जब से अरविंद जी ने नई पार्टी बनाई है तब से बड़ा कन्फ्यूजन हो रहा है।
कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। आज सुबह ही पत्नी से झगड़ा हो गया। वह किचन
में काम कर रही थी जब दरवाजे की घंटी बजी। मेरे दरवाजा खोलते ही श्रीमती जी
ने पूछा-कौन आया है?
मैंने जवाब दिया-'आप' की पार्टी के लोग आए हैं।
यह सुनते ही फिर भीतर से आवाज आई उन्हें बिठाइए मैं अभी आती हूं। हालांकि हमारी श्रीमती जी के व्यवहार से 'आप' के लोग खुद संशय में थे कि हमें बैठने को क्यों कहा जा रहा है!!
शायद वह भी उसका व्यवहार जानते थे इसलिए वापस मिले बगैर लौटने की उनकी भी हिम्मत नहीं हुई। मैंने भीतर जाकर बताया कि चार लोग आए हैं। मेरी इस सूचना पर बढिय़ा सी चाय भी बन गई। अब जब हमारी श्रीमती जी ने उन लोगों को देखा तो आश्चर्यजनक भाव से बोली अच्छा! आप लोग हैं। बताइए क्या काम है? थोड़ी बातचीत के बाद 'आप' के लोग अपनी पूरी योजना समझाकर तो चले गए लेकिन मुसिबत मेरे गले डाल गए।
उन लोगों के जाने के बाद वह मुझसे झगड़ते हुए बोली-'आप भी न किसी को भी घर में बैठा लेते हो।' मैंने कहा- तुमने ही तो कहा था। तब मुझी पर बिगड़ती हुई बोली-'तुमने तो कहा था कि आपकी पार्टी के लोग हैं इसलिए मैं उन्हें किटी पार्टी के लोग समझी थी।'
वह गुस्से बोली-फालतू समय बर्बाद हो गया, चाय बनाने में गैस खर्च हुई सो अलग। आगे बोली- 'आप तो समझदार हो! समय की अहमियत भले ही न समझो लेकिन कम से कम 'सिलेण्डर की अहमियत' तो समझो।' आपको महंगाई का अंदाजा भी है कि नहीं! पता है एक सिलेण्डर की कीमत क्या है? सरकार ने सिलेण्डर की संख्या भी सीमित कर दी है। अपने घर का चूल्हा जल रहा है यही बहुत है। ज्यादा नेतागिरी करोगेे तो यह भी बंद हो जाएगा। सरकार ने अच्छे-अच्छों का करा दिया है। बोली-'आप पूरी ईमानदारी से टेक्स चुका रहे हैं, और सरकार के मंत्री पूरी बेईमानी से टेक्स चुरा रहे हैं। रोज नया-नया घोटाला उजागर हो रहा है। भ्रष्टाचार के बारे में तो बात ही क्या करना। सरकार रोज नई आर्थिक लागू करके आम आदमी को हर महीने महंगाई कम होने का आश्वासन दे रही है वहीं हम भ्रष्टाचार के मामले में पूरी दुनिया में एक पायदान और ऊपर आ गए हैं।'
मैंने मामले को दूसरी ओर मोड़ते हुए बोला-अरे भागवान! अब सरकार में नई ऊर्जा का संचार हो गया है। धड़ाधड़ बड़े फैसले लिए जा रहे हैं। तुमने देखा नहीं, सरकार ने मायावती-मुलायम को कब्जे में रखकर संसद में एफडीआई को किस प्रकार मंजूरी दिलाई। अपने मनमोहन सिंह जी को ही देख लो जिन्हें लोग दब्बू और कमजोर प्रधानमंत्री कहते हैं उन्हें अमेरिका की फोब्र्स पत्रिका में सबसे ताकतवर व्यक्तियों में शामिल किया गया है। सरकार लगातार हर मोर्चे पर जीत रही है।
श्रीमती जी गुस्से से बोली- 'रहने दो तुम ज्यादा सरकार की तरफदारी न करो। आप भी न पूरे राहुल गांधी हो रहे हो। जिन्हें अपने मंत्रियों का भ्रष्टाचार तो दिखता नहीं बल्कि अपनी सरकार के तारीफों के पुल बांधते फिरते हो। हमें तो यह बताओ की आम आदमी की जीत कब होगी।' यह बड़बड़ाते हुए वह फिर किचन में चली गई।
अब मैं भगवान से दिनभर एक ही प्रार्थना करता रहता हूं कि या तो अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी का नाम बदल लें या फिर हमारी श्रीमती जी का स्वभाव बदल जाए। क्योंकि रोज-रोज के झगड़े अब तो सहन नहीं होते। आम आदमी की जीत कब होगी यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मुझे इतना जरूर पता है कि मैं अपनी श्रीमती से कभी नहीं जीत पाऊंगा।
मैंने जवाब दिया-'आप' की पार्टी के लोग आए हैं।
यह सुनते ही फिर भीतर से आवाज आई उन्हें बिठाइए मैं अभी आती हूं। हालांकि हमारी श्रीमती जी के व्यवहार से 'आप' के लोग खुद संशय में थे कि हमें बैठने को क्यों कहा जा रहा है!!
