सबसे पहले तो आपको सूचित करता हूं कि इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं।
इस कहानी का पिछले दिनों हुई केन्द्र सरकार की छीछालेदर से भी कोई लेना
देना नहीं है। मेरा मन एक फिल्म बनाने का कर रहा है। फिल्म का नाम भी सोच
लिया है। 'सरकार'...। इस 'सरकार' का मशहूर फिल्म निर्माता रामगोपाल वर्मा
की फिल्म 'सरकार' से भी कोई संबंध नहीं है। मेरी फिल्म कुछ अलग हटकर है।
आज सुबह रामदीन जी घर आए तो चाय पीते-पीते अपनी फिल्म बनाने की योजना के बारे में ऐसी ही कुछ बातें कह रहे थे। हालांकि मेरा मन तो नहीं कर रहा था उनकी स्टोरी सुनने का, लेकिन उन्होंने जब 'सरकार' कहा तो मेरी आंख एकदम खुल गई।
रामदीन जी बोले-'देखो भाईसाहब... मैं जो फिल्म बनाने जा रहा हूं उसमें एक प्रधानमंत्री है जो हमेशा किसी के इशारे पर चलता है। कभी कुछ बोलता भी नहीं है। वैसे तो इनको ईमानदार लोगों में गिना जाता है लेकिन एक समय ऐसा आता है जब ये अपने मंत्रियों की तरह बड़े-बड़े घोटालों में फंस जाते हैं।
इसके बाद इनके साथी कुछ मंत्री जो स्वयं बड़े-बड़े घोटालों को अंजाम दे चुके होते हैं वह देश को बताने की कोशिश करते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री ने कोई घोटाला नहीं किया है। वह तो देश की तरक्की में जी-जान से लगे हुए हैं। घोटालों का जिस प्रकार से सरकार एजेंसियां आंकलन कर रही हैं उनके बारे में सभी साथी मंत्री देश की जनता को बताते हैं कि सरकारी आंकड़े हमेशा झूठे होते हैं। वे तर्क देकर अपने प्रधानमंत्री का पूरी तरह बचाव करते नजर आते हैं।'
फिल्म की कहानी मुझे धीरे-धीरे पसंद आने लगी। इसलिए मैंने पूछा-'इसमें विपक्षी पार्टियों का रोल भी तो होगा?' रामदीन जी ने बताया कि-'अरे भाईसाहब...! विपक्षी पार्टियां भी हैं। लेकिन यह 'सरकार' है ना, 'एक कान से सुनती है और दूसरे से निकाल देती है।' 'चोरी और सीना जोरी' सब चलता रहता है।
फिर मैंने सवाल किया-'अच्छा ये बताओ कि इसमें मुख्य किरदार किसका है?' मुख्य किरदार के बारे में रामदीन जी चुप हो गए। और मुस्कुराते हुए बोले-'मुख्य किरदार के लिए तो आपको मेरी फिल्म देखने के लिए सिनेमाघर आना पड़ेगा। अभी पूरी स्टोरी सुना दूंगा तो मेरी फिल्म पर ठीक उसी तरह प्रतिबंध लग जाएगा जिस प्रकार सोशल नेटवर्किंग साइटों पर लग गया है।'
चाय नाश्ता खत्म हुआ। रामदीन जी के जाने के बाद मैं पूरे दिन यही सोचता रहा कि कितनी अजीब बात है। फिल्म भी काल्पनिक है और हमारी सराकर भी। क्योंकि आज जिस तरह देश चल रहा है वह मात्र कल्पना ही तो है। कोई लेपटॉप बांटने की बात करता है तो कोई गरीबों को मोबाइल, कोई 'आकाश' देकर आकाश में उडऩे के सपने दिखाता है तो कोई देश को महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, भूखमरी, कुपोषण से मुक्त करने की बात कहता है। रामदीन जी की फिल्म 'सरकार' और हमारी केन्द्र सरकार में कितनी समानताएं हैं। जब देश ही कल्पनाओं पर चल रहा है तो मुझे लगता है कि अपने रामदीन जी की फिल्म 'सरकार' भी हिट हो सकती है। क्योंकि वह भी तो कल्पनाओं पर आधारित है।
