अखबार में ओलावृष्टि का समाचार देखते ही क्षेत्रीय विधायक चंदन जी बाहर से दु:खी होते हुए और भीतर से मुस्कुराते हुए बोले-'ओ! नो। सो सेड। बड़ा बुरा हुआ। बेचारे किसानों का क्या होगा? उन पर आफत का पहाड़ आकर टूट पड़ा। इतनी भयंकर ओलावृष्टि तो मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखी।' मैं भी वहीं खड़ा था। नेताजी की सूरत बता रही थी कि वह कितने दु:खी है। तभी इतने में नेताजी ने अपने कुछ चेले चपाटों को फोन किया और बोले-'अबे चंगुओं...थोड़ा दु:खड़ा व्यक्त करने जाना है, जल्द आ जाओ फिर चलते हैं।' थोड़ी देर में ही विधायक जी अपने दल बल के साथ नजदीक के एक किसान हरिराम के खेत में पहुंच गए। यहां पहुंचते ही अपनी सूरत पर और अधिक दुखावटी भाव ले आए, फिर फसलों को देखते हुए बोले-'अरे! राम-राम। हरिराम, यह सरसो की फसल तो सब बर्बाद हो गई।' ओले कितने बड़े थे? विधायक जी के इस सवाल पर हरिराम एक तशले में रखे ओले दिखाते हुए बोला-'ये देखिये नेताजी...।' विधायक जी बोले-'अरे वाह! चार दिन पहले बारिश हुई थी और आपके पास ओले अभी तक रखे हुए हैं। बहुत आश्चर्य की बात है' हरिराम-'नेताजी आश्चर्य की कोई बात नहीं है। बल्कि आश्चर्य की बात तो यह है कि आप सबसे आखिरी में आए हैं। हमारे पड़ौसी और अधिकारी तो बारिश के अगले दिन ही आ गए थे। हां! मुझे आप पर पूरा विश्वास था कि आप जरुर आएंगे। आपके आने का ख्याल मुझे बार-बार आ रहा था। इसलिए मैंने ये ओले संभाल कर रख लिए थे। अधिकारियों को एक बार ओले नहीं दिखे तो चल भी जाता है। अधिकारी तो बिना आए भी हमारे नुकसान को नोट कर लेते हैं। बस हमें उनके लिए 'नोट' करना पड़ते हैं। लेकिन आपके सामने ओले आना बहुत जरुरी होता है। आपकी नेतागिरी के कारण ही तो हमें मुआवजा मिलने की उम्मीद बनी रहती है। अलग-अलग पार्टी के आप जैसे समाजसेवियों के आने से हमारी आवाज का भी ख्याल हो जाता है। वरना आजकल कहां सरकारें हमारी ओर देखती हैं।' दौरा करने के बाद नेताजी बड़े प्रसन्न हुए। घर आए तो उन्होंने सबसे पहले वह अखबार उठाया जिसकों पढ़कर वह हरिराम के खेत में पहुंचे थे। अखबार देखकर नेताजी जी फिर मुस्कुराए और बोले-'अरे यार! यह चार दिन पुराना अखबार मेरी टेबिल पर किसने रख दिया था। आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए।'
Wednesday, February 27, 2013
नेतागिरी की ओलावृष्टि
अखबार में ओलावृष्टि का समाचार देखते ही क्षेत्रीय विधायक चंदन जी बाहर से दु:खी होते हुए और भीतर से मुस्कुराते हुए बोले-'ओ! नो। सो सेड। बड़ा बुरा हुआ। बेचारे किसानों का क्या होगा? उन पर आफत का पहाड़ आकर टूट पड़ा। इतनी भयंकर ओलावृष्टि तो मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखी।' मैं भी वहीं खड़ा था। नेताजी की सूरत बता रही थी कि वह कितने दु:खी है। तभी इतने में नेताजी ने अपने कुछ चेले चपाटों को फोन किया और बोले-'अबे चंगुओं...थोड़ा दु:खड़ा व्यक्त करने जाना है, जल्द आ जाओ फिर चलते हैं।' थोड़ी देर में ही विधायक जी अपने दल बल के साथ नजदीक के एक किसान हरिराम के खेत में पहुंच गए। यहां पहुंचते ही अपनी सूरत पर और अधिक दुखावटी भाव ले आए, फिर फसलों को देखते हुए बोले-'अरे! राम-राम। हरिराम, यह सरसो की फसल तो सब बर्बाद हो गई।' ओले कितने बड़े थे? विधायक जी के इस सवाल पर हरिराम एक तशले में रखे ओले दिखाते हुए बोला-'ये देखिये नेताजी...।' विधायक जी बोले-'अरे वाह! चार दिन पहले बारिश हुई थी और