आज सुबह-सुबह
मेरा 'मन' से झगड़ा हो गया। लगभग डेढ़ घंटे तक बहस हुई। ओह! सॉरी। 'मन' से
आप मेरा आशय शायद गलत समझ रहे होंगे, इसलिए अभी क्लीयर करना जरुरी है।
'मन' से मेरा मतलब, जो मस्तिष्क से जुड़ा रहता है, जो सोचता बहुत कुछ है
लेकिन काम कम करता है। 'मन' से मेरा मतलब हमारे माननीय प्रधानमंत्री डॉ.
मनमोहन सिंह कतई नहीं है। क्योंकि मनमोहन सिंह जी को बहस करना कहां आती है,
झगड़ा करना तो दूर की बात है। प्रधानमंत्री जी को अगर बहस करना आती होती
तो आज देश की स्थिति कुछ और होती। खैर छोड़ो! आप तो अपना 'मन' मेरे 'मन' की
बातों पर लगाइए। मेरा 'मन' मुझसे कह रहा था कि आजकल देश में जिसे देखो
मानहानि का केस कर रहा है। न जाने कितने माननीयों ने अपना मानहानि का दावा
कितने माननीयों पर कर दिया है। आपको भी अपनी मानहानि का हिसाब तो लगा ही
लेना चाहिए। मैंने अपने 'मन' को बहुत समझाया कि भाई! मानहानि के लिए माननीय
होना बहुत जरुरी है। मानहानि का दावा वह लोग करते हैं जिनका हमारे देश में
'मान' होता है, और जो लोग शान से जीते हैं। मेरे पास तो केवल ईमान है,
जिसके साथ जीने में ही बहुत तकलीफ होती है। मैंने 'मन' को स्वप्न सुंदरी,
सिने अदाकारा राखी सावंत जी का उदाहरण देते हुए समझाया कि भले ही वह आइटम
गानों पर फूहड़ नृत्य करतीं हो, भले ही गायक कलाकार मीका ने उनका सार्वजनिक
स्थान पर चुंबन लिया हो लेकिन फिर भी समाज में वह माननीय तो हैं ही।
माननीय थीं तभी तो उन्होंने दिग्विजय सिंह जैसे दिग्गज नेता पर मानहानि का
दावा किया। इसी प्रकार आप जी न्यूज समाचार चैनल के संपादकों को ही देख लो।
100 करोड़ की रिश्वत मांगने उन्हें जेल हुई। जेल से बाहर आते ही उन्होंने
सबसे पहले नवीन जिंदल पर मानहानि का दावा किया। तो क्या हुआ उन्होंने 100
करोड़ रिश्वत में मांगे थे, लेकिन वे माननीय तो हैं। मैंने 'मन' को समझाया
कि मानहानि का दावा करना आजकल हमारे देश में आम बात हो गई है। अभी एक और
मानहानि का दावा नितिन गड़करी ने भी किया। वह तो अच्छा हुआ कि हमने
आतंकवादी कसाब को जल्दी फांसी पर लटका दिया वरना वह भी हम पर मानहानि का
दावा ठोक देता। 'मन' मेरी बात से बिल्कुल भी संतुष्ट नहीं था। वह कहने लगा
आप भले ही अपने आपको माननीय नहीं मानते हों, लेकिन मेरी मानहानि तो मत
कीजिए। वह एकदम गुस्से में आ गया और बोला- 'आपने मेरी बात नहीं बात मानी
है, आपने सरेआम मेरी बेज्जती की है, इसलिए मैं भी आप पर मानहानि का दावा
करूंगा।
Wednesday, December 26, 2012
Tuesday, December 18, 2012
लुटेरे 'लॉबिंगबाज'
विदेशी हम
भारतीयों की नकल करना कभी नहीं छोड़ेंगे। लो अब हमारी हरकतों को
देखते-देखते 'लॉबिंग' करना भी सीख गए। 121 करोड़ के भारत में वालमॉर्ट ने
125 करोड़ की 'लॉबिंग' की। सरकार भी 'लॉबिंग' के चक्कर में आखिर फंस ही गई।
लेकिन राज की बात यह है कि इन विदेशियों को यह नहीं मालूम कि हम भारतीय
सबसे बड़े 'लॉबिंगबाज हैं। 'लॉबिंग' को हमसे अच्छा कौन समझ सकता है। ये
वालमार्ट-फालमार्ट वाले तो अभी सीखे ही होंगे, हम तो यह काम वर्षों से करते
आ रहे हैं। भारत में तो बात-बात के लिए 'लॉबिंग' होती है। लड़की की शादी
करने के लिए रिश्तेदारों की 'लॉबिंग', कर्मचारियों की अधिकारी बनने के लिए
'लॉबिंग', नेता का टिकट पाने के लिए 'लॉबिंग', प्रोड्यूसर का अपनी फिल्म
हिट कराने के लिए 'लॉबिंग', फाइल पर दस्तखत कराने के लिए बाबू को पटाने के
लिए 'लॉबिंग', मंत्रियों का अपनी कंपनियों को फायदा पहुंचाने के लिए
'लॉबिंग', कोई विवाद हो तो थानेदार को सेट करने के लिए 'लॉबिंग', भैय्या
जगह-जगह 'लॉबिंग' के लफड़े हैं। अच्छा ऐसा नहीं है कि 'लॉबिंग' केवल छोटे
लोग ही करते हैं। बड़े लोगों ने तो सबको पीछे छोड़ दिया है। सोनिया अपने
पुत्र राहुल को देश की कमान सौंपने के लिए 'लॉबिंग' कर रही हैं तो
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अपनी कुर्सी बचाने के लिए 'लॉबिंग' करते हैं।
मायावती 'पदोन्नती में आरक्षण' के लिए 'लॉबिंग' करती हैं, तो मुलायम अपने
अखिलेश और डिंपल को राजनीति में शीर्ष पर लाने के लिए 'लॉबिंग' करते हैं।
अण्णा हजारे, अरविंद केजरीवाल को लालची बताने के लिए 'लॉबिंग' करते हैं तो
बाबा रामदेव विदेशों से कालाधन वापस लाने के लिए 'लॉबिंग' कर रहे हैं।
क्रिकेट में अच्छा खेले तो ठीक नहीं तो सचिन को टीम से आउट करने के लिए
'लॉबिंग' होने लगती है। भाजपा द्वारा प्रधानमंत्री पद के लिए नरेन्द्र मोदी
के लिए 'लॉबिंग', दिग्विजय सिंह मुस्लिमों की सहानुभूति बटोरने अपनी बातों
से 'लॉबिंग' करते हैं तो मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला आतंकवादी अफजल गुरू को
फांसी न दिए जाने के लिए 'लॉबिंग' करते हैं। ममता बनर्जी बार-बार अपनी
ताकत दिखाने के 'लॉबिंग' करती हैं, तो कोई बार खबरनबीस भी 'लॉबिंग' का
शिकार हो जाते हैं, या फिर 'लॉबिंग' करते रहते हैं। सब अपने-अपने स्वार्थों
के लिए 'लॉबिंग' कर रहे हैं। बेचारी गरीब जनता के लिए 'लॉबिंग' करने वाला
कोई नहीं है। काश! इस देश में कुछ ऐसे सिरफिरे लोग भी आएं जो शिक्षा,
स्वास्थ्य, सुरक्षा की बेहतरी के लिए 'लॉबिंग' करें। काश! कोई युवाओं को
रोजगार दिलाने के लिए 'लॉबिंग' करे। कितना अच्छा हो कि 'लॉबिंग' महंगाई
पर काबू पाने के लिए हो, 'लॉबिंग' आतंकवाद को रोकने के लिए के लिए होनी
चाहिए। 'लॉबिंग' कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए होनी चाहिए। वरना नहीं तो हमें 'लॉबिंगबाज' पहले भी लूटते रहे हैं, आगे भी लूटते
रहेंगे।
Wednesday, December 12, 2012
अनोखी हार
जब से अरविंद जी ने नई पार्टी बनाई है तब से बड़ा कन्फ्यूजन हो रहा है।
कुछ भी ठीक नहीं चल रहा है। आज सुबह ही पत्नी से झगड़ा हो गया। वह किचन
में काम कर रही थी जब दरवाजे की घंटी बजी। मेरे दरवाजा खोलते ही श्रीमती जी
ने पूछा-कौन आया है?
मैंने जवाब दिया-'आप' की पार्टी के लोग आए हैं।
यह सुनते ही फिर भीतर से आवाज आई उन्हें बिठाइए मैं अभी आती हूं। हालांकि हमारी श्रीमती जी के व्यवहार से 'आप' के लोग खुद संशय में थे कि हमें बैठने को क्यों कहा जा रहा है!!