आज सुबह रामदीन जी घर आए तो चाय पीते-पीते अपनी फिल्म बनाने की योजना के बारे में ऐसी ही कुछ बातें कह रहे थे। हालांकि मेरा मन तो नहीं कर रहा था उनकी स्टोरी सुनने का, लेकिन उन्होंने जब 'सरकार' कहा तो मेरी आंख एकदम खुल गई।
रामदीन जी बोले-'देखो भाईसाहब... मैं जो फिल्म बनाने जा रहा हूं उसमें एक प्रधानमंत्री है जो हमेशा किसी के इशारे पर चलता है। कभी कुछ बोलता भी नहीं है। वैसे तो इनको ईमानदार लोगों में गिना जाता है लेकिन एक समय ऐसा आता है जब ये अपने मंत्रियों की तरह बड़े-बड़े घोटालों में फंस जाते हैं।
इसके बाद इनके साथी कुछ मंत्री जो स्वयं बड़े-बड़े घोटालों को अंजाम दे चुके होते हैं वह देश को बताने की कोशिश करते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री ने कोई घोटाला नहीं किया है। वह तो देश की तरक्की में जी-जान से लगे हुए हैं। घोटालों का जिस प्रकार से सरकार एजेंसियां आंकलन कर रही हैं उनके बारे में सभी साथी मंत्री देश की जनता को बताते हैं कि सरकारी आंकड़े हमेशा झूठे होते हैं। वे तर्क देकर अपने प्रधानमंत्री का पूरी तरह बचाव करते नजर आते हैं।'
फिल्म की कहानी मुझे धीरे-धीरे पसंद आने लगी। इसलिए मैंने पूछा-'इसमें विपक्षी पार्टियों का रोल भी तो होगा?' रामदीन जी ने बताया कि-'अरे भाईसाहब...! विपक्षी पार्टियां भी हैं। लेकिन यह 'सरकार' है ना, 'एक कान से सुनती है और दूसरे से निकाल देती है।' 'चोरी और सीना जोरी' सब चलता रहता है।
फिर मैंने सवाल किया-'अच्छा ये बताओ कि इसमें मुख्य किरदार किसका है?' मुख्य किरदार के बारे में रामदीन जी चुप हो गए। और मुस्कुराते हुए बोले-'मुख्य किरदार के लिए तो आपको मेरी फिल्म देखने के लिए सिनेमाघर आना पड़ेगा। अभी पूरी स्टोरी सुना दूंगा तो मेरी फिल्म पर ठीक उसी तरह प्रतिबंध लग जाएगा जिस प्रकार सोशल नेटवर्किंग साइटों पर लग गया है।'
चाय नाश्ता खत्म हुआ। रामदीन जी के जाने के बाद मैं पूरे दिन यही सोचता रहा कि कितनी अजीब बात है। फिल्म भी काल्पनिक है और हमारी सराकर भी। क्योंकि आज जिस तरह देश चल रहा है वह मात्र कल्पना ही तो है। कोई लेपटॉप बांटने की बात करता है तो कोई गरीबों को मोबाइल, कोई 'आकाश' देकर आकाश में उडऩे के सपने दिखाता है तो कोई देश को महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, भूखमरी, कुपोषण से मुक्त करने की बात कहता है। रामदीन जी की फिल्म 'सरकार' और हमारी केन्द्र सरकार में कितनी समानताएं हैं। जब देश ही कल्पनाओं पर चल रहा है तो मुझे लगता है कि अपने रामदीन जी की फिल्म 'सरकार' भी हिट हो सकती है। क्योंकि वह भी तो कल्पनाओं पर आधारित है।