Thursday, October 8, 2015

चुटकी


गोमांस पर बयान एक के बाद एक सधे हो गए,
वोट बैंक के लालच में नेता हमारे गधे हो गए।
सुमित राठौर

चुटकी

हमारे देश में भी अजीब-अजीब लतीफे हो रहे हैं,
कुत्ता हो रहा बरी, चोरी सांसदों के पपीते हो रहे हैं।।
सुमित राठौर

Saturday, September 26, 2015

केवल एक बार ही मिले आरक्षण का लाभ

देश एक बार फिर आरक्षण की आग में झुलसता दिखाई दे रहा है। एक  ओर जहां कुछ समुदाय आरक्षण दिए जाने की मांग को लेकर आंदोलन कर रहे हैं तो दूसरी ओर आरक्षण पर नए सिरे से विचार किए जाने की चर्चाएं चल रही हैं। इन्हीं चर्चाओं के बीच क्या इस बात पर विचार किया जा सकता है कि आरक्षण का लाभ अभ्यार्थी को केवल एक बार ही मिले। आरक्षित वर्ग के अभ्यर्थियों को प्रतियोगी परीक्षाओं, पढ़ाई के समय अथवा नौकरी जैसे किसी एक विकल्प को चुनना होगा। अगर सरकार ऐसी व्यवस्था करती है तो किसी न किसी स्थान पर सभी वर्ग एक साथ दिखाई देंगे। यही समय की मांग है।
26 सितम्बर 2015 को स्वदेश में प्रकाशित जनमानस।

Monday, May 18, 2015

सबूत


  • सुमित राठौर
         बीस साल पुराने एक मामले की सुनवाई करने बैठे एक जज साब काफी गुस्से में दिखाई दे रहे थे। एक चापलूस वकील ने पता कर लिया था कि जज साब आज ही मामले को निपटाने वाले हैं। मामला एक सड़क दुर्घटना का था।ब बिल्कुल सलमान खान जैसा। आपराधिक मामले भी कितने अजीब होते हैं। गवाह बदल जाते हैं, वकील बदले जाते हैं, थानेदार बदल जाते हैं और तो और जज साब भी बदल जाते हैं। लेकिन कुछ नहीं बदलता है, तो वह होता है घटना स्थल। मजे बात देखिए कि जिस फुटपाथ पर यह हादसा हुआ था, वहां आज आलीशान इमारतें खड़ी हो गई हैं। लेकिन पुलिस की फाइलों में वहां आज भी फुटपाथ ही है।
