Wednesday, October 31, 2012

हमारा 'नेतीय गुण' है विशेष

      

      किसी को काम न करने पर सजा मिलती तो समझ आता, लेकिन काम करने पर सजा मिले फिर क्या होगा। भैया इटली का कानून ही ऐसा है। अभी पिछले दिनों भूकंप की सही जानकारी न देने वाले छह वैज्ञानिकों को वहां एक अदालत ने छह साल की सजा सुना दी। बेचारे वैज्ञानिक हैं इसलिए सजा के लिए तैयार हो गए। अगर भारतीय नेता होते तो मामला ही कुछ और होता।
       हां! कानून तो कानून होता है। कोई पालन करता है तो कोई तोड़ता है। तो कोई कानून मंत्री होने की हेकड़ी दिखाता है। भारत में तो कानून मंत्री होने के कई फायदे हैं। कोई कितने भी आरोप लगाए, कितनी भी गलतियां करे, भ्रष्टाचार के कितने भी आरोप लगे, उल्टा शाबाशी ही मिलती है।
       थोड़ी देर के लिए सोचा जाए कि यदि इटली के वैज्ञानिकों में थोड़े बहुत भी भारतीय नेताओं के कुछ 'नेतीय गुण' होते तो वे बड़े आराम से बच निकलते। वैज्ञानिक नेताओं की मधुर वाणी में बोलते कि 'देखिए हमने तो सही भविष्णवाणी की थी लेकिन इसमें भूकंप ने राह बदल दी तो इसमें हमारी क्या गलती है। गलती इसमें भूकंप की है। इसमें हम दोषी नहीं हो सकते हैं।
       वैज्ञानिक कहते कि हमारे देश से अच्छा तो भारत है, जहां नेताओं को गलती करने पर प्रमोशन मिलता है और काम करने पर 'मोटा' कमीशन। एकाध एनजीओ खोल लेते तो कई विकलांगों का भला कर देते। विकलांगों की दुआएं मिलतीं और विदेश मंत्री भी बन जाते। हमारी किस्मत फूट गई इटली में रहकर। भारत में हमारी इटली वाली मैडम भी हमें गलती करने पर भी पर बचा लेतीं। उन्होंने कई लोगों को भी बचाया है। अपने दामाद को भी बचाने के लिए उन्होंने पूरी ताकत लगा दी। हम भी तो उनके लिए कुछ महत्वपूर्ण होते ही।
अपने 'नेतीय गुण' के कारण वैज्ञानिक सजा सुनाने वाले न्यायाधीश और अपोजिशन के वकील को अपने इलाके में आने पर देख लेने की धमकी भी दे देते।
        कुछ वैज्ञानिक तो अपने कुछ विशेष नेताओं के जैसे विवादित बयान भी देते। वैज्ञानिक सजा सुनने के बाद पत्रकारों से कहते कि चूंकि न्यायाधीश का संबंध विपक्षी पार्टी है इसलिए हमें सजा सुनाई गई। वरना इसमें हमारी कोई भी गलती नहीं थी। न्यायाधीशों ने विपक्षी पाटिर्यों के कहने पर हमें सजा सुनाई है।
अगर भारतीय नेताओं की तरह इटली के वैज्ञानिकों में 'नेतीय गुण' होते तो सच मानिए एक भी वैज्ञानिक न तो सजा होती और न ही यह पता चलता कि वहां कभी कोई भूकंप आया था। अगर किसी को पता भी चल जाता कि भूकंप आया है तो मरने वालों का आंकड़ा कभी भी पता नहीं चल पाता। हमारे भारतीय नेताओं के 'नेतीय गुण' का विशेष महत्व है। यह अब पूरी दुनिया को समझ लेना चाहिए।

Tuesday, October 23, 2012

तरक्की के लिए जरुरी है 'टॉयलेटीकरण'


