- व्यंग्य/झुनझना
सच्ची बात हर किसी को
कड़वी लगती है। हमें भी लगी है। सच्ची बातों से भ्रम भी टूट जाते हैं। ऐसे
ही मेरा भी भ्रम टूट गया। मैं हमेशा सोचता था कि आदमी झूठ बोलते-बोलते नेता
बन जाता है। आज नेताजी ने ही एक बात कहकर भ्रम तोड़ दिया। नेताजी कह रहे
थे कि आडवाणी जी कभी झूठ नहीं बोलते हैं। नेताजी की बात मुझे थोड़ी सी बुरी
लगी। मुझे समझ नहीं आया कि नेताजी उन्हें सच कहकर क्या साबित करना चाहते
हैं। अगर केवल आडवाणी जी ही हमेशा सच बोलते हैं तो हम अपने आपको क्या
मानें। हम क्या एक नम्बर के झूठे हैं। सच बात तो यह है कि हमें कभी सच
बोलने का मौका ही नहीं दिया गया। आप लोगों ने देखा नहीं क्या करुणानिधि ने
सच बोलकर सरकार से समर्थन वापस लिया तो उनके बेटे के पीछे सीबीआई वालों के
हाथ फंदे की तरह दौड़ पड़े। बेनी बाबू ने भी कुछ बोल दिया तो उनकी बोलती भी
बंद कर दी गई। सच्ची बात तो हमेशा से ही सभी को बुरी लगती आई है। सच्ची
बात सुनकर तो अच्छे-अच्छे तिलमिला उठते हैं। भारत के रेल मंत्री भी सच्ची
बातें कहकर पटरी से उतर चुके हैं। इसलिए भैया सब गोलमाल है। सच बोलते-बोलते
कई लोग कुर्सी से भी हाथ धो बैठे हैं। मैं तो आम आदमी हूं। मैं तो कभी झूठ
बोलता भी हूं तो पकड़ लिया जाता हूं। कई बार कोशिश की झूठ बोलने की लेकिन
पकड़ा गया। खास आदमियों की बात ही कुछ ओर है। उनके झूठ को तो सच बनाने के
लिए कई लोग लीपा-पोती करने लग जाते हैं। फिर वाह चाहे 2-जी स्पेक्ट्रम का
मामला हो या फिर हेलीकॉप्टर घोटाले का मामला। कोई न कोई नेता सच बोलने के
लिए सामने कूद जाता है। मेरे जैसे आम आदमियों को सच्ची योजनाओं से झूठा लाभ
दिलाने की कोशिशें हर सरकारें करती आईं हैं। कोई हमें 'आधार' बांट रहा है
तो कोई 'आकाश'। दोनों ही मामलों में मैं भी जमीन पर ही हूं। मुझे लग रहा
है मैं कुछ ज्यादा ही सच्ची बातें लिख गया हूं। अब बंद करता हूं क्योंकि
आपको भी मेरी बातें बुरी लग रही होंगी।