इंसान जिंदगी भर पेट के लिए दौड़ भाग करता रहता है। भगवान की अर्चना करने से भी ज्यादा पेट पूजा जरूरी होती है। बड़े-बड़े संत भी कह गए हैं कि 'भूखे पेट भजन न होये गोपाला'। पोषण आहार न मिले तो कुपोषण जैसी खतरनाक बीमारी हो जाती है। इसलिए खाना बहुत महत्वपूर्ण है। खाने का महत्व भले ही देश की जनता नहीं जानती हो लेकिन हमारी केन्द्र सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अच्छी तरह से जानते हैं। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए रोज भोजन किया जाता है ठीक उसी प्रकार सरकार को स्वस्थ रखने के लिए 'भोज' दिया जाता है।
पुराने दिन याद आ रहे हैं जब निमंत्रण पर जाते थे तो पंगत में नजदीक में बैठे व्यक्ति की थाली में घी देखा करता था। दूसरों की तरह मुझे भी हमेशा दूसरे की थाली में घी देखने की आदत थी। दूसरों की तरह मुझे भी हमेशा दूसरे की थाली में घी ज्यादा ही नजर आता था। हालांकि मैं केवल देखता ही था, चर्चा कभी किसी से नहीं करता। लेकिन आज मुझे विश्वास नहीं होता कि भारतीय कितने लालची और अमानवीय हो गए हैं। केन्द्र सरकार की तीसरी वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए भोज को ही सार्वजनिक कर दिया। लोग पहले घी देखते थे लेकिन देखो तो, हद ही पार कर दी। पूरी थाली ही देख डाली। देखने पर पता चला कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 375 मेहमानों के भोज पर 29 लाख रुपए खर्च कर दिए। एक व्यक्ति की थाली पर 7721 रुपए खर्चा हुआ।
मुझे समझ नहीं आ रहा है कि लोग सरकार की सराहना करने की बजाए आलोचना क्यों कर रहे हैं? आलोचकों को पता होना चाहिए कि विदेशी लोग भारत में व्याप्त भुखमरी के लिए हमेशा ताने देते रहते हैं। हमारी केन्द्र सरकार ने जो काम किया है उस पर तो हमें गर्व होना चाहिए कि उन्होंने भुखमरी जैसे कलंक को मिटाने की एक कोशिश की। इस कृत्य से हम विदेशियों को साक्ष्य देकर बता सकते हैं कि हमारे यहां कोई भुखमरी नहीं है। हमारे यहां एक थाली पर 7721 रुपए खर्च किए जाते हैं।
हमारी सरकार विचारों से भले गरीब हो लेकिन खर्चा करने में गरीब नहीं है। इस बात के प्रमाण हम पहले भी देख चुके हैं। विदेशियों को पता भी नहीं होगा कि हमारे यहां योजना आयोग ने दिल्ली में दो शौचालयों के नवीनीकरण पर ही 35 लाख रुपए खर्च कर दिए। साफ-सफाई और भोजन पर कैसे ध्यान दिया जाता है यह भारतीयों से सीखा जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि भारत सरकार के मंत्री केवल खाते ही रहते हैं। मंत्री लोग घूमने फिरने में भी कोई कंजूसी नहीं करते हैं। 2011-12 में 678 करोड़ 52 लाख 60 हजार रुपए मंत्रियों के विदेश दौरों पर स्वाहा हो चुके हैं। इस वर्ष पिछले साल से 12 गुना ज्यादा खर्च विदेशी दौरों पर किया गया।
जहां तक खाने को लेकर हो रही बदनामी का सवाल है तो मुझे लगता है कि सरकार को कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। क्योंकि हम तो पहले ही कोयला आवंटन, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, 2-जी स्पेक्ट्रम, राष्ट्र मण्डल खेल, आदर्श सोसायटी जैसे घोटाले कर जनता की गाढ़ी कमाई को डकार चुके हैं। इसलिए एक थाली पर खर्च की गई 7721 रुपए जैसी छोटी सी रकम की बात ही क्या करना!!
1 no bhai..........
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