          हम लोग अपने दीपू की शादी को लेकर बड़े चिंतित थे। कोई न कोई समस्या के कारण विवाह में दिक्कत हो जाती थी। वह तो भला हो अपने पंडित रामदीन जी का जिन्होंने ऐसा उपाय बताया कि चट मंगनी, पट विवाह का कार्यक्रम बन गया। रामदीन जी हमारे गांव के अच्छे ज्योतिष हैं, इसलिए आज हम अपनी श्रीमती जी के साथ उनके कुटिया में पहुंच गए थे। हमारे दीपू की कुंडली को पूरे 19 मिनट तक देखा। कुंडली देखने के बाद आचश्र्यजनक मुद्रा बनाते हुए बोले-'अरे यार! दीपू की कुंडली के हिसाब से तो इसका विवाह साल भर पहले जो जाना चाहिए था। ग्रहों की चाल भी ठीक है। अब समस्या समझ नहीं आ रही है कि आखिर शादी में इतना विलंब क्यों हो रहा है?'
             इसके बाद वे काफी देर तक ध्यान लगाने की मुद्रा में बैठे रहे। फिर अचनाक उन्होंने ऐसा सवाल किया जिसका ज्योतिष से कोई संबंध तो था नहीं लेकिन हमारे दीपू की शादी से जरूर था।
रामदीन जी ने हमसे पूछा- 'क्या तुम्हारे घर में टॉयलेट है?'
           सवाल काफी विचित्र था लेकिन हमारे प्रतिप्रश्न से बात स्पष्ट हो गई। हमारी श्रीमती जी ने पल्लू को दांतों में दबाते हुए पूछा 'पंडित जी टॉयलेट का हमारे दीपू की शादी से क्या संबंध है? हमारे घर में टॉयलेट नहीं है क्या इसलिए ही हमारे दीपू का संबंध नहीं हो पा रहा है?'
जी भाभी जी..रामदीन जी बोले। आपने हमारे देश के केन्द्रीय ग्रामीण एवं विकास मंत्री जयराम रमेश जी का बयान नहीं पढ़ा क्या?
             मंत्री जी ने बयान दिया है कि-'नो टॉयलेट, नो ब्राइड' अर्थात् जिस घर में टॉयलेट नहीं हो वहां लड़कियों को शादी नहीं करना चाहिए।' लो टॉयलेट का महत्व आपको पता नहीं है। भईया घूरे के भी दिन फिरते हैं। आज टॉयलेट के फिर रहे हैं। मुझे तो लगता जिस प्रकार टॉयलेट को महत्व दिया जा रहा है उससे तो आने वाले समय में स्थितियां और विचित्र होने वाली हैं। चुनाव आयोग ने कहीं यह फरमान जारी कर दिया कि जिस नेता का टॉयलेट चुनाव चिन्ह् हो जनता उसी को वोट दे तो क्या होगा? कई नेता रोजाना चुनाव आयोग के दफ्तर के चक्कर लगाते हुए नजर आएंगे। विद्यालयों में टी फॉर टी नहीं फिर टॉयलेट ही पढ़ाया जाएगा। बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाने से पहले कक्षाओं से पहले माता-पिता द्वारा टॉयलेट देखना उनकी प्राथमिका में होगा। निजी स्कूलों और कॉलेजों के विज्ञापनों में एयर कंडीशन क्लास रूम की जगह एयर कंडीशन 'टॉयलेट' लिखा हुआ मिलेगा।
          काफी देर तक चर्चा होती रही। चर्चा इस बात पर भी हुई की यह वही मंत्री हैं जिनके मुखिया योजना आयोग के अध्यक्ष हैं। ऐसा आयोग जो ग्रामीण इलाकों में टॉयलेट बनाने की जगह टॉयलेट घोटाला करता है। योजना आयोग ने अपने मुख्यालय योजना भवन में टॉयलेट बनाने के लिए 35 लाख रुपए खर्च कर दिए। इन टॉयलेट का इस्तेमाल करने के लिए 60 अफसरों को स्मार्ट कार्ड जारी भी किए गए हैं। इसलिए मेरी मानिए तो अपने घर में एक सुंदर सा टॉयलेट बनवा दीजिए, फिर देखना दीपू के लिए कितने रिश्ते आएंगे।
          रामदीन जी की भविष्यवाणी एकदम सही साबित हुई। जिस दिन टॉयलेट बनकर तैयार हुआ, उसी दिन शाम को हमारे दीपू का रिश्ता तय हो गया।  आज हम बहुत खुश हैं। जिस प्रकार हमारे परिवार में टॉयलेट के बनने से प्रगति हुई है उसको देखकर तो हम भी यही कहेंगे कि देश की तरक्की के लिए भी 'टॉयलेटीकरण' बहुत जरुरी है।

