आज सुबह-सुबह
मेरा 'मन' से झगड़ा हो गया। लगभग डेढ़ घंटे तक बहस हुई। ओह! सॉरी। 'मन' से
आप मेरा आशय शायद गलत समझ रहे होंगे, इसलिए अभी क्लीयर करना जरुरी है।
'मन' से मेरा मतलब, जो मस्तिष्क से जुड़ा रहता है, जो सोचता बहुत कुछ है
लेकिन काम कम करता है। 'मन' से मेरा मतलब हमारे माननीय प्रधानमंत्री डॉ.
मनमोहन सिंह कतई नहीं है। क्योंकि मनमोहन सिंह जी को बहस करना कहां आती है,
झगड़ा करना तो दूर की बात है। प्रधानमंत्री जी को अगर बहस करना आती होती
तो आज देश की स्थिति कुछ और होती। खैर छोड़ो! आप तो अपना 'मन' मेरे 'मन' की
बातों पर लगाइए। मेरा 'मन' मुझसे कह रहा था कि आजकल देश में जिसे देखो
मानहानि का केस कर रहा है। न जाने कितने माननीयों ने अपना मानहानि का दावा
कितने माननीयों पर कर दिया है। आपको भी अपनी मानहानि का हिसाब तो लगा ही
लेना चाहिए। मैंने अपने 'मन' को बहुत समझाया कि भाई! मानहानि के लिए माननीय
होना बहुत जरुरी है। मानहानि का दावा वह लोग करते हैं जिनका हमारे देश में
'मान' होता है, और जो लोग शान से जीते हैं। मेरे पास तो केवल ईमान है,
जिसके साथ जीने में ही बहुत तकलीफ होती है। मैंने 'मन' को स्वप्न सुंदरी,
सिने अदाकारा राखी सावंत जी का उदाहरण देते हुए समझाया कि भले ही वह आइटम
गानों पर फूहड़ नृत्य करतीं हो, भले ही गायक कलाकार मीका ने उनका सार्वजनिक
स्थान पर चुंबन लिया हो लेकिन फिर भी समाज में वह माननीय तो हैं ही।
माननीय थीं तभी तो उन्होंने दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज नेता पर मानहानि का
दावा किया। इसी प्रकार आप जी न्यूज समाचार चैनल के संपादकों को ही देख लो।
100 करोड़ की रिश्वत मांगने उन्हें जेल हुई। जेल से बाहर आते ही उन्होंने
सबसे पहले नवीन जिंदल पर मानहानि का दावा किया। तो क्या हुआ उन्होंने 100
करोड़ रिश्वत में मांगे थे, लेकिन वे माननीय तो हैं। मैंने 'मन' को समझाया
कि मानहानि का दावा करना आजकल हमारे देश में आम बात हो गई है। अभी एक और
मानहानि का दावा नितिन गड़करी ने भी किया। वह तो अच्छा हुआ कि हमने
आतंकवादी कसाब को जल्दी फांसी पर लटका दिया वरना वह भी हम पर मानहानि का
दावा ठोक देता। 'मन' मेरी बात से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं था। वह कहने लगा
आप भले ही अपने आपको माननीय नहीं मानते हों, लेकिन मेरी मानहानि तो मत
कीजिए। वह एकदम गुस्से में आ गया और बोला- 'आपने मेरी बात नहीं बात मानी
है, आपने सरेआम मेरी बेज्जती की है, इसलिए मैं भी आप पर मानहानि का दावा
करूंगा।
Wednesday, December 26, 2012
Tuesday, December 18, 2012
लुटेरे 'लॉबिंगबाज'
विदेशी हम
भारतीयों की नकल करना कभी नहीं छोड़ेंगे। लो अब हमारी हरकतों को
देखते-देखते 'लॉबिंग' करना भी सीख गए। 121 करोड़ के भारत में वालमॉर्ट ने
125 करोड़ की 'लॉबिंग' की। सरकार भी 'लॉबिंग' के चक्कर में आखिर फंस ही गई।
लेकिन राज की बात यह है कि इन विदेशियों को यह नहीं मालूम कि हम भारतीय
