Thursday, November 7, 2013

चुटकी


  • मंगल ग्रह पर जीवन की संभावनाओं को लेकर आजकल नेता काफी खुश हैं। उन्हें लग रहा है भ्रष्टाचार करने के लिए यह जगह काफी सुरक्षित रहेगी।
                            सुमित 'सुजान'
  •  चुनाव के समय नेताओं को सबसे ज्यादा याद डॉ. भीडराव अम्बेडकर जी की आती होगी। क्योंकि अम्बेडकर जी ने ही जनता को ऐसी ताकत दी जिसके कारण नेताओं को झुकना पड़ता है।
                            सुमित 'सुजान'
 
  • चुनाव के समय नेता पांच दिन में पूरा विधानसभा क्षेत्र घूम लेता है और पांच साल तक अपने घर में ही रहता है।

                        सुमित 'सुजान'
 
  • अच्छा हुआ मैं नेता नहीं हूँ वर्ना मुझे आदमी में आदमी नहीं, 'वोट' नज़र आता।

सुमित 'सुजान'
 
 
 
  • राहुल गांधी कह रह हैं-पूरी रोटी खाएंगे, कांग्रेस को जिताएंगे। राहुल गांधी सही कह रहे हैं क्योंकि कलमाड़ी, लालू प्रयाद यादव, जगन्नाथ मिश्रा, रशीद मसूद, ए.राजा, कनिमोझी जैसे कई नेता जेल में पूरी रोटी खा चुके हैं, कुछ तो अभी भी खा रहे हैं।
सुमित 'सुजान' 
 
  • एएसाआई की टीम ने जिंदगी भर कभी इतना काम नहीं किया होगा जितना की शोभन सरकार के सपने के कारण करना पड़ रहा है।
जय हो महाराज।
सुमित 'सुजान'
 
 
  • एक हजार टन सोने के चक्कर में जितनी नाक बाबा शोभन सरकार की कटी उससे कहीं अधिक नाक तो मीडिया ने अपनी कटवा ली।

सुमित 'सुजान'
 
 
 
  • 1000 टन सोना
  • उत्तरप्रदेश के उन्नाव जिले के डौडियाखेड़ा गांव के शोभन सरकार बाबा की भविष्यवाणी से 1000 टन सोना मिले या न मिले लेकिन पिछले एक हफ्ते से यह समाचार दिखाने पर मीडिया की इतनी कमाई तो हो गई है कि वह 1000 टन सोना खरीद सके।
जय हो शोभन सरकार....
सुमित 'सुजान'
 

Monday, October 7, 2013

सरकार



         चुनाव आ गए हैं। जिधर देखो उधर नेता अपना 'नेतापन' दिखा रहे हैं। जब कोई व्यक्ति बहुत-बहुत अच्छी बात करता है तो उसे अपनापन कहते हैं। बिल्कुल इसी तरह जब कोई नेता अच्छी बातें करता है तो वह 'नेतापन' कहलाता है। आइए आपको भी एक राजनीतिक सभा में ले चलते हैं। सभा चल रही है। नेता भाषण दे रहे हैं। आप जिस तरफ खड़े हैं, वहां पर लगा लाउडस्पीकर सीधे आपके कानों तक 'नेतापने' की बातें आप तक पहुंचा रहा है। जिंदाबाद, जिंदाबाद के नारे तो जैसे आफत लग रहे हैं। फिर भी क्या करें जब सभा में 'ट्रॉली' में भरकर लाए गए हैं तो सुनना भी मजबूरी है। 
          खैर अपने मुखरचंद जी की सभाओं में तो जमकर भीड़ जुटती है। आज भी ऐसा ही हुआ। भाषण देते हुए बोले- 'हम सत्ता में आ रहे हैं। पहले भी देश चलाया, आगे भी चलाएंगे।' बोले-'हमारे साथ रहोगे तो मजे करोगे मजे। हमने बहुत लोगों को मजे कराए हैं। कलमाड़ी को ही देख लो। आज करोड़ों में खेल रहा है। ए.राजा, कनिमोझी, नवीन जिंदल सभी ने सरकार में रहते खूब मजे किए। अब किस किस के नाम गिनाएं आपको। नाम गिनाएंगे तो सुबह हो जाएगी।'
        'हमारी पार्टी हमेशा से ही 'ए फ्रेंड इन नीड इज ए फ्रेंड इनडीड' पर विश्वास करती है। आप मुलायम सिंह को देख लो। परमाणु समझौते के वक्त उन्होंने हमारी सरकार बचाई, हमने उन्हें जांच एजेंसी से बचाया। 'माया' मैडम का भी कुछ ऐसा ही समझो। नहीं तो आज दोनों लालू यादव की तरह जेल में सजा काट रहे होते। भैया हमारी सरकार में तो हर कोई मजे करता है।' 
       'कुछ लोगों को हमारी ताकत का अंदाजा नहीं रहता। जिन्हें अंदाजा रहता है वह जानते हैं कि हम क्या-क्या करवा सकते हैं।' अण्णा हजारे और बाबा रामदेव यूं ही पंगा ले रहे हैं। क्या हो गया भूखे रहकर 'लोकपाल' आया ही नहीं। हमारी पहुंच विदेशों में भी है। साथ रहते तो काहे को लंदन हवाई अड्डे पर चैकिंग होती। यही काम पूर्व राष्ट्रपति डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम ने भी किया था। हमारी मैडम को प्रधानमंत्री बन जाने दिया होता तो किसी की क्या मजाल थी कि अमेरिका में कोई उनकी चेकिंग करता।'
        'देश में कितनी भी महंगाई क्यों न हो, हम आपको ऐश कराते रहेंगे। जब लोग हमारे साथ आते हैं तो उनके विदेशों में तक खाते खुल जाते हैं। पिछले सालों में आपने देख ही लिया ही होगा कि हमने सरकार का कोई ऐसा मंत्रालय नहीं छोड़ा है जिसमें कोई घोटाला न हुआ हो।' इसलिए आपसे अपील है कि हमारी सरकार को एक बार फिर सत्ता में लाएं और मौज मनाएं। जय हिन्द!

चुनाव आए हैं


सारे नेता अपनी गली लौट आए हैं
सुना है कि फिर से चुनाव आए हैं

जो चलते थे अब तक गर्दनें ऊंची कर
झुके हुए 'सर' आज हमने उनके पाए हैं

राजनीति में हो जाते हैं सब भले चंगे
नेताओं ने भी अपने पुत्र आजमाएं हैं

देकर दर्द दूर हो गए थे जो पहले
हाथों में आज मरहम लेके आए हैं

सारे नेता अपनी गली लौट आए हैं...
सुना है कि फिर से चुनाव आए हैं...

