Tuesday, March 27, 2012

मत करो रेखा से छेड़छाड़

      हम 121 करोड़ हो गए हैं। लेकिन दिमाग एक के पास भी नहीं है।  जब योजना आयोग में योजना बनाने वालों के पास ही यह तत्व उपलब्ध नहीं तो मेरे और आपके पास कितना होगा, समझ सकते हैं। दिमाग होता तो वे रेखा से छेड़छाड़ नहीं करते। पूरी दुनिया जानती है कि जिसने भी रेखा से छेड़ाछाड़ की है, उसका बड़ा बुरा हश्र हुआ है।
      यह बात कहने के मेरे पास प्रमाण भी हैं। इसलिए जिस बुरे हश्र की बात कर रहा हूं, उसे समझने के लिए हमें रेखा के बारे में विस्तार से जानना होगा। रेखा कई प्रकार की होती हैं। जिनके बारे में मैं जानता हूं वह छह प्रकार की हैं। गरीबी रेखा, गणितीय रेखा, फिल्म अभिनेत्री रेखा, सीमा रेखा,हस्त रेखा और लक्ष्मण रेखा। इन रेखाओं को जिन्होंने भी छेड़ा है वह कभी भी सुखी नहीं रहा। कुछ का तो अंत ही हो गया।
       पहले गरीबी रेखा की बात करते हैं। योजना आयोग में काम करने वालों को पता नहीं कौन सा भूत सवार हो जाता है कि वह बार-बार इस रेखा से छेड़छाड़ करते हैं। भारत की 70 फीसदी आबादी गरीब है, जो बिल्कुल शांति से अपना जीवन गुजार रही है। लेकिन ये योजना बनाने वाले  कुछ न कुछ परेशानी खड़ी करते रहते हैं। गांव में 26 रुपए और शहर में 32 रुपए रोजाना कमाने वाल गरीब नहीं हो सकता। अब मुझे एक बात आज तक समझमें नहीं आती कि जब 26 रुपए और 32 रुपए कमाने वाले व्यक्ति गरीब नहीं है तो वह लोग कितने गरीब हैं जो सरकार और ऊंचे पदों पर बैठे करोड़ों खा रहे हैं!! सरकार ने गरीबी रेखा को छेडक़र अच्छा नहीं किया। पूरे भारत में थू-थू हो रही है!
          दूसरी रेखा है गणितीय रेखा। इस रेखा से छेड़छाड़ करने पर स्कूल में बच्चे कितने पिटते हैं सबको पता है। जब भी रेखा को थोड़ा सा आढ़ा -तिरछा बनाया तो गाल पर एक ऐसा तमाचा पड़ता था कि मैडम के हाथों की रेखा छप जाती थीं।
       फिल्मी अभिनेत्री रेखा तीसरी रेखा है। फिल्मों में हमने कई बार देखा है। जब कोई गुंडा रेखा से छेड़छाड़ करता तो फिल्म का नायक उसकी कितनी धुनाई करता है। गुंडे की इतनी पिटाई होती थी कि वह हमेशा के लिए सुधर जाता था।
        इसी प्रकार हस्त रेखा भी है। हां इस रेखा को समझना आसान नहीं है। केवल ज्योतिषियों को यह अधिकार है। यह हस्त रेखा भगवान बनाता है। जिस किसी व्यक्ति के हाथों की रेखा ठीक नहीं होती, उस व्यक्ति की जिंदगी भी ठीक नहीं होती।
       पांचवी रेखा है सीमा रेखा। पाकिस्तान ने कितनी बार इस रेखा को छेडऩे की कोशिश की! हमारे सैनिकों ने क्या हाल किया यह सबको पता है। सीमा रेखा के छेडऩे पर हमने कई बार पाकिस्तान को धूल चटाई है। इस रेखा के कारण कई बार युद्ध हो चुके हैं।
        अंत में लक्ष्मण रेखा। यह रेखा बड़ी खतरनाक है। दुष्ट राक्षस रावण ने माता सीता को इस रेखा से बाहर निकाला और अपहरण कर ले गया था। इसके बाद सभी जानते हैं कि भगवान श्रीराम ने दुष्ट रावण किस प्रकार अंत किया था।
        तो कुल मिलाकर कहने का आशय यह है कि रेखा से छेड़छाड़ नहीं करना चाहिए। गरीबों को लक्ष्मण रेखा के भीतर ही रहने दो तो अच्छा है। वरना गरीब लक्ष्मण रेखा के पार आ गए तो आपका ही सत्यानाश कर देंगे!   आपका भी वही हश्र हो सकता है जो दुष्ट राक्षस रावण का हुआ था! गरीब आदमी यदि अमीर हो गए तो आपको वोट कौन देगा? वोट नहीं मिलेंगे तो सोच लो कुर्सी भी जा सकती है.....!

