Thursday, March 28, 2013

सच्ची बात

  • व्यंग्य/झुनझना
          सच्ची बात हर किसी को कड़वी लगती है। हमें भी लगी है। सच्ची बातों से भ्रम भी टूट जाते हैं। ऐसे ही मेरा भी भ्रम टूट गया। मैं हमेशा सोचता था कि आदमी झूठ बोलते-बोलते नेता बन जाता है। आज नेताजी ने ही एक बात कहकर भ्रम तोड़ दिया। नेताजी कह रहे थे कि आडवाणी जी कभी झूठ नहीं बोलते हैं। नेताजी की बात मुझे थोड़ी सी बुरी लगी। मुझे समझ नहीं आया कि नेताजी उन्हें सच कहकर क्या साबित करना चाहते हैं। अगर केवल आडवाणी जी ही हमेशा सच बोलते हैं तो हम अपने आपको क्या मानें। हम क्या एक नम्बर के झूठे हैं। सच बात तो यह है कि हमें कभी सच बोलने का मौका ही नहीं दिया गया। आप लोगों ने देखा नहीं क्या करुणानिधि ने सच बोलकर सरकार से समर्थन वापस लिया तो उनके बेटे के पीछे सीबीआई वालों के हाथ फंदे की तरह दौड़ पड़े। बेनी बाबू ने भी कुछ बोल दिया तो उनकी बोलती भी बंद कर दी गई। सच्ची बात तो हमेशा से ही सभी को बुरी लगती आई है। सच्ची बात सुनकर तो अच्छे-अच्छे तिलमिला उठते हैं। भारत के रेल मंत्री भी सच्ची बातें कहकर पटरी से उतर चुके हैं। इसलिए भैया सब गोलमाल है। सच बोलते-बोलते कई लोग कुर्सी से भी हाथ धो बैठे हैं। मैं तो आम आदमी हूं। मैं तो कभी झूठ बोलता भी हूं तो पकड़ लिया जाता हूं। कई बार कोशिश की झूठ बोलने की लेकिन पकड़ा गया। खास आदमियों की बात ही कुछ ओर है। उनके झूठ को तो सच बनाने के लिए कई लोग लीपा-पोती करने लग जाते हैं। फिर वाह चाहे 2-जी स्पेक्ट्रम का मामला हो या फिर हेलीकॉप्टर घोटाले का मामला। कोई न कोई नेता सच बोलने के लिए सामने कूद जाता है। मेरे जैसे आम आदमियों को सच्ची योजनाओं से झूठा लाभ दिलाने की कोशिशें हर सरकारें करती आईं हैं। कोई हमें 'आधार' बांट रहा है तो कोई 'आकाश'। दोनों ही मामलों में मैं भी जमीन पर ही हूं। मुझे लग रहा है मैं कुछ ज्यादा ही सच्ची बातें लिख गया हूं। अब बंद करता हूं क्योंकि आपको भी मेरी बातें बुरी लग रही होंगी।

Thursday, March 21, 2013

सहमति और असहमति



व्यंग्य/झुनझना/ सुमित 'सुजान'

      आजकल देश में सहमति-असहमति का दौर चल रहा है। किसी को सहमति मिल रही है, किसी को नहीं। हां! लेकिन घर की बात कुछ और है। घर की मालकिन यानि की श्रीमती को असहमति देना किसी के बस की बात नहीं। कल ही की बात है। हमारी श्रीमती जी ने एक प्रस्ताव मुझे दिया। उस प्रस्ताव में महीने में चार बार मायके जाने के लिए मुझसे सहमति मांगी जा रही थी। लेकिन मेरी मति ने उनके प्रस्ताव पर जब अपनी असहमति जताई तो उनकी मति बिगड़ गई। वह झल्लाते हुए बोलीं-'आपकी मति ठिकाने पर है या नहीं...।' आपकी मति क्या केन्द्र सरकार से ज्यादा तेज है जो आप मेरे प्रस्ताव पर असहमति दे रहे हो। श्रीमती जी ने अपने प्रवचन जारी रखते हुए आगे कहा कि आपने हमारी सरकार से भी कुछ सीखा नहीं। सरकार जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा परवेश अशरफ को अजमेर में जियारत करने भारत आने के लिए सहमति दे सकती है तो आप अपने आप को किस जहाँ का 'तीस मार खां..' समझ रहे हो। जब सारे कांग्रेसी मिलकर राहुल गांधी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने के लिए सहमति दे सकते हैं, जब सरकार 16 वर्ष की उम्र में यौन संबंध बनाने के लिए सहमति देने की तैयारी कर रही है, जब मंत्री तेल कंपनियों को मन मुताबिक दाम बढ़ाने की सहमति दे रहे हैं, जब अण्णा हजारे, अरविंद केजरीवाल को नई पार्टी बनाने के लिए सहमति दे रहे हैं, भाजपा वाले जब नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के लिए सहमति दे रहे हैं, जब बड़े-बड़े घोटालों पर सहमति हो रही है, जब बसपा, सपा सरकार की वैशाखी बनने के लिए सहमति दे रहे हैं तो आपको मेरे प्रस्ताव क्यों आपत्ति है? आखिरकार वही हुआ जो होना था। मैंने हार मान ली। इतने प्रमाणिक तथ्यों के साथ कोई जब बात करेगा तो उसकी बात तो मानना ही पड़ेगी। पत्नी के प्रमाणिक तथ्यों के आगे मेरी मति अपने आप ठिकाने पर आ गई। नतीजा भी सामने आ गया। आज मैं घर में अकेला बैठा मक्खियां मार रहा हूं।