सुमित 'सुजान', ग्वालियर

Monday, September 2, 2013

गिरते रुपए को संभाला जाए


गिरते रुपए को संभाला जाए
फिर कोई उपाय निकाला जाए

बहुत दिन काट लिए गरीबी में
किसी गली से चुनाव निकाला जाए

नेता, बाबा, रुपया और भ्रष्टाचारी
गिरावट का इनकी हिसाब निकाला जाए

सुमित 'सुजान'

Friday, August 9, 2013

शहादत


दुनिया से जाने वाले दिलों में रहेंगे।
सिर्फ मौत नहीं हम शहादत कहेंगे,
सुलगते हुए कहते हैं हमारे ये दिल,
हम भी बदला कभी न कभी लेकर रहेंगे।।


सुमित 'सुजान'

गद्दार



गद्दार तो मौके की फिराक में था।
'शरीफ' बन गया वो, जो नकाब में था,
वह था कांटों की तरह हमारी राह में
जो दुनिया की नजरों में गुलाब में था।।


सुमित 'सुजान'

Tuesday, July 30, 2013

आज का विचार


दोस्तों मैंने भी एक सर्वे किया है। मेरे सर्वे के मुताबिक चुनाव समय से पहले हो जाएं या बाद में लुटना जनता को ही है।
सुमित 'सुजान'

Sunday, July 28, 2013

चुटकी




दिग्गी ने दिल का हाल कह दिया।
कुछ ने इसे बुरी चाल कह दिया,
कोई तो जीते इस बार चुनाव में,
इसलिए उन्हें 'टंच माल' कह दिया।।

सुमित 'सुजान'

Thursday, July 25, 2013

आज का विचार




सरकार ने दावा किया है कि देश में गरीबों की संख्या घट गई है। मैं इस बात को बिल्कुल सही मानता हूं। क्योंकि जीतने भी गरीब थे उनमें से अधिकतर लोग अब 'नेता' बन गए हैं।

                             सुमित 'सुजान'

Wednesday, April 17, 2013

आप भी समझिए कुत्ते के फायदे


  • व्यंग्य/झुनझना

        वैज्ञानिकों ने एक नया शोध किया है। शोध बड़ा शानदार है। यह शोध कई मामलों में हमारी मदद कर सकता है। राजनैतिक, पारिवारिक, सामाजिक, शैक्षणिक हर मामलों में हम इस शोध की मदद ले सकते हैं। वैज्ञानिकों ने शोध किया है कि कुत्ते आदमी के नजरिये को अच्छी तरह से समझ जाते हैं। कुत्ते आदमी के दिल की बात आसानी से समझ सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ पोर्ट्समाउथ के मनोविज्ञान विभाग की डॉक्टर जुलियाने कामिन्स्की ने इस मामले में अध्ययन किया है। खैर अपन को अध्ययन से क्या करना, अपन को तो कुत्ते की समझदारी को समझना चाहिए। हमें यह भी समझना चाहिए कि हम कुत्तों से कैसे मदद ले सकते हैं। भले ही आज आदमी वफादार न रहा हो लेकिन कुत्ते तो आज भी वफादार होते हैं। यह भी हम जानते हैं कि कुत्तों को शुरू से ही समझदार जानवार माना जाता है। लेकिन हम भारतीय अपने आपको ही सबसे ज्यादा समझदार मानते हैं। खैर मैं तो कुत्तों के उपयोग  की बात कर रहा था। मैं समझता हूं कि कुत्ते की समझदारी का उपयोग हम राजनीतिक मामलों में अधिक कर सकते हैं। उदाहरण के लिए हम प्रधानमंत्री की झगड़े को ही ले लें। अगर हर राजनीतिक पार्टियां एक-एक कुत्ता पाल लें तो काफी हद समस्या का समाधान हो सकता है। राजनीतिक पार्टियां उन्हें ही अपना सहयोगी बनाए जिनके लिए कुत्ते हां करें। कुत्ते पार्टियों के नेताओं की मन की बात समझ कर यह बता सकते हैं कि कौन सा राजनेता प्रधानमंत्री पद के लिए विवाद खड़ेगा, कौन सा नहीं। हम पार्टी में ऐसे ही कार्यकर्ताओं को कुत्तों द्वारा चयन कराएंगे जो हमारी हां में हां मिलाएं। पारिवारिक मामले में भी हम कुत्तों की मदद ले सकते हैं। कुत्ते हमें समझकर यह बता सकते हैं कि हमारे लिए कौन सा काम करना ठीक रहेगा। कई विवाद आसानी से सुलझाए जा सकते हैं। कोई बाबू अगर हमारा काम अटका रहा है तो हम कुत्ते का उपयोग करके उसकी मन की बात जानकर कुछ ले-देकर अपना काम निपटा सकते हैं। ऐसे एक नहीं कई काम हैं जिनमें हम कुत्तों की मदद लेकर अपना काम निपटा सकते हैं। मुझे तो कुत्तों की अहमियत समझ आ गई है, इसलिए मेरा मन भी एक कुत्ता पालने की सोच रहा है। अगर आप लोग भी पाल लें तो अच्छा ही होगा।

Thursday, April 11, 2013

मधुमक्खियों का निंदा प्रस्ताव


  • व्यंग्य/झुनझना
मैं अभी मधुमक्खियों का आक्रोश देखकर आ रहा हूं। बहुत नाराज हो रही थीं। जबसे युवराज राहुल गांधी ने देश को मधुमक्खी का छत्ता कहा तब से उनकी नींद उड़ी हुई है। अभी थोड़ी देर पहले ही मधुमक्खियों ने एक अधिवेशन किया जिसमें राहुल गांधी के खिलाफ निंदा प्रस्ताव भी पारित किया गया। अधिवेशन में जैसे ही एक मधुमक्खी को बोलने का जैसे ही मौका दिया गया तो उसने कहा कि 'देश के राजनेताओं ने हर मामले में सूंघना कर दिया है। अब उन्होंने हमारे छत्ते पर भी राजनीति कर दी है। उसने रानी मधुमक्खी की ओर चिंता भरे अंदाज में कहा कि मुझे तो लगता है कि बड़े-बड़े घोटालों को करने के बाद अब राजनेता हमारे छत्ते से भी कोई न कोई घोटाला न कर दें। इसके बाद दूसरी मधुमक्खी की जब बारी आई तो उसके तीखे तेवर बिल्कुल तीर की तरह चल रहे थे। उसने अपने भाषण में कहा कि भारत जैसे देश को मधुमक्खी के छत्ते की तरह बताकर कहीं इसे भी लूटने का प्रयास तो नहीं किया जा रहा। वैसे तो हमें लगता है कि सत्ता को छत्ता कहा जाना चाहिए। क्योंकि सत्ता में आते ही नेता सत्ता से चिपक जाते हैं। सत्ता छोडऩे का उनका मन ही नहीं करता है। हम मधुमक्खियां तो दूसरों के लिए मीठा-मीठा शहद बनाते हैं लेकिन ये नेता सत्ता के छत्ते में चिपककर शहद तो बनाते ही हैं और खुद ही हजम कर जाते हैं। और बदले में नफरत का रस समाज में घोल देते हैं। अब एक और मधुमक्खी बोली। ये राजनेता तो हमारे पुरखों तक पहुंच गए हैं। कल ही एक नेता कह रहा था कि मधुमक्खी देवी का अवतार हैं। पुराणों के मुताबिक मधुमक्खी को भ्रामरी देवी माना जाता है और उत्तराखंड में उनका मंदिर है। हमारे पुरखों को वैसे तो कभी पूछा नहीं अब सत्ता का लालची रस मन में घुल रहा है तो हमारे पुरखे तक ध्यान आ रहे हैं। इसलिए हम सभी एक मिल जुलकर इनकी बातों का प्रतिकार करना चाहिए। हमें चुप नहीं बैठना चाहिए। सभा के अंत में यह तय किया गया कि सभी मधुमक्खियां इस मामले को लेकर जल्द एक आंदोलन करेंगी और नेताओं से फिर कभी उनके मामले में दखलंदाजी नहीं करने की अपील करेंगी। इस रणनीति के बनते ही सारा माहौल भिन्न-भिन्न से गूंज गया मतलब की सभी ने इस प्रस्ताव को मान्य किया।