Tuesday, March 20, 2012

छुक-छुक से पीछा छूटा

        अच्छा हुआ छुक-छुक मंत्री ने इस्तीफा दे दिया। इस जमाने में जब राजधानियां और शताब्दी जैसी गाडिय़ां दौड़ रही हैं ऐसे में इनकी छुक-छुक को कौन सुनता? इनकी छुक-छुक से सभी की धकडऩे धक-धक कर रही थीं। साहब डाँट ही नहीं खा रहे थे। जबसे रेल मंत्री बने तब से संभालना ही मुश्किल हो रहा था। ममता बनर्जी ने कितनी ममता से इन्हें मंत्री बनाया था। लेकिन जब रेल बजट दिया तो ममता भी छीन ली। सीधे इस्तीफा ही मांग लिया। सच बताऊं  तो मुझे भी यह मंत्री पसंद नहीं आए। खासतौर पर जब, जब इन्होंने रेल बजट प्रस्तुत किया।
      रेल बजट भी ऐसा जैसे हड़प्पा की खुदाई से निकाला हो। हमारे देश में जहां करोड़ों-लाखों रूपए की बातें होती हैं, घोटाले होते हैं, ऐसे में 2 पैसे, 5 पैसे को कौन जानता है। अब देखो न किलोमीटर के हिसाब से किराया बढ़ाया है। सामान्य श्रेणी में प्रतिकिलोमीटर 2 पैसे, स्लीपर में 5 पैसे, थर्ड एसी में 10 पैसे, सेकण्ड एसी में 15 और 20 पैसे एवं फस्र्ट एसी में 30 पैसे बढ़ाए हैं। सरकार में जहां करोड़ों की बात होती है वहां से पैसे में बात कर रहे हैं साहब। इनसे पहले वाले मंत्री अच्छे थे जिनका ध्यान पैसों पर नहीं करोड़ों पर रहता था। जेल में बंद पहले वाले संचार मंत्री ए.राजा को ही देख लो, पूरे 1 लाख 76  करोड़ का घोटाला करके बैठे हैं! कमलाड़ी को देखो राष्ट्रमण्डल खेल कराते-कराते 8  हजार करोड़ का ही खेल कर दिया! महाराष्ट्र के पुराने मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने सेना के अधिकारियों की विधवाओं के घर बनाते-बनाते 176  हजार करोड़ का घोटाला किया।
        जिस देश में करोड़ों की बातें होती हों ऐसे में 2 पैसे, 5 पैसे वाले मंत्री को तुरंत हटा ही देना चाहिए था। इनके इस्तीफे 5 दिन लग गए, मैं सरकार में होता तो इनकी स्पीड को देखते हुए पहले ही इस्तीफा ले लेता।  अभी भी छुक-छुक की तरह ही दौड़ रहे हैं। आजकल रेलगाडिय़ां कोयले से नहीं डीजल और बिजली से दौड़ रही हैं।
एक बात और जो मंत्री को नहीं बोलना चाहिए थी। मंत्री जी कह रहे हैं कि भारतीय रेलवे घाटे में जा रही है। हम कितने फटीचर हैं, यह दूसरों को बताने की जरूरत क्या है। एक ओर तो हम कह रहे हैं कि विदेशों में हमारा 25 लाख करोड़ रुपया कालेधन के रूप में जमा है। हम विश्वबैंक का कर्जा तीन बार चुका सकते हैं, ऐसे में बार-बार क्या रोना चाहिए। ऐसा करने से विश्व की नजरों में भारत की इमेज खराब होती है। ऐसा करेंगे तो विश्व की नजरों में हम सबसे बड़े गप्पेबाज साबित होंगे।
       सच पूछो तो मुझे याद भी नहीं है कि मैंने 5 पैसे और 10 पैसे आखिरी बार कब देखे थे। हमारे बच्चे ही हमसे पूछरहे हैं कि ये 5 पैसे कैसे होते हैं? नए किस्म के बच्चों ने तो अभी तक इन सिक्कों को किस्सों में ही सुना है। नए जमाने में पुराने जमाने की बात करने वाले मंत्री से सबसे अधिक परेशानी बच्चों को ही हो रही थी। मंत्री जी 5 रुपए और 10 रुपए का किराया बढ़ाते तो शायद इन्हें कोई फर्क नहीं पड़ता। लेकिन 2 पैसे, 5 पैसे का हिसाब कैसे लगाया जाता है, यह अब किसी भी स्कूल में नहीं सिखाया जाता। रेल बजट के बाद नए बच्चे आज तक हिसाब नहीं लगा पाए हैं कि ग्वालियर से भोपाल जाने में कितने पैसे बढ़ेंगे? इसलिए अच्छा हुआ इन छुक-छुक महोदय से पीछा छूटा। लेकिन मुझे आज भी चिंता हो रही है। क्योंकि मैंने सुना है कि नया रेल मंत्री भी इन्हीं की पार्टी का रहने वाला है। अब तो चिंता हो रही है कि कहीं वह भी चवन्नी, अठन्नी वाली बात न कर दे, नहीं तो हमारी तो नाक ही कट जाएगी।

