Wednesday, February 13, 2013

मैं, सरकार और आतंकवादी


 व्यंग्य/झुनझुना
कल ऑफिस से लौटते वक्त एक आतंकवादी रास्ते में मिल गया। बेचारा काफी घबराया हुआ था। वैसे तो आतंकवादियों को देखकर सबकी सिट्टी-बिट्टी गुम हो जाती है लेकिन इस बार उसकी गुम थी। उसकी घबराहट से मेरा मनोबल बढ़ रहा था। अपुन भी पूरे तैश में आ गए थे। उसकी आंखें गीली और हमारी लाल हो रही थीं। आखिरकार हमारी सहृदयता ने जवाब दे दिया। मैंने उसकी आंखों से टपक रहे आंसुओं को पहले तो पोंछा, फिर उससे रोने का कारण पूछा! बेचारे आतंकवादी ने अपनी व्यथा को मुझसे बांटते हुए कहा कि आप लोगों के कारण हम अब घबराने लगे हैं। वह बोला हम आतंकवादी भले ही कितने ही सरकार के खिलाफ चले जाएं, कितना ही बड़ा धमाका कर दें, कितने ही निर्दोष लोगों को मौत की नींद सुला दें लेकिन हमें कुछ नहीं होता था। लेकिन जबसे आप लोगों ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दी है तबसे सरकार हमें ही निशाना बनाने लगी है। आतंकवादी रोते हुए बोला 'सरकार पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दाम तो कम कर नहीं रही लेकिन हमारी संख्या कम करती जा रही है। सरकार ने जब रसोई गैस के दाम बढ़ाए तो  उन्होंने आपका ध्यान भटकाने के लिए हमारे साथी कसाब को फांसी पर लटका दिया। अब जब आप लोग जनलोकपाल बिल और बलात्कार के मामले में कानून को बदलने सड़क पर आए तो सरकार ने अफजल को भी फांसी पर लटका दिया।' आतंकवादी बोला- 'पहले सरकार हम पर कितना रहम खाती थी, हम जो चाहते थे हमें मिल जाता था। बिल्कुल दामाद की तरह हमारी खातिरदारी हो रही थी। हमें सरकार पर बहुत भरोसा हो गया था। हमने भरोसे के कारण सैकड़ों साथियों को यहां बुला दिया था। हमने तो मलिक जैसे दो मुखौटे वाले कई 'मलिक' भी भारत में पैदा कर दिए हैं। अब हमें समझ नहीं आ रहा है कि हम किधर जाएं क्योंकि सरकार की नीतियां तो ऐसी हैं कि महंगाई का ग्राफ नीचे जाएगा नहीं, हमारे साथियों का ग्राफ कम होता जा रहा है।' आतंकवादी बहुत दु:खी था। घर पहुंचने के बाद मैंने सोचा कितनी अजीब बात है कि सरकार के हथकंडे वह आतंकवादी तो जानता है लेकिन हमें समझने में इतनी देर क्यों लग रही है...!!!

No comments:

Post a Comment