Wednesday, April 3, 2013

बढ़ रहा है जूतों का महत्व


  • व्यंग्य/झुनझना
         जूतों का महत्व हमेशा से ही रहा है। कोई यदि यह सोचता हो कि जूते का महत्व कम हो रहा है तो वे शायद गलत सोच रहे हैं। पहले यह माना जाता था कि जूतों का अविष्कार केवल पैरों को सुरक्षित रखने के लिए ही हुआ है तो यह बात भी अब गलत साबित होती जा रही है। जूतों का महत्व अब उसके इस्तेमाल पर भी निर्भर हो रहा है। कोई जूतों के इस्तेमाल से पैरों में पहनकर अपनी इज्जत बचा रहा है तो कोई इसके इस्तेमाल से किसी की इज्जत उतार रहा है। वर्तमान समय में इसका इस्तेमाल लोगों की इज्जत उतारने में भरपूर किया जा रहा है। बड़े-बड़े लोगों पर जूते की इस उपयोगियता को देखा जा चुका है। अभी हाल ही में पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ की इज्जत भी जूते के माध्यम से उतारी गई थी। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉर्ज डब्ल्यू बुश पर इराक में भी इसी वस्तु का इस्तेमाल किया गया था। सबसे पहले उन्हीं पर जूता फेंका गया था। जिसके बाद यह सिलसिला आज तक जारी है। जूते फेंकने वालों की इस बात के लिए तो तारीफ की जानी चाहिए कि उन्होंने इस काम के लिए दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश के राष्ट्रपति को चुना था। जूते के इस इस्तेमाल का शिकार हमारे देश के पूर्व गृहमंत्री एवं वर्तमान में वित्त मंत्री पी. चिदंबरम भी हो चुके हैं। इज्जत उतारने का यह काम कभी-कभी चप्पल भी करती है। इज्जत उतारने में जूते और चप्पल लगभग एक जैसे ही कार्य करते हैं। चप्पल का शिकार भारत में राष्ट्र मण्डल खेल के जरिए करोड़ों रुपए डकारने वाले सुरेश कलमाड़ी भी हो चुके हैं। जिस प्रकार आज जूते-चप्पलों का इस्तेमाल होने लगा है उसको देखकर मुझे लगता है कि इसे खेलों में भी शामिल किया जाना चाहिए। हम लोगों को अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक संघ से भी इस बात के लिए भी गुजारिश करना चाहिए कि जूते-चप्पल के इस इस्तेमाल को ओलंपिक खेलों में जल्द से जल्द शामिल किया जाना चाहिए। हमें अण्णा हजारे, अरविंद केजरीवाल और बाबा रामदेव से भी जूते के इस इस्तेमाल पर संवैधानिक अधिकार दिलाने के लिए अनशन करने के लिए निवेदन करना चाहिए। क्योंकि जूता अथवा चप्पल फेंककर मारना भी हमारी अभिव्यक्ति व्यक्त करने का एक सशक्त माध्यम तो है ही।


Thursday, March 28, 2013

सच्ची बात

  • व्यंग्य/झुनझना
          सच्ची बात हर किसी को कड़वी लगती है। हमें भी लगी है। सच्ची बातों से भ्रम भी टूट जाते हैं। ऐसे ही मेरा भी भ्रम टूट गया। मैं हमेशा सोचता था कि आदमी झूठ बोलते-बोलते नेता बन जाता है। आज नेताजी ने ही एक बात कहकर भ्रम तोड़ दिया। नेताजी कह रहे थे कि आडवाणी जी कभी झूठ नहीं बोलते हैं। नेताजी की बात मुझे थोड़ी सी बुरी लगी। मुझे समझ नहीं आया कि नेताजी उन्हें सच कहकर क्या साबित करना चाहते हैं। अगर केवल आडवाणी जी ही हमेशा सच बोलते हैं तो हम अपने आपको क्या मानें। हम क्या एक नम्बर के झूठे हैं। सच बात तो यह है कि हमें कभी सच बोलने का मौका ही नहीं दिया गया। आप लोगों ने देखा नहीं क्या करुणानिधि ने सच बोलकर सरकार से समर्थन वापस लिया तो उनके बेटे के पीछे सीबीआई वालों के हाथ फंदे की तरह दौड़ पड़े। बेनी बाबू ने भी कुछ बोल दिया तो उनकी बोलती भी बंद कर दी गई। सच्ची बात तो हमेशा से ही सभी को बुरी लगती आई है। सच्ची बात सुनकर तो अच्छे-अच्छे तिलमिला उठते हैं। भारत के रेल मंत्री भी सच्ची बातें कहकर पटरी से उतर चुके हैं। इसलिए भैया सब गोलमाल है। सच बोलते-बोलते कई लोग कुर्सी से भी हाथ धो बैठे हैं। मैं तो आम आदमी हूं। मैं तो कभी झूठ बोलता भी हूं तो पकड़ लिया जाता हूं। कई बार कोशिश की झूठ बोलने की लेकिन पकड़ा गया। खास आदमियों की बात ही कुछ ओर है। उनके झूठ को तो सच बनाने के लिए कई लोग लीपा-पोती करने लग जाते हैं। फिर वाह चाहे 2-जी स्पेक्ट्रम का मामला हो या फिर हेलीकॉप्टर घोटाले का मामला। कोई न कोई नेता सच बोलने के लिए सामने कूद जाता है। मेरे जैसे आम आदमियों को सच्ची योजनाओं से झूठा लाभ दिलाने की कोशिशें हर सरकारें करती आईं हैं। कोई हमें 'आधार' बांट रहा है तो कोई 'आकाश'। दोनों ही मामलों में मैं भी जमीन पर ही हूं। मुझे लग रहा है मैं कुछ ज्यादा ही सच्ची बातें लिख गया हूं। अब बंद करता हूं क्योंकि आपको भी मेरी बातें बुरी लग रही होंगी।

Thursday, March 21, 2013

सहमति और असहमति



व्यंग्य/झुनझना/ सुमित 'सुजान'

      आजकल देश में सहमति-असहमति का दौर चल रहा है। किसी को सहमति मिल रही है, किसी को नहीं। हां! लेकिन घर की बात कुछ और है। घर की मालकिन यानि की श्रीमती को असहमति देना किसी के बस की बात नहीं। कल ही की बात है। हमारी श्रीमती जी ने एक प्रस्ताव मुझे दिया। उस प्रस्ताव में महीने में चार बार मायके जाने के लिए मुझसे सहमति मांगी जा रही थी। लेकिन मेरी मति ने उनके प्रस्ताव पर जब अपनी असहमति जताई तो उनकी मति बिगड़ गई। वह झल्लाते हुए बोलीं-'आपकी मति ठिकाने पर है या नहीं...।' आपकी मति क्या केन्द्र सरकार से ज्यादा तेज है जो आप मेरे प्रस्ताव पर असहमति दे रहे हो। श्रीमती जी ने अपने प्रवचन जारी रखते हुए आगे कहा कि आपने हमारी सरकार से भी कुछ सीखा नहीं। सरकार जब पाकिस्तान के प्रधानमंत्री राजा परवेश अशरफ को अजमेर में जियारत करने भारत आने के लिए सहमति दे सकती है तो आप अपने आप को किस जहाँ का 'तीस मार खां..' समझ रहे हो। जब सारे कांग्रेसी मिलकर राहुल गांधी को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाने के लिए सहमति दे सकते हैं, जब सरकार 16 वर्ष की उम्र में यौन संबंध बनाने के लिए सहमति देने की तैयारी कर रही है, जब मंत्री तेल कंपनियों को मन मुताबिक दाम बढ़ाने की सहमति दे रहे हैं, जब अण्णा हजारे, अरविंद केजरीवाल को नई पार्टी बनाने के लिए सहमति दे रहे हैं, भाजपा वाले जब नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री के लिए सहमति दे रहे हैं, जब बड़े-बड़े घोटालों पर सहमति हो रही है, जब बसपा, सपा सरकार की वैशाखी बनने के लिए सहमति दे रहे हैं तो आपको मेरे प्रस्ताव क्यों आपत्ति है? आखिरकार वही हुआ जो होना था। मैंने हार मान ली। इतने प्रमाणिक तथ्यों के साथ कोई जब बात करेगा तो उसकी बात तो मानना ही पड़ेगी। पत्नी के प्रमाणिक तथ्यों के आगे मेरी मति अपने आप ठिकाने पर आ गई। नतीजा भी सामने आ गया। आज मैं घर में अकेला बैठा मक्खियां मार रहा हूं।