Tuesday, March 13, 2012

आला रे आला अखिलेश आला



आला रे आला अखिलेश आला
राहुल की किस्मत पर लगा ताला
हाथी को कुचलकर दिखाया दम
हार गया प्रत्याशी भाजपा वाला
आला रे आला अखिलेश आला.....

लैपटॉप मिलेगा और आरक्षण भी
बड़े अपराधियों को संरक्षण भी
प्रदेश दौड़ेगा प्रगति की राह पर
चौबीस घण्टे खुलेंगी मधुशाला
आला रे आला अखिलेश आला.....

मुख्यमंत्री की कुर्सी से पटका
माया की माया को लगा झटका
मूर्तियों पर भी होगी राजनीति
अब होगा पुतला साइकिल वाला 
आला रे आला अखिलेश आला.....

आजम, शिवपाल ने चुप्पी साधी
झूठी हंसी अपने चेहरे पर लादी
राजनीति का जनता ने ढंग देखा
बाप ने छोड़ा पद मुख्यमंत्री वाला
आला रे आला अखिलेश आला.....

सुमित 'सुजान' ग्वालियर

मेरी दुर्दशा की भी तो जिम्मेदारी लो.....

क्यों भाई आम आदमी! क्यों दु:खी हो? घर नहीं जाओगे क्या? या यूं ही रास्ते पर पड़े रहोगे।
अब घर जाकर क्या करेंगे साहब!! अब कोई बचा ही नहीं जो हमारी दुर्दशा की जिम्मेदारी ले।
क्या मतलब है तुम्हारा?
अरे साहब मतलब पूछ रहे हो! पहले तो हम सोचते थे कि हमारी दुर्दशा को ठीक करने के लिए सभी बड़े चिंतित हो रहे हैं। कोई हमें आरक्षण दिलाने के लिए अड़ा था तो कोई लैपटॉप देने के लिए। लेकिन अब देखो न चुनाव निपट गए हैं तो हमें खाने को रोटी नहीं है, पहनने को सिर्फ एक धोती है और बनियान है। कोई काम-धंधा नहीं है। पूरा जीवन गरीबी में कटा जा रहा है। चुनाव चल रहे थे तब हम नेताओं के माईबाप थे। चुनाव निपटने के बाद सबके-सब मुझसे अलग हो गए।
ठीक-ठीक बताओ तुम कहना क्या चाहते हो आम आदमी?
चलिए आप ज्यादा जोर देकर पूछ रहे हैं तो बता देता हूं।
उत्तर प्रदेश में अभी विधानसभा चुनाव हुए। चुनाव में समाजवादी पार्टी जीत गई। बाकी सभी पार्टियां हार गईं। जब चुनाव हो रहे थे तब जो भी नेता हमारे घर पर आया, हमारी गरीबी को हमसे दूर करने की बात करता रहा। लेकिन चुनाव होने के बाद हम इतने दूर हो गए कि हमें याद भी नहीं किया जा रहा है। सभी बता रहे थे कि मतदान करना एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी वाला काम है। जो  देश का जिम्मेदार व्यक्ति होता है वह मतदान जरूर करता है। जिम्मेदार व्यक्ति ही देश की राजनीति  में बदलाव ला सकता है। जिम्मेदार व्यक्ति ही महंगाई का विरोध करता है, काला धन वापस लाने की मांग करता है, भ्रष्टाचार के खिलाफ आगे आता है। देश का जिम्मेदार व्यक्ति वही होता है जो अपने परिवार को नहीं बल्कि अपने देश को देखता है। इसलिए देश में स्वच्छ राजनीति चाहते हो तो जिम्मेदारी से मतदान करो। इतना बड़ा पाठ पढ़ाया था हमें नेताओं ने।