शायद वह भी उसका व्यवहार जानते थे इसलिए वापस मिले बगैर लौटने की उनकी भी हिम्मत नहीं हुई। मैंने भीतर जाकर बताया कि चार लोग आए हैं। मेरी इस सूचना पर बढिय़ा सी चाय भी बन गई। अब जब हमारी श्रीमती जी ने उन लोगों को देखा तो आश्चर्यजनक भाव से बोली अच्छा! आप लोग हैं। बताइए क्या काम है? थोड़ी बातचीत के बाद 'आप' के लोग अपनी पूरी योजना समझाकर तो चले गए लेकिन मुसिबत मेरे गले डाल गए।
उन लोगों के जाने के बाद वह मुझसे झगड़ते हुए बोली-'आप भी न किसी को भी घर में बैठा लेते हो।' मैंने कहा- तुमने ही तो कहा था। तब मुझी पर बिगड़ती हुई बोली-'तुमने तो कहा था कि आपकी पार्टी के लोग हैं इसलिए मैं उन्हें किटी पार्टी के लोग समझी थी।'
वह गुस्से बोली-फालतू समय बर्बाद हो गया, चाय बनाने में गैस खर्च हुई सो अलग। आगे बोली- 'आप तो समझदार हो! समय की अहमियत भले ही न समझो लेकिन कम से कम 'सिलेण्डर की अहमियत' तो समझो।' आपको महंगाई का अंदाजा भी है कि नहीं! पता है एक सिलेण्डर की कीमत क्या है? सरकार ने सिलेण्डर की संख्या भी सीमित कर दी है। अपने घर का चूल्हा जल रहा है यही बहुत है। ज्यादा नेतागिरी करोगेे तो यह भी बंद हो जाएगा। सरकार ने अच्छे-अच्छों का करा दिया है। बोली-'आप पूरी ईमानदारी से टेक्स चुका रहे हैं, और सरकार के मंत्री पूरी बेईमानी से टेक्स चुरा रहे हैं। रोज नया-नया घोटाला उजागर हो रहा है। भ्रष्टाचार के बारे में तो बात ही क्या करना। सरकार रोज नई आर्थिक लागू करके आम आदमी को हर महीने महंगाई कम होने का आश्वासन दे रही है वहीं हम भ्रष्टाचार के मामले में पूरी दुनिया में एक पायदान और ऊपर आ गए हैं।'
मैंने मामले को दूसरी ओर मोड़ते हुए बोला-अरे भागवान! अब सरकार में नई ऊर्जा का संचार हो गया है। धड़ाधड़ बड़े फैसले लिए जा रहे हैं। तुमने देखा नहीं, सरकार ने मायावती-मुलायम को कब्जे में रखकर संसद में एफडीआई को किस प्रकार मंजूरी दिलाई। अपने मनमोहन सिंह जी को ही देख लो जिन्हें लोग दब्बू और कमजोर प्रधानमंत्री कहते हैं उन्हें अमेरिका की फोब्र्स पत्रिका में सबसे ताकतवर व्यक्तियों में शामिल किया गया है। सरकार लगातार हर मोर्चे पर जीत रही है।
श्रीमती जी गुस्से से बोली- 'रहने दो तुम ज्यादा सरकार की तरफदारी न करो। आप भी न पूरे राहुल गांधी हो रहे हो। जिन्हें अपने मंत्रियों का भ्रष्टाचार तो दिखता नहीं बल्कि अपनी सरकार के तारीफों के पुल बांधते फिरते हो। हमें तो यह बताओ की आम आदमी की जीत कब होगी।' यह बड़बड़ाते हुए वह फिर किचन में चली गई।
अब मैं भगवान से दिनभर एक ही प्रार्थना करता रहता हूं कि या तो अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी का नाम बदल लें या फिर हमारी श्रीमती जी का स्वभाव बदल जाए। क्योंकि रोज-रोज के झगड़े अब तो सहन नहीं होते। आम आदमी की जीत कब होगी यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मुझे इतना जरूर पता है कि मैं अपनी श्रीमती से कभी नहीं जीत पाऊंगा।
मैंने जवाब दिया-'आप' की पार्टी के लोग आए हैं।
यह सुनते ही फिर भीतर से आवाज आई उन्हें बिठाइए मैं अभी आती हूं। हालांकि हमारी श्रीमती जी के व्यवहार से 'आप' के लोग खुद संशय में थे कि हमें बैठने को क्यों कहा जा रहा है!!
शायद वह भी उसका व्यवहार जानते थे इसलिए वापस मिले बगैर लौटने की उनकी भी हिम्मत नहीं हुई। मैंने भीतर जाकर बताया कि चार लोग आए हैं। मेरी इस सूचना पर बढिय़ा सी चाय भी बन गई। अब जब हमारी श्रीमती जी ने उन लोगों को देखा तो आश्चर्यजनक भाव से बोली अच्छा! आप लोग हैं। बताइए क्या काम है? थोड़ी बातचीत के बाद 'आप' के लोग अपनी पूरी योजना समझाकर तो चले गए लेकिन मुसिबत मेरे गले डाल गए।
उन लोगों के जाने के बाद वह मुझसे झगड़ते हुए बोली-'आप भी न किसी को भी घर में बैठा लेते हो।' मैंने कहा- तुमने ही तो कहा था। तब मुझी पर बिगड़ती हुई बोली-'तुमने तो कहा था कि आपकी पार्टी के लोग हैं इसलिए मैं उन्हें किटी पार्टी के लोग समझी थी।'
वह गुस्से बोली-फालतू समय बर्बाद हो गया, चाय बनाने में गैस खर्च हुई सो अलग। आगे बोली- 'आप तो समझदार हो! समय की अहमियत भले ही न समझो लेकिन कम से कम 'सिलेण्डर की अहमियत' तो समझो।' आपको महंगाई का अंदाजा भी है कि नहीं! पता है एक सिलेण्डर की कीमत क्या है? सरकार ने सिलेण्डर की संख्या भी सीमित कर दी है। अपने घर का चूल्हा जल रहा है यही बहुत है। ज्यादा नेतागिरी करोगेे तो यह भी बंद हो जाएगा। सरकार ने अच्छे-अच्छों का करा दिया है। बोली-'आप पूरी ईमानदारी से टेक्स चुका रहे हैं, और सरकार के मंत्री पूरी बेईमानी से टेक्स चुरा रहे हैं। रोज नया-नया घोटाला उजागर हो रहा है। भ्रष्टाचार के बारे में तो बात ही क्या करना। सरकार रोज नई आर्थिक लागू करके आम आदमी को हर महीने महंगाई कम होने का आश्वासन दे रही है वहीं हम भ्रष्टाचार के मामले में पूरी दुनिया में एक पायदान और ऊपर आ गए हैं।'
मैंने मामले को दूसरी ओर मोड़ते हुए बोला-अरे भागवान! अब सरकार में नई ऊर्जा का संचार हो गया है। धड़ाधड़ बड़े फैसले लिए जा रहे हैं। तुमने देखा नहीं, सरकार ने मायावती-मुलायम को कब्जे में रखकर संसद में एफडीआई को किस प्रकार मंजूरी दिलाई। अपने मनमोहन सिंह जी को ही देख लो जिन्हें लोग दब्बू और कमजोर प्रधानमंत्री कहते हैं उन्हें अमेरिका की फोब्र्स पत्रिका में सबसे ताकतवर व्यक्तियों में शामिल किया गया है। सरकार लगातार हर मोर्चे पर जीत रही है।
श्रीमती जी गुस्से से बोली- 'रहने दो तुम ज्यादा सरकार की तरफदारी न करो। आप भी न पूरे राहुल गांधी हो रहे हो। जिन्हें अपने मंत्रियों का भ्रष्टाचार तो दिखता नहीं बल्कि अपनी सरकार के तारीफों के पुल बांधते फिरते हो। हमें तो यह बताओ की आम आदमी की जीत कब होगी।' यह बड़बड़ाते हुए वह फिर किचन में चली गई।
अब मैं भगवान से दिनभर एक ही प्रार्थना करता रहता हूं कि या तो अरविंद केजरीवाल अपनी पार्टी का नाम बदल लें या फिर हमारी श्रीमती जी का स्वभाव बदल जाए। क्योंकि रोज-रोज के झगड़े अब तो सहन नहीं होते। आम आदमी की जीत कब होगी यह तो मुझे पता नहीं लेकिन मुझे इतना जरूर पता है कि मैं अपनी श्रीमती से कभी नहीं जीत पाऊंगा।
Wednesday, December 5, 2012
खातों का खेल
भारत जितनी तेजी से तरक्की कर रहा है, उसको देखकर मैं निश्चिततौर पर कह सकता हूं कि भविष्य में केवल दो ही प्रकार के लोग सुखी रह सकेंगे। पहले वे लोग जिनके बैंकों में खाते हैं, दूसरे वे लोग जो हर काम के लिए 'खाते' हैं। बाकी बचे लोग दिमाग खाने वाले होंगे। सरकार को ही देख लो। सीधे खाते में 'सब्सिडी जमा करने' की योजना बना रही है।
वैसे सरकार का क्या है वह तो शुरु से ही 'खाने' और 'खिलाने' में उस्ताद है। किसी भी नेता को कोई भी मंत्रालय दे दो काम करते-करते इतना 'खाते' हैं कि स्वीटजरलैण्ड में 'खाता' खुलवाना पड़ता है। बाबा रामदेव सरीखे लोग विदेशी खातों में जमा धन को भारतीय खाते में लाने के लिए आंदोलन करते हैं तो उनके खिलाफ इतना जबरदस्त मोर्चा खोल दिया जाता है कि उनके खाते बंद करने की नौबत आ जाती है। बेचारे अण्णा हजारे को ही लो। अण्णा ने कई दिन तक खाना छोड़ दिया लेकिन कुछ लोग इतने बेशर्म निकले कि उन्होंने अभी तक 'खाना' नहीं छोड़ा।
'खाने' और 'खिलाने' की भी एक सीमा होती है। लेकिन सरकार की सीमा का तो पता ही नहीं लगता। सरकार गिरने की नौबत आती है तो सांसदों को 'खरीदा' और 'खिलाया' जाता है। प्रधानमंत्री भी कई बार अपने निवास पर निमंत्रण देकर 'खिलाते' हैं।