आपके पास ओले अभी तक रखे हुए हैं। बहुत आश्चर्य की बात है' हरिराम-'नेताजी आश्चर्य की कोई बात नहीं है। बल्कि आश्चर्य की बात तो यह है कि आप सबसे आखिरी में आए हैं। हमारे पड़ौसी और अधिकारी तो बारिश के अगले दिन ही आ गए थे। हां! मुझे आप पर पूरा विश्वास था कि आप जरुर आएंगे। आपके आने का ख्याल मुझे बार-बार आ रहा था। इसलिए मैंने ये ओले संभाल कर रख लिए थे। अधिकारियों को एक बार ओले नहीं दिखे तो चल भी जाता है। अधिकारी तो बिना आए भी हमारे नुकसान को नोट कर लेते हैं। बस हमें उनके लिए 'नोट' करना पड़ते हैं। लेकिन आपके सामने ओले आना बहुत जरुरी होता है। आपकी नेतागिरी के कारण ही तो हमें मुआवजा मिलने की उम्मीद बनी रहती है। अलग-अलग पार्टी के आप जैसे समाजसेवियों के आने से हमारी आवाज का भी ख्याल हो जाता है। वरना आजकल कहां सरकारें हमारी ओर देखती हैं।' दौरा करने के बाद नेताजी बड़े प्रसन्न हुए। घर आए तो उन्होंने सबसे पहले वह अखबार उठाया जिसकों पढ़कर वह हरिराम के खेत में पहुंचे थे। अखबार देखकर नेताजी जी फिर मुस्कुराए और बोले-'अरे यार! यह चार दिन पुराना अखबार मेरी टेबिल पर किसने रख दिया था। आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए।'
Wednesday, February 20, 2013
सेंसर बोर्ड हाय-हाय!
व्यंग्य/झुनझना
सुमित 'सुजान'
सेंसर बोर्ड हाय-हाय! सेंसर बोर्ड हाय-हाय! सेंसर बोर्ड की मनमानी नहीं चलेगी-नहीं चलेगी! मेरे कानों में तो ये नारे अभी से ही गंूजने लगे हैं। जबसे सेंसर बोर्ड ने 'आयटम गानों' पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है तबसे पता नहीं क्या हो गया है। मुझे तो मुन्नी, शीला, शन्नो, राखी, बानो, बिजली जैसे बेचारी अदाकाराओं की चिंता होने लगी है। कल ही मुन्नी से मुलाकात हुई थी तो बेचारी बड़ी दु:खी थी। मुन्नी बता रही थी कि हम लोग कितनी मेहनत से तो 'आयटम गानों' की तैयारी करते हैं, उस पर सेंसर बोर्ड वाले अडंगा लगात देते हैं। मुन्नी ने बताया कि उनकी कुछ साथियों ने मिलकर 'ए.जी.ए.' (आयटम गल्र्स ऑर्गनाइजेशन) का गठन कर लिया है। बस कुछ दिनों बाद आंदोलन शुरू हो जाएंगे। मेरे द्वारा ए.जी.ए. के गठन का सवाल पूछते ही वह तपाक से बोली जब अण्णा हजारे, स्वामी रामदेव और अरविंद केजरीवाल जैसे लोग अपने-अपने संगठन बना सकते हैं तो हम क्यों नहीं बना सकते? बातचीत को आगे बढ़ाते हुए मुन्नी बोली कि हमारा आंदोलन सेंसर बोर्ड को झुकाए बिना रुकेगा नहीं। अण्णा हजारे के भूखे रहने से भले ही 'जनलोकपाल बिल' न आया हो लेकिन जब हम लोग ठुमके लगाना बंद कर देंगे तो देश में भूचाल आ जाएगा। बॉलीवुड में सन्नाटा पसर जाएगा। लोग फिल्में देखना ही बंद कर देंगे। हमने तो पर्चे भी छपवा लिए हैं। आपको क्या मालूम फिल्मों में होने वाले 'आयटम गानों' के कितने फायदे हैं। हमारी वजह से बॉलीवुड करोड़ो रुपए कमा रहा है। फिल्में सुपर-डुपर हिट हो जाती हैं। पहले लोगों को हमारे ठुमके और अदाओं को देखने के लिए दूर-दूर तक जाना पड़ता था लेकिन आजकल तो हम सीधे घरों तक पहुंच जाते हैं। हमारे ठुमकों के साथ-साथ कंपनियां अपने उत्पादों की मार्केटिंग भी आसानी से कर सकती हैं। आपने देखा नहीं क्या हमने तो 'झण्डु बाम', 'फेवीकॉल', 'चिलम' और 'बीड़ी' जैसे उत्पादों का प्रचार भी बड़ी चतुराई से किया है। देखो ना कितनी नाइंसाफी है इतने फायदे होने के बाद भी हमारी भावनाओं को कुचला जा रहा है। हम ऐसा नहीं होने देंगे। सेंसर बोर्ड हाय-हाय!
