Tuesday, July 31, 2012

हमारे खेल, हमारा ओलंपिक

       
        आज स्कूल में रामदीन मस्साब हमसे काफी नाराज हो गए। वैसे उनकी नाराजगी का कारण भी सही ही था। बच्चों के सवालों का जवाब देते-देते समय का अंदाजा ही नहीं लगा। बातचीत में हम उनका पीरिएड भी खा गए। सब कम्बख्त राहुल की वजह से हुआ। न वह हमसे ओलंपिक के बारे में सवाल करता, न ही कुछ ऐसा होता।
        मैं क्लास से बाहर आने की तैयारी कर ही रहा था कि राहुल ने पूछ लिया ''सर... ये ओलंपिक क्या होता है? हम चीन, अमेरिका या अन्य देशों की तरह मैडल क्यों नहीं जीत पाते हैं?''
       पहले तो मैंने सभी बच्चों को ओलंपिक के बारे में बताया। इसके बाद दूसरे सवाल का जवाब दिया। मैंने कहा कि ''दरअसल हम ओलंपिक में इसलिए पीछे रह जाते हैं क्योंकि उसमें वह खेल ही शामिल नहीं हैं जिसमें भारतीयों को महारत हासिल है।  हमारे परंपरागत खेल तो अलग ही हैं।
       तभी विकास अपनी सीट से उठा और बोला- ''सर... फिर हमारे कौन-कौन से खेल हैं, उनके बारे में भी बताइए।'' अच्छा सवाल है विकास, मेरे मुंह से सहज ही निकल गया। तब मैंने बताया कि हमारे खेल वैसे तो कई सारे हैं लेकिन हम भारतीयों को जिनमें महारत हासिल है, वह खेल हैं भ्रष्टाचार, चापलूसी, दोगलेबाजी, ईर्ष्या, टांग खिंचाई। जिस दिन ये सारे खेल ओलंपिक में शामिल हो जाएंगे तब देखना ओलंपिक शुरू होते ही पहला स्वर्ण पदक हमें ही मिलेगा।
        भ्रष्टाचार की प्रतियोगिता में हम सुरेश कलमाड़ी, ए.राजा जैसे कुछ नेताओं को भेज देंगे तो अच्छे-अच्छों की छुट्टी हो जाएगी। वैसे मुझे लगता है कि हमने श्री कलमाड़ी को लंदन ओलंपिक में जाने से रोककर अच्छा नहीं किया। कलमाड़ी जी कोई न कोई तिकड़म भिड़ाकर तीरंदाज तिकड़ी को बाहर नहीं होने देते।
इसी प्रकार चापलूसी में हमारा कोई मुकाबला नहीं कर सकता। अभी हमारे देश में ऐसे कई लोग हैं जो सोनिया गांधी की चापलूसी कर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की जुगाड़ भिड़ा रहे हैं। अगर चापलूसी की प्रतियोगिता होने लगे तो सच मानिए तीनों तमगे हमारे ही नेता जीतकर लाएंगे। दोगलेबाजी में स्वामी अग्निवेश जैसे व्यक्तियों की भागीदारी ठीक रहेगी।
       हां! अगर ईष्र्या का मुकाबला होगा तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जैसे व्यक्ति ठीक रहेंगे। जिस तरह से आठ जिलों के नाम बदले गए हैं। अगर  ऐसा ओलंपिक में किया तो विरोधी खिलाडिय़ों के हुलिए बदल जाएंगे।
        कबड्डी में हम अभी विश्व चैम्पियन बने हैं। लेकिन हमारे इस खेल को ओलंपिक में सिर्फ इसलिए शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि आयोजक अच्छी तरह से जानते हैं कि भारतीय कितनी अच्छी तरह से 'टांग खिंचाई' करना जानते हैं। एक बार जब हम किसी को पकड़ लेते हैं तो तब तक नहीं छोड़ते जब तक सामने वाले खिलाड़ी का दम नहीं फूल जाता। रोहित शेखर ने भी एन.डी. तिवारी को अपना पिता साबित कराकर ही दम लिया।
       इसलिए देखो बच्चो-''हमारे खेल बिल्कुल अलग ढंग के हैं। इसलिए हमारा ओलंपिक भी अलग ढंग का होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक मुझे लगता है कि हम ओलंपिक में चीन, अमेरिका जैसे देशों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। जिस दिन हमारे ये सारे खेल ओलंपिक में शामिल हो जाएंगे फिर देखना स्वर्ण, रजत और कांस्य तीनों पदक हमारी झोली में ही होंगे। यह भी हो सकता है कि हम किसी भी देश को कोई मुकाबला जीतने ही न दें।''
 

Tuesday, July 24, 2012

किटकिट दूर करेगा क्रिकेट...