          खैर अपन तो मामले पर आते हैं। आरोपी कटघरे में है। जज साब पूरे ध्यान से आरोपी पक्ष के वकील की दलीलें सुन रहे हैं। दूसरा पक्ष कुछ कहने की स्थिति में नहीं है। क्योंकि उनके पास सबूतों का अभाव है। जज साब फैसला सुनाने ही वाले थे कि एक 20 साल का युवक कटघरे में आकर खड़ा हो गया, और न्याय की गुहार करने लगा। जज साहब ने सवाल किया कि तुम कौन? तो युवक ने बताया कि मैं इस मामले का एक मात्र सबूत हूं। युवक ने कहा-’जज साब! मेरा नाम आलोक है। 20 साल पहले जो व्यक्ति इन साहब की गाड़ी के नीचे आकर मरा था, वह मैं ही था। युवक की बात पर सुनवाई कक्ष में सन्नाटा पसर गया।
                इस बीच सन्नाटे को चीरते हुए आरोपी के वकील का एक सवाल आया। सवाल था कि तुम कैसे सबूत हो सकते हो? यह मामला तो 20 साल पुराना है। तुम्हारी उम्र ही 20 साल है। आलोक ने बताया कि जज साब मेरा पुनर्जन्म हुआ है। फैसले में देरी हो रही थी, इसलिए मैंंने सोचा कि मैं खुद सबूत बनकर मामले को निपटाने में आपका साथ दूं। मुझे सब याद आ गया है। सामने वाले साहब ने ही शराब के नशे में मुझ पर गाड़ी चढ़ा दी थी। आलोक ने कहा कि जज साब जिस प्रकार ‘करण अर्जुन‘ जैसी पुनर्जन्म वाली फिल्में हिट हो सकती हैं, जिस प्रकार भगवान विष्णु ने राम का अवतार लेकर दुष्ट रावण का सत्यानाश किया था, ठीक उसी प्रकार मेरा भी पुनर्जन्म हुआ है। आलोक के तर्क जज साहब को समझ आ रहे थे। क्योंकि वह घटना के बारे में पूरी हकीकत बयां कर रहा था। लेकिन जब फैसला सुनाया तो आरोपी को रिहा कर दिया गया। सबूत के अभाव में ऐसा फैसला दिया गया।
         फैसले के बाद जज साब ने आलाेक के सिर पर प्यार भरा हाथ फेरते हुए कहा-’बेटा मुझे तुम्हारी एक-एक बात सही लग रही थीं। लेकिन तुम तो जानते हो कि हमारे हाथ कानून से बंधे हैं। मैंने कानून की किताबें तोते से भी अच्छी तरह रटी हैं। मुझे कहीं भी पुनर्जन्म सबूत के रूप में दिखाई नहीं दिया। कानून में पुनर्जन्म सबूत होता तो तुम्हारी सही दलीलों को हम भी सही मान लेते...।’

