Wednesday, April 17, 2013

आप भी समझिए कुत्ते के फायदे


  • व्यंग्य/झुनझना

        वैज्ञानिकों ने एक नया शोध किया है। शोध बड़ा शानदार है। यह शोध कई मामलों में हमारी मदद कर सकता है। राजनैतिक, पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षणिक हर मामलों में हम इस शोध की मदद ले सकते हैं। वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि कुत्ते आदमी के नजरिये को अच्छी तरह से समझ जाते हैं। कुत्ते आदमी के दिल की बात आसानी से समझ सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ के मनोविज्ञान विभाग की डॉक्टर जुलियाने कामिन्स्की ने इस मामले में अध्ययन किया है। खैर अपन को अध्ययन से क्या करना, अपन को तो कुत्ते की समझदारी को समझना चाहिए। हमें यह भी समझना चाहिए कि हम कुत्तों से कैसे मदद ले सकते हैं। भले ही आज आदमी वफादार न रहा हो लेकिन कुत्ते तो आज भी वफादार होते हैं। यह भी हम जानते हैं कि कुत्तों को शुरू से ही समझदार जानवार माना जाता है। लेकिन हम भारतीय अपने आपको ही सबसे ज्यादा समझदार मानते हैं। खैर मैं तो कुत्तों के उपयोग  की बात कर रहा था। मैं समझता हूं कि कुत्ते की समझदारी का उपयोग हम राजनीतिक मामलों में अधिक कर सकते हैं। उदाहरण के लिए हम प्रधानमंत्री की झगड़े को ही ले लें। अगर हर राजनीतिक पार्टियां एक-एक कुत्ता पाल लें तो काफी हद समस्या का समाधान हो सकता है। राजनीतिक पार्टियां उन्हें ही अपना सहयोगी बनाए जिनके लिए कुत्ते हां करें। कुत्ते पार्टियों के नेताओं की मन की बात समझ कर यह बता सकते हैं कि कौन सा राजनेता प्रधानमंत्री पद के लिए विवाद खड़ेगा, कौन सा नहीं। हम पार्टी में ऐसे ही कार्यकर्ताओं को कुत्तों द्वारा चयन कराएंगे जो हमारी हां में हां मिलाएं। पारिवारिक मामले में भी हम कुत्तों की मदद ले सकते हैं। कुत्ते हमें समझकर यह बता सकते हैं कि हमारे लिए कौन सा काम करना ठीक रहेगा। कई विवाद आसानी से सुलझाए जा सकते हैं। कोई बाबू अगर हमारा काम अटका रहा है तो हम कुत्ते का उपयोग करके उसकी मन की बात जानकर कुछ ले-देकर अपना काम निपटा सकते हैं। ऐसे एक नहीं कई काम हैं जिनमें हम कुत्तों की मदद लेकर अपना काम निपटा सकते हैं। मुझे तो कुत्तों की अहमियत समझ आ गई है, इसलिए मेरा मन भी एक कुत्ता पालने की सोच रहा है। अगर आप लोग भी पाल लें तो अच्छा ही होगा।