समय भी धीरे-धीरे बदल रहा है। सब हाईटेक हो रहे हैं। टेक्नोलॉजी से हर बात को 'टेकल' किया जा रहा है। खाता होने से कुछ लोगों का 'खाना' भी आसान हो रहा है। अधिकारी, अब सीधे खाते में 'खिलाने' की बात करने लगे हैं। सरकार जिस प्रकार की योजनाओं बनाकर सीधे खाते में पैसा जमा कराने पर अड़ी हुई है उससे अब डर यह लगने लगा है कि कहीं खातों में 'खाते-खाते' कहीं हमारा हाजमा न बिगड़ जाए। मुझे तो लगता है कि भविष्य में खाते का इतना महत्व हो जाएगा कि सबसे गरीब व्यक्ति वही होगा जिसका किसी बैंक में 'खाता' न हो। सरकार के लिए आम आदमी भी वही होगा जिसके पास भले रहने के लिए घर, पहनने के लिए कपड़े और पेट भरने के लिए भोजन न हो लेकिन 'खाता' जरुर होना चाहिए या फिर वह किसी वोट बैंक के खाते में कहीं न कहीं फिट बैठता हो। सच बताऊं तो मुझे सबसे अधिक चिंता इस बात की है कि मेरा क्या होगा। क्योंकि न तो अभी तक मेरा किसी बैंक में कोई 'खाता' है और न ही मुझे 'खाना' आता है।
Thursday, November 29, 2012
स्मारक तो जरूर बनेगा
जहां नेता वहां समस्या और जहां समस्या वहां नेता। नेता नहीं तो स्मारक और जहां स्मारक वहां फिर समस्या। कुल मिलाकर हम चारों ओर से समस्याओं से घिरे हुए हैं। नेताजी तो चल बसे हैं लेकिन कार्यकर्ताओं के लिए अभी भी जिंदा हैं। इसलिए नेताजी का स्मारक बनाने पर बहस छिड़ी हुई है। लेकिन स्मारक कैसे, कहां और कितना भव्य बनाया जाए इसके लिए पूरा देश चिंता कर रहा है। इसी चिंता में हमारे रामदीन जी भी डूबे हैं। बेचारे रामदीन जी ने चिंता में अपनी तबियत ही बिगाड़ ली। अस्पताल में भर्ती हो गए। मैं मिलने गया तो वहां भी स्मारक की चिंता। मैंने उनसे मना किया तो मुझसे ही उलझ गए।
मैंने उनसे कहा कि स्मारक बनाना क्या जरूरी है? नेताजी के विचार तो हमारे दिलों में, रगों में दौड़ रहे हैं। इस बात पर रामदीन जी इतना गुस्सा हो जाएंगे मुझे भी नहीं पता था। गुस्से में बोले-'यह तो हम भी जानते हैं कि नेताजी हमारे दिल, दिमाग में जिंदा हैं, उनके विचार हमारी रगों में दौड़ रहे हैं लेकिन अपनी भावनाओं को प्रकट करने के लिए स्मारक तो बनाना ही पड़ेगा।' उन्होंने सवाल करते हुए कहा-'आपको हमारे नेताजी के स्मारक बनने पर इतनी आपत्ति क्यों है?' आपकी बहनजी ने लखनऊ में देखिए न कितना बड़ा अम्बेडकर पार्क बनाया है। पूरे 6000 करोड़ में जगह-जगह हाथी और अपने पुतले खड़े कर दिए तब कोई क्यों नहीं बोला। हालत कमजोर थी लेकिन फिर भी चेतावनी देते हुए बोले-'यदि हमारे नेताजी का स्मारक नहीं बना तो हम देश, राज्य में और तो और अपने शहर में एक भी सड़क, पुल-पुलिया, अस्पताल व स्कूल भी नहीं बनने देंगे।' रामदीन जी ये शब्द सुनकर ऐसा लग रहा था मानो उनके शरीर में नेताजी के बेटे और भतीजे की आत्मा समा गई हो। रामदीन जी बोले-'यदि किसी ने हमारे नेताजी के स्मारक बनने में सहयोग नहीं दिया तो पूरे राज्य में उथल-पुथल मच जाएगी। हम हड़ताल कर देंगे। कोई यातायात, कोई दुकान, कोई स्कूल नहीं खुलने देंगे।' जगह की थोड़ी दिक्कत हो रही है जैसे ही फाइनल होगी हम स्मारक बनवाएंगे।
अब रामदीन नहीं उनके भीतर की आत्मा बोल रही थी। कहने लगे हमारे नेताजी हमारी प्रेरणा थे, हमारी शक्ति थे। इसलिए स्मारक तो बनाकर ही छोड़ेंगे। भैय्या, आत्मा तो आखिर आत्मा होती है। वह कहां चुप रहने वाले थे। थोड़ी देर बाद फिर बोले- 'वह तो हम थोड़े लेट हो गए वरना बहनजी की तरह पहले ही पार्क में जगह घेर लेते तो अच्छा होता। नेताजी के रहते ही जगह फाइनल कर लेते, स्मारक कितने का बनना है यह भी तय कर लेते तो सब ठीक हो जाता। नेताजी की मर्जी से काम हो जाता तो किसी तरह की कोई दिक्कत भी न होती। खैर...। हमें किसकी सुननी है। हमें तो स्मारक बनाना है और वह तो हम बनाकर ही दम लेंगे। जय हिंद...।
Wednesday, November 21, 2012
शोध हो तो ऐसे...
वैज्ञानिक झूठे होते हैं। यह मैंने कई बार शोध करके देख लिया है। चाहे वह लंदन के हों या फिर भारत के। अभी लंदन के वैज्ञानिकों ने यह शोध कर पता लगाया है कि 'प्यार में व्यक्ति की बुद्धि मर जाती है।' उन्होंने कई प्रेमी व्यक्तियों पर शोध कर इस बात को साबित किया। जहां तक मुझे शंका हो रही है, वह यह कि लंदन के वैज्ञानिक कोई प्रेमी व्यक्तियों से नहीं मिले होंगे। बल्कि उनकी मुलाकात निश्चित रूप से हमारे नेताओं से हुई होगी। नेताओं पर अपना शोध करने के बाद उन्होंने इसे हीर रांझा, लैला मजनू व सलीम अनारकली वाला प्रेम कह दिया।
वैज्ञानिकों ने अपने शोध में जितनी भी बातें बताई हैं वह सारी बातें हमारे नेताओं के व्यवहार से बिल्कुल मिलती-जुलती हैं। मैं वैज्ञानिकों की एक-एक बात को नेताओं से जोड़कर यह साबित कर सकता हूं कि वे किसी भी प्रेमी से नहीं मिले होंगे। अपने शोध में वैज्ञानिकों ने बताया है कि प्यार करने वाले व्यक्ति के दिमाग में 'द अमाइग्डाला' नामक हिस्सा काम करना बंद कर देता है। यह वह हिस्सा होता है जिसमें व्यक्ति को डर नहीं लगता है। यह तो हमारे नेताओं के साथ भी होता है। सत्ता में आते ही हमारे नेताओं में भी 'द अमाइग्डाला' नामक हिस्सा काम करना बंद कर देता है। अभी पिछले दिनों ही एक नेता ने सामाजिक कार्यकर्ताओं को अपने शहर आने पर 'देख लेने की धमकी दी थी।'
वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि प्यार करने वाले व्यक्ति में 'फ्रंटल लोब' हिस्सा भी काम करना बंद कर देता है। यह वह हिस्सा होता है जिसमें निर्णय लेने की क्षमता बंद हो जाती है। यह गुण भी हमारे नेताओं में होता है। पूरा देश जानता है कि हमारे प्रधानमंत्री भी इसी बीमार के शिकार हैं। कोई निर्णय ही नहीं ले पाते हैं। जो निर्णय मैडम ने लिया, बस वही अंतिम समझो।
वैज्ञानिक कहते हैं कि प्यार करने वाले व्यक्ति का 'पोस्टेरियर सिंग्यूलेट' यानि की सहानुभूति नियंत्रक हिस्सा भी काम करना बंद कर देता है। यह भी हमारे नेताओं के साथ होता है। सत्ता में आते ही सहानुभूति तो खत्म हो ही जाती है। अपनी नीतियों के कारण गरीब को जितना कष्ट दिया जा सकता है उतना देने की कोशिश की जाती है। शोध में बताया गया कि प्यार करने वाले व्यक्ति में 'मिड टेम्पोरेल कोर्टेक्स' हिस्सा भी काम करना बंद कर देता है। इस हिस्से के काम बंद करने के कारण व्यक्ति महत्वपूर्ण भूमिका अदा करने में अक्षम हो जाता है। यह बात भी हमारे सामने कई बार सामने आती है।
कुल मिलाकर वैज्ञानिक थोड़ा सच बोल देते तो इनका क्या जाता। व्यक्ति को कभी भी झूठ नहीं बोलना चाहिए। और यह तो फिर भी वैज्ञानिक थे। हमारे नेताओं पर किए गए शोध का हम बुरा थोड़ा ही मानते। प्रेम तो आखिर प्रेम होता है। फिर वह चाहे कुर्सी से ही क्यों न हो। कुर्सी प्रेम के कारण नेताओं की दिमागी स्थिति पर खूब शोध किया वैज्ञानिकों ने। इसके लिए तो वे बधाई के पात्र हैं।
Friday, November 16, 2012
चोरी सिलेण्डर की
चालीस वर्ष की आयु में पहली बार आज जब रामदीन जी थाने पहुंचे तो बेचारे काफी परेशान हो गए। मामला भी काफी गंभीर था। उनका सिलेण्डर चोरी हो गया था। चूंकि एक से भले दो होते हैं इसलिए मैं भी उनके साथ गया था।
हमारी हवा तो उसी वक्त निकल गई थी जब दो सिपाहियों ने सवाल किया कि 'यहां क्यों आए हो?'
हालांकि सवाल छोटा था लेकिन बड़ा खतरनाक था।
रामदीन-'हमें चोरी की रिपोर्ट लिखवानी है, कहां जाना पड़ेगा? ' उन सिपाहियों ने हमें इशारे से बताते हुए उचित स्थान पर भेज दिया। इसके बाद फिर शुरू हुआ सवाल जवाबों का सिलसिला।
पहला सवाल थानेदार की ओर से कड़क आवाज में आया।
'क्या हो गया?'
रामदीन- 'चोरी हो गई'। अगला सवाल।
'कैसे हो गई'।
रामदीन-'साहब! आप तो जानते हैं आज दीपावली का त्यौहार है। सो पूरा परिवार घर के बाहर फाटाखे जला रहा था। हम भूल गए कि घर का दरवाजा खुला हुआ है। इतने में पता नहीं कौन मुआ चोर घर में घुस गया और चोरी हो गई।'
अब महत्वपूर्ण सवाल आना प्रारंभ हुए।
थानेदार-'अच्छा, ये बताओ क्या-क्या सामान चोरी गया है?'