Wednesday, March 13, 2013

फांसी का चैनलीकरण


  • व्यंग्य/झुनझना
           आजकल मैं भारत सरकार से बहुत नाराज और समाचार चैनलों से बहुत खुश हूं। कारण यह है कि सरकार जब बलात्कार के आरोपियों को सजा देने के लिए विभिन्न संगठनों एवं आयोगों से सलाह मशविरा कर रही थी तो मैंने भी एक सुझाव भेजा था। मेरा सुझाव सरकार ने स्वीकार नहीं किया। इसलिए मैं नाराज हूं। जब पूरा देश सरकार से नाराज है तो अकेले मेरे नाराज होने से कौन सा पहाड़ टूटा पड़ेगा, शायद यही सोचकर सरकार ने मेरा सुझाव नहीं माना होगा। आप ही बताइए क्या मेरा यह सुझाव गलत था कि बलात्कारियों को केवल समाचार चैनलों के भरोसे छोड़ दो, उन्हें सजा अपने आप मिल जाएगी। हमारे चैनल वाले तरह-तरह के एपीसोड तैयार करेंगे। मानवाधिकार के ज्ञाताओं, मनोवैज्ञानिकों एवं नेताओं के साथ ऐसी-ऐसी चर्चाएं करेंगे कि आरोपी स्वयं आत्मगिलानी का शिकार होकर स्वयं आत्महत्या कर लेगा। भले ही सरकार ने मेरी न मानी हो लेकिन मेरा विश्लेषण एकदम सही निकला। आपने देखा न तिहाड़ जेल में बंद 'दामिनी' दुष्कर्म के आरोपी राम सिंह ने भी फांसी लगाकार आत्महत्या कर ली। मुझे पूरा यकीन है कि 24 घंटे चलने वाले चैनलों की कृपा से ही हमारी मनोकामना पूरी हुई है। वरना सरकार तो उसे बचाकर ही ले जाती। हां मुझे एक चिंता और है। चिंता हो रही है कि फांसी लगाने के बाद पत्रकारों ने जो सवाल उठाए हैं उससे कहीं दूसरे लोग फांसी न लगा लें। फांसी का समाचार मिलते ही पत्रकार तिहाड़ जेल पहुंचे और सुरक्षा व्यवस्था पर कई सवाल खड़े किए। पत्रकार का सवाल था कि जब राम सिंह ने दो दिन पहले अपनी दरी फाड़ी थी तो सुरक्षा प्रहरियों को इस बात का पता क्यों नहीं लगा? दूसरा सवाल था कि जब राम सिंह ने अपनी बैरक में फांसी लगाई तो उसके साथ बंद दो और कैदियों को भनक क्यों नहीं लगी? बैरक में सीसीटीवी कैमरें क्यों नहीं लगाए गए थे? सच बताऊं यदि समाचार चैनलों ने इन सवालों को दो-चार दिन तक और उठाया तो कहीं और लोग आत्मगिलानी में आकर आत्महत्या न कर लें। राम सिंह के साथ कैद अन्य दो कैदी कहीं इस बात को लेकर आत्मगिलानी से न भर जाएं कि वह उन्हें बचा नहीं सके, जेल के सुरक्षा प्रहरी एवं महानिदेशक ये सोचकर आत्महत्या न कर लें कि हम राम सिंह को ठीक ढंग से सुरक्षा नहीं दे सके। न्यायाधीश यह सोचकर फांसी पर न झूल जाएं कि मैं इंसाफ ही नहीं कर पाया और आरोपी चल बसा। मेरी सबसे बड़ी चिंता गृहमंत्री को लेकर है। गृहमंत्री शिंदे जी भी मान रहे हैं कि कहीं न कहीं चूक हुई है। कहीं वे भी चूक से व्यथित होकर फांसी पर न झूल जाएं। खैर इन चिंताओं के बीच मेरा सुझाव वही रहेगा, जो पहले था। बड़े से बड़े आरोपी को यदि सख्त से सख्त सजा दिलानी हो या फिर फांसी पर लटकवाना हो तो पूरा मामला चैनल वालों को थमा दो, सब ठीक हो जाएगा। क्योंकि चैनलीकरण के इस दौर में पीडि़तों को यदि जल्दी न्याय दिलवाना है तो यह तो करना ही पड़ेगा।

Wednesday, March 6, 2013

'हमारा भारत-प्यारा भारत'


  • व्यंग्य/झुनझना
        हमारे रामदीन जी का पढ़ाने के मामले में कोई जवाब नहीं है। जैसा समय चलता है वैसा पढ़ाते हैं। जैसे कुछ लोग समय के हिसाब से अपने आपको बदल लेते हैं ऐसे ही कुछ लोगों में शामिल हैं हमारे रामदीन जी। कल ही मैं इनके पास गया तो स्कूल में बच्चों को 'हमारा भारत-प्यारा भारत' विषय पर एक निबंध रचना सुना रहे थे। शायद उन्होंने खुद लिखा था। वरना आजकल तो लोग दूसरे के लिखे को अपना बताने लगते हैं। रामदीन जी की बातों को मैं भी ध्यान से सुन रहा था। उन्होंने पढ़ाना शुरु किया-'भारत एक भ्रष्टाचार प्रधान देश है।' यहां समय-समय पर तरह-तरह के घोटाले होते रहते हैं। कुछ घोटाले भ्रष्टाचारियों के जीवित रहते उजागर होते हैं तो कुछ के मरणोपरांत। भारत ही दुनिया में एक ऐसा एकमात्र देश है जहां जमीन के भीतर (कोयला घोटाला) से लेकर आसमान तक (हेलीकॉप्टर घोटाला) कई घोटालों को अंजाम दिया जा चुका है। हमारे देश में तरंगों को बेचने तक में वसूली की जाती है। भारत पहले लोकतांत्रिक देश था लेकिन अब भोगतांत्रिक बन गया है। यहां मुख्यमंत्री, मंत्री, अफसर, दामाद, बाप-बेटे, पति-पत्नी मिलकर देश को लूटने में कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। भारत आर्थिक दृष्टि से भी सम्पन्न राष्ट्र है। गरीबी-भुखमरी जैसे मुद्दों पर हमें बदनाम करने की कोशिश भले ही की जाती हों लेकिन सारी दुनिया जानती है कि विदेशी बैंकों में हमारे कुछ भाइयो-बहिनों के 500 अरब डॉलर पूरी तरह से सुरक्षित रखे हुए हैं। यह हमारी उदारता है कि हम उस धन को भारत में लाकर विदेशों में आर्थिक संकट पैदा नहीं करना चाहते। ऐसी एक उदारता का परिचय अभी हमने एक बार फिर दिया। ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने अपनी भारत यात्रा के दौरान जब हमारे कोहीनूर को लौटाने से मना कर दिया तो हमने ज्यादा दबाव भी नहीं बनाया। शायद हमसे ज्यादा जरुरत उनको हो। अब ये बात अलग है कि हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की दुर्लभ वस्तुओं की विदेशों में होने वाली नीलामी को हम देखते रहते हैं। हमारे देश में विभिन्न धर्मों के लोग मिल-जुलकर बिल्कुल गठबंधन सरकारों की तरह रहते हैं। भारत उत्सवधर्मी देश भी कहलाता है। जब भी हमारे देश में आतंकवादी, दुष्कर्म, दुर्घटना जैसी घटनाएं होती हैं तब देश की जनता एकजुट होकर मोमबत्ती जुलूस निकालने लगती है। कुछ दिनों तक पूरे देश में इस तरह के उत्सव मनाए जाते हैं उसके बाद सभी घटनाओं को भूल जाते हैं। इसलिए तो कहते हैं 'हमारा भारत-प्यारा भारत'। निबंध पूरा होते ही रामदीन जी बोले-'अच्छा बच्चों आज के लिए बस इतना ही कल फिर मिलेंगे।'
  • सुमित 'सुजान'

