Wednesday, June 27, 2012

बड़े साहब की बड़ी कार्रवाई

 
        बात करते-करते बात बोरवेल तक आ गई। बोरवेल आजकल जानलेवा हो गए हैं। बोरवेल में बच्चे गिर जाते हैं, उनकी जान तक चली जाती है। दो सिपाहियों की बातचीत चल ही रही थी कि इतने में थानेदार साहब भी आ गए। घुसते ही चिल्लाते हुए बोले-''रामकिशन इधर आओ, इस इंजीनियर को जेल में डाल दो।''
       वाह! साहब आपने तो कमाल कर दिया-आपने तो माही की मौत के बाद तुरंत कार्रवाई कर दी। कहां से पकड़ लाए हो? तभी थानेदार साहब बोले-अरे यार! ये वो वाला इंजीनियर नहीं है। ये तो किसी दूसरे गांव से पकडक़र लेकर आया हूं। यह आज सुबह अपने कर्मचारियों के साथ गांव में मिल गया था। नया बोरवोल करने के लिए निरीक्षण कर रहा था तभी इसको मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया।
        वाह! साहब, आपकी दूरदृष्टि सोच को तो मानना पड़ेगा। आजकल बोरवेल में बच्चे काफी गिर रहे हैं। ये इंजीनियर गहरा गड्ढा करके चले जाते हैं कम्बख्त हमारी मुसीबत हो जाती है। कहीं कोई बच्चा गिर गया तो फिर बुलाओ सेना को, पुलिस को। मीडिया के सवालों के जवाब देना तक मुश्किल हो जाता है कि बोरवेल करने वाले इंजीनियर के खिलाफ पुलिस क्यों कुछ नहीं करती? आपने तो सभी आने वाली समस्याओं का तत्काल निराकरण कर दिया।
       तुम ठीक कहते हो रामकिशन- थानेदार साहब बोले। मुझे तो लगता है सरकार को एक नया ''बोरवेल रोको कानून'' बनाना चाहिए। इसमें बोरवेल की बात करने वालों को तत्काल सजा दी जानी चाहिए। जो बोरवेल करता हुआ मिला उसके खिलाफ तो सख्त से सख्त कार्रवाई करना चाहिए। हां! साहब आप ठीक कह रहे हो- रामकिशन सिपाही भी हां में हां मिलाते हुए बोला।
        थोड़ी देर बाद रामकिशन बोला- सर मेरे पास एक सुझाव है। साहब हम इस इंजीनियर को गुडग़ांव के मानेसर में बोरवेल में पांच साल की बच्ची माही की मौत का जिम्मेदार बता दे तो कैसा रहेगा। आप बस इसकी जमकर सुताई कर देना खुद व खुद गुनाह कबूल कर लेगा।
           इतने में एक दूसरा सिपाही भी वहां पहुंच गया। वह दो मजदूरों को  पकडक़र लाया था। थानेदार साहब ने पूछा तो उसने बताया कि- साहब ये दो मजदूर कल्लू और मुन्ना हैं। ये दोनों गांव में एक गड्ढा खोदने की योजना बनाते हुए पुलिया के पास मिले हैं। देखो इनके पास से ये गेती और फावड़ा भी मिला है। यह इस बात का सबूत है।ये दोनों गड्ढा खोदकर पानी निकालने की बात कर रहे थे। तभी कल्लू बोला- साहब हम लोग पानी के लिए कुंआ खोदने की योजना बना रहे थे। इतने में थानेदार साहब का पारा और चढ़ गया। चुप करो। बोरवेल में बच्चे गिर रहे हैं, अब  कुंआ खोदकर क्या पूरे गांव को मारोगे....। तुम्हें तो इंजीनियर से भी ज्यादा कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
          शाम के वक्त थानेदार साहब अपने सिपाहियों की पीठ थपथपाते हुए बोले- आज हम लोगों ने अच्छा काम किया है। हमने आने वाली मुसीबतों पर जो कार्रवाई की है वह वाकई में काबिले तारीफ है। उम्मीद है हम ऐसे ही आगे भी कार्रवाई करते रहेंगे। यदि इसी प्रकार भविष्य में कार्रवाई होती रहें तो हम फिर किसी भी माही को मरने नहीं देंगे....। जी साहब! हम ऐसा ही करेंगे- सभी सिपाही एक साथ बोले।