Monday, March 23, 2015

तौबा...तौबा...हैप्पी न्यू ईयर


सुमित राठौर
चौराहे पर चार लड़कों की चीख पुकार सुनकर हम तुरंत दौड़े-दौड़े घटनास्थल पर पहुंचे। रात की बात थी, इसलिए हम अपने साथ रामदीन काका को भी लेकर पहुंचे। काका हमारे मोहल्ले के सबसे सुलझे हुए और समझदार व्यक्ति माने जाते हैं। काका का अनुभव कई बार हमारे काम आया है, इसलिए हम ऐसी मुसीबत के वक्त उन्हें साथ जरूर ले लेते हैं। काका के उपदेशों के कारण अच्छे-अच्छे सुधर जाते हैं। काका तो इतने आत्मविश्वासी हैं कि वह तो कई बार कहते भी हैं कि ये नवाज शरीफ एक बार मेरे सामने बैठ जाए तो उसकी दुम भी सीधी कर सकता हूं। नवाज को इतना सीधा कर दूंगा कि वह कभी भी न तो कश्मीर मांगेगा और न ही भारत की ओर आंख उठाकर देखेगा। गजब का आत्मविश्वास है उनका। आम आदमी पार्टी के नेता उतनी चिकनी चुपड़ी बातें नहीं करते होंगे जितनी कि चिकनी बातें हमारे काका के दिमाग में रहती हैं। खैर छोड़ो...। मैं तो आपको चार लड़कों की बात बताने वाला था। चौराहे पर पहुंचे तो देखा कि चारों के चारों सड़क पर गिरे पड़े थे। मैं पास पहुंचा तो देखा कि मोटर साइकिल एक थी और सवारी चार। सभी युवा और बड़े घर के बिगड़े हुए बेटों की तरह दिखाई दे रहे थे। लेकिन आज जब उनका एक सिपाही से सामना हुआ तो सारी हैकड़ी निकल गई। सिपाही के साथ बदतमीजी करने पर ऐसा हाल हुआ होगा ऐसा मैं और काका सोच रहे थे। चारों ने इतनी शराब पी रखी थी कि उनसे 'अपने पैरों पर खड़ा' ही नहीं हुआ जा रहा था। उन लड़कों में से एक गंजे लड़के से पूछा तो उसने बताया कि वे लोग हैप्पी न्यू ईयर मनाकर लौट रहे थे। हम चारों एक ही मोटर साइकिल पर थे। हम हो-हल्ला...हैप्पी न्यू ईयर चिल्लाते हुए बहुत तेज गति में गाड़ी दौड़ा रहे थे। अचानक चौराहे पर गाड़ी मोड़ते वक्त सिपाही में ही टक्कर मार दी। इस बात से नाराज सिपाही ने हम चारों को बहुत बुरी तरह से धुन दिया।
काका उस लफंगे गंजे लड़के की बात सुनकर पहले तो जोर-जोर से हंसने लगे। काफी देर तक हंसने के बाद फिर उन्होंने अपने उपदेश देना शुरू कर दिए। काका ने समझाते हुए कहा कि तुम लड़के भी न... कभी नहीं सुधरोगे। किस बात का हैप्पी न्यू ईयर... हो गई न धुनाई...। शराब पीना, हुड़दंग करना...यह सब अंग्रेजों को शोभा देता है हम भारतीयों को नहीं। रात को पार्टी नहीं रात को सोया जाता है। अंग्रेजों के पास पैसा है चैन नहीं है। वह चैन की नींद नहीं सो पाते हैं, और तुम भी गधे की तरह उनकी तरह मस्ती में डूबे रहते हो। और तुमसे यह किसने कह दिया कि नये साल की पूर्व संध्या पर रात भर शराब पियो और मस्ती में जियो। अरे मनाना है तो हिन्दू नव वर्ष मनाओ...। नव संवत्सर...। कहां अंग्रेजों के पीछे भाग रहे हो। तुम्हारी ठुकाई हुई तो कौन सा अंग्रेज तुम्हें बचाने के लिए आ गया। जरा सोचो तुम जो हैप्पी न्यू ईयर मनाते हो वह तो सूरज डूबने के बाद शुरू होता है। नव संवत्सर को लोग सूर्य की पहली किरण के साथ मनाते हैं। साल के पहले दिन सूर्य की ऊर्जा से वर्ष की शुरुआत होती है। नव संवत्सर पर हमारी परंपरा का प्रतीक है। नये वर्ष में नये संकल्प लो और अपनी जिंदगी की अच्छी शुरुआत करो। अपना नया वर्ष पर देखो कहीं कोई हुड़दंग नहीं, शांति के साथ पूरा दिन बीत जाता है। अपने संस्कारों को बचाने के लिए हमें यही नया वर्ष मनाना है सोच लो...।
 काका की बातें सुनकर बाकी और तीन छोकरों में भी जान आ गई। सभी बोले काका आज हमें एक बात तो समझ आ गई है कि यदि हम 'हैप्पी न्यू ईयर' नहीं मनाते तो आज हमारी इतनी धुनाई नहीं होती। आज से ऐसे न्यू ईयर से तो तौबा...तौबा...। उनके तौबा...तौबा... करते ही हमने काका के लिए तालियां बजाकर कहा काकाजी वाह...वाह...!!