       

Wednesday, February 27, 2013

नेतागिरी की ओलावृष्टि


          अखबार में ओलावृष्टि का समाचार देखते ही क्षेत्रीय विधायक चंदन जी बाहर से दु:खी होते हुए और भीतर से मुस्कुराते हुए बोले-'ओ! नो। सो सेड। बड़ा बुरा हुआ। बेचारे किसानों का क्या होगा? उन पर आफत का पहाड़ आकर टूट पड़ा। इतनी भयंकर ओलावृष्टि तो मैंने अपने जीवन में कभी नहीं देखी।' मैं भी वहीं खड़ा था। नेताजी की सूरत बता रही थी कि वह कितने दु:खी है। तभी इतने में नेताजी ने अपने कुछ चेले चपाटों को फोन किया और बोले-'अबे चंगुओं...थोड़ा दु:खड़ा व्यक्त करने जाना है, जल्द आ जाओ फिर चलते हैं।' थोड़ी देर में ही विधायक जी अपने दल बल के साथ नजदीक के एक किसान हरिराम के खेत में पहुंच गए। यहां पहुंचते ही अपनी सूरत पर और अधिक दुखावटी भाव ले आए, फिर  फसलों को देखते हुए बोले-'अरे! राम-राम। हरिराम, यह सरसो की फसल तो सब बर्बाद हो गई।' ओले कितने बड़े थे? विधायक जी के इस सवाल पर हरिराम एक तशले में रखे ओले दिखाते हुए बोला-'ये देखिये नेताजी...।' विधायक जी बोले-'अरे वाह! चार दिन पहले बारिश हुई थी और आपके पास ओले अभी तक रखे हुए हैं। बहुत आश्चर्य की बात है' हरिराम-'नेताजी आश्चर्य की कोई बात नहीं है। बल्कि आश्चर्य की बात तो यह है कि आप सबसे आखिरी में आए हैं। हमारे पड़ौसी और अधिकारी तो बारिश के अगले दिन ही आ गए थे। हां! मुझे आप पर पूरा विश्वास था कि आप जरुर आएंगे। आपके आने का ख्याल मुझे बार-बार आ रहा था। इसलिए मैंने ये ओले संभाल कर रख लिए थे। अधिकारियों को एक बार ओले नहीं दिखे तो चल भी जाता है। अधिकारी तो बिना आए भी हमारे नुकसान को नोट कर लेते हैं। बस हमें उनके लिए 'नोट' करना पड़ते हैं। लेकिन आपके सामने ओले आना बहुत जरुरी होता है। आपकी नेतागिरी के कारण ही तो हमें मुआवजा मिलने की उम्मीद बनी रहती है। अलग-अलग पार्टी के आप जैसे समाजसेवियों के आने से हमारी आवाज का भी ख्याल हो जाता है। वरना आजकल कहां सरकारें हमारी ओर देखती हैं।' दौरा करने के बाद नेताजी बड़े प्रसन्न हुए। घर आए तो उन्होंने सबसे पहले वह अखबार उठाया जिसकों पढ़कर वह हरिराम के खेत में पहुंचे थे। अखबार देखकर नेताजी जी फिर मुस्कुराए और बोले-'अरे यार! यह चार दिन पुराना अखबार मेरी टेबिल पर किसने रख दिया था। आगे से ऐसा नहीं होना चाहिए।'

Wednesday, February 20, 2013

सेंसर बोर्ड हाय-हाय!

              
व्यंग्य/झुनझना
सुमित 'सुजान'

           सेंसर बोर्ड हाय-हाय! सेंसर बोर्ड हाय-हाय! सेंसर बोर्ड की मनमानी नहीं चलेगी-नहीं चलेगी! मेरे कानों में तो ये नारे अभी से ही गंूजने लगे हैं। जबसे सेंसर बोर्ड  ने 'आयटम गानों' पर प्रतिबंध लगाने का फैसला किया है तबसे पता नहीं क्या हो गया है। मुझे तो मुन्नी, शीला, शन्नो, राखी, बानो, बिजली जैसे बेचारी अदाकाराओं की चिंता होने लगी है। कल ही मुन्नी से मुलाकात हुई थी तो बेचारी बड़ी दु:खी थी। मुन्नी बता रही थी कि हम लोग कितनी मेहनत से तो 'आयटम गानों' की तैयारी करते हैं, उस पर सेंसर बोर्ड वाले अडंगा लगात देते हैं। मुन्नी ने बताया कि उनकी कुछ साथियों ने मिलकर 'ए.जी.ए.' (आयटम गल्र्स ऑर्गनाइजेशन) का गठन कर लिया है। बस कुछ दिनों बाद आंदोलन शुरू हो जाएंगे। मेरे द्वारा ए.जी.ए. के गठन का सवाल पूछते ही वह तपाक से बोली जब अण्णा हजारे, स्वामी रामदेव और अरविंद केजरीवाल जैसे लोग अपने-अपने संगठन बना सकते हैं तो हम क्यों नहीं बना सकते? बातचीत को आगे बढ़ाते हुए मुन्नी बोली कि हमारा आंदोलन सेंसर बोर्ड को झुकाए बिना रुकेगा नहीं। अण्णा हजारे के भूखे रहने से भले ही 'जनलोकपाल बिल' न आया हो लेकिन जब हम लोग ठुमके लगाना बंद कर देंगे तो देश में भूचाल आ जाएगा। बॉलीवुड में सन्नाटा पसर जाएगा। लोग फिल्में देखना ही बंद कर देंगे। हमने तो पर्चे भी छपवा लिए हैं। आपको क्या मालूम फिल्मों में होने वाले 'आयटम गानों' के कितने फायदे हैं। हमारी वजह से बॉलीवुड करोड़ो रुपए कमा रहा है। फिल्में सुपर-डुपर हिट हो जाती हैं। पहले लोगों को हमारे ठुमके और अदाओं को देखने के लिए दूर-दूर तक जाना पड़ता था लेकिन आजकल तो हम सीधे घरों तक पहुंच जाते हैं। हमारे ठुमकों के साथ-साथ कंपनियां अपने उत्पादों की मार्केटिंग भी आसानी से कर सकती हैं। आपने देखा नहीं क्या हमने तो 'झण्डु बाम', 'फेवीकॉल', 'चिलम' और 'बीड़ी' जैसे उत्पादों का प्रचार भी बड़ी चतुराई से किया है। देखो ना कितनी नाइंसाफी है इतने फायदे होने के बाद भी हमारी भावनाओं को कुचला जा रहा है। हम ऐसा नहीं होने देंगे। सेंसर बोर्ड हाय-हाय!