सबसे बड़े 'लॉबिंगबाज हैं। 'लॉबिंग' को हमसे अच्छा कौन समझ सकता है। ये
वालमार्ट-फालमार्ट वाले तो अभी सीखे ही होंगे, हम तो यह काम वर्षों से करते
आ रहे हैं। भारत में तो बात-बात के लिए 'लॉबिंग' होती है। लड़की की शादी
करने के लिए रिश्तेदारों की 'लॉबिंग', कर्मचारियों की अधिकारी बनने के लिए
'लॉबिंग', नेता का टिकट पाने के लिए 'लॉबिंग', प्रोड्यूसर का अपनी फिल्म
हिट कराने के लिए 'लॉबिंग', फाइल पर दस्तखत कराने के लिए बाबू को पटाने के
लिए 'लॉबिंग', मंत्रियों का अपनी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए
'लॉबिंग', कोई विवाद हो तो थानेदार को सेट करने के लिए 'लॉबिंग', भैय्या
जगह-जगह 'लॉबिंग' के लफड़े हैं। अच्छा ऐसा नहीं है कि 'लॉबिंग' केवल छोटे
लोग ही करते हैं। बड़े लोगों ने तो सबको पीछे छोड़ दिया है। सोनिया अपने
पुत्र राहुल को देश की कमान सौंपने के लिए 'लॉबिंग' कर रही हैं तो
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी कुर्सी बचाने के लिए 'लॉबिंग' करते हैं।
मायावती 'पदोन्नती में आरक्षण' के लिए 'लॉबिंग' करती हैं, तो मुलायम अपने
अखिलेश और डिंपल को राजनीति में शीर्ष पर लाने के लिए 'लॉबिंग' करते हैं।
अण्णा हजारे, अरविंद केजरीवाल को लालची बताने के लिए 'लॉबिंग' करते हैं तो
बाबा रामदेव विदेशों से कालाधन वापस लाने के लिए 'लॉबिंग' कर रहे हैं।
क्रिकेट में अच्छा खेले तो ठीक नहीं तो सचिन को टीम से आउट करने के लिए
'लॉबिंग' होने लगती है। भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र मोदी
के लिए 'लॉबिंग', दिग्विजय सिंह मुस्लिमों की सहानुभूति बटोरने अपनी बातों
से 'लॉबिंग' करते हैं तो मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला आतंकवादी अफजल गुरू को
फांसी न दिए जाने के लिए 'लॉबिंग' करते हैं। ममता बनर्जी बार-बार अपनी
ताकत दिखाने के 'लॉबिंग' करती हैं, तो कोई बार खबरनबीस भी 'लॉबिंग' का
शिकार हो जाते हैं, या फिर 'लॉबिंग' करते रहते हैं। सब अपने-अपने स्वार्थों
के लिए 'लॉबिंग' कर रहे हैं। बेचारी गरीब जनता के लिए 'लॉबिंग' करने वाला
कोई नहीं है। काश! इस देश में कुछ ऐसे सिरफिरे लोग भी आएं जो शिक्षा,
स्वास्थ्य, सुरक्षा की बेहतरी के लिए 'लॉबिंग' करें। काश! कोई युवाओं को
रोजगार दिलाने के लिए 'लॉबिंग' करे। कितना अच्छा हो कि 'लॉबिंग' महंगाई
पर काबू पाने के लिए हो, 'लॉबिंग' आतंकवाद को रोकने के लिए के लिए होनी
चाहिए। 'लॉबिंग' कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए होनी चाहिए। वरना नहीं तो हमें 'लॉबिंगबाज' पहले भी लूटते रहे हैं, आगे भी लूटते
रहेंगे।
Wednesday, December 12, 2012
अनोखी हार
जब से अरविंद जी ने नई पार्टी बनाई है तब से बड़ा कन्फ्यूजन हो रहा है।
कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। आज सुबह ही पत्नी से झगड़ा हो गया। वह किचन
में काम कर रही थी जब दरवाजे की घंटी बजी। मेरे दरवाजा खोलते ही श्रीमती जी
ने पूछा-कौन आया है?