मैंने जब उनसे पूछा कि मुझे क्या मिलेगा तो कहने लगे कि तुम हमें वोट करो, हम तुम्हारी जिम्मेदारी लेंगे। मतदान से पहले सभी ने मेरे उत्थान की जिम्मेदारी ली। लेकिन चुनाव निपटने के बाद सब भूल गए।
उत्तर प्रदेश और पंजाब में हुए विधानसभा चुनाव के बाद मैं (आम आदमी)बड़ा दु:खी हूं। कांग्रेस को मिली हार के लिए कांग्रेस के युवराज कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में हार की जिम्मेदारी मेरी है, कांग्रेस नेत्री रीता बहुगुणा जोशी कह रही हैं कि हार की जिम्मेदारी मेरी है। देश के सबसे समझदार व्यक्ति दिग्विजय सिंह कह रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में हार के लिए मैं गुनहगार हूं।
प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती कह रही हैं कि उनकी हार के लिए भाजपा और कांग्रेस जिम्मेदार हैं। भाजपा की फायर ब्रांड नेता उमा भारती कह रही हैं कि प्रदेश में भाजपा की हार की जिम्मेदारी मेरी है। भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सूर्य प्रताप शाही जो खुद इस चुनाव में हार गए, वह कह रहे हैं कि हार की जिम्मेदारी मेरी है। इसी प्रकार पंजाब में मिली हार के बाद कांग्रेस के नेता कै. अमरिंदर सिंह कह रहे हैं कि हार की जिम्मेदारी मेरी है।
अब देखो न बाबू, सभी नेता चुनाव में हुई पार्टी की दुर्दशा को देखते ही कैसे जिम्मेदारी लेने आ गए!! काश! ये राजनेता देश में बढ़ती महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद को न रोक पाना, कानून व्यवस्था, स्वास्थ्य सेवा की बिगड़ती स्थिति के लिए भी ऐसे ही जिम्मेदारी लेने की हिम्मत जुटाते तो कितना अच्छा होता। लेकिन कितनी बुरी बात है कि आजादी के 6 4 वर्ष बाद भी हम गरीबों को रोजगार नहीं है। रोजगार के लिए महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) जैसा कानून बनाना पड़ता है। 100 दिन का रोजगार मिलता है, पूरे साल भर का गुजारा करना पड़ता है। हम गरीब है न इसलिए हमारी जिम्मेदारी कौन लेगा। ये कैसा लोकतंत्र है जिसमें कोई भी मेरी इस दुर्दशा की जिम्मेदारी ही लेने को तैयार नहीं है...। सबके सब मतलबी निकले..! काश! मैं भी मतलबी होता....!!

Tuesday, March 6, 2012

कांग्रेसी होली.....