Wednesday, February 13, 2013

मैं, सरकार और आतंकवादी


 व्यंग्य/झुनझुना
कल ऑफिस से लौटते वक्त एक आतंकवादी रास्ते में मिल गया। बेचारा काफी घबराया हुआ था। वैसे तो आतंकवादियों को देखकर सबकी सिट्टी-बिट्टी गुम हो जाती है लेकिन इस बार उसकी गुम थी। उसकी घबराहट से मेरा मनोबल बढ़ रहा था। अपुन भी पूरे तैश में आ गए थे। उसकी आंखें गीली और हमारी लाल हो रही थीं। आखिरकार हमारी सहृदयता ने जवाब दे दिया। मैंने उसकी आंखों से टपक रहे आंसुओं को पहले तो पोंछा, फिर उससे रोने का कारण पूछा! बेचारे आतंकवादी ने अपनी व्यथा को मुझसे बांटते हुए कहा कि आप लोगों के कारण हम अब घबराने लगे हैं। वह बोला हम आतंकवादी भले ही कितने ही सरकार के खिलाफ चले जाएं, कितना ही बड़ा धमाका कर दें, कितने ही निर्दोष लोगों को मौत की नींद सुला दें लेकिन हमें कुछ नहीं होता था। लेकिन जबसे आप लोगों ने सरकार के खिलाफ आवाज उठाना शुरू कर दी है तबसे सरकार हमें ही निशाना बनाने लगी है। आतंकवादी रोते हुए बोला 'सरकार पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस के दाम तो कम कर नहीं रही लेकिन हमारी संख्या कम करती जा रही है। सरकार ने जब रसोई गैस के दाम बढ़ाए तो  उन्होंने आपका ध्यान भटकाने के लिए हमारे साथी कसाब को फांसी पर लटका दिया। अब जब आप लोग जनलोकपाल बिल और बलात्कार के मामले में कानून को बदलने सड़क पर आए तो सरकार ने अफजल को भी फांसी पर लटका दिया।' आतंकवादी बोला- 'पहले सरकार हम पर कितना रहम खाती थी, हम जो चाहते थे हमें मिल जाता था। बिल्कुल दामाद की तरह हमारी खातिरदारी हो रही थी। हमें सरकार पर बहुत भरोसा हो गया था। हमने भरोसे के कारण सैकड़ों साथियों को यहां बुला दिया था। हमने तो मलिक जैसे दो मुखौटे वाले कई 'मलिक' भी भारत में पैदा कर दिए हैं। अब हमें समझ नहीं आ रहा है कि हम किधर जाएं क्योंकि सरकार की नीतियां तो ऐसी हैं कि महंगाई का ग्राफ नीचे जाएगा नहीं, हमारे साथियों का ग्राफ कम होता जा रहा है।' आतंकवादी बहुत दु:खी था। घर पहुंचने के बाद मैंने सोचा कितनी अजीब बात है कि सरकार के हथकंडे वह आतंकवादी तो जानता है लेकिन हमें समझने में इतनी देर क्यों लग रही है...!!!

Friday, February 8, 2013

उल्लूपने की बातें


 व्यंग्य/झुनझुना

             ये वैज्ञानिक भी खूब होते हैं। लो अब उल्लुओं पर ही शोध कर लिया। खबर है कि वैज्ञानिकों ने उल्लू के सिर घुमाने के रहस्य का पता लगा लिया है। वैज्ञानिकों ने इस बात का पता लगा लिया है कि रात के अंधेरे में उल्लू अपना सिर बगैर किसी दिक्कत के कैसे घुमा लेते हैं। वैज्ञानिकों ने उल्लुओं की एंजियोग्राफी और सीटी स्कैन करके उल्लुओं के इस रहस्य का पता लगाया है। भई वैज्ञानिक तो वैज्ञानिक होते हैं। शोध करना उनका काम है। अपुन तो उनके आगे खुद उल्लू हैं। उल्लू में कई विशेषताएं होती हैं। सबसे बड़ी विशेषता तो यह है कि ये आपको हर शाख पर बैठा हुआ मिल जाएगा। आपने सुना भी होगा...'बर्बाद गुलिस्तां करने को, सिर्फ एक ही उल्लू काफी है; हर शाख पर उल्लू बैठा है, अंजामे गुलिस्तां क्या होगा।' उल्लू कहीं बुरा नहीं मान जाए इसलिए भगवान ने भी काफी सोच समझकर उसे लक्ष्मी जी का वहां बनाया है। लक्ष्मी जी उल्लू पर सवार होती हैं। हम भी उल्लू बनने की कोशिश करते रहे लेकिन कम्बखत मास्साबों ने हमें उल्लू नहीं बनने दिया। आज हम उल्लू होते तो लक्ष्मी जी के लिए इतना तरसना नहीं पड़ता। कम से कम 'उल्लू का पट्ठा' ही बन जाते तो कुछ तो बेहतर स्थिति होती। क्योंकि आजकल तो 'उल्लू के पट्ठे' भी काफी तरक्की कर रहे हैं। उल्लू का पट्ठा कहते-कहते सबने टाईम पास तो किया लेकिन किसी ने न तो उल्लू बनने दिया और न ही पट्ठा। हां लेकिन मेरे उल्लू मन में विद्यमान उल्लूपन कुछ ऊथल-पुथल जरुर मचा रहा है। मेरा उल्लूपन इस बात को जानने के लिए मचल रहा है कि क्या वैज्ञानिक इस रहस्य का पता लगा सकते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री जी का सिर मैडम सोनिया की हां में हां क्यों मिलाता है? क्या वैज्ञानिक इस रहस्य का पता लगा सकते हैं कि बाबा राहुल की चमचागिरी करने वाले कांग्रेसियों के सिर किसी भी बात को लेकर न-नुकुर क्यों नहीं करते हैं? क्या वैज्ञानिक इस बात का पता लगा सकते हैं कि हमारे नेताओं के दिमाग में ऐसा कौन सा तत्व आ जाता है जिसके कारण उन्हें हिन्दुओं में आतंकवादी और आतंकियों में राष्ट्रवादी नजर आते हैं। वैज्ञानिक जरा इस बात पर शोध करके पता लगाएं कि देश की रक्षा करने वाले शहीदों के सिर जब सरहद पर काटे जाते हैं तो हमारे नेताओं के सिर शर्म से झुकते क्यों नहीं हैं? भ्रष्टाचार, हत्या, घोटोले जैसे मामलों में जब नेता और अधिकारियों को जेल भेजा जाता है तो उनके सिर उठे हुए कैसे रहते हैं? अब बाकी बातें आप भी सोचिए, मेरे उल्लूपने की बातों पर आप अपना सिर क्यों हिला रहे हैं!!!

Friday, February 1, 2013

आम आदमी का ट्विट


        लो अब देश के 'रतन' टाटा जी ने भी ट्विट कर दिया। ट्विट करते हुए टाटा कह रहे हैं कि जबसे उन्होंने अपने काम से 'टाटा' (सेवानिवृत्त) किया है तब से उनकी जिन्दगी मजे में बीत रही है। उनका अधिकतर समय अपने पालतू कुत्तों के साथ बीत रहा है। भई आजकल जिसे देखो ट्विट कर देता है। ये ट्विट करने का फंडा जिस प्रकार से चल निकला है उससे मुझे भविष्य का अनोखा भारत दिखाई दे रहा है। मान लो कि 125 करोड़ की आबादी वाले इस देश में सभी ट्विट और फेसबुक पर कमेन्ट करने लगें तो कैसा होगा। सबकुछ टेक्निकल हो जायेगा। रिश्वत ट्विट करके मांगी जाएगी। न्यायलय भी ट्विट करके अपने फैसले देंगे। सरकारें भी ट्विट करके अपनी योजनायें बता देंगी। शिक्षक और छात्र ट्विट करके ज्ञान का आदान-प्रदान करेंगे। पाकिस्तान के सैनिक जब घिनौना कृत्य कर हमारे सैनिकों को मौत के घात उतरेंगे तब हमारे देश के राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री, गृहमंत्री, विदेशमंत्री ट्विट कर कड़ी चेतावानी देंगे। हमारे देश में जब भी कोई आतंकवादी वारदात होगी तब नेता ट्विटर पर ही शोक व्यक्त करके चेतावनी देंगे। सरकार सिलेंडर, पेट्रोल, डीज़ल, केरोसिन के दाम बढाने की घोषणा भी ट्विट करके दे देगी। हमारे मुलायम सिंह, मायावती, शिबू सोरेन जैसे नेता ट्विटर सन्देश देकर सरकार के लिए संकट खड़ा कर देंगे, उन्हें बार-बार दिल्ली आने की जरुरत भी नहीं होगी। हाँ सबसे ज्यादा कष्ट फिर आम आदमी को ही होगा। बेचारा जैसे ही सरकार या व्यवस्था के खिलाफ कुछ भी ट्विट करेगा तो उसे जेल में ठूस दिया जायेगा। बेचारा आम आदमी।