Wednesday, March 13, 2013

फांसी का चैनलीकरण


  • व्यंग्य/झुनझना
           आजकल मैं भारत सरकार से बहुत नाराज और समाचार चैनलों से बहुत खुश हूं। कारण यह है कि सरकार जब बलात्कार के आरोपियों को सजा देने के लिए विभिन्न संगठनों एवं आयोगों से सलाह मशविरा कर रही थी तो मैंने भी एक सुझाव भेजा था। मेरा सुझाव सरकार ने स्वीकार नहीं किया। इसलिए मैं नाराज हूं। जब पूरा देश सरकार से नाराज है तो अकेले मेरे नाराज होने से कौन सा पहाड़ टूटा पड़ेगा, शायद यही सोचकर सरकार ने मेरा सुझाव नहीं माना होगा। आप ही बताइए क्या मेरा यह सुझाव गलत था कि बलात्कारियों को केवल समाचार चैनलों के भरोसे छोड़ दो, उन्हें सजा अपने आप मिल जाएगी। हमारे चैनल वाले तरह-तरह के एपीसोड तैयार करेंगे। मानवाधिकार के ज्ञाताओं, मनोवैज्ञानिकों एवं नेताओं के साथ ऐसी-ऐसी चर्चाएं करेंगे कि आरोपी स्वयं आत्मगिलानी का शिकार होकर स्वयं आत्महत्या कर लेगा। भले ही सरकार ने मेरी न मानी हो लेकिन मेरा विश्लेषण एकदम सही निकला। आपने देखा न तिहाड़ जेल में बंद 'दामिनी' दुष्कर्म के आरोपी राम सिंह ने भी फांसी लगाकार आत्महत्या कर ली। मुझे पूरा यकीन है कि 24 घंटे चलने वाले चैनलों की कृपा से ही हमारी मनोकामना पूरी हुई है। वरना सरकार तो उसे बचाकर ही ले जाती। हां मुझे एक चिंता और है। चिंता हो रही है कि फांसी लगाने के बाद पत्रकारों ने जो सवाल उठाए हैं उससे कहीं दूसरे लोग फांसी न लगा लें। फांसी का समाचार मिलते ही पत्रकार तिहाड़ जेल पहुंचे और सुरक्षा व्यवस्था पर कई सवाल खड़े किए। पत्रकार का सवाल था कि जब राम सिंह ने दो दिन पहले अपनी दरी फाड़ी थी तो सुरक्षा प्रहरियों को इस बात का पता क्यों नहीं लगा? दूसरा सवाल था कि जब राम सिंह ने अपनी बैरक में फांसी लगाई तो उसके साथ बंद दो और कैदियों को भनक क्यों नहीं लगी? बैरक में सीसीटीवी कैमरें क्यों नहीं लगाए गए थे? सच बताऊं यदि समाचार चैनलों ने इन सवालों को दो-चार दिन तक और उठाया तो कहीं और लोग आत्मगिलानी में आकर आत्महत्या न कर लें। राम सिंह के साथ कैद अन्य दो कैदी कहीं इस बात को लेकर आत्मगिलानी से न भर जाएं कि वह उन्हें बचा नहीं सके, जेल के सुरक्षा प्रहरी एवं महानिदेशक ये सोचकर आत्महत्या न कर लें कि हम राम सिंह को ठीक ढंग से सुरक्षा नहीं दे सके। न्यायाधीश यह सोचकर फांसी पर न झूल जाएं कि मैं इंसाफ ही नहीं कर पाया और आरोपी चल बसा। मेरी सबसे बड़ी चिंता गृहमंत्री को लेकर है। गृहमंत्री शिंदे जी भी मान रहे हैं कि कहीं न कहीं चूक हुई है। कहीं वे भी चूक से व्यथित होकर फांसी पर न झूल जाएं। खैर इन चिंताओं के बीच मेरा सुझाव वही रहेगा, जो पहले था। बड़े से बड़े आरोपी को यदि सख्त से सख्त सजा दिलानी हो या फिर फांसी पर लटकवाना हो तो पूरा मामला चैनल वालों को थमा दो, सब ठीक हो जाएगा। क्योंकि चैनलीकरण के इस दौर में पीडि़तों को यदि जल्दी न्याय दिलवाना है तो यह तो करना ही पड़ेगा।