Tuesday, October 16, 2012

बंदूक वाले सदाचारी नेताजी


 

    आज रामदीन जी के चेहरे पर इस्माइल देखकर हमारे चेहरे पर भी इस्माइल आ गई। पूछने पर बोले-'भाई साहब एक चुनावी सभा से आ रहा हूं। हम तो फिदा हो गए नेताजी के भाषण सुनकर। बेचारे बड़े ही भोले हैं। आजकल जहां परमाणु बम, ड्रोन हमले और आधुनिक हथियारों की बात होती हो, ऐसे में यदि कोई नेता बंदूक की बात करे तो यह उनका भोलापन ही होगा।' 
     'नेताजी कह रहे थे कि यदि उनकी सरकार बनी तो बंदूक के लायसेंस की प्रक्रिया को सरल किया जाएगा। बंदूक ही हमारी शान है। यह बयान ही उनकी आत्मीयता को प्रकट करता है। उनको हमारे युवाओं की इतना चिंता है कि वह उन्हें बंदूकों का कारोबार कराना चाहते हैं।'
      नेता और आत्मीयता! सुनते ही पहले तो हंसी आई फिर बाद में मैंने कहा-'रामदीन जी, प्रदेश की जनता को सरकार बनते ही शस्त्र लायसेंस रेबड़ी की तरह बांटने की योजना बनाते नेताजी अगर अन्य मुद्दों पर 'बोल बच्चन' करते तो बेहतर होता। यदि यह कहा जाता कि हम सरकार बनाते ही प्रदेश में हर साल कुपोषण की वजह से होने वाली लगभग ३५ हजार बच्चों की मौत का आंकड़ा कम करने का प्रयास करेंगे तो कितना अच्छा होता। यदि यह कहा जाता कि सरकार बनते ही प्रदेश के लगभग ३९ लाख बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलाया जाएगा तो क्या चुनाव जीतना मुश्किल होता?' 
       क्या जमाना आ गया है जिन युवाओं के कंधों पर नेताजी को परिवारिक की जिम्मेदारियों का बोझ डालना चाहिए वह उन कंधों पर बंदूकों का बोझ डालने की बात कर रहे हैं! 
       हां! रामदीन जी...। वैसे भी जनता का सरकारों पर विश्वास ही कहां रहा है। आज बंदूक दिलाने की बात कर रहे हैं, फिर गोलियों की संख्या सीमित कर देंगे, बिल्कुल एक साल में मिलने वाले सब्सिडी के छह सिलेण्डरों की तरह!
       आखिर रामदीन जी भी कब तक चुप बैठते। बोले-'अरे भाई साहब! आपको तो कुर्तक करने की आदत है। नेताजी ने सभी समस्याओं का समाधान निकालने के लिए ही तो बंदूक की बात कही है। बंदूक होगी तो कोई भी अपनी रोजी-रोटी की जुगाड़ कर लेगा, और सिलेण्डर की भी। हॉकर को धमकाओ तो सिलण्डेर मिल जाएगा और अफसरों को धमकाओ तो नौकरी। वाह भाई वाह! आप भले ही कुछ भी कहें, लेकिन हम तो नेताजी के फेन हो गए हैं!'