मैंने जवाब दिया-'आप' की पार्टी के लोग आए हैं।
यह सुनते ही फिर भीतर से आवाज आई उन्हें बिठाइए मैं अभी आती हूं। हालांकि हमारी श्रीमती जी के व्यवहार से 'आप' के लोग खुद संशय में थे कि हमें बैठने को क्यों कहा जा रहा है!!
शायद वह भी उसका व्यवहार जानते थे इसलिए वापस मिले बगैर लौटने की उनकी भी हिम्मत नहीं हुई। मैंने भीतर जाकर बताया कि चार लोग आए हैं। मेरी इस सूचना पर बढिय़ा सी चाय भी बन गई। अब जब हमारी श्रीमती जी ने उन लोगों को देखा तो आश्चर्यजनक भाव से बोली अच्छा! आप लोग हैं। बताइए क्या काम है? थोड़ी बातचीत के बाद 'आप' के लोग अपनी पूरी योजना समझाकर तो चले गए लेकिन मुसिबत मेरे गले डाल गए।
उन लोगों के जाने के बाद वह मुझसे झगड़ते हुए बोली-'आप भी न किसी को भी घर में बैठा लेते हो।' मैंने कहा- तुमने ही तो कहा था। तब मुझी पर बिगड़ती हुई बोली-'तुमने तो कहा था कि आपकी पार्टी के लोग हैं इसलिए मैं उन्हें किटी पार्टी के लोग समझी थी।'
वह गुस्से बोली-फालतू समय बर्बाद हो गया, चाय बनाने में गैस खर्च हुई सो अलग। आगे बोली- 'आप तो समझदार हो! समय की अहमियत भले ही न समझो लेकिन कम से कम 'सिलेण्डर की अहमियत' तो समझो।' आपको महंगाई का अंदाजा भी है कि नहीं! पता है एक सिलेण्डर की कीमत क्या है? सरकार ने सिलेण्डर की संख्या भी सीमित कर दी है। अपने घर का चूल्हा जल रहा है यही बहुत है। ज्यादा नेतागिरी करोगेे तो यह भी बंद हो जाएगा। सरकार ने अच्छे-अच्छों का करा दिया है। बोली-'आप पूरी ईमानदारी से टेक्स चुका रहे हैं, और सरकार के मंत्री पूरी बेईमानी से टेक्स चुरा रहे हैं। रोज नया-नया घोटाला उजागर हो रहा है। भ्रष्टाचार के बारे में तो बात ही क्या करना। सरकार रोज नई आर्थिक लागू करके आम आदमी को हर महीने महंगाई कम होने का आश्वासन दे रही है वहीं हम भ्रष्टाचार के मामले में पूरी दुनिया में एक पायदान और ऊपर आ गए हैं।'
मैंने मामले को दूसरी ओर मोड़ते हुए बोला-अरे भागवान! अब सरकार में नई ऊर्जा का संचार हो गया है। धड़ाधड़ बड़े फैसले लिए जा रहे हैं। तुमने देखा नहीं, सरकार ने मायावती-मुलायम को कब्जे में रखकर संसद में एफडीआई को किस प्रकार मंजूरी दिलाई। अपने मनमोहन सिंह जी को ही देख लो जिन्हें लोग दब्बू और कमजोर प्रधानमंत्री कहते हैं उन्हें अमेरिका की फोब्र्स पत्रिका में सबसे ताकतवर व्यक्तियों में शामिल किया गया है। सरकार लगातार हर मोर्चे पर जीत रही है।
श्रीमती जी गुस्से से बोली- 'रहने दो तुम ज्यादा सरकार की तरफदारी न करो। आप भी न पूरे राहुल गांधी हो रहे हो। जिन्हें अपने मंत्रियों का भ्रष्टाचार तो दिखता नहीं बल्कि अपनी सरकार के तारीफों के पुल बांधते फिरते हो। हमें तो यह बताओ की आम आदमी की जीत कब होगी।' यह बड़बड़ाते हुए वह फिर किचन में चली गई।
अब मैं भगवान से दिनभर एक ही प्रार्थना करता रहता हूं कि या तो अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी का नाम बदल लें या फिर हमारी श्रीमती जी का स्वभाव बदल जाए। क्योंकि रोज-रोज के झगड़े अब तो सहन नहीं होते। आम आदमी की जीत कब होगी यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मुझे इतना जरूर पता है कि मैं अपनी श्रीमती से कभी नहीं जीत पाऊंगा।
मैंने जवाब दिया-'आप' की पार्टी के लोग आए हैं।
यह सुनते ही फिर भीतर से आवाज आई उन्हें बिठाइए मैं अभी आती हूं। हालांकि हमारी श्रीमती जी के व्यवहार से 'आप' के लोग खुद संशय में थे कि हमें बैठने को क्यों कहा जा रहा है!!