Wednesday, January 23, 2013

हमारा चिंतन



                                                                 व्यंग्य/झुनझुना
         बेटा होने पर खुशी होती है लेकिन हमारे रामदीन जी तो सुबह से ही चिंता में डूबे हुए थे। आजकल जयपुर में रहते-रहते सबकी हालत कांगे्रस की तरह हो गई है। बात-बात के लिए चिंतन होने लगता है। खैर हमारे रामदीन जी की चिंता अपने बेटे के नामकरण के लिए थी। रामदीन जी मेरे पास आए और बोले-'यार... बेटा तो हो गया लेकिन इसका क्या नाम रखना चाहिए, आप कुछ बता सकते हो क्या?' मैंने कहा- 'देखो भाई रामदीन। नामकरण ऐसे एकदम नहीं होता। आप और मैं चिंतन करते हैं शायद कोई नाम निकल आए।' 'हां यह ठीक रहेगा'-रामदीन जी बोले।
        थोड़ी देर चिंता करने के बाद मैंने रामदीन जी से कहा- 'इसका नाम 'मनमोहन रख दो'। 'मनमोहन' नाम सुनते ही रामदीन जी हंसते हुए बोले- 'अरे नहीं...नहीं...।' यह नाम नहीं रखना। इस नाम के व्यक्ति बड़े पद पर पहुंचकर एकदम 'मौन' हो जाते हैं। खुद कोई निर्णय नहीं ले पाते, हमेशा किसी न किसी के इशारों पर चलते हैं। इसलिए इसके अलावा कोई दूसरा नाम सोचिए हुजूर...।
       इसके बाद मुझे एक नाम और सूझा 'ओमप्रकाश'। तब रामदीन जी बोले-'यार... आपको मेरे बेटे को जेल में भेजना है क्या। 'ओमप्रकाश' नाम के व्यक्तियों का वैसे ही समय ठीक नहीं चल रहा है। बड़े होकर कहीं कोई घोटाला कर दिया तो सीधे जेल में ही जाना पड़ेगा। कुछ और सोचो।'
        अब एक नाम रामदीन जी ने सुझाया, इसका नाम 'नरेन्द्र' रख देते हैं।  मैंने कहा-'देखो भाई 'नरेन्द्र' नाम तो ठीक है लेकिन इसकी तरक्की कई लोगों से देखी नहीं जाती है। अपने ही लोग इसे आगे बढऩे से रोकते हैं। बेचारे की पूरी जिंदगी अपने ही लोगों से जूझते-जूझते कट जाएगी, इसलिए दूसरे नाम पर विचार करना ठीक रहेगा।'
         'मुलायम' कैसा रहेगा'-मैंने एक और नाम ध्यान में लाया। रामदीन जी ने इसे भी मना करते हुए कहा-'इस नाम के व्यक्ति नाम के विपरीत आचरण करते हैं। 'मुलायम' नाम का व्यक्ति हमेशा कहता कुछ है और करता कुछ है। इसके मन में हमेशा किसी न किसी तरह का लालच रहता है।'
         फिर अचानक हम दोनों ने एक ही समय पर एक ही नाम बोला-'राहुल'! रामदीन जी बोले-'हां यार... यह नाम एकदम ठीक रहेगा। इस नाम वाले व्यक्ति के रास्ते में कोई रुकावट नहीं आती। अपनी नौटंकियों और चालाकियों से लोगों की भावनाओं से खेलता हुआ तरक्की पाता जाता है। इससे भी महत्वपूर्ण बात कभी-कभी तो 'सत्ता का जहर' भी पीने का मौका आया तो वह भी पी लेगा।'
       आखिरकार हमारा चिंतन भी कांग्रेस की तरह 'राहुल' पर आकर ही समाप्त हुआ। चिंतन करने से चिंता समाप्त हो गई। यह हमने तो अनुभव करने देख लिया, आप भी कर सकते हैं।

Wednesday, January 16, 2013

नेता और आम आदमी

                                                          
''पता है हम पाकिस्तान के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने जा रहे हैं। इस बार तो हम छोड़ेंगे ही नहीं, देखना आप...!''
''अच्छा तो क्या करेंगे?''
''बस आप देखते जाइए...।''
''हां! देख ही तो रहे हैं।''
नेता और एक आम आदमी के बीच हो रही इस तरह की बातचीत सुनी तो मेरे कानों ने मेरी ही नहीं सुनी और लग गए बातें सुनने।
आम आदमी-'जबसे हमने पाकिस्तान सैनिकों द्वारा हमारे सैनिक के सिर काटने की घटना सुनी तो मेरा तो खून ही खौल गया। 
नेता- 'अरे वाह! आपका खून तो काफी ठीक है, हमारा तो अभी तक नहीं खौला।'
आम आदमी-'आप कबसे कड़ी कार्रवाई करने जा रहे हैं?'
नेता-'आप क्या कह रहे हैं बॉस...!! हमने तो घटना वाले दिन से ही कार्रवाई शुरू कर दी थी। हमने अपने पूरे मंत्रालय को पाकिस्तान के खिलाफ सबूत जुटाने के निर्देष जारी कर दिए थे। जल्दी ही फाइल बनकर आने वाली है, फिर देखना आप!'
आम आदमी-'अच्छा फाइल बनने के बाद क्या करोगे?'
नेता-'एक बार फाइल बन जाएगी तब हम इसे देश की जनता के सामने रखेंगे। कहेंगे कि हम खाली हाथ नहीं बैठे हैं। हम इस मामले में चुप बैठने वाले नहीं हैं। हम मामले को अमेरीका तक ले जाएंगे। अमेरीका को बताएंगे कि हमारे सबूत पुख्ता हैं कि हमारे सैनिकों को पाकिस्तान ने मारा है।' हमारे सैनिकों का कोई दोष नहीं है, असली दोष पाकिस्तान के सैनिकों का है।
आम आदमी-'अच्छा! इससे क्या होगा?'
नेता-'अरे भाई इससे होना जाना तो कुछ नहीं है लेकिन करना पड़ता है। कहीं आपको यह न लगे कि हम कुछ नहीं कर रहे हैं। क्या है कि आज आप लोग काफी समझदार हो गए हैं। बात-बात पर आंदोलन करना सीख गए हो। अभी दिल्ली में बलात्कारियों को फांसी देने के लिए आंदोलन कर दिया था। बड़ी मुश्किल से पीछा छुड़ाया है।'
आम आदमी-'आप एक बार आक्रमण करके पाकिस्तान को हरा क्यों नहीं देते?'
नेता-'देखिए भाई...। हम पाकिस्तान को धूल चटाने का प्रयास समय-समय पर करते रहते हैं। हमने पिछले दिनों ही एक क्रिकेट श्रृंखला का आयोजन किया था। क्रिकेट में तो हम हार गए लेकिन हम जल्दी ही हॉकी का मैच कराने वालेे हैं। देखना हॉकी में तो जरूर धूल चटा देंगे।'
आम आदमी-'अच्छा छोड़ो! आप पाकिस्तान से संबंध क्यों नहीं तोड़ देते?'
नेता-'यार तुम सवाल बहुत करते हो। संबंध ऐसे नहीं टूटते हैं। संबंध तोडऩे से पहले दो-चार बार चेतावनी देना पड़ती है।'
आम आदमी-'लेकिन आप चेतावनी तो कई बार दे चुके हैं!'
नेता-'अरे वो सारी चेवातनी तो मुम्बई हमले के संबंध में दी थी। अब यह नया मामला है। अब हम नए तरीके से चेतावनी दे रहे हैं।'
आद आदमी-'अच्छा! तो यह बताइए कि शहीदों के परिवारों को न्याय कब तक मिल जाएगा।'
नेता-'देखो मुझे न्याय का तो पता नहीं लेकिन हम शहीदों के परिवारों को वीरता पुरस्कार जरूर देने जा रहे हैं।'

Wednesday, January 9, 2013

धन्यवाद गृहमंत्री जी...!