मेहनत तो की थी जमकर
लेकिन नतीजे मिले जब ढीले
सोनिया गांधी लाल हो गईं
राहुल हो गए पीले।।

राहुल हो गए पीले
रंग सबका उड़ा हुआ है
दिग्विजय सिंह ने तो
10 दिन से खाना नहीं छुआ है
प्राण सूख गए उनके
और नयन हो गए गीले
सोनिया गांधी लाल हो गईं
राहुल हो गए पीले।।

चुनावों से अब सभी
बहुत डर रहे हैं
अन्ना और रामदेव भी
लुटिया डुबो रहे हैं
सुब्रण्यम भी हो रहे हैं चुटीले
सोनिया गांधी लाल हो गईं
राहुल हो गए पीले।।

बहुत हो गए रोड शो
होली में अब तो नए रंग
और नई उमंग भर लो
कुछ जनता के लिए भी कर लो
नहीं तो जनता ठोकेगी अंतिम कीले
सोनिया गांधी लाल हो गईं
राहुल हो गए पीले।।

Monday, March 5, 2012

लेटने में लेट नहीं होना....

              यार अब तो यहां जीना मुश्किल हो गया है। अब देखो न गाड़ी चलाने का कानून भी कड़ा कर दिया है। कानून तो कानून होता है। देश की जितनी जनसंख्या नहीं है उससे ज्यादा तो कम्बख्त कानून हो गए हैं! आत्महत्या करके परलोक पहुंच जाओ तब भी पुलिस वाले आत्महत्या का मुकदमा दर्ज कर लेते हैं। मोटर वाहन कानून को इतना कड़ा कर दिया है कि बेचारी जनता घबराई हुई है। लेकिन जनता को घबराने की जरूरत नहीं है क्योंकि मैंने भी इस कानून का अध्ययन कर लिया है। कानून तो मजेदार कानून है। जनता चाहे तो इससे अपनी गरीबी दूर कर सकती है! ये तो गरीबों को अमीर बनाने वाला कानून है!!
             नया कानून है। नया-नया जोश है। नए कानून में गाड़ी चलाते समय मोबाइल पर बात नहीं करना, शराब नहीं पीना, अधिक सवारी नहीं बैठाने के लिए कहा गया है। शराब पीकर गाड़ी चलाई तो 2 हजार से 10 हजार रुपये तक जुर्माना हो सकता है। 6 महीने की जेल भी हो सकती है। मोबाइल पर बात करते हुए पकड़े गए तो पहली बार में 500 रुपए उसके बाद 2 हजार से 5 हजार रुपए तक भरने पड़ सकते हैं। गाड़ी चलाते वक्ते मोबाइल पर मैसेज भेजते हुए पकड़े गए तो सजा हो सकती है।
            अंतर्राष्ट्रीय सडक़ महासंघ की रिपोर्ट के अनुसार सडक़ दुर्घटनाओं के कारण भारत को हर साल 1 लाख करोड़ का नुकसान उठाना पड़ता है। वहीं कम्युनिटी अगेंस्ट डे्रकन की रिपोर्ट के अनुसार हर एक घण्टे में 56 सडक़ दुर्घटना होती हैं और लगभग 14 लोग रोजाना मरते हैं। इनमें से सबसे अधिक मौतें नशा करने वालों के साथ होती हैं। ये बातें सब सही हैं। डराने वाली बातें हैं। लेकिन आप लोगों को डरने की जरूरत नहीं है। क्योंकि मेरा अध्ययन आपको फायदे की बात करता है।
           अध्ययन करने पर पता चला है कि सरकार ने नए कानून में मरने वालों के परिजनों को एक लाख रुपये देने का वादा किया है। यदि गंभीर रूप से घायल हो जाओगे तो 50 हजार रुपये मिलेंगे। यदि यह मान लें कि रोजाना 14 लोग मरते हैं तो सरकार को मारे गए लोगों के परिजनों को 1 लाख रुपए मुआवजे के हिसाब से 51 करोड़ देना पड़ते हैं। घायलों का मामला अलग है। अपुन जिस अध्ययन की बात कह रहे हैं वह आपके घायल होने पर है। कानून में है कि घायल हुए तो सरकार 50 हजार रुपये देगी। इसलिए मित्रों कोई व्यक्ति घायल होने की हिम्मत कर ले तो सरकार की तरफ से उसे 50 हजार मिल जाएंगे। घायल हो जाओ, 50 हजार पाओ फिर ठीक हो जाओ, फिर घायल हो जाओ। इसलिए नये कानून को पढक़र तो मेरा मन घबरा नहीं रहा है बल्कि सोच रहा हूं कि कोई अच्छी सी तारीख देखकर सडक़ पर लेट जाऊं। कमबख्त एक चिंता यह भी सता रही है कि कहीं मैं लेटने में लेट नहीं हो जाऊं। यदि सरकार को मेरा अध्ययन का पता चल गया तो पता नहीं कब नया कानून बना दे! खैर! आपको पता चल जाए तो प्लीज सरकार को मत बताना।