शायद वह भी उसका व्यवहार जानते थे इसलिए वापस मिले बगैर लौटने की उनकी भी हिम्मत नहीं हुई। मैंने भीतर जाकर बताया कि चार लोग आए हैं। मेरी इस सूचना पर बढिय़ा सी चाय भी बन गई। अब जब हमारी श्रीमती जी ने उन लोगों को देखा तो आश्चर्यजनक भाव से बोली अच्छा! आप लोग हैं। बताइए क्या काम है? थोड़ी बातचीत के बाद 'आप' के लोग अपनी पूरी योजना समझाकर तो चले गए लेकिन मुसिबत मेरे गले डाल गए।
उन लोगों के जाने के बाद वह मुझसे झगड़ते हुए बोली-'आप भी न किसी को भी घर में बैठा लेते हो।' मैंने कहा- तुमने ही तो कहा था। तब मुझी पर बिगड़ती हुई बोली-'तुमने तो कहा था कि आपकी पार्टी के लोग हैं इसलिए मैं उन्हें किटी पार्टी के लोग समझी थी।'
वह गुस्से बोली-फालतू समय बर्बाद हो गया, चाय बनाने में गैस खर्च हुई सो अलग। आगे बोली- 'आप तो समझदार हो! समय की अहमियत भले ही न समझो लेकिन कम से कम 'सिलेण्डर की अहमियत' तो समझो।' आपको महंगाई का अंदाजा भी है कि नहीं! पता है एक सिलेण्डर की कीमत क्या है? सरकार ने सिलेण्डर की संख्या भी सीमित कर दी है। अपने घर का चूल्हा जल रहा है यही बहुत है। ज्यादा नेतागिरी करोगेे तो यह भी बंद हो जाएगा। सरकार ने अच्छे-अच्छों का करा दिया है। बोली-'आप पूरी ईमानदारी से टेक्स चुका रहे हैं, और सरकार के मंत्री पूरी बेईमानी से टेक्स चुरा रहे हैं। रोज नया-नया घोटाला उजागर हो रहा है। भ्रष्टाचार के बारे में तो बात ही क्या करना। सरकार रोज नई आर्थिक लागू करके आम आदमी को हर महीने महंगाई कम होने का आश्वासन दे रही है वहीं हम भ्रष्टाचार के मामले में पूरी दुनिया में एक पायदान और ऊपर आ गए हैं।'
मैंने मामले को दूसरी ओर मोड़ते हुए बोला-अरे भागवान! अब सरकार में नई ऊर्जा का संचार हो गया है। धड़ाधड़ बड़े फैसले लिए जा रहे हैं। तुमने देखा नहीं, सरकार ने मायावती-मुलायम को कब्जे में रखकर संसद में एफडीआई को किस प्रकार मंजूरी दिलाई। अपने मनमोहन सिंह जी को ही देख लो जिन्हें लोग दब्बू और कमजोर प्रधानमंत्री कहते हैं उन्हें अमेरिका की फोब्र्स पत्रिका में सबसे ताकतवर व्यक्तियों में शामिल किया गया है। सरकार लगातार हर मोर्चे पर जीत रही है।
श्रीमती जी गुस्से से बोली- 'रहने दो तुम ज्यादा सरकार की तरफदारी न करो। आप भी न पूरे राहुल गांधी हो रहे हो। जिन्हें अपने मंत्रियों का भ्रष्टाचार तो दिखता नहीं बल्कि अपनी सरकार के तारीफों के पुल बांधते फिरते हो। हमें तो यह बताओ की आम आदमी की जीत कब होगी।' यह बड़बड़ाते हुए वह फिर किचन में चली गई।