रामदीन- 'सर! हमारी एक ही चीज चोरी हुई है और वह है हमारा सिलेण्डर।'
अगला सवाल पहले वाले सवाल से भी ज्यादा महत्वपूर्ण था।
थानेदार-'सिलेण्डर कितने नम्बर का था?'
सवाल सुनते ही रामदीन जी की सिट्टी-बिट्टी गुम हो गई। लेकिन हमने जैसा कि पहले ही कहा था कि एक से भले दो होते हैं इसलिए मैंने रामदीन जी को संभालते हुए उनसे ही पूछा अरे! भाई सिलेण्डर कौन से नम्बर है मतलब यह कि छटवें से नीचे है या ऊपर। रामदीन जी तो पहली बार रिपोर्ट लिखवाने आए थे इसलिए उन्हें नहीं पता था कि चोरी की रिपोर्ट में हमेशा ज्यादा माल लिखवाया जाता है क्योंकि ज्यादा बड़ी चोरी में ही पुलिस ज्यादा सक्रिय दिखाई देती है। मैंने थानेदार को बताया कि साहब! चोरी गए सिलेण्डर के बारे में हमें ज्यादा जानकारी तो नहीं है लेकिन हां! इतना जरूर पता है कि चोरी गया सिलेण्डर छठवें से ऊपर का था। मतलब, सातवां या आठवां हो सकता है। मैंने रामदीन जी को धीरे से समझाया कि सरकार ने पहले छह सिलेण्डर पर सब्सिडी दी है जबकि सातवां सिलेण्डर 500 रुपए महंगा है। इसलिए सातवां ही लिखवाओ।
थानेदार-'तुम्हारे पास 'पासबुक' है', जिससे पता चल सके कि सिलेण्डर कौन से नम्बर का था। रामदीन जी ने सर हिलाकर मना किया तो उन्होंने हमें टरकाते हुए कहा-'जाइये' हमारा टाईम खराब मत कीजिए। पहले घर से 'पासबुक' ले आओ फिर आपकी रिपोर्ट लिखेंगे। खुद तो दीपावली पर धूमधाम से फटाखे फोड़ रहे हो, हमारे बच्चों की ओर ध्यान कौन देगा।'
मैं थानेदार का इशारा समझ गया। थानेदार हमसे रिश्वत मांग रहा था। मैंने जब उनकी बात रामदीन जी को बताई तो वह गुस्सा हो गए। गुस्से में बोले-'साहब! आपको रिपोर्ट लिखना हो तो लिखिए हम आपको रिश्वत नहीं दे सकते। 'मैं आम आदमी हूं।' भ्रष्टाचार के खिलाफ चलने वाले आंदोलन का एक सिपाही हूं।'
थानेदार चुटकी लेते हुए बोला-'मैं मानता हूं कि तुम आम आदमी हो, लेकिन आम आदमी की आजकल सुनता कौन है। अरविंद केजरीवाल खुद अण्णा हजारे की नहीं सुन रहे हैं तो तुम किस खेत की मूली हो। भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते-लड़ते टीम अण्णा भी तो भारतीय क्रिकेट टीम की तरह गुटबाजी का शिकार हो गई है। इसलिए तुम्हें गुट में रहकर घुट-घुटकर जीना ही पसंद है तो इसमें हम कुछ नहीं कर सकते हैं। जहां तक सिलेण्डर की चोरी होने पर रिपोर्ट लिखवाने की बात है तो जब तक आप 'पासबुक' नहीं लाएंगे, हम आपकी रिपोर्ट नहीं लिख पाएंगे।'
थानेदार-'आप शायद जानते नहीं कि इस यूपीए सरकार के कार्यकाल में जितनी तेजी से रसोई गैस केदाम बढ़े हैं, उतनी ही तेजी से सिलेण्डर चोरी के मामले बढ़ रहे हैं। हमारे पास रोज कोई न कोई व्यक्ति सिलेण्डर चोरी की रिपोर्ट लिखवाने चला आता है। हमने तो अलग से एक तीन सदस्यीय जांच समिति भी बना दी है। कल ही हमने दो लड़कों को सिलेण्डर चोरी की योजना बनाते हुए पकड़ा है।'
हम बिना रिपोर्ट लिखाए लौट ही रहे थे कि थानेदार ने हमें तसल्ली भरे शब्दों में कहा-'देखो रामदीन, तुम शक्ल और अक्ल से भोले लगते हो इसलिए कह रहा हूं कि आजकल जब घोटाले पर घोटाले, दिन प्रतिदिन बढ़ती महंगाई, पेट्रोल-डीजल की बढ़ती कीमतों के कारण लोगों का जीना मुहाल हो रहा है तब भी तुम्हारे घर का चूल्हा जल रहा है तो मुझे यह बात बड़ी लगती है। वैसे तो इस सरकार ने कई घरों के चूल्हे बुझा दिए हैं लेकिन मैं तुम्हे आश्वासन देता हूं कि तुम्हारे सिलेण्डर को ढूंढने का प्रयास करूंगा।'
थानेदार की इस तसल्ली भरी बात पर हम लोग खाली हाथ घर लौट आए। फिर खुशी से फटाखे जलाने लगे।
Wednesday, November 7, 2012
आपका बहुत-बहुत शुक्रिया मच्छर जी...
आदरणीय
मच्छर जी...। वैसे तो आपको देखकर मन में सहज ही क्रोध का भाव आ जाता है
लेकिन आज प्रेम उमड़ रहा है। हालांकि मुझे दु:ख इस बात का है कि मैं इस
प्रेम को अभिव्यक्त कर तो रहा हूं लेकिन आपको कैसे ज्ञात होगा इसको लेकर
चिंतित भी हूं। आपको बोलकर भी नहीं बता सकता, अनपढ़ तो आप हो ही। फिर भी इस
प्रेम को लोगों तक पहुंचा रहा हूं। मुम्बई 26/11 के आतंकवादी अजमल आमिर
कसाब को अपनी शक्ति से परास्त करने की कोशिश की उससे हम लोगों के मुंह पर
ताले लग गए हैं और शिक्षितों को आपने मूर्ख साबित कर दिया है। आपने अपने
डंक से डेंगू जैसी बीमारी देकर अपनी देशभक्ति साबित कर दी है। वरना हमारी
देशभक्ति तो जैसे मर ही गई है। वोटों के लालच ने हमारे खून की रवानी को
सुखा दिया है।
सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतारने वाले आतंकवादी की हमारी सरकार दामाद की तरह खातिरदारी कर रही है, उससे कई बार मन विचलित हुआ लेकिन कुछ मजबूरियों के कारण हम कुछ नहीं कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने भी फांसी की सजा सुनाई लेकिन राजनीतिक चालबाजों ने फंदे को इतना ढीला कर दिया कि वह हर बार बच निकलता है। कड़ी सुरक्षा, शानदार भोजन पानी जो हम भारतीयों को कभी भी प्राप्त नहीं हुई वह कसाब जैसे आतंकवादी को मिल रही है। जनता की कमाई को आतंकवादी पर लुटाया जा रहा है। यह स्थिति आप आज भी देख सकते हैं कि जिस देश में हजारों गरीब और उनके बच्चे डेंगू, मलेरिया, कुपोषण, उल्टी, दस्त से चल बसते हैं उस समय सरकार ध्यान नहीं देती लेकिन कसाब को डेंगू होते ही डॉक्टरों की टीम को चौसीब घंटे निगरानी करने के निर्देश दिए गए हैं। कसाब का स्वास्थ्य और अधिक खराब न हो उससे चिंतित होकर हमारे नेताओं के स्वास्थ्य बिगड़ रहे हैं।
मच्छर जी...। आपसे एक निवेदन और भी है। क्या आप अपनी अन्य प्रजातियों को इस देशभक्ति अभियान में शामिल कर सकते हैं। एक और आंतवादी मोहम्मद अफजल गुरू भी कई वर्षों से फांसी के फंदे तक नहीं पहुंच पा रहा है। कुछ लालची नेताओं ने इससे भी जिंदा रखा हुआ है। क्या आप डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, जैसी घातक बीमारियां देकर इससे भी अपना शिकार बना सकते है?
हां! एक बात और। आपके इस अभियान को कुचलना प्रयास भी किया जाएगा। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार आज बाबा रामदेव, अण्णा हजारे, अरविंद केजरीवाल के अभियानों को लेकर हो रहा है। आपके इस अभियान को कुचलने के लिए हमारा स्वास्थ्य विभाग कुछ कीटनाशक दवाओं का छिड़काव भी करेगा। लेकिन हम जानते हैं कि आपकी प्रजाति में बलिदान देने की परंपरा सदैव रही है। कई बार हम एक झटके में आपके परिजनों को मौत के घाट उतार देते हैं। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपका देशभक्ति पूर्ण अभियान रुकने वाला नहीं है। इस अभियान में भले ही कोई आपका साथ न दे लेकिन मेरा साथ हमेशा रहेगा। आपका शुभचिंतक।
सैकड़ों लोगों को मौत के घाट उतारने वाले आतंकवादी की हमारी सरकार दामाद की तरह खातिरदारी कर रही है, उससे कई बार मन विचलित हुआ लेकिन कुछ मजबूरियों के कारण हम कुछ नहीं कर सके। सुप्रीम कोर्ट ने भी फांसी की सजा सुनाई लेकिन राजनीतिक चालबाजों ने फंदे को इतना ढीला कर दिया कि वह हर बार बच निकलता है। कड़ी सुरक्षा, शानदार भोजन पानी जो हम भारतीयों को कभी भी प्राप्त नहीं हुई वह कसाब जैसे आतंकवादी को मिल रही है। जनता की कमाई को आतंकवादी पर लुटाया जा रहा है। यह स्थिति आप आज भी देख सकते हैं कि जिस देश में हजारों गरीब और उनके बच्चे डेंगू, मलेरिया, कुपोषण, उल्टी, दस्त से चल बसते हैं उस समय सरकार ध्यान नहीं देती लेकिन कसाब को डेंगू होते ही डॉक्टरों की टीम को चौसीब घंटे निगरानी करने के निर्देश दिए गए हैं। कसाब का स्वास्थ्य और अधिक खराब न हो उससे चिंतित होकर हमारे नेताओं के स्वास्थ्य बिगड़ रहे हैं।
मच्छर जी...। आपसे एक निवेदन और भी है। क्या आप अपनी अन्य प्रजातियों को इस देशभक्ति अभियान में शामिल कर सकते हैं। एक और आंतवादी मोहम्मद अफजल गुरू भी कई वर्षों से फांसी के फंदे तक नहीं पहुंच पा रहा है। कुछ लालची नेताओं ने इससे भी जिंदा रखा हुआ है। क्या आप डेंगू, चिकनगुनिया, मलेरिया, जैसी घातक बीमारियां देकर इससे भी अपना शिकार बना सकते है?
