Friday, December 30, 2011

लोकपाल ले लो..... लोकपाल........

                                           

                    लोकपाल ले लो..... लोकपाल........। अन्ना की तरह अडिय़ल भी है, कांग्रेस की तरह कलाकार भी है और बीजेपी की तरह बाजीगर भी है। ठाकरे की तरह ठसक वाला भी, लालू की तरह मजाकिया भी और मुलायम की तरह मौका परस्त भी है। बोलो चाचा आपको कौन सा चाहिए। अरे...अरे...रुक  भाई ये क्या बेच रहा है। चाचा जी आज जिस तरह से देश में लोकपाल की मांग बढ़ी है सोचा आज से यही धंधा शुरु कर दूं।
यह धंधा खूब चलेगा यह सोचकर मैंने घर पर बैठकर कुछ लोकपाल तैयार किए हैं। ये देखो अन्ना की तरह अडिय़ल लोकपाल। ये वैसे तो ठीक है लेकिन यह बड़ा जिद्दी है। ये अपनी बात मनवाने के लिए खाना-पीना तक छोड़ सकता है। किसी भी अधिकारी और कर्मचारी या फिर नेता पर कोई कार्रवाई नहीं हो रही हो तो यह ऐसे पीछे पड़ जाता है कि पूछो मत!
                ये देखो दूसरा लोकपाल! थोड़ा ढीला ढाला जरुर है। यह कांग्रेस की तरह कलाकार है। मैंने इसे इस तरह से तैयार किया है कि यह पूरे देश की जनता को वेवकूफ बना सकता है। आप इससे भले ही कितने ही उम्मीदें लगा लेना लेकिन मजाल है कि यह आपका काम करे।
अच्छा भार्ई ये वाला बता, ये कैसा है? ये...। ये तो बड़ा बाजीगर है। ये आपको बताएगा कि ये आपके साथ है लेकिन होता नहीं है। ये लोकपाल खूब हो हल्ला भी करता है लेकिन इसके विरोध का कुछ असर दिखाई नहीं देता है। अरे चाचा जी इसे छोड़ो! इसे देखो ये है ठाकरे बंधुओं की तरह ठसक वाला लोकपाल। इसे मैंने जितने प्यार से बनाया यह उतना ही कठोर है। इसे अधिक्तर बातें समझमें ही नहीं आती हैं। ये लोकपाल अपनी ढपली अपना राग अलापता रहता है। ऐसे मेरे पास सभी प्रकार के लोकपाल हैं।
                हां! लेकिन चाचा जी मुझे मेरे एक लोकपाल की बड़ी चिंता होती है कि इससे कोई खरीदेगा की नहीं। क्यों क्या हुआ? इसे देखो, ये मेरा पसंदीदा लोकपाल है। यह बहुत सीधा और ईमानदार है। इसकी ईमानदारी के आगे कोई भी टिक नहीं सकता। मुझे तो लगता है कि इसकी ईमानदारी ही संकट पैदा कर रही है। ईमानदारी के कारण इसे कोई खरीदता ही नहीं है। जाने कब बिकेगा? ये लोकपाल यदि देश में कोई खरीद ले तो देखना कितना परिवर्तन आएगा। यह लोकपाल कुछ लोगों को फांसी का फंदा लग रहा है। शायद यही कारण है कि इसे कोई खरीदना नहीं चाह रहा है। अच्छा चलता हूं....!
लोकपाल ले लो..... लोकपाल........!, लोकपाल ले लो..... लोकपाल........!

                                                                                                                   सुमित 'सुजान' ग्वालियर

Saturday, November 19, 2011

मुख्यमंत्री जी आप रोज आ सकते हैं क्या?