Tuesday, June 19, 2012

नए भारत की नई तस्वीर


            बच्चे बड़े भोले होते हैं। हमारे पड़ोस में रहने वाला पिंकू भी बहुत भोला है। सिर्फ 12 साल का ही तो है। सुबह घर आया था। पिंकू को अभी से ही अपने भविष्य की चिंता होने लगी है। मेरे पास आया, मुझसे कहता है कि अंकल 'मैं बड़ा होकर टूरिस्ट गाइड बनना चाहता हूं।' तब मैंने कहा- 'टूरिस्ट गाइड तो वैसे ही देश में बहुत हैं, जब तू बड़ा होगा तो न जाने कितने हो जाएंगे।' इतने तो देश में पर्यटन स्थल नहीं रह जाएंगे जितने की टूरिस्ट गाइड हो जाएंगे।
     'हां! आपने ठीक कहा, लेकिन मैं फिर भी कुछ अलग स्थल पर्यटकों को दिखाऊंगा। मैंने इसकी तैयारी भी शुरू कर दी है।'
        मैं भी जानता हूं कि पिंकू बड़ा जिद्दी है। अपनी तैयारी की फाइल दिखाते हुए बोला-'यह देखो अंकल मेरे पर्यटन स्थल।'  बाकई में उसके पर्यटन स्थल देखकर मैं भी आश्चर्यचकित था। पिंकू ने पहला पन्ना दिखाते हुए बोला- 'देखो अंकल यह योजना आयोग का दफ्तर है। इस दफ्तर में पर्यटकों को 35 लाख रूपए की लागत से बना हुआ टॉयलेट दिखाया जा सकता है। इसको दिखाने से हमारे देश की साख बढ़ेगी। क्योंकि जब हम 35 लाख रूपए का सिर्फ टॉयलेट बनवा सकते हैं तो फिर अन्य सुविधाओं पर कितना खर्च करते होंगे सोच सकते हैं।'
          इसके बाद यह देखो दिल्ली का रामलीला मैदान। यह वह स्थान है जहां पर कुछ साल पहले कालाधन धन भारत लाने की मांग करने वाले एक देशभक्त बाबा को दिल्ली पुलिस ने बुरी तरह से पीटा था।यही वह स्थान है जहां दिल्ली पुलिस ने जलियांवाला बाग का दृश्य निर्मित किया था। दिल्ली पुलिस जनरल डायर बन गई थी।
इसके बाद यह देखो केन्द्रीय दूरसंचार, कोयला और खेल मंत्रालय। यहां पर्यटकों को बताऊंगा कि यही वह स्थान है जहां पर 2-जी स्पेक्ट्रम, राष्ट्रमण्डल और कोयला आवंटन जैसे बड़े-बड़े घोटाले हुए। इसी प्रकार यह देखो राष्ट्रपति भवन। राष्ट्रपति भवन के बारे में बताया जाता है कि यहां देश के प्रथम नागरिक निवास करते हैं। लेकिन इस प्रथम नागरिक को यहां तक पहुंचने के लिए कितने पापड़ बेलने पड़ते हैं यह वही जानता है। प्रथम नागरिक बनने के लिए द्वितीय और तृतीय स्तर के नेताओं से जोड़-तोड़ तक करनी पड़ती है। यहां राष्ट्रपति अपनी यात्राओं पर 200 करोड़ रुपए तक खर्च कर देते हैं।
          इसके बाद यह देखिए लखनऊ और मुम्बई। लखनऊ में मायावती के हाथी पार्क। करोड़ों रुपए के हाथी पार्क को घुमने और घुमाने में बड़ा ही आनंद आएगा। ये मुम्बई में आर्थर रोड की जेल। यह भी घुमाऊंगा।
           यही वह जेल है जहां पर मुम्बई पर आतंकी कहर बरपाने वाला आतंकवादी अजमल आमीर कसाब सालों तक हमारे देश में पूरे ठाठ से रखा गया। जब तक हम उसे फांसी दे पाते बिचारा बूढ़ा होकर मर गया।
वाकई में यार पिंकू...! हमारे देश में तो यह भी देखने लायक स्थल हो सकते हैं मैंने तो सोचा ही नहीं था। 'अरे अंकल! ये तो कुछ भी नहीं है अभी तो और भी कुछ देखना बाकी है। नए भारत की नई तस्वीर तो और भी जबर्दस्त होगी...।'

