सरकारी कार्यालयों में सभी बाबू काम में व्यस्त थे, केवल रामदीन जी को
छोडक़र। पता किया तो मालूम हुआ कि सभी ने एक साथ मिलकर रामदीन जी को झाड़
दिया। बात तब बिगड़ गई जब रामदीन जी ने अपने साथी बाबुओं को काम
नहीं करने की सलाह दी।
शर्मा जी चश्मा टेबल पर रखते हुए बोले-''देखो भईया, हम तो अपने मंत्री जी के आदेश का पालन कर रहे हैं।'' कैसा आदेश?-रामदीन जी ने प्रश्न किया। तभी शर्मा जी बोले- ''लगता है कि आप उस बैठक में नहीं थे जब मंत्री जी ने कहा था कि- 'अगर काम करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हों लेकिन डाका मत डालना।'
रामदीन जी बोले-''हां! मैंने सुना तो था लेकिन सिरियसली नहीं लिया। तभी गुप्ता जी बीच में बोल पड़े- ''आपने सिरियसली नहीं लिया तो इसमें हमारी क्या गलती है, हमने तो लिया है। जिस दिन से आदेश निकला है तभी से हमने काम करना शुरू कर दिया है। हां! हम काम भी रहे हैं और चोरी भी।'' सभी एक साथ खिलखिला कर हंस पड़े।
लेकिन कुछ देर बाद जब रामदीन जी ने जो कुछ बोला उससे सभी की बोलती बंद हो गई। रामदीन जी बोले- ''अरे गुप्ता जी आप बड़े भोले हैं जो मंत्री जी की बातों में आए गए। मंत्री जी ने जो कहा था उनके शब्दों को पकडि़ए। मंत्री जी कह रहे हैं कि 'काम करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हों लेकिन डाका मत डालना।' इसमें ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है बल्कि प्रश्न यह उठता है कि आखिर डांका कौन डालेगा? लगता है यह मामला मंत्री जी ने अपने पास रखा है। आप लोगों को पता है क्या अभी हमारे प्रदेश को राष्ट्रपति चुनाव के समय योजना आयोग से 7 हजार करोड़ रुपए का विशेष पैकज मिला है। इस पैकेज के मिलते ही सारे मंत्रियों के मुंह में पानी आ गया है। इसलिए तो हमसे फुर्सत छीनकर फुर्ती में काम करने का लालच दिया जा रहा है।''
''अरे भाई लोगों अपना स्वाभिमान जगाओ। हम सरकारी बाबू हैं। आदेश पर इतनी जल्दी अमल करना हमारे आचरण के खिलाफ है। हमने तो सर्वोच्च न्यायालय के कई आदेशों के पालन करने में ही वर्षों बिता दिए। हमारे जैसे बाबुओं ने अफजल गुरू, कसाब की दया याचिका की फाइल को कबसे दबाकर रखा है। कितने ही लोग दफ्तरों के चक्कर काट-काटकर थक गए, लेकिन मजाल है कि हमने कभी उनका काम किया हो।
सबने ध्यान से रामदीन जी की बातें सुनीं। अब दफ्तर का माहौल एकदम बदल गया। अब गुप्ता जी ने कुर्सी को पीछे खिसकाते हुए दोनों पैर टेबल पर रख लिए। शर्मा जी ने भी अपनी टेबल से चश्मा उठाकर अपनी जेब में रखा और टेबल पर सर रखकर नींद लेने लगे। और अपने रामदीन जी रोज की तरह समय से पहले घर आ गए।
शर्मा जी चश्मा टेबल पर रखते हुए बोले-''देखो भईया, हम तो अपने मंत्री जी के आदेश का पालन कर रहे हैं।'' कैसा आदेश?-रामदीन जी ने प्रश्न किया। तभी शर्मा जी बोले- ''लगता है कि आप उस बैठक में नहीं थे जब मंत्री जी ने कहा था कि- 'अगर काम करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हों लेकिन डाका मत डालना।'
रामदीन जी बोले-''हां! मैंने सुना तो था लेकिन सिरियसली नहीं लिया। तभी गुप्ता जी बीच में बोल पड़े- ''आपने सिरियसली नहीं लिया तो इसमें हमारी क्या गलती है, हमने तो लिया है। जिस दिन से आदेश निकला है तभी से हमने काम करना शुरू कर दिया है। हां! हम काम भी रहे हैं और चोरी भी।'' सभी एक साथ खिलखिला कर हंस पड़े।
लेकिन कुछ देर बाद जब रामदीन जी ने जो कुछ बोला उससे सभी की बोलती बंद हो गई। रामदीन जी बोले- ''अरे गुप्ता जी आप बड़े भोले हैं जो मंत्री जी की बातों में आए गए। मंत्री जी ने जो कहा था उनके शब्दों को पकडि़ए। मंत्री जी कह रहे हैं कि 'काम करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हों लेकिन डाका मत डालना।' इसमें ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है बल्कि प्रश्न यह उठता है कि आखिर डांका कौन डालेगा? लगता है यह मामला मंत्री जी ने अपने पास रखा है। आप लोगों को पता है क्या अभी हमारे प्रदेश को राष्ट्रपति चुनाव के समय योजना आयोग से 7 हजार करोड़ रुपए का विशेष पैकज मिला है। इस पैकेज के मिलते ही सारे मंत्रियों के मुंह में पानी आ गया है। इसलिए तो हमसे फुर्सत छीनकर फुर्ती में काम करने का लालच दिया जा रहा है।''
''अरे भाई लोगों अपना स्वाभिमान जगाओ। हम सरकारी बाबू हैं। आदेश पर इतनी जल्दी अमल करना हमारे आचरण के खिलाफ है। हमने तो सर्वोच्च न्यायालय के कई आदेशों के पालन करने में ही वर्षों बिता दिए। हमारे जैसे बाबुओं ने अफजल गुरू, कसाब की दया याचिका की फाइल को कबसे दबाकर रखा है। कितने ही लोग दफ्तरों के चक्कर काट-काटकर थक गए, लेकिन मजाल है कि हमने कभी उनका काम किया हो।
सबने ध्यान से रामदीन जी की बातें सुनीं। अब दफ्तर का माहौल एकदम बदल गया। अब गुप्ता जी ने कुर्सी को पीछे खिसकाते हुए दोनों पैर टेबल पर रख लिए। शर्मा जी ने भी अपनी टेबल से चश्मा उठाकर अपनी जेब में रखा और टेबल पर सर रखकर नींद लेने लगे। और अपने रामदीन जी रोज की तरह समय से पहले घर आ गए।
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