 मुख्यमंत्री जी सादर प्रमाण!
                 आप भले ही मुझे न जानते हों लेकिन मैं आपको जरुर जानता हूं। साथ ही यह भी जानता हूं कि पांच वर्षों में एक समय ऐसा आता है जब आप हमारे बारे में जानने के लिए गली-गली घूमते हैं। मैं आज शहर की एक सड़क से गुजर रहा था। ऐसा नहीं है कि मैं पहली बार इस सड़क से गुजर रहा था। यहां मैंने देखा कि जहां कुछ समय पहले गायें-भैंस गोबर करती थीं वहां आज डाम्बरीकरण किया जा रहा है। पान की दुकानों पर चुपके से सिगरेट पीने वाले यातायात पुलिसकर्मी भी लोगों को दिशा-निर्देश देते हुए नजर आए कि आज आप से मत जाइये आगे जाएंगे तो आपको आगे तकलीफ होगी। शराफत के इन शब्दों को सुनकर मैं घबरा गया। शहर की वीरान रहने वाली सड़क पर बिजली विभाग का कर्मचारी रंग बिरंगी झालर लगाकर झूठी चमक देने की कोशिश में लगा था। अधिकारियों के पीछे कर्मचारी ऐसे दौड़ लगा रहे थे कि मानों आज ये काम नहीं किया तो समझो नौकरी गई। बड़े-बड़े आलसी कर्मचारी जो अपने ऑफिसों में कामचोरों का खिताब पा चुके हैं, बड़ी फुर्ती में काम निपटा रहे हैं। साहब ने इधर कुछ कहा नहीं कि उधर कर्मचारी जी सर.... कहकर काम निपटा देता। यह नजारा मैं उसी रास्ते की साइड पर खड़ा-खड़ा देखकर रहा था जिसको चमकाने का काम मोटी चमड़ी वाले ठेकेदार कर रहे थे। मैं इससे पहले कुछ और देखता, मैं समझ गया कि जरुर आप आने वाले होंगे। स्कूटर स्टार्ट करके आगे चला ही था कि आपके कार्यकर्ताओं द्वारा आपके शहर आगमन पर स्वागत करते हुए वह बैनर भी दिखा जो एक खूबसूरत सी इमारत की दुर्दशा कर रहा था। हां लेकिन आपके आने भर की खबर से सड़क चमचमाने लगती हैं, अधिकारी, ठेकेदार और कर्मचारी सभी दौड़ भाग करने लगते हैं। आप आएंगे तो सड़के बनेंगी, नालियां साफ होंगी, मच्छरों को भगाने के लिए आस-पास चूना डाला जाएगा, यातायात व्यस्थित रहेगा, पुलिस, अधिकारी, कर्मचारी, बाबू सतर्क रहेंगे, कार्यक्रम स्थल एक किमोमीटर के आस-पास का क्षेत्र सुन्दर दिखाई देगा, महापुरुषों की प्रतिमाएं चमकने लगेंगी।  इसलिए आपसे मेरा तो यही विनम्र निवेदन है कि क्या आप रोज हमारे शहर आ सकते हैं? रोज नहीं तो 15 दिन में एक बार, 15 दिन में नहीं तो 1 महीने में आ सकते हैं क्या? खैर छोड़ो मैं तो ऐसे ही भावुक हो गया। वो क्या है न....मुझसे अब पांच साल का इंतजार होता नहीं है।
आपका
आम नागरिक


