Wednesday, March 13, 2013

फांसी का चैनलीकरण


  • व्यंग्य/झुनझना
           आजकल मैं भारत सरकार से बहुत नाराज और समाचार चैनलों से बहुत खुश हूं। कारण यह है कि सरकार जब बलात्कार के आरोपियों को सजा देने के लिए विभिन्न संगठनों एवं आयोगों से सलाह मशविरा कर रही थी तो मैंने भी एक सुझाव भेजा था। मेरा सुझाव सरकार ने स्वीकार नहीं किया। इसलिए मैं नाराज हूं। जब पूरा देश सरकार से नाराज है तो अकेले मेरे नाराज होने से कौन सा पहाड़ टूटा पड़ेगा, शायद यही सोचकर सरकार ने मेरा सुझाव नहीं माना होगा। आप ही बताइए क्या मेरा यह सुझाव गलत था कि बलात्कारियों को केवल समाचार चैनलों के भरोसे छोड़ दो, उन्हें सजा अपने आप मिल जाएगी। हमारे चैनल वाले तरह-तरह के एपीसोड तैयार करेंगे। मानवाधिकार के ज्ञाताओं, मनोवैज्ञानिकों एवं नेताओं के साथ ऐसी-ऐसी चर्चाएं करेंगे कि आरोपी स्वयं आत्मगिलानी का शिकार होकर स्वयं आत्महत्या कर लेगा। भले ही सरकार ने मेरी न मानी हो लेकिन मेरा विश्लेषण एकदम सही निकला। आपने देखा न तिहाड़ जेल में बंद 'दामिनी' दुष्कर्म के आरोपी राम सिंह ने भी फांसी लगाकार आत्महत्या कर ली। मुझे पूरा यकीन है कि 24 घंटे चलने वाले चैनलों की कृपा से ही हमारी मनोकामना पूरी हुई है। वरना सरकार तो उसे बचाकर ही ले जाती। हां मुझे एक चिंता और है। चिंता हो रही है कि फांसी लगाने के बाद पत्रकारों ने जो सवाल उठाए हैं उससे कहीं दूसरे लोग फांसी न लगा लें। फांसी का समाचार मिलते ही पत्रकार तिहाड़ जेल पहुंचे और सुरक्षा व्यवस्था पर कई सवाल खड़े किए। पत्रकार का सवाल था कि जब राम सिंह ने दो दिन पहले अपनी दरी फाड़ी थी तो सुरक्षा प्रहरियों को इस बात का पता क्यों नहीं लगा? दूसरा सवाल था कि जब राम सिंह ने अपनी बैरक में फांसी लगाई तो उसके साथ बंद दो और कैदियों को भनक क्यों नहीं लगी? बैरक में सीसीटीवी कैमरें क्यों नहीं लगाए गए थे? सच बताऊं यदि समाचार चैनलों ने इन सवालों को दो-चार दिन तक और उठाया तो कहीं और लोग आत्मगिलानी में आकर आत्महत्या न कर लें। राम सिंह के साथ कैद अन्य दो कैदी कहीं इस बात को लेकर आत्मगिलानी से न भर जाएं कि वह उन्हें बचा नहीं सके, जेल के सुरक्षा प्रहरी एवं महानिदेशक ये सोचकर आत्महत्या न कर लें कि हम राम सिंह को ठीक ढंग से सुरक्षा नहीं दे सके। न्यायाधीश यह सोचकर फांसी पर न झूल जाएं कि मैं इंसाफ ही नहीं कर पाया और आरोपी चल बसा। मेरी सबसे बड़ी चिंता गृहमंत्री को लेकर है। गृहमंत्री शिंदे जी भी मान रहे हैं कि कहीं न कहीं चूक हुई है। कहीं वे भी चूक से व्यथित होकर फांसी पर न झूल जाएं। खैर इन चिंताओं के बीच मेरा सुझाव वही रहेगा, जो पहले था। बड़े से बड़े आरोपी को यदि सख्त से सख्त सजा दिलानी हो या फिर फांसी पर लटकवाना हो तो पूरा मामला चैनल वालों को थमा दो, सब ठीक हो जाएगा। क्योंकि चैनलीकरण के इस दौर में पीडि़तों को यदि जल्दी न्याय दिलवाना है तो यह तो करना ही पड़ेगा।

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