शायद वह भी उसका व्यवहार जानते थे इसलिए वापस मिले बगैर लौटने की उनकी भी हिम्मत नहीं हुई। मैंने भीतर जाकर बताया कि चार लोग आए हैं। मेरी इस सूचना पर बढिय़ा सी चाय भी बन गई। अब जब हमारी श्रीमती जी ने उन लोगों को देखा तो आश्चर्यजनक भाव से बोली अच्छा! आप लोग हैं। बताइए क्या काम है? थोड़ी बातचीत के बाद 'आप' के लोग अपनी पूरी योजना समझाकर तो चले गए लेकिन मुसिबत मेरे गले डाल गए।
उन लोगों के जाने के बाद वह मुझसे झगड़ते हुए बोली-'आप भी न किसी को भी घर में बैठा लेते हो।' मैंने कहा- तुमने ही तो कहा था। तब मुझी पर बिगड़ती हुई बोली-'तुमने तो कहा था कि आपकी पार्टी के लोग हैं इसलिए मैं उन्हें किटी पार्टी के लोग समझी थी।'
वह गुस्से बोली-फालतू समय बर्बाद हो गया, चाय बनाने में गैस खर्च हुई सो अलग। आगे बोली- 'आप तो समझदार हो! समय की अहमियत भले ही न समझो लेकिन कम से कम 'सिलेण्डर की अहमियत' तो समझो।' आपको महंगाई का अंदाजा भी है कि नहीं! पता है एक सिलेण्डर की कीमत क्या है? सरकार ने सिलेण्डर की संख्या भी सीमित कर दी है। अपने घर का चूल्हा जल रहा है यही बहुत है। ज्यादा नेतागिरी करोगेे तो यह भी बंद हो जाएगा। सरकार ने अच्छे-अच्छों का करा दिया है। बोली-'आप पूरी ईमानदारी से टेक्स चुका रहे हैं, और सरकार के मंत्री पूरी बेईमानी से टेक्स चुरा रहे हैं। रोज नया-नया घोटाला उजागर हो रहा है। भ्रष्टाचार के बारे में तो बात ही क्या करना। सरकार रोज नई आर्थिक लागू करके आम आदमी को हर महीने महंगाई कम होने का आश्वासन दे रही है वहीं हम भ्रष्टाचार के मामले में पूरी दुनिया में एक पायदान और ऊपर आ गए हैं।'
मैंने मामले को दूसरी ओर मोड़ते हुए बोला-अरे भागवान! अब सरकार में नई ऊर्जा का संचार हो गया है। धड़ाधड़ बड़े फैसले लिए जा रहे हैं। तुमने देखा नहीं, सरकार ने मायावती-मुलायम को कब्जे में रखकर संसद में एफडीआई को किस प्रकार मंजूरी दिलाई। अपने मनमोहन सिंह जी को ही देख लो जिन्हें लोग दब्बू और कमजोर प्रधानमंत्री कहते हैं उन्हें अमेरिका की फोब्र्स पत्रिका में सबसे ताकतवर व्यक्तियों में शामिल किया गया है। सरकार लगातार हर मोर्चे पर जीत रही है।
श्रीमती जी गुस्से से बोली- 'रहने दो तुम ज्यादा सरकार की तरफदारी न करो। आप भी न पूरे राहुल गांधी हो रहे हो। जिन्हें अपने मंत्रियों का भ्रष्टाचार तो दिखता नहीं बल्कि अपनी सरकार के तारीफों के पुल बांधते फिरते हो। हमें तो यह बताओ की आम आदमी की जीत कब होगी।' यह बड़बड़ाते हुए वह फिर किचन में चली गई।
अब मैं भगवान से दिनभर एक ही प्रार्थना करता रहता हूं कि या तो अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी का नाम बदल लें या फिर हमारी श्रीमती जी का स्वभाव बदल जाए। क्योंकि रोज-रोज के झगड़े अब तो सहन नहीं होते। आम आदमी की जीत कब होगी यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मुझे इतना जरूर पता है कि मैं अपनी श्रीमती से कभी नहीं जीत पाऊंगा।
No comments:
Post a Comment