Wednesday, November 16, 2011

छोटा छोकरा, बड़े सवाल

               बिरजू....अरे ओ बिरजू तनीक यहां तो आ। कहां से आ रहा है भाई? तेरी सूरत बता रही है तू कहीं से लड़-झगड़ कर आ रहा है।  हां! तुम ठीक कह रहे हो चौधरी जी। आपको तो पता ही है कि हमारे प्रदेश में अगले साल चुनाव हैं। जगह-जगह चुनावी सभाएं हो रही हैं। मैं भी एक सभा में गया था। नेताजी का भाषण सुनकर आ रहा हूं। बड़ा ही जबर्दस्त था। खूब तालियां बटोरी नेताजी ने। नेताजी विरोधी पार्टियों को चुनौती देते हुए जनता से कह रहे थे कि 'कब तक पंजाब में जाकर मजदूरी करोगे', 'कब तक महाराष्ट्र में जाकर भीख मांगोगे' और पता नहीं क्या-क्या।
                भाषण होने के बाद हमारा 15 साल का छोकरा टिल्लू नेताजी से मिलने की जिद कर रहा था। सो हम उसे मंच के पीछे ले गए थे। नेताजी से मुलाकात हुई। मुलाकात में हमें क्या मालूम था कि हमारा छोकरा 'छोटा मुंह बड़ी बात' कहकर नेताजी की बोलती ही बंद कर देगा। टिल्लू ने नेताजी से कहा किया कि आप इजाजत दें तो मैं आपके सवालों के जवाब आज  और अभी देना चाहता हूं। नेताजी ने हां ही कहा था कि अपना टिल्लू शुरु हो गया। टिल्लू ने कहा कि साहब जब तक केन्द्र में आपकी सरकार रहेगी तब तक हमें 'पंजाब में जाकर मजदूरी करनी पड़ेगी' और 'महाराष्ट्र में जाकर भीख मांगना पड़ेगी'। क्योंकि आपकी सरकार जिस प्रकार महंगाई को बढ़ावा देकर गरीब जनता के साथ मजाक कर रही है उसका सामना करना तो उत्तर प्रदेश में नहीं किया जा सकता है। हमारे यहां के लोग महाराष्ट्र में जाकर भीख इसलिए मांग रहे हैं क्योंकि वहां कई अमीर लोग रहते हैं, महंगाई उनके लिए भी बढ़ गई है  इसलिए अब वे 1 रुपए के 5 बजाय  भीख में देने लगे हैं। महंगाई बढऩे के  कारण यहां के  लोग अपने परिवार का गुजारा नहीं कर पा रहे हैं। इधर आपकी सरकार किसानों की जमीनों पर अपने हाथ साफ कर रही है। क्या आप जानते हैं कि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो के आँकड़े बताते हैं कि अकेले वर्ष 2010 में ही देशभर में 15,964   किसानों के आत्महत्या करने की घटनाएँ दर्ज हुई हैं। आपको पता है क्या ब्यूरो के आँकड़ों के मुताबिक वर्ष 1995 से लेकर 2010 अंत तक देश में लगभग ढाई लाख किसानों ने आत्महत्या की है। आज पेट्रोल के दाम कहां से कहां तक पहुँच गए हैं। क्या आप हमारे प्रदेश में होने वाले आतंकवादी हमलों का जवाब दे सकते हैं?
              आपके भाषण में एक बात और स्पष्ट नहीं हो रही है। आपने कहा कि 'कब तक महाराष्ट्र में जाकर भीख मांगोगे'। इसमें हमें तो समझमें आ रहा है कि आप चुनाव जीतने के बाद 'हमारे प्रदेश में ही भीख मांगने' की व्यवस्था करने वाले हैं! तो भैय्या काहे को हमें वेवकूफ बना रहे हो। तालियां बटोरने और वोट बटोरने में फर्क होता है। यदि आप वास्तव में वोट बटोरना चाहते हैं तो कृपया करके हमारी गरीब जनता की ओर भी थोड़ा ध्यान दें। टिल्लू की इन बातों पर ताली बटोरने वाले नेताजी की बोलती ही बंद हो गई। इतना कहा ही था कि पार्टी कार्यकर्ता हमें और हमारे टिल्लू को धक्के  मारते हुए बाहर ले गए। इसके बाद हमने विरोध किया तो कुछ चमचों ने हमारी पिटाई भी कर दी।
  चौधरी साहब बस इतनी सी ही बात थी। अब आप ही बताओ हमारे टिल्लू ने क्या गलत कहा था। देखो बिरजू... तुम्हारे  टिल्लू ने भले ही कुछ गलत नहीं कहा हो लेकिन शायद तुम जानते नहीं कि आजकल जो सही बोलता है उसकी कोई सुनता नहीं है, और जिसकी कोई सुनता है वह सही बात बोलता नहीं।

                                                                                                                                       सुमित 'सुजान'