अब मैं भगवान से दिनभर एक ही प्रार्थना करता रहता हूं कि या तो अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी का नाम बदल लें या फिर हमारी श्रीमती जी का स्वभाव बदल जाए। क्योंकि रोज-रोज के झगड़े अब तो सहन नहीं होते। आम आदमी की जीत कब होगी यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मुझे इतना जरूर पता है कि मैं अपनी श्रीमती से कभी नहीं जीत पाऊंगा।
Wednesday, December 5, 2012
खातों का खेल
भारत जितनी तेजी से तरक्की कर रहा है, उसको देखकर मैं निश्चिततौर पर कह सकता हूं कि भविष्य में केवल दो ही प्रकार के लोग सुखी रह सकेंगे। पहले वे लोग जिनके बैंकों में खाते हैं, दूसरे वे लोग जो हर काम के लिए 'खाते' हैं। बाकी बचे लोग दिमाग खाने वाले होंगे। सरकार को ही देख लो। सीधे खाते में 'सब्सिडी जमा करने' की योजना बना रही है।
वैसे सरकार का क्या है वह तो शुरु से ही 'खाने' और 'खिलाने' में उस्ताद है। किसी भी नेता को कोई भी मंत्रालय दे दो काम करते-करते इतना 'खाते' हैं कि स्वीटजरलैण्ड में 'खाता' खुलवाना पड़ता है। बाबा रामदेव सरीखे लोग विदेशी खातों में जमा धन को भारतीय खाते में लाने के लिए आंदोलन करते हैं तो उनके खिलाफ इतना जबरदस्त मोर्चा खोल दिया जाता है कि उनके खाते बंद करने की नौबत आ जाती है। बेचारे अण्णा हजारे को ही लो। अण्णा ने कई दिन तक खाना छोड़ दिया लेकिन कुछ लोग इतने बेशर्म निकले कि उन्होंने अभी तक 'खाना' नहीं छोड़ा।
'खाने' और 'खिलाने' की भी एक सीमा होती है। लेकिन सरकार की सीमा का तो पता ही नहीं लगता। सरकार गिरने की नौबत आती है तो सांसदों को 'खरीदा' और 'खिलाया' जाता है। प्रधानमंत्री भी कई बार अपने निवास पर निमंत्रण देकर 'खिलाते' हैं।
समय भी धीरे-धीरे बदल रहा है। सब हाईटेक हो रहे हैं। टेक्नोलॉजी से हर बात को 'टेकल' किया जा रहा है। खाता होने से कुछ लोगों का 'खाना' भी आसान हो रहा है। अधिकारी, अब सीधे खाते में 'खिलाने' की बात करने लगे हैं। सरकार जिस प्रकार की योजनाओं बनाकर सीधे खाते में पैसा जमा कराने पर अड़ी हुई है उससे अब डर यह लगने लगा है कि कहीं खातों में 'खाते-खाते' कहीं हमारा हाजमा न बिगड़ जाए। मुझे तो लगता है कि भविष्य में खाते का इतना महत्व हो जाएगा कि सबसे गरीब व्यक्ति वही होगा जिसका किसी बैंक में 'खाता' न हो। सरकार के लिए आम आदमी भी वही होगा जिसके पास भले रहने के लिए घर, पहनने के लिए कपड़े और पेट भरने के लिए भोजन न हो लेकिन 'खाता' जरुर होना चाहिए या फिर वह किसी वोट बैंक के खाते में कहीं न कहीं फिट बैठता हो। सच बताऊं तो मुझे सबसे अधिक चिंता इस बात की है कि मेरा क्या होगा। क्योंकि न तो अभी तक मेरा किसी बैंक में कोई 'खाता' है और न ही मुझे 'खाना' आता है।
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