Wednesday, June 13, 2012

बहू सुपुत्री तो का धन संचय

       
   आजकल सासों की सांसें फूल रही हैं। हां! बहुओं की तरक्की किससे देखी जाती है। आश्चर्य हो रहा है कि चौपालों पर, घर की देहरी पर, मंदिर में, क्लब में, उद्यानों में, सत्संगों में, सभी जगह सासों ने बहुओं की बुराई करना भी बंद कर दिया है। सोच भी बदलने लगी है। बहू रोज-रोज बाजार की दौड़ लगाएगी। महंगे-महंगे कपड़े पहनेगी, जेवर बनवाएगी। बहू आएगी तो खर्चे बढ़ जाएंगे। बहू आएगी तो सब अपने आप संभाल लेगी। घर को भी, देश को भी। भगवान से भी एक ही अर्जी लगाई है कि बहू दे तो 'डिंपल' जैसी सिंपल देना। हां क्या पता कब बहू की किस्मत चमक जाए, वह संसद में दिखाई दे। बहू सिंपल होने के साथ-साथ राजनीति में भी थोड़ी रूचि रखती हो। रूचि नहीं भी हो तो चल जाएगा। हम उसे राजनीति समझा देंगे। जनता से वादे ही तो करना है। चुनाव के समय जनता से बीच जाना है। उनके बच्चों को अपने बच्चों की तरह गोदी में उठाकर मम्मी पापा से वोट मांगने की गुजारिश करना है। एक आध गरीब की झोपड़ी में खाना खाने से जीत पक्की समझो। बहू एक बार चुनाव हार भी जाएं तो कोई बात नहीं, दूसरी बार भी आजमा कर देख लेंगे। आज नहीं तो कल जीतेगी ही। एक बार जीत गई तो समझो फिर तो इतिहास बन गया  पूरे घर का। सभी काम नेतागिरी से हो जाएंगे। बेटों और रिश्तेदारों सभी को कहीं न कहीं फिट करा ही देंगे। सच में आजकल राजनीति से अच्छा कुछ नहीं है। मोहल्ले वालों के मुंह भी बंद हो जाएंगे। सबकी सब आगे पीछे घूमेंगे हमारे। जो काम चाहेंगे वह हो जाएगा। अब तो जमाने के ताने का भी डर खत्म हो गया है। जमाना चाहे कुछ भी कहता रहे कि बहू की कमाई की खाएंगे। इसमें कौन सा पाप करेंगे, खा लेंगे। कोई बुराई थोड़ी ही है। बहू काबलियत पर झण्डे गाढ़ेगी। काबिल बनाने वालों को भी कुछ मिलेगा कि नहीं। लोग तो कुछ भी कहते रहेंगे, उनके कहने पर तो घर नहीं चलेगा न। घर तो हमें ही चलाना है। चलाएंगे भी, चुनाव भी लड़ाएंगे। अगर सास का सुख लिखा होगा तो बहू एक न एक दिन चुनाव जरूर जीतेगी। इसके लिए ससुरों ने भी तैयारी कर ली है। अपने दिमाग पर तनाव लेना कम कर दिया है। दिल कठोर की जगह मुलायम हो गया है। मुलायम दिल से मीठी-मीठी बातें बहुओं के लिए अपने आप निकलने लगी हैं। जमाना बदल गया है। बहू के जीतने पर पूरा शहर खुशी से नाच उठेगा। एक दिन देखना यह सुख आएगा भी। अब तो लगने लगा है कि बहू ही हमारा सुनहरा भविष्य संवारेगी। बहू सेवा नहीं करे तो क्या हुआ मेवा तो खिलवाएगी। सोच के साथ-साथ मुहावरे भी बदलने लगे हैं। 'बहू सुपुत्री तो का धन संचय, बहू कुपुत्री तो का धन संचय'। इसलिए हमने भी धन संचय करना भी छोड़ दिया है।

Tuesday, June 5, 2012

तुम क्या जानो पेट्रोल की कीमत!


