Friday, November 4, 2011

ग़ज़ल

हमारे खेल बड़े ही निराले हैं
हमने आस्तीनों में साँप पाले हैं

जो पहुचें हैं उचाइयों पर जैसे-तैसे
वे सब बेसाखियों से चलने वाले हैं

सुना दो किस्से दो-चार मोहब्बत के
मेरे हालात फिर बिगडऩे वाले हैं

मेरी बातों का तुम जिक्र भी मत करना
यहां लोग मेरे नाम से जलने वाले हैं

नहीं कर सकता कोई मुकाबला मेरा
आ जाओ जितने भी मोहबत करने वाले हैं
 

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