Thursday, April 11, 2013

मधुमक्खियों का निंदा प्रस्ताव


  • व्यंग्य/झुनझना
मैं अभी मधुमक्खियों का आक्रोश देखकर आ रहा हूं। बहुत नाराज हो रही थीं। जबसे युवराज राहुल गांधी ने देश को मधुमक्खी का छत्ता कहा तब से उनकी नींद उड़ी हुई है। अभी थोड़ी देर पहले ही मधुमक्खियों ने एक अधिवेशन किया जिसमें राहुल गांधी के खिलाफ निंदा प्रस्ताव भी पारित किया गया। अधिवेशन में जैसे ही एक मधुमक्खी को बोलने का जैसे ही मौका दिया गया तो उसने कहा कि 'देश के राजनेताओं ने हर मामले में सूंघना कर दिया है। अब उन्होंने हमारे छत्ते पर भी राजनीति कर दी है। उसने रानी मधुमक्खी की ओर चिंता भरे अंदाज में कहा कि मुझे तो लगता है कि बड़े-बड़े घोटालों को करने के बाद अब राजनेता हमारे छत्ते से भी कोई न कोई घोटाला न कर दें। इसके बाद दूसरी मधुमक्खी की जब बारी आई तो उसके तीखे तेवर बिल्कुल तीर की तरह चल रहे थे। उसने अपने भाषण में कहा कि भारत जैसे देश को मधुमक्खी के छत्ते की तरह बताकर कहीं इसे भी लूटने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा। वैसे तो हमें लगता है कि सत्ता को छत्ता कहा जाना चाहिए। क्योंकि सत्ता में आते ही नेता सत्ता से चिपक जाते हैं। सत्ता छोडऩे का उनका मन ही नहीं करता है। हम मधुमक्खियां तो दूसरों के लिए मीठा-मीठा शहद बनाते हैं लेकिन ये नेता सत्ता के छत्ते में चिपककर शहद तो बनाते ही हैं और खुद ही हजम कर जाते हैं। और बदले में नफरत का रस समाज में घोल देते हैं। अब एक और मधुमक्खी बोली। ये राजनेता तो हमारे पुरखों तक पहुंच गए हैं। कल ही एक नेता कह रहा था कि मधुमक्खी देवी का अवतार हैं। पुराणों के मुताबिक मधुमक्खी को भ्रामरी देवी माना जाता है और उत्तराखंड में उनका मंदिर है। हमारे पुरखों को वैसे तो कभी पूछा नहीं अब सत्ता का लालची रस मन में घुल रहा है तो हमारे पुरखे तक ध्यान आ रहे हैं। इसलिए हम सभी एक मिल जुलकर इनकी बातों का प्रतिकार करना चाहिए। हमें चुप नहीं बैठना चाहिए। सभा के अंत में यह तय किया गया कि सभी मधुमक्खियां इस मामले को लेकर जल्द एक आंदोलन करेंगी और नेताओं से फिर कभी उनके मामले में दखलंदाजी नहीं करने की अपील करेंगी। इस रणनीति के बनते ही सारा माहौल भिन्न-भिन्न से गूंज गया मतलब की सभी ने इस प्रस्ताव को मान्य किया।

Wednesday, April 3, 2013

बढ़ रहा है जूतों का महत्व


  • व्यंग्य/झुनझना
         जूतों का महत्व हमेशा से ही रहा है। कोई यदि यह सोचता हो कि जूते का महत्व कम हो रहा है तो वे शायद गलत सोच रहे हैं। पहले यह माना जाता था कि जूतों का अविष्कार केवल पैरों को सुरक्षित रखने के लिए ही हुआ है तो यह बात भी अब गलत साबित होती जा रही है। जूतों का महत्व अब उसके इस्तेमाल पर भी निर्भर हो रहा है। कोई जूतों के इस्तेमाल से पैरों में पहनकर अपनी इज्जत बचा रहा है तो कोई इसके इस्तेमाल से किसी की इज्जत उतार रहा है। वर्तमान समय में इसका इस्तेमाल लोगों की इज्जत उतारने में भरपूर किया जा रहा है। बड़े-बड़े लोगों पर जूते की इस उपयोगियता को देखा जा चुका है। अभी हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की इज्जत भी जूते के माध्यम से उतारी गई थी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश पर इराक में भी इसी वस्तु का इस्तेमाल किया गया था। सबसे पहले उन्हीं पर जूता फेंका गया था। जिसके बाद यह सिलसिला आज तक जारी है। जूते फेंकने वालों की इस बात के लिए तो तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने इस काम के लिए दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति को चुना था। जूते के इस इस्तेमाल का शिकार हमारे देश के पूर्व गृहमंत्री एवं वर्तमान में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम भी हो चुके हैं। इज्जत उतारने का यह काम कभी-कभी चप्पल भी करती है। इज्जत उतारने में जूते और चप्पल लगभग एक जैसे ही कार्य करते हैं। चप्पल का शिकार भारत में राष्ट्र मण्डल खेल के जरिए करोड़ों रुपए डकारने वाले सुरेश कलमाड़ी भी हो चुके हैं। जिस प्रकार आज जूते-चप्पलों का इस्तेमाल होने लगा है उसको देखकर मुझे लगता है कि इसे खेलों में भी शामिल किया जाना चाहिए। हम लोगों को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ से भी इस बात के लिए भी गुजारिश करना चाहिए कि जूते-चप्पल के इस इस्तेमाल को ओलंपिक खेलों में जल्द से जल्द शामिल किया जाना चाहिए। हमें अण्णा हजारे, अरविंद केजरीवाल और बाबा रामदेव से भी जूते के इस इस्तेमाल पर संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए अनशन करने के लिए निवेदन करना चाहिए। क्योंकि जूता अथवा चप्पल फेंककर मारना भी हमारी अभिव्यक्ति व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम तो है ही।