Wednesday, February 27, 2013

नेतागिरी की ओलावृष्टि


          अखबार में ओलावृष्टि का समाचार देखते ही क्षेत्रीय विधायक चंदन जी बाहर से दु:खी होते हुए और भीतर से मुस्कुराते हुए बोले-'ओ! नो। सो सेड। बड़ा बुरा हुआ। बेचारे किसानों का क्या होगा? उन पर आफत का पहाड़ आकर टूट पड़ा। इतनी भयंकर ओलावृष्टि तो मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखी।' मैं भी वहीं खड़ा था। नेताजी की सूरत बता रही थी कि वह कितने दु:खी है। तभी इतने में नेताजी ने अपने कुछ चेले चपाटों को फोन किया और बोले-'अबे चंगुओं...थोड़ा दु:खड़ा व्यक्त करने जाना है, जल्द आ जाओ फिर चलते हैं।' थोड़ी देर में ही विधायक जी अपने दल बल के साथ नजदीक के एक किसान हरिराम के खेत में पहुंच गए। यहां पहुंचते ही अपनी सूरत पर और अधिक दुखावटी भाव ले आए, फिर  फसलों को देखते हुए बोले-'अरे! राम-राम। हरिराम, यह सरसो की फसल तो सब बर्बाद हो गई।' ओले कितने बड़े थे? विधायक जी के इस सवाल पर हरिराम एक तशले में रखे ओले दिखाते हुए बोला-'ये देखिये नेताजी...।' विधायक जी बोले-'अरे वाह! चार दिन पहले बारिश हुई थी और आपके पास ओले अभी तक रखे हुए हैं। बहुत आश्चर्य की बात है' हरिराम-'नेताजी आश्चर्य की कोई बात नहीं है। बल्कि आश्चर्य की बात तो यह है कि आप सबसे आखिरी में आए हैं। हमारे पड़ौसी और अधिकारी तो बारिश के अगले दिन ही आ गए थे। हां! मुझे आप पर पूरा विश्वास था कि आप जरुर आएंगे। आपके आने का ख्याल मुझे बार-बार आ रहा था। इसलिए मैंने ये ओले संभाल कर रख लिए थे। अधिकारियों को एक बार ओले नहीं दिखे तो चल भी जाता है। अधिकारी तो बिना आए भी हमारे नुकसान को नोट कर लेते हैं। बस हमें उनके लिए 'नोट' करना पड़ते हैं। लेकिन आपके सामने ओले आना बहुत जरुरी होता है। आपकी नेतागिरी के कारण ही तो हमें मुआवजा मिलने की उम्मीद बनी रहती है। अलग-अलग पार्टी के आप जैसे समाजसेवियों के आने से हमारी आवाज का भी ख्याल हो जाता है। वरना आजकल कहां सरकारें हमारी ओर देखती हैं।' दौरा करने के बाद नेताजी बड़े प्रसन्न हुए। घर आए तो उन्होंने सबसे पहले वह अखबार उठाया जिसकों पढ़कर वह हरिराम के खेत में पहुंचे थे। अखबार देखकर नेताजी जी फिर मुस्कुराए और बोले-'अरे यार! यह चार दिन पुराना अखबार मेरी टेबिल पर किसने रख दिया था। आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए।'

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