Wednesday, January 23, 2013

हमारा चिंतन



                                                                 व्यंग्य/झुनझुना
         बेटा होने पर खुशी होती है लेकिन हमारे रामदीन जी तो सुबह से ही चिंता में डूबे हुए थे। आजकल जयपुर में रहते-रहते सबकी हालत कांगे्रस की तरह हो गई है। बात-बात के लिए चिंतन होने लगता है। खैर हमारे रामदीन जी की चिंता अपने बेटे के नामकरण के लिए थी। रामदीन जी मेरे पास आए और बोले-'यार... बेटा तो हो गया लेकिन इसका क्या नाम रखना चाहिए, आप कुछ बता सकते हो क्या?' मैंने कहा- 'देखो भाई रामदीन। नामकरण ऐसे एकदम नहीं होता। आप और मैं चिंतन करते हैं शायद कोई नाम निकल आए।' 'हां यह ठीक रहेगा'-रामदीन जी बोले।
        थोड़ी देर चिंता करने के बाद मैंने रामदीन जी से कहा- 'इसका नाम 'मनमोहन रख दो'। 'मनमोहन' नाम सुनते ही रामदीन जी हंसते हुए बोले- 'अरे नहीं...नहीं...।' यह नाम नहीं रखना। इस नाम के व्यक्ति बड़े पद पर पहुंचकर एकदम 'मौन' हो जाते हैं। खुद कोई निर्णय नहीं ले पाते, हमेशा किसी न किसी के इशारों पर चलते हैं। इसलिए इसके अलावा कोई दूसरा नाम सोचिए हुजूर...।
       इसके बाद मुझे एक नाम और सूझा 'ओमप्रकाश'। तब रामदीन जी बोले-'यार... आपको मेरे बेटे को जेल में भेजना है क्या। 'ओमप्रकाश' नाम के व्यक्तियों का वैसे ही समय ठीक नहीं चल रहा है। बड़े होकर कहीं कोई घोटाला कर दिया तो सीधे जेल में ही जाना पड़ेगा। कुछ और सोचो।'
        अब एक नाम रामदीन जी ने सुझाया, इसका नाम 'नरेन्द्र' रख देते हैं।  मैंने कहा-'देखो भाई 'नरेन्द्र' नाम तो ठीक है लेकिन इसकी तरक्की कई लोगों से देखी नहीं जाती है। अपने ही लोग इसे आगे बढऩे से रोकते हैं। बेचारे की पूरी जिंदगी अपने ही लोगों से जूझते-जूझते कट जाएगी, इसलिए दूसरे नाम पर विचार करना ठीक रहेगा।'
         'मुलायम' कैसा रहेगा'-मैंने एक और नाम ध्यान में लाया। रामदीन जी ने इसे भी मना करते हुए कहा-'इस नाम के व्यक्ति नाम के विपरीत आचरण करते हैं। 'मुलायम' नाम का व्यक्ति हमेशा कहता कुछ है और करता कुछ है। इसके मन में हमेशा किसी न किसी तरह का लालच रहता है।'
         फिर अचानक हम दोनों ने एक ही समय पर एक ही नाम बोला-'राहुल'! रामदीन जी बोले-'हां यार... यह नाम एकदम ठीक रहेगा। इस नाम वाले व्यक्ति के रास्ते में कोई रुकावट नहीं आती। अपनी नौटंकियों और चालाकियों से लोगों की भावनाओं से खेलता हुआ तरक्की पाता जाता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात कभी-कभी तो 'सत्ता का जहर' भी पीने का मौका आया तो वह भी पी लेगा।'
       आखिरकार हमारा चिंतन भी कांग्रेस की तरह 'राहुल' पर आकर ही समाप्त हुआ। चिंतन करने से चिंता समाप्त हो गई। यह हमने तो अनुभव करने देख लिया, आप भी कर सकते हैं।

