Wednesday, June 13, 2012

बहू सुपुत्री तो का धन संचय

       
   आजकल सासों की सांसें फूल रही हैं। हां! बहुओं की तरक्की किससे देखी जाती है। आश्चर्य हो रहा है कि चौपालों पर, घर की देहरी पर, मंदिर में, क्लब में, उद्यानों में, सत्संगों में, सभी जगह सासों ने बहुओं की बुराई करना भी बंद कर दिया है। सोच भी बदलने लगी है। बहू रोज-रोज बाजार की दौड़ लगाएगी। महंगे-महंगे कपड़े पहनेगी, जेवर बनवाएगी। बहू आएगी तो खर्चे बढ़ जाएंगे। बहू आएगी तो सब अपने आप संभाल लेगी। घर को भी, देश को भी। भगवान से भी एक ही अर्जी लगाई है कि बहू दे तो 'डिंपल' जैसी सिंपल देना। हां क्या पता कब बहू की किस्मत चमक जाए, वह संसद में दिखाई दे। बहू सिंपल होने के साथ-साथ राजनीति में भी थोड़ी रूचि रखती हो। रूचि नहीं भी हो तो चल जाएगा। हम उसे राजनीति समझा देंगे। जनता से वादे ही तो करना है। चुनाव के समय जनता से बीच जाना है। उनके बच्चों को अपने बच्चों की तरह गोदी में उठाकर मम्मी पापा से वोट मांगने की गुजारिश करना है। एक आध गरीब की झोपड़ी में खाना खाने से जीत पक्की समझो। बहू एक बार चुनाव हार भी जाएं तो कोई बात नहीं, दूसरी बार भी आजमा कर देख लेंगे। आज नहीं तो कल जीतेगी ही। एक बार जीत गई तो समझो फिर तो इतिहास बन गया  पूरे घर का। सभी काम नेतागिरी से हो जाएंगे। बेटों और रिश्तेदारों सभी को कहीं न कहीं फिट करा ही देंगे। सच में आजकल राजनीति से अच्छा कुछ नहीं है। मोहल्ले वालों के मुंह भी बंद हो जाएंगे। सबकी सब आगे पीछे घूमेंगे हमारे। जो काम चाहेंगे वह हो जाएगा। अब तो जमाने के ताने का भी डर खत्म हो गया है। जमाना चाहे कुछ भी कहता रहे कि बहू की कमाई की खाएंगे। इसमें कौन सा पाप करेंगे, खा लेंगे। कोई बुराई थोड़ी ही है। बहू काबलियत पर झण्डे गाढ़ेगी। काबिल बनाने वालों को भी कुछ मिलेगा कि नहीं। लोग तो कुछ भी कहते रहेंगे, उनके कहने पर तो घर नहीं चलेगा न। घर तो हमें ही चलाना है। चलाएंगे भी, चुनाव भी लड़ाएंगे। अगर सास का सुख लिखा होगा तो बहू एक न एक दिन चुनाव जरूर जीतेगी। इसके लिए ससुरों ने भी तैयारी कर ली है। अपने दिमाग पर तनाव लेना कम कर दिया है। दिल कठोर की जगह मुलायम हो गया है। मुलायम दिल से मीठी-मीठी बातें बहुओं के लिए अपने आप निकलने लगी हैं। जमाना बदल गया है। बहू के जीतने पर पूरा शहर खुशी से नाच उठेगा। एक दिन देखना यह सुख आएगा भी। अब तो लगने लगा है कि बहू ही हमारा सुनहरा भविष्य संवारेगी। बहू सेवा नहीं करे तो क्या हुआ मेवा तो खिलवाएगी। सोच के साथ-साथ मुहावरे भी बदलने लगे हैं। 'बहू सुपुत्री तो का धन संचय, बहू कुपुत्री तो का धन संचय'। इसलिए हमने भी धन संचय करना भी छोड़ दिया है।

1 comment:

  1. बहू हो तो डिम्पल सी.. और ससुर हो मुलायम मुलायम....

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