Wednesday, February 13, 2013
मैं, सरकार और आतंकवादी
व्यंग्य/झुनझुना
कल ऑफिस से लौटते वक्त एक आतंकवादी रास्ते में मिल गया। बेचारा काफी घबराया हुआ था। वैसे तो आतंकवादियों को देखकर सबकी सिट्टी-बिट्टी गुम हो जाती है लेकिन इस बार उसकी गुम थी। उसकी घबराहट से मेरा मनोबल बढ़ रहा था। अपुन भी पूरे तैश में आ गए थे। उसकी आंखें गीली और हमारी लाल हो रही थीं। आखिरकार हमारी सहृदयता ने जवाब दे दिया। मैंने उसकी आंखों से टपक रहे आंसुओं को पहले तो पोंछा, फिर उससे रोने का कारण पूछा! बेचारे आतंकवादी ने अपनी व्यथा को मुझसे बांटते हुए कहा कि आप लोगों के कारण हम अब घबराने लगे हैं। वह बोला हम आतंकवादी भले ही कितने ही सरकार के खिलाफ चले जाएं, कितना ही बड़ा धमाका कर दें, कितने ही निर्दोष लोगों को मौत की नींद सुला दें लेकिन हमें कुछ नहीं होता था। लेकिन जबसे आप लोगों ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दी है तबसे सरकार हमें ही निशाना बनाने लगी है। आतंकवादी रोते हुए बोला 'सरकार पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दाम तो कम कर नहीं रही लेकिन हमारी संख्या कम करती जा रही है। सरकार ने जब रसोई गैस के दाम बढ़ाए तो उन्होंने आपका ध्यान भटकाने के लिए हमारे साथी कसाब को फांसी पर लटका दिया। अब जब आप लोग जनलोकपाल बिल और बलात्कार के मामले में कानून को बदलने सड़क पर आए तो सरकार ने अफजल को भी फांसी पर लटका दिया।' आतंकवादी बोला- 'पहले सरकार हम पर कितना रहम खाती थी, हम जो चाहते थे हमें मिल जाता था। बिल्कुल दामाद की तरह हमारी खातिरदारी हो रही थी। हमें सरकार पर बहुत भरोसा हो गया था। हमने भरोसे के कारण सैकड़ों साथियों को यहां बुला दिया था। हमने तो मलिक जैसे दो मुखौटे वाले कई 'मलिक' भी भारत में पैदा कर दिए हैं। अब हमें समझ नहीं आ रहा है कि हम किधर जाएं क्योंकि सरकार की नीतियां तो ऐसी हैं कि महंगाई का ग्राफ नीचे जाएगा नहीं, हमारे साथियों का ग्राफ कम होता जा रहा है।' आतंकवादी बहुत दु:खी था। घर पहुंचने के बाद मैंने सोचा कितनी अजीब बात है कि सरकार के हथकंडे वह आतंकवादी तो जानता है लेकिन हमें समझने में इतनी देर क्यों लग रही है...!!!
