आज स्कूल में रामदीन मस्साब हमसे काफी नाराज हो गए। वैसे उनकी नाराजगी का
कारण भी सही ही था। बच्चों के सवालों का जवाब देते-देते समय का अंदाजा ही
नहीं लगा। बातचीत में हम उनका पीरिएड भी खा गए। सब कम्बख्त राहुल की वजह से
हुआ। न वह हमसे ओलंपिक के बारे में सवाल करता, न ही कुछ ऐसा होता।
मैं क्लास से बाहर आने की तैयारी कर ही रहा था कि राहुल ने पूछ लिया ''सर... ये ओलंपिक क्या होता है? हम चीन, अमेरिका या अन्य देशों की तरह मैडल क्यों नहीं जीत पाते हैं?''
पहले तो मैंने सभी बच्चों को ओलंपिक के बारे में बताया। इसके बाद दूसरे सवाल का जवाब दिया। मैंने कहा कि ''दरअसल हम ओलंपिक में इसलिए पीछे रह जाते हैं क्योंकि उसमें वह खेल ही शामिल नहीं हैं जिसमें भारतीयों को महारत हासिल है। हमारे परंपरागत खेल तो अलग ही हैं।
तभी विकास अपनी सीट से उठा और बोला- ''सर... फिर हमारे कौन-कौन से खेल हैं, उनके बारे में भी बताइए।'' अच्छा सवाल है विकास, मेरे मुंह से सहज ही निकल गया। तब मैंने बताया कि हमारे खेल वैसे तो कई सारे हैं लेकिन हम भारतीयों को जिनमें महारत हासिल है, वह खेल हैं भ्रष्टाचार, चापलूसी, दोगलेबाजी, ईर्ष्या, टांग खिंचाई। जिस दिन ये सारे खेल ओलंपिक में शामिल हो जाएंगे तब देखना ओलंपिक शुरू होते ही पहला स्वर्ण पदक हमें ही मिलेगा।
भ्रष्टाचार की प्रतियोगिता में हम सुरेश कलमाड़ी, ए.राजा जैसे कुछ नेताओं को भेज देंगे तो अच्छे-अच्छों की छुट्टी हो जाएगी। वैसे मुझे लगता है कि हमने श्री कलमाड़ी को लंदन ओलंपिक में जाने से रोककर अच्छा नहीं किया। कलमाड़ी जी कोई न कोई तिकड़म भिड़ाकर तीरंदाज तिकड़ी को बाहर नहीं होने देते।
इसी प्रकार चापलूसी में हमारा कोई मुकाबला नहीं कर सकता। अभी हमारे देश में ऐसे कई लोग हैं जो सोनिया गांधी की चापलूसी कर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की जुगाड़ भिड़ा रहे हैं। अगर चापलूसी की प्रतियोगिता होने लगे तो सच मानिए तीनों तमगे हमारे ही नेता जीतकर लाएंगे। दोगलेबाजी में स्वामी अग्निवेश जैसे व्यक्तियों की भागीदारी ठीक रहेगी।
हां! अगर ईष्र्या का मुकाबला होगा तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जैसे व्यक्ति ठीक रहेंगे। जिस तरह से आठ जिलों के नाम बदले गए हैं। अगर ऐसा ओलंपिक में किया तो विरोधी खिलाडिय़ों के हुलिए बदल जाएंगे।
कबड्डी में हम अभी विश्व चैम्पियन बने हैं। लेकिन हमारे इस खेल को ओलंपिक में सिर्फ इसलिए शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि आयोजक अच्छी तरह से जानते हैं कि भारतीय कितनी अच्छी तरह से 'टांग खिंचाई' करना जानते हैं। एक बार जब हम किसी को पकड़ लेते हैं तो तब तक नहीं छोड़ते जब तक सामने वाले खिलाड़ी का दम नहीं फूल जाता। रोहित शेखर ने भी एन.डी. तिवारी को अपना पिता साबित कराकर ही दम लिया।
इसलिए देखो बच्चो-''हमारे खेल बिल्कुल अलग ढंग के हैं। इसलिए हमारा ओलंपिक भी अलग ढंग का होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक मुझे लगता है कि हम ओलंपिक में चीन, अमेरिका जैसे देशों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। जिस दिन हमारे ये सारे खेल ओलंपिक में शामिल हो जाएंगे फिर देखना स्वर्ण, रजत और कांस्य तीनों पदक हमारी झोली में ही होंगे। यह भी हो सकता है कि हम किसी भी देश को कोई मुकाबला जीतने ही न दें।''
मैं क्लास से बाहर आने की तैयारी कर ही रहा था कि राहुल ने पूछ लिया ''सर... ये ओलंपिक क्या होता है? हम चीन, अमेरिका या अन्य देशों की तरह मैडल क्यों नहीं जीत पाते हैं?''