हां! एक बात और। आपके इस अभियान को कुचलना प्रयास भी किया जाएगा। ठीक उसी प्रकार जिस प्रकार आज बाबा रामदेव, अण्णा हजारे, अरविंद केजरीवाल के अभियानों को लेकर हो रहा है। आपके इस अभियान को कुचलने के लिए हमारा स्वास्थ्य विभाग कुछ कीटनाशक दवाओं का छिड़काव भी करेगा। लेकिन हम जानते हैं कि आपकी प्रजाति में बलिदान देने की परंपरा सदैव रही है। कई बार हम एक झटके में आपके परिजनों को मौत के घाट उतार देते हैं। मुझे आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है कि आपका देशभक्ति पूर्ण अभियान रुकने वाला नहीं है। इस अभियान में भले ही कोई आपका साथ न दे लेकिन मेरा साथ हमेशा रहेगा। आपका शुभचिंतक।
Wednesday, October 31, 2012
हमारा 'नेतीय गुण' है विशेष
किसी को काम न करने पर सजा
मिलती तो समझ आता, लेकिन काम करने पर सजा मिले फिर क्या होगा। भैया इटली
का कानून ही ऐसा है। अभी पिछले दिनों भूकंप की सही जानकारी न देने वाले छह
वैज्ञानिकों को वहां एक अदालत ने छह साल की सजा सुना दी। बेचारे वैज्ञानिक
हैं इसलिए सजा के लिए तैयार हो गए। अगर भारतीय नेता होते तो मामला ही कुछ
और होता।
हां! कानून तो कानून होता है। कोई पालन करता है तो कोई तोड़ता है। तो कोई कानून मंत्री होने की हेकड़ी दिखाता है। भारत में तो कानून मंत्री होने के कई फायदे हैं। कोई कितने भी आरोप लगाए, कितनी भी गलतियां करे, भ्रष्टाचार के कितने भी आरोप लगे, उल्टा शाबाशी ही मिलती है।
थोड़ी देर के लिए सोचा जाए कि यदि इटली के वैज्ञानिकों में थोड़े बहुत भी भारतीय नेताओं के कुछ 'नेतीय गुण' होते तो वे बड़े आराम से बच निकलते। वैज्ञानिक नेताओं की मधुर वाणी में बोलते कि 'देखिए हमने तो सही भविष्णवाणी की थी लेकिन इसमें भूकंप ने राह बदल दी तो इसमें हमारी क्या गलती है। गलती इसमें भूकंप की है। इसमें हम दोषी नहीं हो सकते हैं।
वैज्ञानिक कहते कि हमारे देश से अच्छा तो भारत है, जहां नेताओं को गलती करने पर प्रमोशन मिलता है और काम करने पर 'मोटा' कमीशन। एकाध एनजीओ खोल लेते तो कई विकलांगों का भला कर देते। विकलांगों की दुआएं मिलतीं और विदेश मंत्री भी बन जाते। हमारी किस्मत फूट गई इटली में रहकर। भारत में हमारी इटली वाली मैडम भी हमें गलती करने पर भी पर बचा लेतीं। उन्होंने कई लोगों को भी बचाया है। अपने दामाद को भी बचाने के लिए उन्होंने पूरी ताकत लगा दी। हम भी तो उनके लिए कुछ महत्वपूर्ण होते ही।
अपने 'नेतीय गुण' के कारण वैज्ञानिक सजा सुनाने वाले न्यायाधीश और अपोजिशन के वकील को अपने इलाके में आने पर देख लेने की धमकी भी दे देते।
कुछ वैज्ञानिक तो अपने कुछ विशेष नेताओं के जैसे विवादित बयान भी देते। वैज्ञानिक सजा सुनने के बाद पत्रकारों से कहते कि चूंकि न्यायाधीश का संबंध विपक्षी पार्टी है इसलिए हमें सजा सुनाई गई। वरना इसमें हमारी कोई भी गलती नहीं थी। न्यायाधीशों ने विपक्षी पाटिर्यों के कहने पर हमें सजा सुनाई है।
अगर भारतीय नेताओं की तरह इटली के वैज्ञानिकों में 'नेतीय गुण' होते तो सच मानिए एक भी वैज्ञानिक न तो सजा होती और न ही यह पता चलता कि वहां कभी कोई भूकंप आया था। अगर किसी को पता भी चल जाता कि भूकंप आया है तो मरने वालों का आंकड़ा कभी भी पता नहीं चल पाता। हमारे भारतीय नेताओं के 'नेतीय गुण' का विशेष महत्व है। यह अब पूरी दुनिया को समझ लेना चाहिए।
हां! कानून तो कानून होता है। कोई पालन करता है तो कोई तोड़ता है। तो कोई कानून मंत्री होने की हेकड़ी दिखाता है। भारत में तो कानून मंत्री होने के कई फायदे हैं। कोई कितने भी आरोप लगाए, कितनी भी गलतियां करे, भ्रष्टाचार के कितने भी आरोप लगे, उल्टा शाबाशी ही मिलती है।
थोड़ी देर के लिए सोचा जाए कि यदि इटली के वैज्ञानिकों में थोड़े बहुत भी भारतीय नेताओं के कुछ 'नेतीय गुण' होते तो वे बड़े आराम से बच निकलते। वैज्ञानिक नेताओं की मधुर वाणी में बोलते कि 'देखिए हमने तो सही भविष्णवाणी की थी लेकिन इसमें भूकंप ने राह बदल दी तो इसमें हमारी क्या गलती है। गलती इसमें भूकंप की है। इसमें हम दोषी नहीं हो सकते हैं।
वैज्ञानिक कहते कि हमारे देश से अच्छा तो भारत है, जहां नेताओं को गलती करने पर प्रमोशन मिलता है और काम करने पर 'मोटा' कमीशन। एकाध एनजीओ खोल लेते तो कई विकलांगों का भला कर देते। विकलांगों की दुआएं मिलतीं और विदेश मंत्री भी बन जाते। हमारी किस्मत फूट गई इटली में रहकर। भारत में हमारी इटली वाली मैडम भी हमें गलती करने पर भी पर बचा लेतीं। उन्होंने कई लोगों को भी बचाया है। अपने दामाद को भी बचाने के लिए उन्होंने पूरी ताकत लगा दी। हम भी तो उनके लिए कुछ महत्वपूर्ण होते ही।
अपने 'नेतीय गुण' के कारण वैज्ञानिक सजा सुनाने वाले न्यायाधीश और अपोजिशन के वकील को अपने इलाके में आने पर देख लेने की धमकी भी दे देते।
कुछ वैज्ञानिक तो अपने कुछ विशेष नेताओं के जैसे विवादित बयान भी देते। वैज्ञानिक सजा सुनने के बाद पत्रकारों से कहते कि चूंकि न्यायाधीश का संबंध विपक्षी पार्टी है इसलिए हमें सजा सुनाई गई। वरना इसमें हमारी कोई भी गलती नहीं थी। न्यायाधीशों ने विपक्षी पाटिर्यों के कहने पर हमें सजा सुनाई है।
अगर भारतीय नेताओं की तरह इटली के वैज्ञानिकों में 'नेतीय गुण' होते तो सच मानिए एक भी वैज्ञानिक न तो सजा होती और न ही यह पता चलता कि वहां कभी कोई भूकंप आया था। अगर किसी को पता भी चल जाता कि भूकंप आया है तो मरने वालों का आंकड़ा कभी भी पता नहीं चल पाता। हमारे भारतीय नेताओं के 'नेतीय गुण' का विशेष महत्व है। यह अब पूरी दुनिया को समझ लेना चाहिए।
Tuesday, October 23, 2012
तरक्की के लिए जरुरी है 'टॉयलेटीकरण'
हम लोग अपने दीपू की शादी को लेकर बड़े चिंतित थे। कोई न कोई समस्या के कारण विवाह में दिक्कत हो जाती थी। वह तो भला हो अपने पंडित रामदीन जी का जिन्होंने ऐसा उपाय बताया कि चट मंगनी, पट विवाह का कार्यक्रम बन गया। रामदीन जी हमारे गांव के अच्छे ज्योतिष हैं, इसलिए आज हम अपनी श्रीमती जी के साथ उनके कुटिया में पहुंच गए थे। हमारे दीपू की कुंडली को पूरे 19 मिनट तक देखा। कुंडली देखने के बाद आचश्र्यजनक मुद्रा बनाते हुए बोले-'अरे यार! दीपू की कुंडली के हिसाब से तो इसका विवाह साल भर पहले जो जाना चाहिए था। ग्रहों की चाल भी ठीक है। अब समस्या समझ नहीं आ रही है कि आखिर शादी में इतना विलंब क्यों हो रहा है?'