Friday, February 20, 2015

मन की बात


सुमित राठौर
'मन' बहुत चंचल होता है। ऐसा मैंने पढ़ा है। शायद आपने भी पढ़ा होगा। 'मन' दिमाग का वह अवयव है, जो अक्सर उथल-पुथल मचाता रहता है। वैसे अगर कोई संतोषी व्यक्ति हो तो वह अपने 'मन' पर नियंत्रण रख सकता है। हमारे बुजुर्ग भी कह गए हैं कि 'मन चंगा तो कठौती में गंगा'। बुजुर्गों की इस समझाइश पर दिल्ली के कुछ नेताओं के 'मन' ऐसे ही हो गए हैं। दिल्ली में कुछ समय पहले मुख्यमंत्री बनने का 'मन' तो कई नेताओं का कर रहा था। पार्टी की सेवा का कुछ तो प्रतिसाद मिलना चाहिए न... ऐसी बातें उनके 'मन' में चलती रहती थीं। लेकिन बोलें किससे? पार्टी के बड़े नेताओं के 'मन' में तो कुछ और ही चल रहा था। सबके 'मन' की बात अलग-अलग ही सुनाई दे रही थी। दिल्ली के चुनाव में हाय...हाय..चिक...चिक के बीच भी 'मन' की कुछ बातें जुबां पर आ रही थीं लेकिन मुझे लगता है कि दूसरा 'मन' पार्टी के अनुशासित सिपाही होने की दुहाई दे रहा होगा, शायद इसीलिए ही अपना 'मन मसोस' कर बैठ गए होंगे। मुख्यमंत्री कुर्सी के दावेदार थे लेकिन 'मन' की बात नहीं बोल पाए इसलिए किसी और की चल गई। बड़े नेता के 'मन' की चली तो मुख्यमंत्री पद के रूप में बाहर से प्रत्याशी आयातित करना पड़ा। 'मन' भी नहीं कर रहा था लेकिन फिर भी वोट मांगने के लिए गली-गली घूमना पड़ा। 'मन' सोच रहा था कि काश हमें ही मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बना देते तो कितना अच्छा होता। लेकिन चुनाव परिणाम क्या आया सब कुछ बदला-बदला सा नजर आया। एक 'मन' दु:खी था, तो दूसरा 'मन ही मन मुस्कुरा' रहा था। मैंने देखा कि नेताजी का एक 'मन' तो पार्टी की हार का मातम मना रहा था तो दूसरा 'मन' उन महाशय को धन्यवाद देने के लिए उत्साहित था जिनकी वजह से वे प्रत्याशी घोषित नहीं हो पाए। ऐसा लगा जैसे 'मन' यह कहने की कोशिश कर रहा हो कि चलो अच्छा हुआ जो एन वक्त पर हमारे कागजात सामने आ गए। यदि मुख्यमंत्री पद का प्रत्याशी बना दिया जाता तो हमारे ऊपर ही पूरा ठीकरा फूट जाता। पूरी राजनीति पर सवाल उठाए जाते, लोग ताने मारते सो अलग...। उनके 'मन' में एक ही बात चल रही थी। 'मन को हार कर नहीं बैठना चाहिए।' इसी प्रकार दूसरे नेताजी को ही देख लो। मैडम का आदेश मिलते ही कूद गए चुनाव मैदान में। जनता के 'मन' से ऐसे बाहर हुए कि एक भी नेता विधानसभा तक नहीं पहुंच पाया। दोनों ही लोगों के 'मन' की बात आज उजागर होकर हमारे पास आ चुकी है। दोनों ही कह रहे हैं कि चलो... आज हमारे 'मन' मुताबिक काम नहीं हुआ तो कोई बात नहीं, कल हो जाएगा। मन मुताबिक किसी को कुछ मिलता भी तो नहीं...। लगता है दोनों के 'मन मिल गए'। इससे पहले कि आपका 'मन' इसे पढ़कर ऊबने लगे, मैं अपने 'मन की बात' समाप्त करता हूं।

Tuesday, January 20, 2015

चुटकी

कुछ नेताओं का सीना छिल गया,
मौका हाथ से अच्छा निकल गया।
रोजाना झाड़ू सड़कों पर हमने लगाई,
मुख्यमंत्री पद मैडम को मिल गया।
सुमित 'सुजान'

Sunday, January 18, 2015

चुटकी

राजनीति में नए नियम गढ़े जा रहे हैं,
कोसने वाले नेतागिरी में छा रहे हैं।
फिर दिखाए जाएंगे हमें कुछ सपने,
कुछ ने पहले ठगा, कुछ फिर ठगने आ रहे हैं।
सुमित 'सुजान'

Friday, January 16, 2015

चुटकी

महाराज आपका सुझाव बहुत अच्छा है,
इरादा भी नेक और सच्चा है। 
लेकिन जब से पाला पड़ा है मेरा महंगाई से 
सोचता हूं, बच्चा एक ही हो तो अच्छा है। 
सुमित 'सुजान'