        भारत बहुत तरक्की कर रहा है। तरक्की हर क्षेत्र में हो रही है। फिर वह चाहे पेट्रोल की कीमतों में वृद्धि का मामला ही क्यों न हो!! खाना, रहना, चलना, दौडऩा, पढऩा हर क्षेत्र में हम ऊंचाई की ओर बढ़ रहे हैं। हमारी सरकार ने जिस प्रकार से साल दर साल पेट्रोल और डीजल के दाम बढ़ाए हैं वह भारत के लोगों की तरक्की की ओर ही तो इशारा करते हैं। यह तरक्की नहीं तो और क्या है कि हम पहले 44 रुपए प्रति लीटर पेट्रोल फूंकने में सक्षम थे और आज लगभग 80 रुपए प्रति लीटर फूंकने में भी उतने ही सक्षम हैं। जिस प्रकार पेट्रोल की कीमतें बढ़ रही हैं उससे भविष्य कैसा होगा इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। सबसे पहले बात शिक्षा से शुरू करते हैं। स्कूल की कीताबों में गणित के जो सवाल रहेंगे उनमें कुछ पेट्रोल से संबंधित भी रह सकते हैं। प्रश्न होगा कि 3 साल में सरकार ने 16 बार दाम बढ़ाकर 44 रुपए के पेट्रोल को 80 रुपए में बेचा तो अगले 10 साल में पेट्रोल की कीमत क्या होगी? दूसरा सवाल यह भी पूछा जा सकता है कि एक पेट्रोल कंपनी के मालिक ने नुकसान का ढोल पीटकर एक साल में दस करोड़ रुपए कमाए तो वह 5 साल में कितने रुपए कमाएगा? हिन्दी विषय में विद्यार्थियों से निबंध लिखने को भी कहा जा सकता है। इसका विषय 'पेट्रोल-डीजल के फायदे नुकसान पर अपने विचार व्यक्त कीजिए', भी हो सकता है। स्कूल में पढ़ाने वाले मास्टर जी बच्चों को ट्यूशन पढक़ार उनसे फीस के रूप में रुपए न लेकर पेट्रोल मंगाया करेंगे। अब फिल्मी दुनिया में आते हैं। फिल्मों में संवाद भी कुछ अलग तरीके से खिले एवं बोले जाएंगे। फिल्मों में एक नायक-दूसरे नायक से जब यह सवाल करेगा कि मेरे पास गाड़ी, बंगला है और तुम्हारे पास क्या है? तो दूसरा नायक कहेगा 'मेरे पास पेट्रोल है'!! फिल्म ओम शांति ओम की तरह एक संवाद जिसमें नायिका-नायक से कहेगी कि-एक बूँद पेट्रोल की कीमत तुम क्या जानो चुन्नी बाबू...। नकारात्मक भूमिका निभाने वाले कलाकारों को बड़ी-बड़ी गाडिय़ों में दिखाने की घोड़ों पर दौड़ता हुआ फिल्माया जाएगा। शादी जैसे सामाजिक कार्य में भी पेट्रोल बड़ा अहम भूमिका अदा करेगा। दहेज लेने की परंपरा तो बंद नहीं होगी, वर पक्ष-वधु पक्ष से यह मांग एक और बढ़ा देगा कि मेरे बेटे को चार पहिए की गाड़ी तो चाहिए ही, साथ ही 100 लीटर पेट्रोल भी देना होगा। इतना ही नहीं बारातियों का स्वागत भी कम से कम 5 लीटर पेट्रोल देकर किया जाए। पेट्रोल देने के बाद ही बात आगे बढ़ेगी। हां! भ्रष्टाचार में भी पेट्रोल के लेन-देन का इस्तेमाल किया जा सकता है। नोट नहीं बल्कि पेट्रोल का इस्तेमाल किया जाएगा। किसी भी सरकारी कार्यालय का बाबू काम करने के बदले में रिश्वत तो लेगा लेकिन वह पेट्रोल के रूप में होगी। बाबू या अधिकारी संबंधित व्यक्ति को स्कूटर या मोटरसाइकिल की चाबी देते हुए बड़े निवेदन के साथ कहेंगे-कृपया इसमें पांच लीटर पेट्रोल डलवा दीजिए आपका काम हो जाएगा। रिश्वत देने वाला व्यक्ति स्वयं इस बात के प्रलोभन देगा कि साहब! आप मेरा यह एक छोटा सा काम करा दें तो मैं आपकी गाड़ी का टेंक फुल करा दूंगा। न जाने क्या-क्या उपयोग करेंगे लोग पेट्रोल का। चुनाव के समय जिंदाबाद, मुर्दाबाद के नारे लगाने वाले लोगों को पेट्रोल का लालच देकर बुलाया जाएगा। पूरे देश में पेट्रोल की अहमियत पहचानी जाएगी। पेट्रोल परेशानी नहीं बल्कि हर समस्या का समाधान होगा। लेकिन समस्या यह है कि लोग पेट्रोल की मूल्य वृद्धि को तरक्की मान ही नहीं रहे हैं। गरीबी रेखा की नई परिभाषा के हिसाब से भी देखा जाए तो गाड़ी चलाना वाला हर व्यक्ति अमीर है, क्योंकि वह 80 रुपए का पेट्रोल भरवा सकता है तो एक दिन में कितने कमाता होगा समझा जा सकता है। गरीबी रेखा में तो 32 रुपए शहर में और 26  रुपए गांव में प्रतिदिन कमाने वाला व्यक्ति गरीब नहीं है। तो भाई साहब! आप खुद सोच सकते हो कि आप कीतने अमीर हो गए हैं! इसलिए देश तरक्की कर रहा है...इसे तरक्की करने दें!!