Tuesday, August 28, 2012

अपने रामदीन जी की 'सरकार'

         


            सबसे पहले तो आपको सूचित करता हूं कि इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं। इस कहानी का पिछले दिनों हुई केन्द्र सरकार की छीछालेदर से भी कोई लेना देना नहीं है। मेरा मन एक फिल्म बनाने का कर रहा है। फिल्म का नाम भी सोच लिया है। 'सरकार'...। इस 'सरकार' का मशहूर फिल्म निर्माता रामगोपाल वर्मा की फिल्म 'सरकार' से भी कोई संबंध नहीं है। मेरी फिल्म कुछ अलग हटकर है।
          आज सुबह रामदीन जी घर आए तो चाय पीते-पीते अपनी फिल्म बनाने की योजना के बारे में ऐसी ही कुछ बातें कह रहे थे। हालांकि मेरा मन तो नहीं कर रहा था उनकी स्टोरी सुनने का, लेकिन उन्होंने जब 'सरकार'  कहा तो मेरी आंख एकदम खुल गई।
         रामदीन जी बोले-'देखो भाईसाहब... मैं जो फिल्म बनाने जा रहा हूं उसमें एक प्रधानमंत्री है जो हमेशा किसी के इशारे पर चलता है। कभी कुछ बोलता भी नहीं है। वैसे तो इनको ईमानदार लोगों में गिना जाता है लेकिन एक समय ऐसा आता है जब ये अपने मंत्रियों की तरह बड़े-बड़े घोटालों में फंस जाते हैं।
इसके बाद इनके साथी कुछ मंत्री जो स्वयं बड़े-बड़े घोटालों को अंजाम दे चुके होते हैं वह देश को बताने की कोशिश करते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री ने कोई घोटाला नहीं किया है। वह तो देश की तरक्की में जी-जान से लगे हुए हैं। घोटालों का जिस प्रकार से सरकार एजेंसियां आंकलन कर रही हैं उनके बारे में सभी साथी मंत्री देश की जनता को बताते हैं कि सरकारी आंकड़े हमेशा झूठे होते हैं। वे तर्क देकर अपने प्रधानमंत्री का पूरी तरह बचाव करते नजर आते हैं।'
        फिल्म की कहानी मुझे धीरे-धीरे पसंद आने लगी। इसलिए मैंने पूछा-'इसमें विपक्षी पार्टियों का रोल भी तो होगा?' रामदीन जी ने बताया कि-'अरे भाईसाहब...! विपक्षी पार्टियां भी हैं। लेकिन यह 'सरकार' है ना, 'एक कान से सुनती है और दूसरे से निकाल देती है।' 'चोरी और सीना जोरी' सब चलता रहता है।
फिर मैंने सवाल किया-'अच्छा ये बताओ कि इसमें मुख्य किरदार किसका है?' मुख्य किरदार के बारे में रामदीन जी चुप हो गए। और मुस्कुराते हुए बोले-'मुख्य किरदार के लिए तो आपको मेरी फिल्म देखने के लिए सिनेमाघर आना पड़ेगा। अभी पूरी स्टोरी सुना दूंगा तो मेरी फिल्म पर ठीक उसी तरह प्रतिबंध लग जाएगा जिस प्रकार सोशल नेटवर्किंग साइटों पर लग गया है।'
       चाय नाश्ता खत्म हुआ। रामदीन जी के जाने के बाद मैं पूरे दिन यही सोचता रहा कि कितनी अजीब बात है। फिल्म भी काल्पनिक है और हमारी सराकर भी। क्योंकि आज जिस तरह देश चल रहा है वह मात्र कल्पना ही तो है। कोई लेपटॉप बांटने की बात करता है तो कोई गरीबों को मोबाइल, कोई 'आकाश' देकर आकाश में उडऩे के सपने दिखाता है तो कोई देश को महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, भूखमरी, कुपोषण से मुक्त करने की बात कहता है। रामदीन जी की फिल्म 'सरकार' और हमारी केन्द्र सरकार में कितनी समानताएं हैं। जब देश ही कल्पनाओं पर चल रहा है तो मुझे लगता है कि अपने रामदीन जी की फिल्म 'सरकार' भी हिट हो सकती है। क्योंकि वह भी तो कल्पनाओं पर आधारित है।
 
