Wednesday, March 19, 2014

गजल


हम अब मुस्कुराएंगे नहीं
जब तक वो हमें रुलाएंगे नहीं

रातें सारी यहीं बिताना हैं
जब तक मिलने वो आएंगे नहीं

तरीका सीख लो हमसे मोहब्बत करने का
फिर पूछोगे तो हम समझाएंगे नहीं

कह दो उनसे, यूं न बिखराएं अपनी जुल्फें
ऐसा करेंगे तो हम यहां से जाएंगे नहीं

सब उन्हीं से सीखा है

नफरत करना और मोहब्बत करना
सब उन्हीं से सीखा है
बात-बात पर यूं मचलना
सब उन्हीं से सीखा है

आज किसी के पास है
कल किसी के पास था
बार-बार ये दिल बदलना
सब उन्हीं से सीखा है

गज़ल

तेरे ख्याल जब आने लगते हैं
सच में हम बहुत दीवाने लगते हैं

तजुर्बा है मुझमे इक पल में दिल जीत लेने का
कुछ लोगों को इस काम में जमाने लगते हैं

चांद सितारों को देखने बार-बार छत पर आना
मेरी जान अब ये बहाने पुराने लगते हैं.

Tuesday, March 4, 2014

अजीब बात

कितनी अजीब बात है-मैं समाज के लिए जीना चाहता हूं लेकिन समाज मुझे जीने नहीं देता।

  • सुमित 'सुजान', ग्वालियर