       
    थोड़ी सी भी समझदार पत्नी मिले तो जरा संभलकर रहना चाहिए। सुबह मैं पार्क में बैठा यही प्रवचन अपने कुछ साथियों को दे रहा था। एक  महाशय ने पूछ लिया क्यूं तो बात आगे बढ़ गई। मैंने बताया कि 'यार 10 दिन पहले मेरा पत्नी से सिर्फ इस बात के लिए झगड़ा हो गया था कि मैंने उसे मायके जाने से मना कर दिया।' सुबह से शाम तक बात ही नहीं की। पिछले 10 दिन तक कोई बात ही नहीं हुई। फिर कल ही बाजार गई और सब्जी भाजी के साथ एक बेट और बॉल ले आई। पहले तो मुझे लगा कि मिंकू के लिए बेट-बॉल लाई होगी, लेकिन उसने तो कमाल ही कर दिया।
           मैंने आश्चर्य से पूछा-'यह किसलिए'? तब उसने बताया कि-'यह बेट-बॉल हम दोनों के खेलने के लिए खरीदा है। उसने बताया कि मैंने सुना है कि क्रिकेट खेलने से कटु रिश्ते सुधर जाते हैं।' फिर मैंने प्रश्न किया-'यह तुमने कब सुना?', तब उसने बताया कि-कुछ ही दिन पहले ही तो निर्णय हुआ है कि भारत और पाकिस्तान के बीच पांच साल बाद एक श्रृंखला दिसम्बर महीने में भारत में खेली जाएगी। मुम्बई हमले के पांच साल बाद पाकिस्तान की टीम क्रिकेट टीम भारत खेलने आएगी।
           भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड जब इन दो देशों की कटु दुश्मनी को दोस्ती में बदलने के लिए क्रिकेट मैच करा सकता है तो हमारी बातचीत को तो अभी बंद हुए 10 दिन ही हुए हैं। पहले तो उसकी समझदारी पर मैं अपनी हंसी रोक नहीं सका, फिर मैंने उससे क्रिकेट खेलने से मना किया तो वह चिढ़ गई। पत्नी गुस्से से बोली- मैंने कौन सा मुम्बई हमले से भी बड़ा हमला कर दिया जो आप क्रिकेट खेलने के लिए मना कर रहे हो। उन आतंकवादियों ने 163 निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारा था, और तो और हमारे कुछपुलिस और सेना के जवानों को शहीद कर दिया था, उसके बाद भी तो दोनों देशों के बीच मैच हो रहे हैं हेना...। तुम्हारे दिल में कौन सा देशभक्ति का जुनून सवार हो रहा है, इतना तो हमारे खिलाडिय़ों में भी नहीं है। आतंकवादी हमले के बाद भी देखो ना कैसे क्रिकेट खेलने के लिए तैयार हो गए हैं, एक ने भी मना नहीं किया।
           पत्नी का पारा और अधिक बढ़ता गया। कोई कुछ भी कहे, मुझे तो बीसीसीआई का यह निर्णय बहुत पसंद आया। फिर इतिहास पर आते हुए बोली- देखो यदि एक क्रिकेट मैच 1992 के समय हो जाता तो बाबरी विध्वंस का मामला भी शांति के साथ बैठकर सुलझा लेते। अब तो ऐसा लगता है कि अभी भी देर नहीं हुई है, नक्सलियों से भी बात होनी चाहिए। नक्सलियों की नाराजगी दूर करने के लिए, उनसे रिश्ते सुधारने के लिए भी सरकार को एक क्रिकेट मैच का आयोजन करना चाहिए।
        कश्मीर का मामला भी कई वर्षों से अटका हुआ है। इस मसले को भी क्रिकेट मैच द्वारा सुलझा लेना चाहिए। कांग्रेस के लिए ममता, शरद पवार, अण्णा हजारे, बाबा रामदेव, अरविंद केजरीवाल कई बार परेशानी खड़ी करते हैं। यहां तक की मोहम्मद अफजल, कसाब भी इतनी दिक्कत नहीं देते जितने ये लोग देते हैं। इसलिए सरकार को एक मैच इनसे भी फिक्स कर लेना चाहिए। इस मैच के बाद हो सकता है कालाधन, टू-जी स्पेक्ट्रम जैसे बड़े-बड़े मामलों को लोग भूल जाएं।
       मेरी पत्नी की समझदारी पर मेरे सभी साथी जोर-जोर से ठहाके मारकर हंसने लगे। मैंने कहा ज्यादा नहीं हंसिए, मुझे गुस्सा भी आ सकता है। तभी इतने में एक साथी बोला-'कोई बात नहीं, तुम गुस्सा होगे तो हम तुम्हारे साथ भी एक मैच खेल लेंगे...।'

Wednesday, July 18, 2012

मेरे भी तो फरमान सुन लो...