Thursday, March 1, 2012

प्रधानमंत्री हो तो ऐसा


           कोई मुझसे यदि यह पूछे की भारत का प्रधानमंत्री कैसा होना चाहिए तो मेरे दिल से, जुबान से, दिमाग से, धडक़न से, नस-नस से एक ही नाम निकलेगा। यह नाम होगा कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी का। भइया हो सकता है कि कुछ लोग हमारी बात से बिल्कुल भी सहमत न हों, लेकिन बाकी बचे कुछ लोग हमारी बात से एकदम सहमत होंगे ही। हमने जो कहा उसका कारण जान लें तो बेहतर होगा।
           दरअसल राहुल गांधी के प्रधानमंत्री बनाने के कारण कई हैं। आप सभी जानते ही हैं कि देश की बागडोर संभालने के लिए जितनी चालबाजी, चतुराई और धोखेबाजी की जरुरत होती है उतनी धोखेबाजी और चालाकी हमारे युवराज को भी आती है!!
              अब देखो न रायबरेली की सभा में क्या किया था। सपा के वादों की सूची का नाम लेकर जिस कागज को फाड़ा थाउस सूची में तो उन्हीं की पार्टी के नेताओं के ही नाम थे। जनता दूर बैठी थी। उन्हें कुछ दिखाई नहीं दिया कि सूची में किन नेताओं के नाम थे। लेकिन मीडिया जब जनता को करीब लाई तो खुल गई पोलपट्टी। राहुल बाबा का छल साफ-साफ दिखाई दिया। इसे आप छल भले ही कह लें लेकिन राजीतिक गलियारे में क्वालिटि है। इस बिन हमारे देशमें नेतागिरी चली भी कहां है! और कांग्रेस में तो इसकी खान है!!
               देखो भाई मैं यदि राहुल गांधी की जगह होता तो अपनी इस चालाकी को दूसरे के सिर मढ़ देता। मतलब यह कि कह देता कि यह भारतीय जनता पार्टी की चाल है। उन्होंने ही समाजवादी पार्टी के वादे के कागज को बदलकर कांग्रेस कार्यकर्ताओं की सूची थमा दी। यह बयान देकर अपने आपको बरी कर लेता।
                 यदि राहुल गांधी देश के प्रधानमंत्री बनेंगे तो कितना अच्छा होगा, आपको यह पता नहीं। इसका एक और कारण राहुल बाबा का भोलापन है। राहुल बाबा को यह भी नहीं मामूल कि आखिर 20 किलो मीटर होते कितने हैं। तभी तो देखो न, कानपुर के रोड शो में राहुल बाबा को अनुमति 20 किलो मीटर की दी गई थी लेकिन उन्होंने 40 किलो मीटर का रोड शो किया। प्रधानमंत्री बनने पर ऐसी गणित की योग्यता वाला गरीबों का तो पैसे  से खूब अनापशनाप भला कर सकता है।
           गरीबों के घर में रोटियां खाना, पैदल-पैदल गांव-गांव घूमना, लोगों से हाथ मिलाना, बच्चों को गोद में उठाना, बड़े-बड़े सपने दिखाना यह सभी तो चाहिए एक प्रधानमंत्री होने के लिए। राहुल बाबा का अनुभव धीरे-धीरे बढ़ रहा है। इसलिए हमसे कोई पूछे तो हम तो उन्हीं का नाम बताएं। लेकिन सबसे बड़ी समस्या तो यही है कि कोई हमसे पूछता ही तो नहीं है।  शायद लोगों को पता चल गया है कि हमेशा पूछा कि देश पर तुरंत काबिल प्रधानमंत्री काबिज हो जाएगा!!