Wednesday, January 16, 2013

नेता और आम आदमी

                                                          
''पता है हम पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने जा रहे हैं। इस बार तो हम छोड़ेंगे ही नहीं, देखना आप...!''
''अच्छा तो क्या करेंगे?''
''बस आप देखते जाइए...।''
''हां! देख ही तो रहे हैं।''
नेता और एक आम आदमी के बीच हो रही इस तरह की बातचीत सुनी तो मेरे कानों ने मेरी ही नहीं सुनी और लग गए बातें सुनने।
आम आदमी-'जबसे हमने पाकिस्तान सैनिकों द्वारा हमारे सैनिक के सिर काटने की घटना सुनी तो मेरा तो खून ही खौल गया। 
नेता- 'अरे वाह! आपका खून तो काफी ठीक है, हमारा तो अभी तक नहीं खौला।'
आम आदमी-'आप कबसे कड़ी कार्रवाई करने जा रहे हैं?'
नेता-'आप क्या कह रहे हैं बॉस...!! हमने तो घटना वाले दिन से ही कार्रवाई शुरू कर दी थी। हमने अपने पूरे मंत्रालय को पाकिस्तान के खिलाफ सबूत जुटाने के निर्देष जारी कर दिए थे। जल्दी ही फाइल बनकर आने वाली है, फिर देखना आप!'
आम आदमी-'अच्छा फाइल बनने के बाद क्या करोगे?'
नेता-'एक बार फाइल बन जाएगी तब हम इसे देश की जनता के सामने रखेंगे। कहेंगे कि हम खाली हाथ नहीं बैठे हैं। हम इस मामले में चुप बैठने वाले नहीं हैं। हम मामले को अमेरीका तक ले जाएंगे। अमेरीका को बताएंगे कि हमारे सबूत पुख्ता हैं कि हमारे सैनिकों को पाकिस्तान ने मारा है।' हमारे सैनिकों का कोई दोष नहीं है, असली दोष पाकिस्तान के सैनिकों का है।
आम आदमी-'अच्छा! इससे क्या होगा?'
नेता-'अरे भाई इससे होना जाना तो कुछ नहीं है लेकिन करना पड़ता है। कहीं आपको यह न लगे कि हम कुछ नहीं कर रहे हैं। क्या है कि आज आप लोग काफी समझदार हो गए हैं। बात-बात पर आंदोलन करना सीख गए हो। अभी दिल्ली में बलात्कारियों को फांसी देने के लिए आंदोलन कर दिया था। बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाया है।'
आम आदमी-'आप एक बार आक्रमण करके पाकिस्तान को हरा क्यों नहीं देते?'
नेता-'देखिए भाई...। हम पाकिस्तान को धूल चटाने का प्रयास समय-समय पर करते रहते हैं। हमने पिछले दिनों ही एक क्रिकेट श्रृंखला का आयोजन किया था। क्रिकेट में तो हम हार गए लेकिन हम जल्दी ही हॉकी का मैच कराने वालेे हैं। देखना हॉकी में तो जरूर धूल चटा देंगे।'
आम आदमी-'अच्छा छोड़ो! आप पाकिस्तान से संबंध क्यों नहीं तोड़ देते?'
नेता-'यार तुम सवाल बहुत करते हो। संबंध ऐसे नहीं टूटते हैं। संबंध तोडऩे से पहले दो-चार बार चेतावनी देना पड़ती है।'
आम आदमी-'लेकिन आप चेतावनी तो कई बार दे चुके हैं!'
नेता-'अरे वो सारी चेवातनी तो मुम्बई हमले के संबंध में दी थी। अब यह नया मामला है। अब हम नए तरीके से चेतावनी दे रहे हैं।'
आद आदमी-'अच्छा! तो यह बताइए कि शहीदों के परिवारों को न्याय कब तक मिल जाएगा।'
नेता-'देखो मुझे न्याय का तो पता नहीं लेकिन हम शहीदों के परिवारों को वीरता पुरस्कार जरूर देने जा रहे हैं।'

Wednesday, January 9, 2013

धन्यवाद गृहमंत्री जी...!

      
  किसी भी घटना पर कोई कदम उठाना अपने आप में बड़ी बात होती है। कड़े कदम उठाना तो और भी बड़ी बात। क्योंकि हमारे देश में कड़े कदम उठाने से पहले व्यक्ति, धर्म, जाति का ख्याल रखना पड़ता है। कड़े बयान तो चाहे आप कभी भी दिलवा लो, लेकिन कड़े कदम उठाने के लिए अनुमति लेना ही पड़ती है। कहीं मैडम नाराज हो गईं तो! कई बार तो अनुमति लेने में इतने वर्ष बीत जाते हैं कि लोग उस घटना को ही भूल जाते हैं कि यह कड़ा कदम किस घटना के लिए उठाया गया है। हमारे गृहमंत्री भी महिलाओं एवं कमजोर तबके के लोगों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की बात कह रहे हैं। गृहमंत्री जी कह रहे हैं कि भारतीय सभ्यता बताती है कि हर महिला माता, पत्नी, बहन और बेटी होती है। यह बात बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है कि हमारे समाज में महिलाएं डर के साए में रहे। समाज के सभी लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार का काम है। इस बात के लिए तो वास्तव में गृहमंत्री जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देने की हार्दिक इच्छा हो रही है। क्योंकि उन्होंने याद दिलाया कि समाज के सभी लोगों की सुरक्षा करना सरकार का काम है। वरना मैं तो यह भूल ही गया था। आजकल देश में जिस प्रकार से केन्द्र में सरकार कार्य कर रही है उससे मैं तो यह समझ रहा था कि सरकार सिर्फ घोटाला करने के लिए होती हैं। मैं समझता था कि सरकार जन आंदोलनों को कुचलने के लिए होती हैं। ऐसा लगता था कि सरकार केवल उद्योगपतियों के इशारों पर चलती है। मैं समझता था कि सरकार केवल अपने तरीके से सीबीआई और लोकायुक्तों का प्रयोग करने के लिए होती है। मैं तो समझता था कि सरकार का काम सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर अपने विचार व्यक्त करने वाले लोगों को गिरफ्तार करना होता है। मैं समझता था कि सरकार का काम राष्ट्रवादी संगठनों को सांम्प्रदायिक बताकर देश की एकता और अखण्डता को प्रभावित करना होता है। हम तो समझते थे कि सरकार रक्षा बजट में 10 हजार करोड़ रुपए की कटौती करने के लिए होती हैं। हम तो समझते थे कि सरकार दुश्मनों के साथ क्रिकेट खेलने के लिए होती है। अच्छा हुआ गृहमंत्री जी ने मेरे भ्रम को जल्दी दूर कर दिया। मैं लोगों से यूं ही उलझ जाया करता था। अब मैं उनसे बात तो कर सकता हूं कि देखो सरकार का काम हमारी सुरक्षा करना है। कभी-कभी अपवाद हो जाता है जब पुलिस सुरक्षा करने के बजाए थाने की सीमा विवाद के चक्कर में उलझ जाती है और पीडि़त दुनिया से चल बसता है। कभी-कभी अपवाद हो जाता है जब सरकार पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाने के लिए प्रदर्शन करना पड़ता है। धन्यवाद गृहमंत्री जी...!