           कल ही कुछ गांव वाले सुबह-सुबह घर पर आ पहुंचे। पहले तो मुझे लगा कि कौन सी गलती हो गई जो यह टोली आ पहुंची। किसी के कंधे पर बंदूक है तो कोई लट्ठ थामे मेरे सामने सीना ताने खड़ा हो गया। इतने में एक पहलवान सा आदमी दोनों हाथ जोडक़र बोला-''बाबूजी आप तो समझदार और पढ़े लिखे हैं क्या आप हमें एक बात समझा सकते हैं?'' जब उसने हाथ जोड़े तो मेरे शरीर में आत्मविश्वास का संचार तेजी से होने लगा और जब उसने मेरे सम्बोधन में समझदार शब्द जोड़ा तो मेरा सीना भी चौड़ा हो गया। मैंने कहा-''हां! हां! पूछो क्या पूछना है।''
           गांव वाले बड़े भोले होते हैं ऐसा मैंने सुना था लेकिन देखा पहली बार। अबकी बार दूसरा बोल पड़ा-''बाबूजी हम पास के गांव से आए हैं।''  एक समाचार पता चला है कि आपकी पंचायत ने कुछ फरमान सुनाए हैं। जिसमें 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को सूर्य अस्त के बाद बाजार न जाने, मोबाइल पर बात न करने, प्रेम प्रसंग न करने और कान में लीड लगाकर गाने न सुनने का फरमान सुनाया गया है। हम भी चाहते हैं कि बढ़ते अपराधों को रोकने की इस दूरगामी योजना को अपनी पंचायत द्वारा अपने भी गांव में लागू कराएं।
         अबकी बार मैंने उनके हाथ जोड़े और कहा-''हां! हमारी पंचायत ने फैसला सुनाया है लेकिन मैंने जितना इस फरमान का अध्ययन किया है उससे इसमें मुझे कई खामियां ज्ञात हुईं हैं।''  खामियां.... हां! हा! खामियां। अब मैं अपनी समझदारी की ओर बढ़ रहा था। मैंने उन्हें बताया कि देखो पंचायत ने फरमान दिया है कि 40 से कम उम्र की महिलाएं सूर्य अस्त होने के बाद घर से बाहर न जाएं। इस बात पर गौर करें तो पहला प्रश्न यह उठता है कि क्या पुरुष पूरे दिन भर घर के बाहर ही घूमते रहते हैं? दूसरा प्रश्न यह है कि सूर्य अस्त होने के बाद महिलाओं को क्या करना है और क्या नहीं यह नहीं बताया गया है? क्या महिलाओं को सूर्य अस्त के बाद घर में खाना बनाना है या नहीं। महिलाओं से कहा गया है कि वह अकेले बाजार न जाएं। इसमें साफ-साफ यह नहीं बताया गया है कि अब बाजार किसके साथ जाएं। क्या वह आपने साथियों, सहेलियों के साथ बाजार जा सकती हैं? इसी तरह का एक और फरमान दिया कि-महिलाएं प्रेम प्रसंग न करें।  इसमें सवाल यह उठता है कि फिर क्या पुरुष को प्रेम प्रसंग करने की छूट दी गई है? पुरुष महिला से प्रेम प्रसंग कर सकता है? मोबाइल की लीड लगाकर गाना न सुनें। देखो कितनी अजीब बात है कि कोई व्यक्ति ध्वनि प्रदूषण होने से पर्यावरण को बचा रहा है तो इसमें भी उन्हें परेशानी है।  उसके खिलाफ ही फरमान जारी कर दिया।
        इसलिए देखो चच्चा..। कई खामियों से भरपूर इस फरमान को अभी से लागू करना ठीक नहीं। वैसे मुझे तो ऐसा लगता है कि ये पंचायतें इस तरह के फरमान जारी कर स्वयं अपनी फजीहत कराते हैं। अरे! कोई फरमान जारी ही करना है तो क्यूं ऐसा फरमान नहीं सुनाते जिससे कि कन्या भ्रूण हत्या, नशाखोरी, भ्रष्टाचार, दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों में कमी आए। फरमान सुनाना चाहिए कि पंचायत का सदस्य वही होगा जिसका एक बेटा फौज में होगा, फरमान होना चाहिए कि हमारे गांव का नेता और अधिकारी का बेटा सिर्फ सरकारी स्कूल में ही पढ़ेगा, तब जाकर कोई बात  बनेगी।
         हम अगर इन पंचायतों के ऐसे आलतू-फालतू फरमानों पर फैसले लेने लगे तो सोचो कोई साइना नेहवाल, ज्वाला गुट्टा, डोला बनर्जी, सुनीता विलियम्स, प्रतिभा पाटिल, कृष्णा पुनिया, मैरीकॉम जैसी लाखों प्रतिभाएं क्या पूरी दुनिया में भारत का झण्डा भविष्य में बुलंद कर सकेंगी। अगर ये भी सूर्य अस्त के बाद घर बैठने लगें तो भारत का क्या हाल होगा सोचो जरा...। क्या किसी के कोई अरमान नहीं होते हैं? महिलाओं के अरमानों पर फरमान सुनाने से देश की तरक्की नहीं होगी। मुझे तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि ये पंचायत वाले कहीं सूरज-चांद के आने-जाने का समय ही निर्धारित न कर दें..।

