Wednesday, April 3, 2013

बढ़ रहा है जूतों का महत्व


  • व्यंग्य/झुनझना
         जूतों का महत्व हमेशा से ही रहा है। कोई यदि यह सोचता हो कि जूते का महत्व कम हो रहा है तो वे शायद गलत सोच रहे हैं। पहले यह माना जाता था कि जूतों का अविष्कार केवल पैरों को सुरक्षित रखने के लिए ही हुआ है तो यह बात भी अब गलत साबित होती जा रही है। जूतों का महत्व अब उसके इस्तेमाल पर भी निर्भर हो रहा है। कोई जूतों के इस्तेमाल से पैरों में पहनकर अपनी इज्जत बचा रहा है तो कोई इसके इस्तेमाल से किसी की इज्जत उतार रहा है। वर्तमान समय में इसका इस्तेमाल लोगों की इज्जत उतारने में भरपूर किया जा रहा है। बड़े-बड़े लोगों पर जूते की इस उपयोगियता को देखा जा चुका है। अभी हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की इज्जत भी जूते के माध्यम से उतारी गई थी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश पर इराक में भी इसी वस्तु का इस्तेमाल किया गया था। सबसे पहले उन्हीं पर जूता फेंका गया था। जिसके बाद यह सिलसिला आज तक जारी है। जूते फेंकने वालों की इस बात के लिए तो तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने इस काम के लिए दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति को चुना था। जूते के इस इस्तेमाल का शिकार हमारे देश के पूर्व गृहमंत्री एवं वर्तमान में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम भी हो चुके हैं। इज्जत उतारने का यह काम कभी-कभी चप्पल भी करती है। इज्जत उतारने में जूते और चप्पल लगभग एक जैसे ही कार्य करते हैं। चप्पल का शिकार भारत में राष्ट्र मण्डल खेल के जरिए करोड़ों रुपए डकारने वाले सुरेश कलमाड़ी भी हो चुके हैं। जिस प्रकार आज जूते-चप्पलों का इस्तेमाल होने लगा है उसको देखकर मुझे लगता है कि इसे खेलों में भी शामिल किया जाना चाहिए। हम लोगों को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ से भी इस बात के लिए भी गुजारिश करना चाहिए कि जूते-चप्पल के इस इस्तेमाल को ओलंपिक खेलों में जल्द से जल्द शामिल किया जाना चाहिए। हमें अण्णा हजारे, अरविंद केजरीवाल और बाबा रामदेव से भी जूते के इस इस्तेमाल पर संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए अनशन करने के लिए निवेदन करना चाहिए। क्योंकि जूता अथवा चप्पल फेंककर मारना भी हमारी अभिव्यक्ति व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम तो है ही।


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