जहां नेता वहां समस्या और जहां समस्या वहां नेता। नेता नहीं तो स्मारक और जहां स्मारक वहां फिर समस्या। कुल मिलाकर हम चारों ओर से समस्याओं से घिरे हुए हैं। नेताजी तो चल बसे हैं लेकिन कार्यकर्ताओं के लिए अभी भी जिंदा हैं। इसलिए नेताजी का स्मारक बनाने पर बहस छिड़ी हुई है। लेकिन स्मारक कैसे, कहां और कितना भव्य बनाया जाए इसके लिए पूरा देश चिंता कर रहा है। इसी चिंता में हमारे रामदीन जी भी डूबे हैं। बेचारे रामदीन जी ने चिंता में अपनी तबियत ही बिगाड़ ली। अस्पताल में भर्ती हो गए। मैं मिलने गया तो वहां भी स्मारक की चिंता। मैंने उनसे मना किया तो मुझसे ही उलझ गए।
मैंने उनसे कहा कि स्मारक बनाना क्या जरूरी है? नेताजी के विचार तो हमारे दिलों में, रगों में दौड़ रहे हैं। इस बात पर रामदीन जी इतना गुस्सा हो जाएंगे मुझे भी नहीं पता था। गुस्से में बोले-'यह तो हम भी जानते हैं कि नेताजी हमारे दिल, दिमाग में जिंदा हैं, उनके विचार हमारी रगों में दौड़ रहे हैं लेकिन अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए स्मारक तो बनाना ही पड़ेगा।' उन्होंने सवाल करते हुए कहा-'आपको हमारे नेताजी के स्मारक बनने पर इतनी आपत्ति क्यों है?' आपकी बहनजी ने लखनऊ में देखिए न कितना बड़ा अम्बेडकर पार्क बनाया है। पूरे 6000 करोड़ में जगह-जगह हाथी और अपने पुतले खड़े कर दिए तब कोई क्यों नहीं बोला। हालत कमजोर थी लेकिन फिर भी चेतावनी देते हुए बोले-'यदि हमारे नेताजी का स्मारक नहीं बना तो हम देश, राज्य में और तो और अपने शहर में एक भी सड़क, पुल-पुलिया, अस्पताल व स्कूल भी नहीं बनने देंगे।' रामदीन जी ये शब्द सुनकर ऐसा लग रहा था मानो उनके शरीर में नेताजी के बेटे और भतीजे की आत्मा समा गई हो। रामदीन जी बोले-'यदि किसी ने हमारे नेताजी के स्मारक बनने में सहयोग नहीं दिया तो पूरे राज्य में उथल-पुथल मच जाएगी। हम हड़ताल कर देंगे। कोई यातायात, कोई दुकान, कोई स्कूल नहीं खुलने देंगे।' जगह की थोड़ी दिक्कत हो रही है जैसे ही फाइनल होगी हम स्मारक बनवाएंगे।
अब रामदीन नहीं उनके भीतर की आत्मा बोल रही थी। कहने लगे हमारे नेताजी हमारी प्रेरणा थे, हमारी शक्ति थे। इसलिए स्मारक तो बनाकर ही छोड़ेंगे। भैय्या, आत्मा तो आखिर आत्मा होती है। वह कहां चुप रहने वाले थे। थोड़ी देर बाद फिर बोले- 'वह तो हम थोड़े लेट हो गए वरना बहनजी की तरह पहले ही पार्क में जगह घेर लेते तो अच्छा होता। नेताजी के रहते ही जगह फाइनल कर लेते, स्मारक कितने का बनना है यह भी तय कर लेते तो सब ठीक हो जाता। नेताजी की मर्जी से काम हो जाता तो किसी तरह की कोई दिक्कत भी न होती। खैर...। हमें किसकी सुननी है। हमें तो स्मारक बनाना है और वह तो हम बनाकर ही दम लेंगे। जय हिंद...।
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