Tuesday, July 10, 2012

कमजोर, फिसड्डी नहीं हैं...


        कोई कुछ करे या न करे। लेकिन मैंने अमेरिका का विरोध करने का सोच लिया है। जब देखो तब यह अमरीका वाले अपनी दादागिरी दिखाते रहते हैं। अभी एक पत्र लिखने की सोच रहा हूं, अमेरिका की ''टाइम'' पत्रिका के सम्पादक को। वाकई में मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है। हमारे भोले-भाले प्रधानमंत्री को ही फिसड्डी कह दिया। जिसने भी हमारे प्रधानमंत्री को ''अंडर अचीवर'' लिखा है वह यदि भारत में रहता तो पता चलता। इतनी महंगाई है कि ''अंडर वीयर'' तक खरीदने के लाले पड़ जाते।
        बड़े आए फिसड्डी कहने वाले। भइया जिस देश का प्रधानमंत्री अपनी कुर्सी बचाने के लिए रोजाना विपक्षी दलों से कबड्डी खेल रहा हो, वह फिसड्डी कैसे हो सकता है, बताइए जरा। कमजोर, असफल और शिखण्डी कहना सब फालतू बातें हैं। इटली वाली मैडम के इशारों पर भारत को चलाना कितनी बहादुरी का काम है, इन्हें क्या पता!
          जिस देश की विकास दर 8 प्रतिशत से 5.3 प्रतिशत पर आ गई हो उसका प्रधानमंत्री बने रहना कोई मजाक है क्या!! कोई भी, कुछ भी आरोप लगा रहा है। अमेरिका की सरकार के 15 मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों तब समझ आता फिसड्डी कौन है और दमदार कौन! सरकार का कोई न कोई मंत्री इस्तीफा दे रहा है। जिसने इतने शानदार राष्ट्र मण्डल खेल  का आयोजन कराया वह मंत्री भी जेल में 2 साल सजा काट कर आया है। संचार क्रांति लाने वाले मंत्री से संतरी तक जेल हो आए, फिर भी सरकार चल रही है। महंगाई भी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। ऐसे में कोई देश चला रहा है तो उसकी तारीफ करने के बजाए बुरा भला कहना मुझे मूर्खों का काम लगता है।
         एक बात और है। वह यह कि हमारे देश में गठबंधन धर्म भी तो निभाना पड़ता है। आए दिन कोई न कोई सहयोगी दल रूठ जाता है। सरकार बचाने के लिए फिर उनको मनाना पड़ता है कितनी ''टेढ़ी खीर'' होता है। इनके राष्ट्रपति को ममता, मुलायम जैसे नेता मिल जाते तो पता चलता। कितना साधकर चलना पड़ता है। राष्ट्रपति पद पर अपना उम्मीदवार जिताने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है कोईसोच सकता है क्या!!
यह ''टाइम'' पत्रिका वाले कुछ तो भी छापते रहते हैं। जो छापने की बात है उसकी ओर तो किसी का ध्यान नहीं है। इसलिए मैंने भी दृढ़ निश्चय कर लिया है पत्रिका के सम्पादक को पत्र लिखकर अपनी भड़ास निकालने का। पत्र लिखकर कहूंगा कि वह अपना पहले दृष्टिकोण बदलें। नकारात्मक की जगह सकारात्मक सोचें । यहां आकर देखो, तब पता लगेगा कि हमारे प्रधानमंत्री कमजोर, फिसड्डी नहीं हैं बल्कि बहुत दमदार हैं। फिसड्डी तो वह हैं जिनका दिमाग ऐसी फिसड्डी बातें करता है।