     

Tuesday, August 21, 2012

वाह! कमाल कर दिया

     
        कोई कमाल कब हो जाए कहा नहीं जा सकता। ठीक उसी तरह जिस तरह आज रामदीन को मोहल्ले में मिठाई बांटते हुए देखा। पूछने पर रामदीन ने बताया कि 'कल गृह मंत्रालय में एक बड़े अफसर के पद के लिए साक्षात्कार दिया था, जिसका परिणाम आज आया है। मिठाई नौकरी लगने की खुशी में बांटी जा रही है।' उसने बताया कि 'खुद देश के गृहमंत्री सामने साक्षात्कार ले रहे थे।'
        पहले तो मैंने रामदीन को बधाई दी। उसके बाद उत्सुकतावश पूछा-'यार... रामदीन एक बात बता। गृहमंत्री जब तेरा साक्षात्कार ले रहे थे तो तुझे डर नहीं लगा?'  इतना सुनते ही वह जोर-जोर से हंसने लगा और हंसते-हंसते बोला-'यार...डर तो मुझे बहुत लग रहा था लेकिन मुझसे इतना सरल सवाल किया कि मेरा जवाब सुनने पर उन्होंने स्वयं मुझे शाबाशी दी।'
       'ऐसा क्या सवाल था?' -मैंने पूछा। तब रामदीन ने बताया कि उनका सवाल था कि यदि भारत में कोई बम धमाका हो जाएगा तो तुम क्या-क्या करोगे? सवाल की गंभीरता को समझते हुए मैंने पूछा-'तुमने क्या जवाब दिया।' मैं जितना गंभीर था वह उतना ही मस्ती में था। रामदीन ने जवाब दिया कि-'यदि भारत में कोई बम धमाका होगा तो हम हमेशा की तरह पहले मौके का मुआयना करेंगे। मीडिया के ज्यादा हो-होल्ला करने पर अपनी नाकामी पर चर्चा करने के बजाए गेंद पाकिस्तान के पाले में फेंक देंगे। हमेशा की तरह पाकिस्तान हमला करने की बात को खारिज कर देगा, हम हमेशा की तरह कहेंगे कि हमारे पास ठोस सबूत हैं। पाकिस्तान फिर हमसे हमेशा की तरह सबूत मांगेगा। फिर हम हमेशा की तरह सबूतों का पुलिंदा तैयार करेंगे। पाकिस्तान हमेशा की तरह थोड़े और सबूत की मांग करेगा तब हम हमेशा की तरह और सबूत भेज देंगे। जब तक हम सबूत का लेन-देन करेंगे तब तक आपका मंत्रालय बदल जाएगा और मेरा रिटायरमेंट भी हो जाएगा। मैं हर मामले को इस तरह उलझा कर रखूंगा कि न विपक्ष को मुद्दा याद रहेगा न मीडिया को और न ही देश की जनता को। सब भूल जाएंगे। हां! गड़बड़ वाली फाइलों में इतनी सावधानी से आग लगाऊंगा कि आप पर बिल्कुल भी आंच नहीं आएगी।'
        रामदीन बोलता गया-'हम हमेशा की तरह पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी देंगे। ठीक वैसे ही जैसे देश के कोने-कोने से पलायन कर रहे असम के पूर्वोत्तर के नागरिकों को दिखाने के लिए पाकिस्तान को दी है। भले ही उनका सरकार के ऊपर से विश्वास उठ गया हो लेकिन हमारी कार्रवाई तो जारी है। हम हमेशा की तरह वैसे ही ठोस कदम उठाएंगे जैसे कि हमने संसद हमले, मुम्बई में सीरियल बम धमाके, मुम्बई में 26 /11 का हमला, वाराणासी बम धमाके, पुणे बेस्ट बेकरी काण्ड, दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर हुए बम धमाके को लेकर उठाए हैं। यदि कोई आतंकी धोखे से पकड़ा भी  जाता है तो हम हमेशा की तरह उसे अपनी जेल में बंद रखेंगे।'  रामदीन जी बोले-'मैं जानता था कि मैं जैसे ही आतंकवादियों को पकडक़र फांसी पर लटकाने की बात करूंगा तो मंत्री जी विदक जाएंगे और हाथ से नौकरी चली जाएगी। इसलिए मैंने मंत्री जी की तरह अपने स्वाभिमान, राष्ट्रभक्ति को दिमाग से निकाल दिया था।'
        रामदीन के चुप होने पर आखिर में मुझे शर्म से झूठी मुस्कुराहट लाकर कहना पड़ा, 'वाह! रामदीन, तुमने तो कमाल कर दिया।'