इसके बाद वे काफी देर तक ध्यान लगाने की मुद्रा में बैठे रहे। फिर अचनाक उन्होंने ऐसा सवाल किया जिसका ज्योतिष से कोई संबंध तो था नहीं लेकिन हमारे दीपू की शादी से जरूर था।
रामदीन जी ने हमसे पूछा- 'क्या तुम्हारे घर में टॉयलेट है?'
सवाल काफी विचित्र था लेकिन हमारे प्रतिप्रश्न से बात स्पष्ट हो गई। हमारी श्रीमती जी ने पल्लू को दांतों में दबाते हुए पूछा 'पंडित जी टॉयलेट का हमारे दीपू की शादी से क्या संबंध है? हमारे घर में टॉयलेट नहीं है क्या इसलिए ही हमारे दीपू का संबंध नहीं हो पा रहा है?'
जी भाभी जी..रामदीन जी बोले। आपने हमारे देश के केन्द्रीय ग्रामीण एवं विकास मंत्री जयराम रमेश जी का बयान नहीं पढ़ा क्या?
मंत्री जी ने बयान दिया है कि-'नो टॉयलेट, नो ब्राइड' अर्थात् जिस घर में टॉयलेट नहीं हो वहां लड़कियों को शादी नहीं करना चाहिए।' लो टॉयलेट का महत्व आपको पता नहीं है। भईया घूरे के भी दिन फिरते हैं। आज टॉयलेट के फिर रहे हैं। मुझे तो लगता जिस प्रकार टॉयलेट को महत्व दिया जा रहा है उससे तो आने वाले समय में स्थितियां और विचित्र होने वाली हैं। चुनाव आयोग ने कहीं यह फरमान जारी कर दिया कि जिस नेता का टॉयलेट चुनाव चिन्ह् हो जनता उसी को वोट दे तो क्या होगा? कई नेता रोजाना चुनाव आयोग के दफ्तर के चक्कर लगाते हुए नजर आएंगे। विद्यालयों में टी फॉर टी नहीं फिर टॉयलेट ही पढ़ाया जाएगा। बच्चों को स्कूलों में दाखिला दिलाने से पहले कक्षाओं से पहले माता-पिता द्वारा टॉयलेट देखना उनकी प्राथमिका में होगा। निजी स्कूलों और कॉलेजों के विज्ञापनों में एयर कंडीशन क्लास रूम की जगह एयर कंडीशन 'टॉयलेट' लिखा हुआ मिलेगा।
काफी देर तक चर्चा होती रही। चर्चा इस बात पर भी हुई की यह वही मंत्री हैं जिनके मुखिया योजना आयोग के अध्यक्ष हैं। ऐसा आयोग जो ग्रामीण इलाकों में टॉयलेट बनाने की जगह टॉयलेट घोटाला करता है। योजना आयोग ने अपने मुख्यालय योजना भवन में टॉयलेट बनाने के लिए 35 लाख रुपए खर्च कर दिए। इन टॉयलेट का इस्तेमाल करने के लिए 60 अफसरों को स्मार्ट कार्ड जारी भी किए गए हैं। इसलिए मेरी मानिए तो अपने घर में एक सुंदर सा टॉयलेट बनवा दीजिए, फिर देखना दीपू के लिए कितने रिश्ते आएंगे।
रामदीन जी की भविष्यवाणी एकदम सही साबित हुई। जिस दिन टॉयलेट बनकर तैयार हुआ, उसी दिन शाम को हमारे दीपू का रिश्ता तय हो गया। आज हम बहुत खुश हैं। जिस प्रकार हमारे परिवार में टॉयलेट के बनने से प्रगति हुई है उसको देखकर तो हम भी यही कहेंगे कि देश की तरक्की के लिए भी 'टॉयलेटीकरण' बहुत जरुरी है।
Tuesday, October 16, 2012
बंदूक वाले सदाचारी नेताजी
आज रामदीन जी के चेहरे पर इस्माइल देखकर हमारे चेहरे पर भी इस्माइल आ गई। पूछने पर बोले-'भाई साहब एक चुनावी सभा से आ रहा हूं। हम तो फिदा हो गए नेताजी के भाषण सुनकर। बेचारे बड़े ही भोले हैं। आजकल जहां परमाणु बम, ड्रोन हमले और आधुनिक हथियारों की बात होती हो, ऐसे में यदि कोई नेता बंदूक की बात करे तो यह उनका भोलापन ही होगा।'
'नेताजी कह रहे थे कि यदि उनकी सरकार बनी तो बंदूक के लायसेंस की प्रक्रिया को सरल किया जाएगा। बंदूक ही हमारी शान है। यह बयान ही उनकी आत्मीयता को प्रकट करता है। उनको हमारे युवाओं की इतना चिंता है कि वह उन्हें बंदूकों का कारोबार कराना चाहते हैं।'
नेता और आत्मीयता! सुनते ही पहले तो हंसी आई फिर बाद में मैंने कहा-'रामदीन जी, प्रदेश की जनता को सरकार बनते ही शस्त्र लायसेंस रेबड़ी की तरह बांटने की योजना बनाते नेताजी अगर अन्य मुद्दों पर 'बोल बच्चन' करते तो बेहतर होता। यदि यह कहा जाता कि हम सरकार बनाते ही प्रदेश में हर साल कुपोषण की वजह से होने वाली लगभग ३५ हजार बच्चों की मौत का आंकड़ा कम करने का प्रयास करेंगे तो कितना अच्छा होता। यदि यह कहा जाता कि सरकार बनते ही प्रदेश के लगभग ३९ लाख बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलाया जाएगा तो क्या चुनाव जीतना मुश्किल होता?'
क्या जमाना आ गया है जिन युवाओं के कंधों पर नेताजी को परिवारिक की जिम्मेदारियों का बोझ डालना चाहिए वह उन कंधों पर बंदूकों का बोझ डालने की बात कर रहे हैं!
हां! रामदीन जी...। वैसे भी जनता का सरकारों पर विश्वास ही कहां रहा है। आज बंदूक दिलाने की बात कर रहे हैं, फिर गोलियों की संख्या सीमित कर देंगे, बिल्कुल एक साल में मिलने वाले सब्सिडी के छह सिलेण्डरों की तरह!
आखिर रामदीन जी भी कब तक चुप बैठते। बोले-'अरे भाई साहब! आपको तो कुर्तक करने की आदत है। नेताजी ने सभी समस्याओं का समाधान निकालने के लिए ही तो बंदूक की बात कही है। बंदूक होगी तो कोई भी अपनी रोजी-रोटी की जुगाड़ कर लेगा, और सिलेण्डर की भी। हॉकर को धमकाओ तो सिलण्डेर मिल जाएगा और अफसरों को धमकाओ तो नौकरी। वाह भाई वाह! आप भले ही कुछ भी कहें, लेकिन हम तो नेताजी के फेन हो गए हैं!'
नेता और आत्मीयता! सुनते ही पहले तो हंसी आई फिर बाद में मैंने कहा-'रामदीन जी, प्रदेश की जनता को सरकार बनते ही शस्त्र लायसेंस रेबड़ी की तरह बांटने की योजना बनाते नेताजी अगर अन्य मुद्दों पर 'बोल बच्चन' करते तो बेहतर होता। यदि यह कहा जाता कि हम सरकार बनाते ही प्रदेश में हर साल कुपोषण की वजह से होने वाली लगभग ३५ हजार बच्चों की मौत का आंकड़ा कम करने का प्रयास करेंगे तो कितना अच्छा होता। यदि यह कहा जाता कि सरकार बनते ही प्रदेश के लगभग ३९ लाख बेरोजगार युवाओं को रोजगार दिलाया जाएगा तो क्या चुनाव जीतना मुश्किल होता?'
क्या जमाना आ गया है जिन युवाओं के कंधों पर नेताजी को परिवारिक की जिम्मेदारियों का बोझ डालना चाहिए वह उन कंधों पर बंदूकों का बोझ डालने की बात कर रहे हैं!
हां! रामदीन जी...। वैसे भी जनता का सरकारों पर विश्वास ही कहां रहा है। आज बंदूक दिलाने की बात कर रहे हैं, फिर गोलियों की संख्या सीमित कर देंगे, बिल्कुल एक साल में मिलने वाले सब्सिडी के छह सिलेण्डरों की तरह!
आखिर रामदीन जी भी कब तक चुप बैठते। बोले-'अरे भाई साहब! आपको तो कुर्तक करने की आदत है। नेताजी ने सभी समस्याओं का समाधान निकालने के लिए ही तो बंदूक की बात कही है। बंदूक होगी तो कोई भी अपनी रोजी-रोटी की जुगाड़ कर लेगा, और सिलेण्डर की भी। हॉकर को धमकाओ तो सिलण्डेर मिल जाएगा और अफसरों को धमकाओ तो नौकरी। वाह भाई वाह! आप भले ही कुछ भी कहें, लेकिन हम तो नेताजी के फेन हो गए हैं!'