Wednesday, January 2, 2013

हमें शर्म आई क्या?

देश संभालना, घर संभालने से कई गुना आसान है। इस बात का एहसास आज हमारे पड़ोसी नेताजी को हुआ। पूरे देश में जिस तरह मायूसी का माहौल है, ठीक उसी प्रकार नेताजी की पत्नी का चेहरा भी सुबह से ही मायूस था। इसी बीच पत्नी झल्लाते हुए बोली-'आपको शर्म तो आती नहीं। कम से कम हमारा ख्याल तो रख लिया करो। पूरे मोहल्ले में नाक कटवा दी आपने। सुबह से ही ताने सुनने को मिल रहे हैं। सुबह ही गुप्ता जी की मिसेज कह रही थीं कि दुष्कर्म की पीडि़त 'दामिनी' ने दम तोड़ दिया है और नेताजी बिल्कुल भी शर्मिंदा नहीं हैं। कम से कम ऐसे समय में तो अपने 'घडिय़ाली आंसुओं' का इस्तेमाल कर लिया कीजिए।' पत्नी की झल्लाहट के बाद नेताजी हंस दिए। हंसते हुए बोले-'अरे भाग्यवान' तुम भी ना... जरा-जरा सी बात को दिल पर ले लेती हो। मैंने जिस दिन से यह चोला धारण किया है तब से शर्म बची ही कहां है! अब शर्म बाजार में तो मिलती नहीं कि खरीद लाऊं। वैसे भी हम ऐसे शर्मिंदगी महसूस करने लगें तो फिर चलने लगीं सरकारें! अगर हमें शर्म आती तो हम कब का जनलोकपाल बिल ले आते। संसद में हम जनलोकपाल बिल को क्यों फाड़ते? तुम ही बताओ! हमारे साथियों ने टू-जी स्पेक्ट्रम आवंटन, कोयला खदान आवंटन, राष्ट्र मण्डल खेल, आदर्श सोसायटी जैसे कितने घोटाले किए लेकिन किसी को शर्म आई क्या? हमारे साथी तो एनजीओ बनाकर विकलांगों की वैशाखियों तक के करोड़ों रुपए डकार गए, कभी शर्म आई क्या? चलो काला धन को ही ले लो। बेचारे बाबा कब से कह रहे हैं कि देश में काला धन वापस आना चाहिए। हम लाए क्या? उल्टा हमने रामलीला मैदान को जलियावाला बाग बना दिया। हमें शर्म आई क्या? आतंकवाद के खिलाफ कितने कड़े कदम उठाए लेकिन पाकिस्तान के मंत्री भारत आए तो हमने उन्हें पलकों पर बैठाया, क्रिकेट मैच हो रहे हैं। हमें शर्म आई क्या? महंगाई कहां से कहां पहुंच गई, पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं, हमारे लोगों ने छोटे व्यापारियों का दम तोडऩे के लिए एफडीआई को मंजूरी भी दिलवा दी, संसद पर हमला हुआ, हमने स्मारक बनाने में करोड़ों रुपए फंूक दिए, हमने ही एक परिवार को 600 रुपए प्रतिमाह परिवार चलाने के लिए कहा और हम ही अपने भोज में 29 लाख रुपए खर्च करते हैं, हम एकता की बात करते-करते आरक्षण में भी आरक्षण के लिए प्रयास कर रहे हैं। हमने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की वस्तुओं की नीलामी को भी नहीं रोका। जब हमको ऐसे किसी भी मामले में शर्म नहीं आई तो अब इस घटना पर भी शर्मिंदगी महसूस होना काफी मुश्किल है? हां! अगर तुम कहती हो तो मैं कोशिश करके देख सकता हूं!!!