Tuesday, August 14, 2012

...तो फिर डाका कौन डालेगा

       
          सरकारी कार्यालयों में सभी बाबू काम में व्यस्त थे, केवल रामदीन जी को छोडक़र। पता किया तो मालूम हुआ कि सभी ने एक साथ मिलकर रामदीन जी को झाड़ दिया। बात तब बिगड़ गई जब रामदीन जी ने अपने साथी बाबुओं को काम नहीं करने की सलाह दी।
        शर्मा जी चश्मा टेबल पर रखते हुए बोले-''देखो भईया, हम तो अपने मंत्री जी के आदेश का पालन कर रहे हैं।'' कैसा आदेश?-रामदीन जी ने प्रश्न किया। तभी शर्मा जी बोले- ''लगता है कि आप उस बैठक में नहीं थे जब मंत्री जी ने कहा था कि- 'अगर काम करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हों लेकिन डाका मत डालना।'
        रामदीन जी बोले-''हां! मैंने सुना तो था लेकिन सिरियसली नहीं लिया। तभी गुप्ता जी बीच में बोल पड़े- ''आपने सिरियसली नहीं लिया तो इसमें हमारी क्या गलती है, हमने तो लिया है। जिस दिन से आदेश निकला है तभी से हमने काम करना शुरू कर दिया है। हां! हम काम भी रहे हैं और चोरी भी।'' सभी एक साथ खिलखिला कर हंस पड़े।
      लेकिन कुछ देर बाद जब रामदीन जी ने जो कुछ बोला उससे सभी की बोलती बंद हो गई। रामदीन जी बोले- ''अरे गुप्ता जी आप बड़े भोले हैं जो मंत्री जी की बातों में आए गए। मंत्री जी ने जो कहा था उनके शब्दों को पकडि़ए। मंत्री जी कह रहे हैं कि 'काम करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हों लेकिन डाका मत डालना।' इसमें ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है बल्कि प्रश्न यह उठता है कि आखिर डांका कौन डालेगा? लगता है यह मामला मंत्री जी ने अपने पास रखा है। आप लोगों को पता है क्या अभी हमारे प्रदेश को राष्ट्रपति चुनाव के समय योजना आयोग से 7 हजार करोड़ रुपए का विशेष पैकज मिला है। इस पैकेज के मिलते ही सारे मंत्रियों के मुंह में पानी आ गया है। इसलिए तो हमसे फुर्सत छीनकर फुर्ती में काम करने का लालच दिया जा रहा है।''
       ''अरे भाई लोगों अपना स्वाभिमान जगाओ। हम सरकारी बाबू हैं। आदेश पर इतनी जल्दी अमल करना हमारे आचरण के खिलाफ है। हमने तो सर्वोच्च न्यायालय के कई आदेशों के पालन करने में ही वर्षों बिता दिए। हमारे जैसे बाबुओं ने अफजल गुरू, कसाब की दया याचिका की फाइल को कबसे दबाकर रखा है। कितने ही लोग दफ्तरों के चक्कर काट-काटकर  थक गए, लेकिन मजाल है कि हमने कभी उनका काम किया हो।
        सबने ध्यान से रामदीन जी की बातें सुनीं। अब दफ्तर का माहौल एकदम बदल गया। अब गुप्ता जी ने कुर्सी को पीछे खिसकाते हुए दोनों पैर टेबल पर रख लिए। शर्मा जी ने भी अपनी टेबल से चश्मा उठाकर अपनी जेब में रखा और टेबल पर सर रखकर नींद लेने लगे। और अपने रामदीन जी रोज की तरह समय से पहले घर आ गए।

Wednesday, August 8, 2012

दल गठन में शक्ति है...