Thursday, October 11, 2012
हमारे पास भी बहुत बुद्धिमान हैं श्रीमान्
बुद्धिमान केवल क्या विदेश में ही बसते हैं? हमारे यहां कोई बुद्धिमान नहीं है क्या? तो फिर बुद्धिमत्ता परीक्षा (इंटीलिजेंस टेस्ट) में भारत को निमंत्रण क्यों नहीं दिया गया? अगर बुद्धिमत्ता परीक्षा में हम भारतीय को बुलाया जाता तो हमारे पास तो इतने बुद्धिमान हैं कि वह अच्छे-अच्छों की छुट्टी कर देते। ये तो गलत बात हुई न, अकेले-अकेले प्रतियोगिता कर ली और मैडल भी खुद ही जीत लिया।
ब्रिटेन की एक बारह वर्षीय छात्रा ओलिविया मैनिंग ने बुद्धिमत्ता परीक्षा में 162 अंक पाकर अल्बर्ट आइंस्टीन और स्टीफन हॉकिंग को भी पीछे छोड़ दिया है, ये भी कोई खबर हुई क्या? खबर तो तब बेहतरीन होती जब हम भारतीयों को इस प्रतियोगिता में शामिल किया जाता।
अगर इस प्रतियोगिता के लिए भारतीयों को बुलाया जाता तो हमारे पास कौन-कौन से प्रतिभागी हो सकते थे इस पर मैंने काफी मंथन किया। पूरे देश को मानसिक दृष्टि से खंगलाने के बाद कुछ लोग मेरे दिमाग में आए हैं। भारत की ओर से इस प्रतियोगिता के लिए सबसे अच्छा कोई प्रतियोगी हो सकता था तो वह कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष सोनिया गांधी के दामाद रॉबर्ट वाड्रा हो सकते थे। यह वाड्रा के दिमाग का ही कमाल तो है कि उन्होंने 3 साल 300 करोड़ की सम्पत्ति जुटा ली। वरना आजकल तो इतनी महंगाई है कि 300 करोड़ की सम्पत्ति 3 साल में खत्म हो जाए। उनकी बुद्धिमत्ता तो तभी साबित हो चुकी थी जब उन्होंने अपनी सास के रूप में श्रीमती सोनिया गांधी को स्वीकार किया था।
बुद्धिमत्ता परीक्षा में भारत की ओर से दूसरे प्रतियोगी उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव भी हो सकते थे। अपने अखिलेश जी को देखिए न पिताजी की आज्ञा का पालन करते हुए मुख्यमंत्री जैसा महत्वपूर्ण पद संभाला हुआ है। इनकी बुद्धिमत्ता का मैं तो उसी वक्त कायल हो गया था जब उन्होंने एक साथ 50 मंत्रालय की जिम्मेदारी को स्वीकार किया था। जो व्यक्ति एक साथ 50 मंत्रालयों का काम-काज संभाल सकता है उसमें कितना दिमाग होगा आसानी से समझा जा सकता है।
सुरेश कलमाड़ी, ए.राजा, कनिमोझी, कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा, ये लोग भी कम बुद्धिमान नहीं है। बड़े-बड़े घोटाले कर फिर से राजनीति करना, कोई दिमाग वाला व्यक्ति ही कर सकता है। मुलायम सिंह, ममता बनर्जी, मायावती, शरद पवार जैसे राजनेताओं को भी इस प्रतियोगिता में भेजा जा सकता था। जोड़-तोड़ की राजनीति का अनुभव जितना इन राजनेताओं को है उससे निश्चिततौर पर हम 162 अंक से तो नीचे आते ही नहीं। कोई न कोई जोड़-तोड़ कर यह नेता कुछ न कुछ जीतकर तो आते ही। अगर हम भारतीयों को इस बुद्धिमत्ता परीक्षा में शामिल किया जाता तो 12 वर्षीय छोकरी ओलिविया को मात तो दे ही देते, क्योंकि हमारे पास एक से एक बुद्धिमान हैं।
Wednesday, October 3, 2012
पेटू सरकार
इंसान जिंदगी भर पेट के लिए दौड़ भाग करता रहता है। भगवान की अर्चना करने से भी ज्यादा पेट पूजा जरूरी होती है। बड़े-बड़े संत भी कह गए हैं कि 'भूखे पेट भजन न होये गोपाला'। पोषण आहार न मिले तो कुपोषण जैसी खतरनाक बीमारी हो जाती है। इसलिए खाना बहुत महत्वपूर्ण है। खाने का महत्व भले ही देश की जनता नहीं जानती हो लेकिन हमारी केन्द्र सरकार के मुखिया प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह अच्छी तरह से जानते हैं। जिस प्रकार शरीर को स्वस्थ रखने के लिए रोज भोजन किया जाता है ठीक उसी प्रकार सरकार को स्वस्थ रखने के लिए 'भोज' दिया जाता है।
पुराने दिन याद आ रहे हैं जब निमंत्रण पर जाते थे तो पंगत में नजदीक में बैठे व्यक्ति की थाली में घी देखा करता था। दूसरों की तरह मुझे भी हमेशा दूसरे की थाली में घी देखने की आदत थी। दूसरों की तरह मुझे भी हमेशा दूसरे की थाली में घी ज्यादा ही नजर आता था। हालांकि मैं केवल देखता ही था, चर्चा कभी किसी से नहीं करता। लेकिन आज मुझे विश्वास नहीं होता कि भारतीय कितने लालची और अमानवीय हो गए हैं। केन्द्र सरकार की तीसरी वर्षगांठ पर प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह द्वारा दिए गए भोज को ही सार्वजनिक कर दिया। लोग पहले घी देखते थे लेकिन देखो तो, हद ही पार कर दी। पूरी थाली ही देख डाली। देखने पर पता चला कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने 375 मेहमानों के भोज पर 29 लाख रुपए खर्च कर दिए। एक व्यक्ति की थाली पर 7721 रुपए खर्चा हुआ।
मुझे समझ नहीं आ रहा है कि लोग सरकार की सराहना करने की बजाए आलोचना क्यों कर रहे हैं? आलोचकों को पता होना चाहिए कि विदेशी लोग भारत में व्याप्त भुखमरी के लिए हमेशा ताने देते रहते हैं। हमारी केन्द्र सरकार ने जो काम किया है उस पर तो हमें गर्व होना चाहिए कि उन्होंने भुखमरी जैसे कलंक को मिटाने की एक कोशिश की। इस कृत्य से हम विदेशियों को साक्ष्य देकर बता सकते हैं कि हमारे यहां कोई भुखमरी नहीं है। हमारे यहां एक थाली पर 7721 रुपए खर्च किए जाते हैं।
हमारी सरकार विचारों से भले गरीब हो लेकिन खर्चा करने में गरीब नहीं है। इस बात के प्रमाण हम पहले भी देख चुके हैं। विदेशियों को पता भी नहीं होगा कि हमारे यहां योजना आयोग ने दिल्ली में दो शौचालयों के नवीनीकरण पर ही 35 लाख रुपए खर्च कर दिए। साफ-सफाई और भोजन पर कैसे ध्यान दिया जाता है यह भारतीयों से सीखा जा सकता है।
ऐसा नहीं है कि भारत सरकार के मंत्री केवल खाते ही रहते हैं। मंत्री लोग घूमने फिरने में भी कोई कंजूसी नहीं करते हैं। 2011-12 में 678 करोड़ 52 लाख 60 हजार रुपए मंत्रियों के विदेश दौरों पर स्वाहा हो चुके हैं। इस वर्ष पिछले साल से 12 गुना ज्यादा खर्च विदेशी दौरों पर किया गया।
जहां तक खाने को लेकर हो रही बदनामी का सवाल है तो मुझे लगता है कि सरकार को कोई चिंता नहीं करनी चाहिए। क्योंकि हम तो पहले ही कोयला आवंटन, प्रत्यक्ष विदेशी निवेश, 2-जी स्पेक्ट्रम, राष्ट्र मण्डल खेल, आदर्श सोसायटी जैसे घोटाले कर जनता की गाढ़ी कमाई को डकार चुके हैं। इसलिए एक थाली पर खर्च की गई 7721 रुपए जैसी छोटी सी रकम की बात ही क्या करना!!
Wednesday, September 26, 2012
कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे हैं!