Wednesday, November 9, 2011

गज़ल



तेरे चेहरे की आराईश1 का दिवाना हुआ हूँ
तुझे दीदार कराने मैं खुद आईना हुआ हूँ

है इश्क खता तो तू बेफिक्र होके कर
किसी से न डर मैं जुर्माना हुआ हूँ

तेरे होठों को छूने की  तमन्ना है बस
जी खोल के पी मैं खुद पैमाना हुआ हूँ

लुटा दे है जितनी मोहब्बत तेरे पास
मोहब्बत का मैं खुद खजाना हुआ हूँ

  
1. आराईश = सुन्दरता

गज़ल











 जिंदगी मेरी भी रोशन हो जाए
मुझे भी किसी से  मोहब्बत हो जाए

दुनिया में मोहब्बत ही मोहब्बत होगी
गर कबूल मेरी भी इबादत हो जाए

मुझे तुझसे बहुत कुछ कहना  है
बता देना जब तुझे फुर्सत हो जाए

आग वाला दरिया भी अब पार होगा
जमाने की मुझसे जो खिलाफत हो जाए

राज दिल में दबा के रक्खे हैं कई मैंने
अभी कुछ बोल दूँ तो कयामत हो जाए

मुकाबला बुज़दिली का होना है यहां
मेरे दोस्तों को बुला लो तो जबर्दस्त हो जाए

Friday, November 4, 2011

गजल

अब कोई नयी जुम्बिश1 होने वाली है
मुझे भी किसी से मोहब्बत होने वाली है

रत-दिन, सुबह-शाम सब एक होंगे
अब मेरा पता भी तुम्हारी गली होने वाली है

आ गया हूँ बिना बताये तेरे शहर में
न जाने कितनो से दुश्मनी होने वाली है

मेरी जिन्दगी का फैसला आज होना है
आज उनसे आमने-सामने बात होने वाली है

1 जुम्बिश = हरकत 

गजल

मोहब्बत का पैगाम देने आया हूँ
हर होठों को अपना नाम देने आया हूँ.

गलतियाँ हर शख्स से होती है मोहब्बत में
मैं भी कुछ गलतियाँ कर कर आया हूँ

देखना सारी रातें उजड जाएँगी
मैं उसके दिल में ऐसी आग लगाकर आया हूँ.

वह मुझसे बचने के कोशिश करता है
उसे बता दो मैं उसका दुश्मन नहीं  साया हूँ

गजल

वो रुठते रहे हम मनाते रहे
जिंदगी बस यूं ही बिताते रहे

न पूछो हमसे दर्द बेवफाई का      
मैं जब भी रोया वो मुस्कुराते रहे

खेल समझे थे शायद प्यार को
हम खेलते रहे वो खिलाते रहे

उठाया नादानी का फायदा बहुत
मैंने सब किया जो वो बताते रहे

मेरी निगाहें तो दुश्मनों पर थीं
हम दोस्तों से मात खाते रहे

गजल

मोहबत करने का तरीका आता नहीं
इसलिए हमसे कोई दिल लगाता नहीं

ए खुदा मुझे एक नजर और देना
मैं अपने दोस्तों को जान पाता नहीं

क्या पता था, जमाना इतने सितम देगा
अपनी जुबां पर तुहारा नाम कभी लाता नहीं


सोचता था पतंगे कटकर छत पर तुहारी जाती होंगी
वरना मैं कभी भी पतंगे उड़ता नहीं

ग़ज़ल

हमारे खेल बड़े ही निराले हैं
हमने आस्तीनों में साँप पाले हैं

जो पहुचें हैं उचाइयों पर जैसे-तैसे
वे सब बेसाखियों से चलने वाले हैं

सुना दो किस्से दो-चार मोहब्बत के
मेरे हालात फिर बिगडऩे वाले हैं

मेरी बातों का तुम जिक्र भी मत करना
यहां लोग मेरे नाम से जलने वाले हैं

नहीं कर सकता कोई मुकाबला मेरा
आ जाओ जितने भी मोहबत करने वाले हैं
 

गजल













जागते-जागते सारी रात बिता दी हमने
मुस्कुरा कर यह क्या कर दिया तुमने


बड़ी खवाहिशें हैं मेरे इस दिल में
पा लूंगा यदि हौंसला दिया तुमने

तुहारा साथ जिंदगभर का होगा क्या
इस सवाल को फिर टाल दिया तुमने

खूबसूरती पर इतना गुरुर ठीक नहीं
घर का आईना ही तोड़ दिया तुमने


जिंदगी क्या है तुहें क्या मालूम
मोहबत करना ही छोड़ दिया तुमने


Wednesday, November 2, 2011

आप लोगों की दी हुई,
मोहब्बत पर इठलाता हूँ।
मैं इतने दिलों में रहता हूँ,
कि घर का पता भूल जाता हूँ।।

नहीं हुनर किसी में मेरे जैसा,
मैं लोगों को ऊंगलियों पर नचाता हूँ।।

कुछ लोग मुझे फरिश्ता कहते हैं,
मैं नफरत के स्कूलों में मोहब्बत पढ़ाता हूँ।।

खुशियों के बाजार में मेरी भी दुकान सजी है,
मैं आवाज लगा-लगाकर सौदागरों को बुलाता हँू।।

नहीं यकीं तो तू भी मुझसे मिलकर देख,
देख किस तरह मैं तुझे अपना बनाता हूँ।।

सुमित 'सुजान'