पहले तो मैंने सभी बच्चों को ओलंपिक के बारे में बताया। इसके बाद दूसरे सवाल का जवाब दिया। मैंने कहा कि ''दरअसल हम ओलंपिक में इसलिए पीछे रह जाते हैं क्योंकि उसमें वह खेल ही शामिल नहीं हैं जिसमें भारतीयों को महारत हासिल है। हमारे परंपरागत खेल तो अलग ही हैं।
तभी विकास अपनी सीट से उठा और बोला- ''सर... फिर हमारे कौन-कौन से खेल हैं, उनके बारे में भी बताइए।'' अच्छा सवाल है विकास, मेरे मुंह से सहज ही निकल गया। तब मैंने बताया कि हमारे खेल वैसे तो कई सारे हैं लेकिन हम भारतीयों को जिनमें महारत हासिल है, वह खेल हैं भ्रष्टाचार, चापलूसी, दोगलेबाजी, ईर्ष्या, टांग खिंचाई। जिस दिन ये सारे खेल ओलंपिक में शामिल हो जाएंगे तब देखना ओलंपिक शुरू होते ही पहला स्वर्ण पदक हमें ही मिलेगा।
भ्रष्टाचार की प्रतियोगिता में हम सुरेश कलमाड़ी, ए.राजा जैसे कुछ नेताओं को भेज देंगे तो अच्छे-अच्छों की छुट्टी हो जाएगी। वैसे मुझे लगता है कि हमने श्री कलमाड़ी को लंदन ओलंपिक में जाने से रोककर अच्छा नहीं किया। कलमाड़ी जी कोई न कोई तिकड़म भिड़ाकर तीरंदाज तिकड़ी को बाहर नहीं होने देते।
इसी प्रकार चापलूसी में हमारा कोई मुकाबला नहीं कर सकता। अभी हमारे देश में ऐसे कई लोग हैं जो सोनिया गांधी की चापलूसी कर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की जुगाड़ भिड़ा रहे हैं। अगर चापलूसी की प्रतियोगिता होने लगे तो सच मानिए तीनों तमगे हमारे ही नेता जीतकर लाएंगे। दोगलेबाजी में स्वामी अग्निवेश जैसे व्यक्तियों की भागीदारी ठीक रहेगी।
हां! अगर ईष्र्या का मुकाबला होगा तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जैसे व्यक्ति ठीक रहेंगे। जिस तरह से आठ जिलों के नाम बदले गए हैं। अगर ऐसा ओलंपिक में किया तो विरोधी खिलाडिय़ों के हुलिए बदल जाएंगे।
कबड्डी में हम अभी विश्व चैम्पियन बने हैं। लेकिन हमारे इस खेल को ओलंपिक में सिर्फ इसलिए शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि आयोजक अच्छी तरह से जानते हैं कि भारतीय कितनी अच्छी तरह से 'टांग खिंचाई' करना जानते हैं। एक बार जब हम किसी को पकड़ लेते हैं तो तब तक नहीं छोड़ते जब तक सामने वाले खिलाड़ी का दम नहीं फूल जाता। रोहित शेखर ने भी एन.डी. तिवारी को अपना पिता साबित कराकर ही दम लिया।
इसलिए देखो बच्चो-''हमारे खेल बिल्कुल अलग ढंग के हैं। इसलिए हमारा ओलंपिक भी अलग ढंग का होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक मुझे लगता है कि हम ओलंपिक में चीन, अमेरिका जैसे देशों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। जिस दिन हमारे ये सारे खेल ओलंपिक में शामिल हो जाएंगे फिर देखना स्वर्ण, रजत और कांस्य तीनों पदक हमारी झोली में ही होंगे। यह भी हो सकता है कि हम किसी भी देश को कोई मुकाबला जीतने ही न दें।''