Wednesday, March 6, 2013

'हमारा भारत-प्यारा भारत'


  • व्यंग्य/झुनझना
        हमारे रामदीन जी का पढ़ाने के मामले में कोई जवाब नहीं है। जैसा समय चलता है वैसा पढ़ाते हैं। जैसे कुछ लोग समय के हिसाब से अपने आपको बदल लेते हैं ऐसे ही कुछ लोगों में शामिल हैं हमारे रामदीन जी। कल ही मैं इनके पास गया तो स्कूल में बच्चों को 'हमारा भारत-प्यारा भारत' विषय पर एक निबंध रचना सुना रहे थे। शायद उन्होंने खुद लिखा था। वरना आजकल तो लोग दूसरे के लिखे को अपना बताने लगते हैं। रामदीन जी की बातों को मैं भी ध्यान से सुन रहा था। उन्होंने पढ़ाना शुरु किया-'भारत एक भ्रष्टाचार प्रधान देश है।' यहां समय-समय पर तरह-तरह के घोटाले होते रहते हैं। कुछ घोटाले भ्रष्टाचारियों के जीवित रहते उजागर होते हैं तो कुछ के मरणोपरांत। भारत ही दुनिया में एक ऐसा एकमात्र देश है जहां जमीन के भीतर (कोयला घोटाला) से लेकर आसमान तक (हेलीकॉप्टर घोटाला) कई घोटालों को अंजाम दिया जा चुका है। हमारे देश में तरंगों को बेचने तक में वसूली की जाती है। भारत पहले लोकतांत्रिक देश था लेकिन अब भोगतांत्रिक बन गया है। यहां मुख्यमंत्री, मंत्री, अफसर, दामाद, बाप-बेटे, पति-पत्नी मिलकर देश को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। भारत आर्थिक दृष्टि से भी सम्पन्न राष्ट्र है। गरीबी-भुखमरी जैसे मुद्दों पर हमें बदनाम करने की कोशिश भले ही की जाती हों लेकिन सारी दुनिया जानती है कि विदेशी बैंकों में हमारे कुछ भाइयो-बहिनों के 500 अरब डॉलर पूरी तरह से सुरक्षित रखे हुए हैं। यह हमारी उदारता है कि हम उस धन को भारत में लाकर विदेशों में आर्थिक संकट पैदा नहीं करना चाहते। ऐसी एक उदारता का परिचय अभी हमने एक बार फिर दिया। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने अपनी भारत यात्रा के दौरान जब हमारे कोहीनूर को लौटाने से मना कर दिया तो हमने ज्यादा दबाव भी नहीं बनाया। शायद हमसे ज्यादा जरुरत उनको हो। अब ये बात अलग है कि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दुर्लभ वस्तुओं की विदेशों में होने वाली नीलामी को हम देखते रहते हैं। हमारे देश में विभिन्न धर्मों के लोग मिल-जुलकर बिल्कुल गठबंधन सरकारों की तरह रहते हैं। भारत उत्सवधर्मी देश भी कहलाता है। जब भी हमारे देश में आतंकवादी, दुष्कर्म, दुर्घटना जैसी घटनाएं होती हैं तब देश की जनता एकजुट होकर मोमबत्ती जुलूस निकालने लगती है। कुछ दिनों तक पूरे देश में इस तरह के उत्सव मनाए जाते हैं उसके बाद सभी घटनाओं को भूल जाते हैं। इसलिए तो कहते हैं 'हमारा भारत-प्यारा भारत'। निबंध पूरा होते ही रामदीन जी बोले-'अच्छा बच्चों आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे।'
  • सुमित 'सुजान'