Thursday, October 11, 2012

हमारे पास भी बहुत बुद्धिमान हैं श्रीमान्


     

   बुद्धिमान केवल क्या विदेश में ही बसते हैं? हमारे यहां कोई बुद्धिमान नहीं है क्या? तो फिर बुद्धिमत्ता परीक्षा (इंटीलिजेंस टेस्ट) में भारत को निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया? अगर बुद्धिमत्ता परीक्षा में हम भारतीय को बुलाया जाता तो हमारे पास तो इतने बुद्धिमान हैं कि वह अच्छे-अच्छों की छुट्टी कर देते। ये तो गलत बात हुई न, अकेले-अकेले प्रतियोगिता कर ली और मैडल भी खुद ही जीत लिया। 
          ब्रिटेन की एक बारह वर्षीय छात्रा ओलिविया मैनिंग ने बुद्धिमत्ता परीक्षा में 162 अंक पाकर अल्बर्ट आइंस्टीन और स्टीफन हॉकिंग को भी पीछे छोड़ दिया है, ये भी कोई खबर हुई क्या? खबर तो तब बेहतरीन होती जब हम भारतीयों को इस प्रतियोगिता में शामिल किया जाता।
         अगर इस प्रतियोगिता के लिए भारतीयों को बुलाया जाता तो हमारे पास कौन-कौन से प्रतिभागी हो सकते थे इस पर मैंने काफी मंथन किया। पूरे देश को मानसिक दृष्टि से खंगलाने के बाद कुछ लोग मेरे दिमाग में आए हैं। भारत की ओर से इस प्रतियोगिता के लिए सबसे अच्छा कोई प्रतियोगी हो सकता था तो वह कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा हो सकते थे। यह वाड्रा के दिमाग का ही कमाल तो है कि उन्होंने 3 साल 300 करोड़ की सम्पत्ति जुटा ली। वरना आजकल तो इतनी महंगाई है कि 300 करोड़ की सम्पत्ति 3 साल में खत्म हो जाए। उनकी बुद्धिमत्ता तो तभी साबित हो चुकी थी जब उन्होंने अपनी सास के रूप में श्रीमती सोनिया गांधी को स्वीकार किया था। 
        बुद्धिमत्ता परीक्षा में भारत की ओर से दूसरे प्रतियोगी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी हो सकते थे। अपने अखिलेश जी को देखिए न पिताजी की आज्ञा का पालन करते हुए मुख्यमंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद संभाला हुआ है। इनकी बुद्धिमत्ता का मैं तो उसी वक्त कायल हो गया था जब उन्होंने एक साथ 50 मंत्रालय की जिम्मेदारी को स्वीकार किया था। जो व्यक्ति एक साथ 50 मंत्रालयों का काम-काज संभाल सकता है उसमें कितना दिमाग होगा आसानी से समझा जा सकता है। 
         सुरेश कलमाड़ी, ए.राजा, कनिमोझी, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा, ये लोग भी कम बुद्धिमान नहीं है। बड़े-बड़े घोटाले कर फिर से राजनीति करना, कोई दिमाग वाला व्यक्ति ही कर सकता है। मुलायम सिंह, ममता बनर्जी, मायावती, शरद पवार जैसे राजनेताओं को भी इस प्रतियोगिता में भेजा जा सकता था। जोड़-तोड़ की राजनीति का अनुभव जितना इन राजनेताओं को है उससे निश्चिततौर पर हम 162 अंक से तो नीचे आते ही नहीं। कोई न कोई जोड़-तोड़ कर यह नेता कुछ न कुछ जीतकर तो आते ही। अगर हम भारतीयों को इस बुद्धिमत्ता परीक्षा में शामिल किया जाता तो 12 वर्षीय छोकरी ओलिविया को मात तो दे ही देते, क्योंकि हमारे पास एक से एक बुद्धिमान हैं। 

