Thursday, March 21, 2013

सहमति और असहमति



व्यंग्य/झुनझना/ सुमित 'सुजान'

      आजकल देश में सहमति-असहमति का दौर चल रहा है। किसी को सहमति मिल रही है, किसी को नहीं। हां! लेकिन घर की बात कुछ और है। घर की मालकिन यानि की श्रीमती को असहमति देना किसी के बस की बात नहीं। कल ही की बात है। हमारी श्रीमती जी ने एक प्रस्ताव मुझे दिया। उस प्रस्ताव में महीने में चार बार मायके जाने के लिए मुझसे सहमति मांगी जा रही थी। लेकिन मेरी मति ने उनके प्रस्ताव पर जब अपनी असहमति जताई तो उनकी मति बिगड़ गई। वह झल्लाते हुए बोलीं-'आपकी मति ठिकाने पर है या नहीं...।' आपकी मति क्या केन्द्र सरकार से ज्यादा तेज है जो आप मेरे प्रस्ताव पर असहमति दे रहे हो। श्रीमती जी ने अपने प्रवचन जारी रखते हुए आगे कहा कि आपने हमारी सरकार से भी कुछ सीखा नहीं। सरकार जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा परवेश अशरफ को अजमेर में जियारत करने भारत आने के लिए सहमति दे सकती है तो आप अपने आप को किस जहाँ का 'तीस मार खां..' समझ रहे हो। जब सारे कांग्रेसी मिलकर राहुल गांधी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने के लिए सहमति दे सकते हैं, जब सरकार 16 वर्ष की उम्र में यौन संबंध बनाने के लिए सहमति देने की तैयारी कर रही है, जब मंत्री तेल कंपनियों को मन मुताबिक दाम बढ़ाने की सहमति दे रहे हैं, जब अण्णा हजारे, अरविंद केजरीवाल को नई पार्टी बनाने के लिए सहमति दे रहे हैं, भाजपा वाले जब नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के लिए सहमति दे रहे हैं, जब बड़े-बड़े घोटालों पर सहमति हो रही है, जब बसपा, सपा सरकार की वैशाखी बनने के लिए सहमति दे रहे हैं तो आपको मेरे प्रस्ताव क्यों आपत्ति है? आखिरकार वही हुआ जो होना था। मैंने हार मान ली। इतने प्रमाणिक तथ्यों के साथ कोई जब बात करेगा तो उसकी बात तो मानना ही पड़ेगी। पत्नी के प्रमाणिक तथ्यों के आगे मेरी मति अपने आप ठिकाने पर आ गई। नतीजा भी सामने आ गया। आज मैं घर में अकेला बैठा मक्खियां मार रहा हूं।

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