          
         दिल्ली से लौट रहा था। मेरी सामने वाली सीट पर हमारे पड़ौसी रामदीन जी मिल गए। रामदीन जी सीधे-सादे इंसान हैं ऐसा दिखने के लिए उन्होंने अपना हुलिया भी बनाया हुआ था। सफेद खादी का कुर्ता, पैरों में हवाई चप्पल और सर पर गांधी टोपी जिस पर लिखा था मैं अण्णा। उनके हुलिए को देखकर यह समझने में देर नहीं लगी कि वह जंतर-मंतर अण्णा हजारे के अनशन से आ रहे हैं। अनशन समाप्ति की घोषणा के बाद वे वापस लौट रहे थे। उनके द्वारा मुझे पहचानते ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ कि चलो सफर अच्छा कट जाएगा।
         वैसे तो मैंने कभी भी रामदीन जी को गुस्सा होते हुए नहीं देखा लेकिन मुझे नहीं पता था कि मेरी एक चुटकी से वह इतना उखड़ जाएंगे। मैंने मजाक में उनसे कहा ''लो अब भ्रष्टाचार की समस्या को समाप्त करने के लिए नई पार्टी बनेगी। हम वैसे ही नेताओं से परेशान हैं और अण्णा हजारे ने भी नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी।''  इस बात पर वह एकदम नाराज हो गए। तपाक से बोले! ''देखो साहब यह तो भारत का इतिहास रहा है कि पार्टी या संगठन के बिना किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। वैसे भी हमारे यहां तो कहावत भी है कि 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।' हमने अंग्रजों से भारत को आजाद कराने के लिए भी तो कई दल बनाए थे। अब समय बदल गया है बाबूजी। पहले कहा जाता था-'संगठन में शक्ति है'। लेकिन अब नई सोच ने जन्म लिया है। इसलिए नई सोच पर चलो और यह मान लो कि 'दल गठन में शक्ति है।'
           रामदीन जी के प्रभावी प्रवचन सुनते ही मेरे दिमाग ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। दिमाग में आइडिया आया कि जिस प्रकार अण्णा हजारे ने भ्रष्टाचर की समस्या के समाधान के लिए नई पार्टी बनाने की घोषणा की है तो क्यूं न अन्य समस्याओं को दूर करने के लिए भी दल बनाए जाएं। मैंने इस कल्पना को रामदीन जी के सामने रखा तो उन्होंने भी शाबाशी देकर मेरा हौंसला बढ़ाया।
          कल्पना कुछ इस प्रकार है कि भारत में जो भी प्रमुख समस्याएं हैं उनको समाप्त करने के लिए लोग आगे आएं और नया दल बनाएं। उदाहरण के लिए बेरोजगारी। इस समस्या के समाधान के लिए पूरे देश के युवा एक पार्टी का निर्माण कर सकते हैं। उनकी पार्टी का नाम आरबीएस अर्थात् राष्ट्रवादी बेरोजगार सेना हो सकता है। इसी प्रकार नक्सली अपनी बात मनवाने के लिए एनडी (यू) अर्थात् नक्सली दल (यूनाइटेड) का गठन कर सकते हैं। नक्सलियों की समस्याएं खत्म होंगी तभी नक्सवाद की समस्या का समाधान हो सकता है। आतंकवाद भी भारत में एक बड़ी समस्या है। इसलिए जिन परिवारों के लोगों ने अपना बलिदान आतंकी घटनाओं में दिया है वह सब मिलकर एव्हीडी (आतंकवादी विरोधी दल) बना सकते हैं। गैस पीडि़त जीपीपी (गैस पीडि़त पार्टी), आरक्षण मांगने वाले आरडीडी (आरक्षण दिलाओ दल), भुखमरी दूर करने के लिए बीएमएम (भुखमरी मुक्ति मोर्चा), गरीबी की समस्या दूर करने के लिए गरीब जनता जीपीएच (गरीब पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान)जैसी नई पार्टी बना सकते हैं।
          जिस प्रकार टीम अण्णा ने तैयारी कर ली है, इसी प्रकार सबको कर लेनी चाहिए। चुनाव आने वाला है। हमें संसद का शुद्धिकरण भी तो करना है और भारत को समस्याओं से मुक्त भी। इसलिए रामदीन जी की तरह मैं भी मानने लगा हूं कि- 'दल गठन में शक्ति है।' जय हिन्द!