Wednesday, October 3, 2012

पेटू सरकार



          इंसान जिंदगी भर पेट के लिए दौड़ भाग करता रहता है। भगवान की अर्चना करने से भी ज्यादा पेट पूजा जरूरी होती है। बड़े-बड़े संत भी कह गए हैं कि 'भूखे पेट भजन न होये गोपाला'। पोषण आहार न मिले तो कुपोषण जैसी खतरनाक बीमारी हो जाती है। इसलिए खाना बहुत महत्वपूर्ण है। खाने का महत्व भले ही देश की जनता नहीं जानती हो लेकिन हमारी केन्द्र सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अच्छी तरह से जानते हैं। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए रोज भोजन किया जाता है ठीक उसी प्रकार सरकार को स्वस्थ रखने के लिए 'भोज' दिया जाता है। 
         पुराने दिन याद आ रहे हैं जब निमंत्रण पर जाते थे तो पंगत में नजदीक में बैठे व्यक्ति की थाली में घी देखा करता था। दूसरों की तरह मुझे भी हमेशा दूसरे की थाली में घी देखने की आदत थी। दूसरों की तरह मुझे भी हमेशा दूसरे की थाली में घी ज्यादा ही नजर आता था। हालांकि मैं केवल देखता ही था, चर्चा कभी किसी से नहीं करता। लेकिन आज मुझे विश्वास नहीं होता कि भारतीय कितने लालची और अमानवीय हो गए हैं। केन्द्र सरकार की तीसरी वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए भोज को ही सार्वजनिक कर दिया। लोग पहले घी देखते थे लेकिन देखो तो, हद ही पार कर दी। पूरी थाली ही देख डाली। देखने पर पता चला कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 375 मेहमानों के भोज पर 29 लाख रुपए खर्च कर दिए। एक व्यक्ति की थाली पर 7721 रुपए खर्चा हुआ। 
        मुझे समझ नहीं आ रहा है कि लोग सरकार की सराहना करने की बजाए आलोचना क्यों कर रहे हैं? आलोचकों को पता होना चाहिए कि विदेशी लोग भारत में व्याप्त भुखमरी के लिए हमेशा ताने देते रहते हैं। हमारी केन्द्र सरकार ने जो काम किया है उस पर तो हमें गर्व होना चाहिए कि उन्होंने भुखमरी जैसे कलंक को मिटाने की एक कोशिश की। इस कृत्य से हम विदेशियों को साक्ष्य देकर बता सकते हैं कि हमारे यहां कोई भुखमरी नहीं है। हमारे यहां एक थाली पर 7721 रुपए खर्च किए जाते हैं। 
हमारी सरकार विचारों से भले गरीब हो लेकिन खर्चा करने में गरीब नहीं है। इस बात के प्रमाण हम पहले भी देख चुके हैं। विदेशियों को पता भी नहीं होगा कि हमारे यहां योजना आयोग ने दिल्ली में दो शौचालयों के नवीनीकरण पर ही 35 लाख रुपए खर्च कर दिए। साफ-सफाई और भोजन पर कैसे ध्यान दिया जाता है यह भारतीयों से सीखा जा सकता है। 
       ऐसा नहीं है कि भारत सरकार के मंत्री केवल खाते ही रहते हैं। मंत्री लोग घूमने फिरने में भी कोई कंजूसी नहीं करते हैं। 2011-12 में 678 करोड़ 52 लाख 60 हजार रुपए मंत्रियों के विदेश दौरों पर स्वाहा हो चुके हैं। इस वर्ष पिछले साल से 12 गुना ज्यादा खर्च विदेशी दौरों पर किया गया। 
       जहां तक खाने को लेकर हो रही बदनामी का सवाल है तो मुझे लगता है कि सरकार को कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। क्योंकि हम तो पहले ही कोयला आवंटन, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, 2-जी स्पेक्ट्रम, राष्ट्र मण्डल खेल, आदर्श सोसायटी जैसे घोटाले कर जनता की गाढ़ी कमाई को डकार चुके हैं। इसलिए एक थाली पर खर्च की गई 7721 रुपए जैसी छोटी सी रकम की बात ही क्या करना!!