Monday, November 24, 2014

साध्वी का संघर्ष

       एक समाचार हर बार देश की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े करता हुआ नजर आता है। यह समाचार है साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर का। साध्वी प्रज्ञा सिंह पर वर्ष 2008 में मालेगांव में हुए एक बम धमाके में शामिल होने का आरोप है। इसी आरोप के चलते साध्वी प्रज्ञा सिंह आज तक कठघरे में हैं जहां मुजरिम खड़े होते हैं। साध्वी प्रज्ञा सिंह पिछले 6 वर्षों से उन जांच एजेंसियों से जूझ रही हैं जिन्होंने उनसे इस घटना में शामिल होने का कबूलनामा करवाने के लिए क्या कुछ नहीं किया। एक बार फिर यह मामला सुर्खियों में है। सुर्खियों में आने का कारण भोपाल पहुंची सीआईडी टीम है। सीआईडी टीम ने साध्वी प्रज्ञा ठाकुर से इस मामले में जब पूछताछ की तो साध्वी प्रज्ञा ने एटीएस (एंटी टेरिरिस्ट स्वाक्ड) के बारे में जो बातें बताई वह रोंगटे खड़े करने के लिए काफी है। बकौल साध्वी सीआईडी टीम को बताती हैं कि उन्हें किस तरह यातनाएं दी गईं। साध्वी प्रज्ञा ने बताया कि उनसे एटीएस अधिकारियों ने न सिर्फ अपशब्द बोले बल्कि उनके साथ मारपीट भी की। साध्वी प्रज्ञा सिंह को अश्लील ऑडियो सुनाना, जबरदस्ती नार्को टेस्ट, ब्रेन मैपिंग, साइकोलॉजी टेस्ट आदि करना कौन सी जांच का हिस्सा हो सकता है, यह विचारणीय प्रश्न है। आज साध्वी प्रज्ञा सिंह की हालत कैसी है, यह बताने के लिए सिर्फ यही काफी नहीं है कि उनका भोपाल के पंडित खुशीलाल शर्मा आयुर्वेदिक कॉलेज में उपचार चल रहा है। आज साध्वी प्रज्ञा का शरीर उन पर हुए अत्याचार की कहानी स्वयं कहता है। जो युवती पहले टू व्हीलर पर थी, आज वह व्हील चेयर पर है। एक सवाल हर बार मन में बार-बार आता है कि साध्वी प्रज्ञा सिंह ठाकुर पर हो रहे अत्याचारों पर आखिरकार मानव अधिकार संगठन वाले कहां दुबक कर बैठ जाते हैं? कश्मीर के अलगाववादियों की पैरोकारी करने वाले लोगों का साध्वी प्रज्ञा सिंह के अत्याचार पर दिल क्यों नहीं पसीजता? सेना और अलगाववादियों के संघर्ष पर क्यों हमेशा ही सेना को कठघरे में खड़ा किया जाता है? मानव अधिकार संगठन शायद इस बात को भली भांति समझते हैं कि अलगाववादियों की बात करके ही उनकी दुकान चल सकती है। साध्वी प्रज्ञा सिंह जैसे लोगों के लिए लडऩा शायद उनके पाठ्यक्रम में पढ़ाया ही नहीं जाता है। दूसरा सवाल जांच एजेंसियों पर होना चाहिए। सवाल यह हो सकता है कि साध्वी प्रज्ञा सिंह की हालत कैसे और क्यों हुई? सवाल यह भी हो सकता है कि क्या उन्होंने मुम्बई हमले के आतंकवादी अजमल कसाब और संसद हमले में शामिल मोहम्मद अफजल को भी ऐसी ही यातनाएं दी थीं। कसाब और अफजल अब इस दुनिया में नहीं हैं। उन्हेंं फांसी दे दी गई। लेकिन पूरी दुनिया ने देखा कि जब वे फांसी के फंदे पर झूले तो वे कितने तंदुस्त थे। साध्वी प्रज्ञा सिंह की आज जो हालत हुई है, उसके लिए तत्कालीन कांग्रेसनीत संप्रग सरकार को कठघरे में खड़ा किया जाए तो शायद गलत नहीं होगा। वर्ष 2008 में जब साध्वी प्रज्ञा सिंह को गिरफ्तार किया गया था तब देश के गृहमंत्री पी. चिदबंरम थे। साध्वी के जरिए राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ जैसे राष्ट्रवादी संगठन को घेरने की कोशिश की गई थी। कांग्रेस नेता चिदंबरम ने ही पहली बार 'हिन्दू आतंकवाद' शब्द को जन्म देकर देश में एक नई बहस की शुरुआत की थी। आज उसी विचार ने साध्वी प्रज्ञा सिंह की ऐसी दुर्दशा की है, ऐसा बार-बार प्रतीत होता है। लेकिन हमें साध्वी प्रज्ञा सिंह के उस जज्बे को भी सलाम करना चाहिए जो इतनी यातनाएं सहने के बाद भी हमेशा जांच में सहयोग दे रही हैं।

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