Friday, February 8, 2013
उल्लूपने की बातें
व्यंग्य/झुनझुना
ये वैज्ञानिक भी खूब होते हैं। लो अब उल्लुओं पर ही शोध कर लिया। खबर है कि वैज्ञानिकों ने उल्लू के सिर घुमाने के रहस्य का पता लगा लिया है। वैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगा लिया है कि रात के अंधेरे में उल्लू अपना सिर बगैर किसी दिक्कत के कैसे घुमा लेते हैं। वैज्ञानिकों ने उल्लुओं की एंजियोग्राफी और सीटी स्कैन करके उल्लुओं के इस रहस्य का पता लगाया है। भई वैज्ञानिक तो वैज्ञानिक होते हैं। शोध करना उनका काम है। अपुन तो उनके आगे खुद उल्लू हैं। उल्लू में कई विशेषताएं होती हैं। सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि ये आपको हर शाख पर बैठा हुआ मिल जाएगा। आपने सुना भी होगा...'बर्बाद गुलिस्तां करने को, सिर्फ एक ही उल्लू काफी है; हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा।' उल्लू कहीं बुरा नहीं मान जाए इसलिए भगवान ने भी काफी सोच समझकर उसे लक्ष्मी जी का वहां बनाया है। लक्ष्मी जी उल्लू पर सवार होती हैं। हम भी उल्लू बनने की कोशिश करते रहे लेकिन कम्बखत मास्साबों ने हमें उल्लू नहीं बनने दिया। आज हम उल्लू होते तो लक्ष्मी जी के लिए इतना तरसना नहीं पड़ता। कम से कम 'उल्लू का पट्ठा' ही बन जाते तो कुछ तो बेहतर स्थिति होती। क्योंकि आजकल तो 'उल्लू के पट्ठे' भी काफी तरक्की कर रहे हैं। उल्लू का पट्ठा कहते-कहते सबने टाईम पास तो किया लेकिन किसी ने न तो उल्लू बनने दिया और न ही पट्ठा। हां लेकिन मेरे उल्लू मन में विद्यमान उल्लूपन कुछ ऊथल-पुथल जरुर मचा रहा है। मेरा उल्लूपन इस बात को जानने के लिए मचल रहा है कि क्या वैज्ञानिक इस रहस्य का पता लगा सकते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री जी का सिर मैडम सोनिया की हां में हां क्यों मिलाता है? क्या वैज्ञानिक इस रहस्य का पता लगा सकते हैं कि बाबा राहुल की चमचागिरी करने वाले कांग्रेसियों के सिर किसी भी बात को लेकर न-नुकुर क्यों नहीं करते हैं? क्या वैज्ञानिक इस बात का पता लगा सकते हैं कि हमारे नेताओं के दिमाग में ऐसा कौन सा तत्व आ जाता है जिसके कारण उन्हें हिन्दुओं में आतंकवादी और आतंकियों में राष्ट्रवादी नजर आते हैं। वैज्ञानिक जरा इस बात पर शोध करके पता लगाएं कि देश की रक्षा करने वाले शहीदों के सिर जब सरहद पर काटे जाते हैं तो हमारे नेताओं के सिर शर्म से झुकते क्यों नहीं हैं? भ्रष्टाचार, हत्या, घोटोले जैसे मामलों में जब नेता और अधिकारियों को जेल भेजा जाता है तो उनके सिर उठे हुए कैसे रहते हैं? अब बाकी बातें आप भी सोचिए, मेरे उल्लूपने की बातों पर आप अपना सिर क्यों हिला रहे हैं!!!
Friday, February 1, 2013
आम आदमी का ट्विट
लो अब देश के 'रतन' टाटा जी ने भी ट्विट कर
दिया। ट्विट करते हुए टाटा कह रहे हैं कि जबसे उन्होंने अपने काम से 'टाटा'
(सेवानिवृत्त) किया है तब से उनकी जिन्दगी मजे में बीत रही है। उनका अधिकतर
समय अपने पालतू कुत्तों के साथ बीत रहा है। भई आजकल जिसे देखो ट्विट कर
देता है। ये ट्विट करने का फंडा जिस प्रकार से चल निकला है उससे मुझे
भविष्य का अनोखा भारत दिखाई दे रहा है। मान लो कि 125 करोड़ की आबादी वाले
इस देश में सभी ट्विट और फेसबुक पर कमेन्ट करने लगें तो कैसा होगा। सबकुछ
टेक्निकल हो जायेगा। रिश्वत ट्विट करके मांगी जाएगी। न्यायलय भी ट्विट करके
अपने फैसले देंगे। सरकारें भी ट्विट करके अपनी योजनायें बता देंगी। शिक्षक
और छात्र ट्विट करके ज्ञान का आदान-प्रदान करेंगे। पाकिस्तान के सैनिक जब
घिनौना कृत्य कर हमारे सैनिकों को मौत के घात उतरेंगे तब हमारे देश के
राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, गृहमंत्री, विदेशमंत्री ट्विट कर कड़ी चेतावानी
देंगे। हमारे देश में जब भी कोई आतंकवादी वारदात होगी तब नेता ट्विटर पर ही शोक व्यक्त करके चेतावनी देंगे। सरकार सिलेंडर, पेट्रोल, डीज़ल, केरोसिन के
दाम बढाने की घोषणा भी ट्विट करके दे देगी। हमारे मुलायम सिंह, मायावती,
शिबू सोरेन जैसे नेता ट्विटर सन्देश देकर सरकार के लिए संकट खड़ा कर देंगे,
उन्हें बार-बार दिल्ली आने की जरुरत भी नहीं होगी। हाँ सबसे ज्यादा कष्ट
फिर आम आदमी को ही होगा। बेचारा जैसे ही सरकार या व्यवस्था के खिलाफ कुछ भी
ट्विट करेगा तो उसे जेल में ठूस दिया जायेगा। बेचारा आम आदमी।
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