      
  किसी भी घटना पर कोई कदम उठाना अपने आप में बड़ी बात होती है। कड़े कदम उठाना तो और भी बड़ी बात। क्योंकि हमारे देश में कड़े कदम उठाने से पहले व्यक्ति, धर्म, जाति का ख्याल रखना पड़ता है। कड़े बयान तो चाहे आप कभी भी दिलवा लो, लेकिन कड़े कदम उठाने के लिए अनुमति लेना ही पड़ती है। कहीं मैडम नाराज हो गईं तो! कई बार तो अनुमति लेने में इतने वर्ष बीत जाते हैं कि लोग उस घटना को ही भूल जाते हैं कि यह कड़ा कदम किस घटना के लिए उठाया गया है। हमारे गृहमंत्री भी महिलाओं एवं कमजोर तबके के लोगों के खिलाफ होने वाले अत्याचारों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाने की बात कह रहे हैं। गृहमंत्री जी कह रहे हैं कि भारतीय सभ्यता बताती है कि हर महिला माता, पत्नी, बहन और बेटी होती है। यह बात बिल्कुल स्वीकार्य नहीं है कि हमारे समाज में महिलाएं डर के साए में रहे। समाज के सभी लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित करना सरकार का काम है। इस बात के लिए तो वास्तव में गृहमंत्री जी को बहुत-बहुत धन्यवाद देने की हार्दिक इच्छा हो रही है। क्योंकि उन्होंने याद दिलाया कि समाज के सभी लोगों की सुरक्षा करना सरकार का काम है। वरना मैं तो यह भूल ही गया था। आजकल देश में जिस प्रकार से केन्द्र में सरकार कार्य कर रही है उससे मैं तो यह समझ रहा था कि सरकार सिर्फ घोटाला करने के लिए होती हैं। मैं समझता था कि सरकार जन आंदोलनों को कुचलने के लिए होती हैं। ऐसा लगता था कि सरकार केवल उद्योगपतियों के इशारों पर चलती है। मैं समझता था कि सरकार केवल अपने तरीके से सीबीआई और लोकायुक्तों का प्रयोग करने के लिए होती है। मैं तो समझता था कि सरकार का काम सोशल नेटवर्किंग वेबसाइट पर अपने विचार व्यक्त करने वाले लोगों को गिरफ्तार करना होता है। मैं समझता था कि सरकार का काम राष्ट्रवादी संगठनों को सांम्प्रदायिक बताकर देश की एकता और अखण्डता को प्रभावित करना होता है। हम तो समझते थे कि सरकार रक्षा बजट में 10 हजार करोड़ रुपए की कटौती करने के लिए होती हैं। हम तो समझते थे कि सरकार दुश्मनों के साथ क्रिकेट खेलने के लिए होती है। अच्छा हुआ गृहमंत्री जी ने मेरे भ्रम को जल्दी दूर कर दिया। मैं लोगों से यूं ही उलझ जाया करता था। अब मैं उनसे बात तो कर सकता हूं कि देखो सरकार का काम हमारी सुरक्षा करना है। कभी-कभी अपवाद हो जाता है जब पुलिस सुरक्षा करने के बजाए थाने की सीमा विवाद के चक्कर में उलझ जाती है और पीडि़त दुनिया से चल बसता है। कभी-कभी अपवाद हो जाता है जब सरकार पर कार्रवाई के लिए दबाव बनाने के लिए प्रदर्शन करना पड़ता है। धन्यवाद गृहमंत्री जी...!

Wednesday, January 2, 2013

हमें शर्म आई क्या?

देश संभालना, घर संभालने से कई गुना आसान है। इस बात का एहसास आज हमारे पड़ोसी नेताजी को हुआ। पूरे देश में जिस तरह मायूसी का माहौल है, ठीक उसी प्रकार नेताजी की पत्नी का चेहरा भी सुबह से ही मायूस था। इसी बीच पत्नी झल्लाते हुए बोली-'आपको शर्म तो आती नहीं। कम से कम हमारा ख्याल तो रख लिया करो। पूरे मोहल्ले में नाक कटवा दी आपने। सुबह से ही ताने सुनने को मिल रहे हैं। सुबह ही गुप्ता जी की मिसेज कह रही थीं कि दुष्कर्म की पीडि़त 'दामिनी' ने दम तोड़ दिया है और नेताजी बिल्कुल भी शर्मिंदा नहीं हैं। कम से कम ऐसे समय में तो अपने 'घडिय़ाली आंसुओं' का इस्तेमाल कर लिया कीजिए।' पत्नी की झल्लाहट के बाद नेताजी हंस दिए। हंसते हुए बोले-'अरे भाग्यवान' तुम भी ना... जरा-जरा सी बात को दिल पर ले लेती हो। मैंने जिस दिन से यह चोला धारण किया है तब से शर्म बची ही कहां है! अब शर्म बाजार में तो मिलती नहीं कि खरीद लाऊं। वैसे भी हम ऐसे शर्मिंदगी महसूस करने लगें तो फिर चलने लगीं सरकारें! अगर हमें शर्म आती तो हम कब का जनलोकपाल बिल ले आते। संसद में हम जनलोकपाल बिल को क्यों फाड़ते? तुम ही बताओ! हमारे साथियों ने टू-जी स्पेक्ट्रम आवंटन, कोयला खदान आवंटन, राष्ट्र मण्डल खेल, आदर्श सोसायटी जैसे कितने घोटाले किए लेकिन किसी को शर्म आई क्या? हमारे साथी तो एनजीओ बनाकर विकलांगों की वैशाखियों तक के करोड़ों रुपए डकार गए, कभी शर्म आई क्या? चलो काला धन को ही ले लो। बेचारे बाबा कब से कह रहे हैं कि देश में काला धन वापस आना चाहिए। हम लाए क्या? उल्टा हमने रामलीला मैदान को जलियावाला बाग बना दिया। हमें शर्म आई क्या? आतंकवाद के खिलाफ कितने कड़े कदम उठाए लेकिन पाकिस्तान के मंत्री भारत आए तो हमने उन्हें पलकों पर बैठाया, क्रिकेट मैच हो रहे हैं। हमें शर्म आई क्या? महंगाई कहां से कहां पहुंच गई, पेट्रोल-डीजल के दाम लगातार बढ़ रहे हैं, हमारे लोगों ने छोटे व्यापारियों का दम तोडऩे के लिए एफडीआई को मंजूरी भी दिलवा दी, संसद पर हमला हुआ, हमने स्मारक बनाने में करोड़ों रुपए फंूक दिए, हमने ही एक परिवार को 600 रुपए प्रतिमाह परिवार चलाने के लिए कहा और हम ही अपने भोज में 29 लाख रुपए खर्च करते हैं, हम एकता की बात करते-करते आरक्षण में भी आरक्षण के लिए प्रयास कर रहे हैं। हमने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की वस्तुओं की नीलामी को भी नहीं रोका। जब हमको ऐसे किसी भी मामले में शर्म नहीं आई तो अब इस घटना पर भी शर्मिंदगी महसूस होना काफी मुश्किल है? हां! अगर तुम कहती हो तो मैं कोशिश करके देख सकता हूं!!!