Tuesday, July 3, 2012

महंगे देश में सस्ता जीवन

     भइया भारत में तो अब रहना मुश्किल हो गया है। अब देखो ना- सरकार ने सेवाकर की दरें भी बढ़ा दी हैं। मोबाइल से बात करने से लेकर  रेस्ट्रां में खाना खाना तक महंगा हो गया है। लेकिन मैंने इस महंगे देश में सस्ते जीवन की तलाश कर ली है। हां! इसके लिए काफी खोजबीन करनी पड़ी। अंत में समझ आया कि आम आदमी से बेहतर तो आतंकवादियों का जीवन है। पुलिस भी आए दिन कोई न कोई आतंकवादी को पकड़ कर रही है। आतंकवादियों की अच्छी खुशामद भी की जाती है।
       खोज में मैंने पाया कि संसद हमले का मुख्य आरोपी मोहम्मद अफजल गुरू आज भी जेल में सुखी जीवन बिता रहा है। 11 साल तक कोई भी उसका बाल भी बांका नहीं कर पाया। इसी प्रकार मुम्बई में 26 /11 के आतंकवादी हमले में पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमीर कसाब पर आज तक करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। अभी हाल में महाराष्ट्र सरकार के गृहमंत्री आर.आर. पाटिल ने विधान परिषद में जो आंकड़ा प्रस्तुत किया उसमें भी बताया कि सरकार कसाब पर लगभग 21 करोड़ से अधिक खर्च कर चुकी है। पाटिल ने बताया कि 29 फरवरी 2012 तक सरकार ने कसाब के स्वास्थ्य पर 28,066 , सुरक्षा पर 1,22,18 ,406  रुपए, खाने पर 34,975 रुपए खर्च कर दिया है। इसके अलावा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस पर महाराष्ट्र सरकार ने 19 करोड़ 28  लाख रुपए खर्च कर दिए हैं। कसाब की इतनी सुरक्षा और खातिरदारी से मैं काफी प्रभावित हुआ हूं। भारत में इससे ज्याद सुरक्षित स्थान और कौन सा हो सकता है...।
    अंदर की बात बताऊं तो पाकिस्तान भी इस बात को समझ गया है। इसलिए आए दिन रोज नए आतंकवादी पकड़ आ रहे हैं। अभी कुछ ही दिन पूर्व जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जंदल उर्फ अबू हमजा को हमारी पुलिस ने मुम्बई हमले के मास्टर माइंड के रूप में पकड़ा है। सऊदी अरब से एक और आतंकवादी फसीह महमूद को भारत लाने की तैयारी की जा रही है। अब इन आतंकवादियों को भारत की जेलों में बंद रखा जाएगा। जब तक जांच चलेगी तब तक मस्त खातिरदारी की जाएगी।
         यही अब नई चाल है पाकिस्तान की! पाकिस्तान ने बम धमाकों से हमला करना बंद कर दिया है। अब वह आतंकवादियों को गिरफ्तार करा कर हमारी अर्थव्यवस्था को चौपट करना चाहता है। इसी चाल के तहत उसने 30 साल सजा काट चुके सुरजीत सिंह को रिहा कर दिया। वहां से हमारे लोग रिहा कर भारत भेजे जा रहे हैं।
हमारी सरकार भी ऐसी नासमझ है कि पूछो मत। जो जेल के बाहर हैं वह महंगाई से मरे जा रहे हैं तथा जेल के भीतर जाने वाले आतंकवादियों  की एक-एक ख्वाहिश पूरी की जाती है। वो जो मांगते हैं उन्हें उपलब्ध करा दिया जाता है। इधर महंगाई कम नहीं हो रही उधर सरकार ने सेवाकर की दरें बढ़ा दीं। पता है जुआ, लॉटरी जैसी 38  सेवाओं को छोडक़र 119 सेवाएं महंगी कर दी गई हैं। इसलिए मैं इस महंगे देश में सस्ते जीवन जीने के लिए आतंकवादी बनने की सोच रहा हूं। सोच रहा हूं कि मुम्बई हमले में कहीं न कहीं कोई अपनी भूमिका बताकर एक बार जेल के भीतर पहुंच जाऊं। जब तक जांच चलेगी तब तक तो उम्र कट ही जाएगी...।