने में न्यायालय की क्या हालत हो जाती! न्यायालय का पूरा समय तो यही पता लगाने में बीत जाता कि रामू के पिता कौन है और मोहन के कौन? आए दिन पिता का पता लगाने का मामला चलता। पुलिस भी शांति व्यवस्था को छोडक़र जगह-जगह खून के नमूने लेने के लिए दौड़ भाग करती नजर आती। चैनल वाले भी चकरघिन्नी हो जाते। कभी मुम्बई में सुनवाई होती तो कभी दिल्ली में। ऐसा लगता है कि या तो रोहित का दिमाग राकेश रोशन की फिल्म 'कोई मिल गया' के रोहित (ऋतिक रोशन) की तरह कमजोर है, या फिर इस कलयुग में रोहित श्रवण कुमार बनने की कोशिश कर रहे हैं। माता उज्ज्वल शर्मा तो हैं ही, बस पिता की टोकरी खाली है। न्यायालय का फैसला आ जाए तो वह भी भर जाएगी। दोनों को तीर्थयात्रा कराना होगी शायद रोहित को। इस श्रवण कुमार के बारे में श्रवण करते-करते न जाने कितने लोगों के कान पक चुके हैं। ऐसा लगता है कि वाकई में रोहित का दिमाग कमजोर है, क्योंकि ऐसा नहीं है तो उन्हें पहले ही न्यायालय की शरण में आ जाना चाहिए था। 86 वर्ष के तिवारी को बार-बार न्यायालय के चक्कर लगवाना अच्छी बात नहीं है। खुद 31 साल के रोहित यदि पहले ही न्यायालय पहुंच जाते तो मामला कभी का निपट गया होता। बड़ी अजीब स्थिति है, न्यायालय ने तिवारी का खून लेने का पुलिस द्वारा जबदस्ती खून निकलवाने की बात कही है। ऐसा लगता है कि तिवारी खून का नमूना न देकर अपनी जगह सही हैं। क्योंकि सोचने वाली बात यह है कि जिस व्यक्ति की पूरे देश में बदनामी हो चुकी हो, 86 वर्ष की उम्र में तीर्थ स्थानों की जगह न्यायालय के चक्कर लगाने पड़ रहे हो, अखबारों की सुखिर्यों और समाचार चैनलों में बार-बार नाम उछाला जा रहा हो, जिस व्यक्ति का जमीर मर चुका हो ऐसे व्यक्ति के शरीर में शायद ही खून की एक बूंद भी निकले। न्यायालय को पिता का पता लगाने के लिए कोई दूसरी तरकीब सोचनी चाहिए। इस बात पर पहले ही ध्यान दे देते तो 2 साल का समय बर्बाद न होता। खैर अभी भी देर नहीं हुई है। पिता का पता लगाने के लिए दूसरी विधि क्या हो सकती है इस विषय पर चिंतन करना चाहिए। आओ चिंतन करते हैं और पता करते हैं!!

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