समझदार, ईमानदार,
अनुभवी, निपुण, शांत स्वभाव, चिंतनशील जैसे शब्दों का एक पर्यायवाची ढूंढा
जाए तो इसका जवाब 'प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह' होना चाहिए। वैसे तो
उन्हें कोई सीख देना मेरी वेबकूफी ही होगी लेकिन फिर भी क्या करूं, मन तो
नहीं मानता ना। बेचारे काफी दिनों से परेशान चल रहे हैं। उनको चिंता में
देखकर मेरी भी चिंता काफी बढ़ जाती है।
दाग किसे अच्छे लगते हैं। अब देखो न कोयला मंत्रालय संभालते-संभालते काले धब्बे लग ही गए। और तो और 2-जी स्पेक्ट्रम, महंगाई, सिलेण्डरों की सीमित संख्या जैसे कई मामलों ने भी उलझन में डाल दिया है। दामन पर रोज कोई न कोई दाग लग जाता है। दाग को थोड़ा साफ करने के लिए भारत में विदेशी कंपनियों को सीधे निवेश करने की छूट भी दे दी लेकिन कमबख्त दाग है कि मिटता ही नहीं।
प्रधानमंत्री को पता होना चाहिए कि आजकल प्रेक्टिकल होने का जमाना है। जनता जवाब मांगती है। इसलिए यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो इन सभी उलझनों से बच निकलने के लिए टीवी पर आने वाले विज्ञापन का सहारा लेता। यदि कोई विपक्षी पार्टी का नेता, अण्णा हजारे, अरविंद केजरीवाल, बाबा रामदेव टाईप के सामाजिक कार्यकर्ता मुझसे सवाल करते तो मैं उनसे एक ही बात कहता। 'देखो भाई-यदि दाग लगने से कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे हैं।' वाशिंग पाउडर 'सर्फ एक्सेल' का विज्ञापन तो सभी ने देखा होगा। विज्ञापनों से भी सीख लेना चाहिए।
मैं प्रधानमंत्री होता तो बताता कि भले ही हमारी सरकार में 2-जी स्पेक्ट्रम का घोटाला हुआ है लेकिन आप जानते नहीं देश कितना तरक्की कर रहा है। गरीब से गरीब व्यक्ति के पास मोबाइल है। जब कोई गरीब कान पर लगाकर जब हैलो... बोलता है तो कितना अच्छा लगता है, इसे बयान नहीं किया जा सकता। हमारी सरकार तो अगले साल से रोमिंग फ्री करने जा रही है।
इसी प्रकार सिलेण्डरों की संख्या निर्धारित करने के पीछे भी देश की तरक्की को समझना चाहिए। हम देश को विकसित करना चााहते हैं। कहां रोज-रोज सिलेण्डर की चिंता, अब तो इडक्शन कुकर का जमाना है। पेट्रोल-डीजल के दाम भी इसलिए बढ़ाए जा रहे हैं कि लोगों को पैदल चलने की आदत डाली जाए जिससे लोगों का स्वास्थ्य ठीक रहे।
हमने विदेशी कंपनियों को सीधे निवेश करने की छूट भी इसलिए दी क्योंकि विदेशों में यह संदेश जाएगा कि दुनिया में बड़े दिल वाला यदि कोई देश है तो वह भारत ही है। हमारे बड़े दिल का ही कमाल है कि जिस कंपनी का अमेरिका में विरोध हो रहा है, उस कंपनी के लोग परेशानी में हैं तब हमने उन्हें सराहा दिया। लोग समझते ही नहीं, भारत कितनी तरक्की कर रहा है।
ऐसे कई मामलों हैं जिन पर भारत लगातार प्रगति कर रहा है। इसलिए तो हमारे प्रधानमंत्री को भी खुलकर जनता के सामने आकर यह कहने की बजाय कि 'पैसे पेड़ पर नहीं उगते', के स्थान पर कहना चाहिए-'यदि दाग लगने से कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे हैं।'
दाग किसे अच्छे लगते हैं। अब देखो न कोयला मंत्रालय संभालते-संभालते काले धब्बे लग ही गए। और तो और 2-जी स्पेक्ट्रम, महंगाई, सिलेण्डरों की सीमित संख्या जैसे कई मामलों ने भी उलझन में डाल दिया है। दामन पर रोज कोई न कोई दाग लग जाता है। दाग को थोड़ा साफ करने के लिए भारत में विदेशी कंपनियों को सीधे निवेश करने की छूट भी दे दी लेकिन कमबख्त दाग है कि मिटता ही नहीं।
प्रधानमंत्री को पता होना चाहिए कि आजकल प्रेक्टिकल होने का जमाना है। जनता जवाब मांगती है। इसलिए यदि मैं प्रधानमंत्री होता तो इन सभी उलझनों से बच निकलने के लिए टीवी पर आने वाले विज्ञापन का सहारा लेता। यदि कोई विपक्षी पार्टी का नेता, अण्णा हजारे, अरविंद केजरीवाल, बाबा रामदेव टाईप के सामाजिक कार्यकर्ता मुझसे सवाल करते तो मैं उनसे एक ही बात कहता। 'देखो भाई-यदि दाग लगने से कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे हैं।' वाशिंग पाउडर 'सर्फ एक्सेल' का विज्ञापन तो सभी ने देखा होगा। विज्ञापनों से भी सीख लेना चाहिए।
मैं प्रधानमंत्री होता तो बताता कि भले ही हमारी सरकार में 2-जी स्पेक्ट्रम का घोटाला हुआ है लेकिन आप जानते नहीं देश कितना तरक्की कर रहा है। गरीब से गरीब व्यक्ति के पास मोबाइल है। जब कोई गरीब कान पर लगाकर जब हैलो... बोलता है तो कितना अच्छा लगता है, इसे बयान नहीं किया जा सकता। हमारी सरकार तो अगले साल से रोमिंग फ्री करने जा रही है।
इसी प्रकार सिलेण्डरों की संख्या निर्धारित करने के पीछे भी देश की तरक्की को समझना चाहिए। हम देश को विकसित करना चााहते हैं। कहां रोज-रोज सिलेण्डर की चिंता, अब तो इडक्शन कुकर का जमाना है। पेट्रोल-डीजल के दाम भी इसलिए बढ़ाए जा रहे हैं कि लोगों को पैदल चलने की आदत डाली जाए जिससे लोगों का स्वास्थ्य ठीक रहे।
हमने विदेशी कंपनियों को सीधे निवेश करने की छूट भी इसलिए दी क्योंकि विदेशों में यह संदेश जाएगा कि दुनिया में बड़े दिल वाला यदि कोई देश है तो वह भारत ही है। हमारे बड़े दिल का ही कमाल है कि जिस कंपनी का अमेरिका में विरोध हो रहा है, उस कंपनी के लोग परेशानी में हैं तब हमने उन्हें सराहा दिया। लोग समझते ही नहीं, भारत कितनी तरक्की कर रहा है।
ऐसे कई मामलों हैं जिन पर भारत लगातार प्रगति कर रहा है। इसलिए तो हमारे प्रधानमंत्री को भी खुलकर जनता के सामने आकर यह कहने की बजाय कि 'पैसे पेड़ पर नहीं उगते', के स्थान पर कहना चाहिए-'यदि दाग लगने से कुछ अच्छा होता है तो दाग अच्छे हैं।'
Wednesday, September 19, 2012
हमारी स्वीट् भाषा हिन्दी...
आज का दिन रामदीन जी के लिए काफी महत्वपूर्ण रहा। अभी एक स्कूल में हिन्दी दिवस पर 'स्पीच' देकर आ रहे हैं। मैं भी उनके साथ गया था। 'प्रोगाम' काफी अच्छा रहा। शिक्षक होने के नाते रामदीन जी की 'नॉलेज' अच्छी है, जिसका अनुभव मुझे भी हुआ। लेकिन रास्ते में लौटते वक्त थोड़ा विवाद हो गया।
रामदीन जी जब बोल रहे थे तब मैंने देखा कि सभी उनको कितने ध्यान से सुन रहे हैं। माइक को थामते हुए रामदीन जी ने कहा कि हिन्दी हमारी मातृभाषा है। हमें हिन्दी का सम्मान करना चाहिए। उनके ये शब्द बोलते ही बच्चे काफी देर तक तालियां बजाते रहे।
अब आपको तो पता ही है कि तालियां कितना उत्साह बढ़ाती हैं, सो रामदीन का भी उत्साह बढऩे लगा। आगे वह बोले कि पूरी दुनिया में सबसे 'स्वीट्' भाषा यदि कोई है तो वह हमारी हिन्दी ही है। हिन्दी की इसी 'क्वालिटी' के कारण कई देशों अमेरिका, चाइना, जापान, मलेशिया और न जाने कहां-कहां लोग हिन्दी सीखने की कोशिश कर रहे हैं।
रामदीन जी बोले- 'हिन्दी भाषा की सरलता के कारण इसे बोलने और लिखने में भी काफी आसानी होती है। यही कारण है कि आज हमारी 'कंट्री' में करोड़ो लोग हिन्दी बोलते हैं। उन्होंने कहा कि लेकिन दुर्भाग्य इस बात का है कि आज हिन्दी को कई लोग भूलते जा रहे हैं। 'नो वडी वांट टू स्पीक हिन्दी'। इसलिए हमको हिन्दी भाषा का सम्मान दिलाने के लिए यह जरूरी है कि हम सभी हिन्दी को अधिक से अधिक 'यूज' करें और दूसरों को भी 'यूज' करने के लिए निवेदन करें। यदि हम इस प्रकार का प्रयास लोगों के बीच जाकर करेंगे तो 'डेफीनेटली' हम हिन्दी को विश्व की सर्वाधिक बोले जाने वाली भाषा के रूप में स्थापित कर सकेंगे। आप लोगों ने मुझे जो बोलने का अवसर दिया इसके लिए 'थैंक्यू'।' इसके बाद रामदीन जी मंच पर आ गए।
कार्यक्रम यहां भी खत्म नहीं हुआ। कार्यक्रम के अंत में रामदीन जी के उपन्यास 'वन डे' का विमोचन भी किया गया। अंग्रेजी भाषा में लिखित इस उपन्यास की सभी ने तारीफ की।
घर लौटते वक्त रामदीन जी फूले नहीं समा रहे थे। वह बोले-'आई डोंट थिंक देट' स्कूल वाले मुझे इतना 'रेसपेक्ट' देंगे। 'आई नेवर फॉरगेट दिस रेसपेक्ट'। फिर उन्होंने पूछा अच्छा छोड़ो, तुमने तो पूरी 'स्पीच' सुनी है तो तुम मुझे कितने 'प्वाइंट' देगो? मैं क्या करता। काफी देर तक तो चुप रहा। लेकिन फिर मुझे बोलना ही पड़ा-'आई विल गिव यू जीरो मार्स्क'। क्योंकि हम जैसे लोगों की वजह से ही हिन्दी को उसका सही सम्मान नहीं मिल पा रहा है। मेरी बात रामदीन जी समझ गए कि मैं क्या कहना चाहता हूं। अरे...आप समझे या नहीं?
Wednesday, September 12, 2012
अब हमें भी चाहिए आरक्षण
रेलवे आरक्षण, धार्मिक आरक्षण, जाति आरक्षण, महिला आरक्षण, आरक्षण में आरक्षण, पदोन्नती में आरक्षण, प्रकाश झा की फिल्म 'आरक्षण' इतने सारे आरक्षण का प्रभाव रामदीन जी के घर पलने वाले पालतु पशुओं पर भी पडऩे लगा है। हर रोज कोई न कोई जानवर उनके सामने खड़े होकर अपनी समस्या बताने लगता है। रामदीन जी भी बड़े चालाक हैं कि आरक्षण का लालच देकर सभी को अपने बंधन में फांस रखा है।
कल सुबह की बात है। रामदीन का कालू (कुत्ता) उनके पास आया और बोला- 'मुझे आरक्षण चाहिए।' कालू बोला-'साब! रामू (हाथी) हमसे काफी ताकतवर है। वह बहुत शक्तिशाली है इसलिए अपने भोजन पानी की व्यवस्था स्वयं कर लेता है। वह दूसरे के हिस्से पर भी मुंह मारता-फिरता है। कल ही उसने हमारे हिस्से की भी रोटी खाली ली। हमारे खाने के लिए कुछ भी नहीं छोड़ा। गोलू (शेर) भी हम जैसे छोटे लोगों पर काफी अत्याचार करता है। वह हमें डरा धमकाकर हमसे भोजन आदि की व्यवस्था करने के लिए दबाव बनाता है।'
कालू चुप हुआ तो रानी (बिल्ली) भी बोल पड़ी-'हां! मालिक मुझे भी मेरा परिवार पालने में काफी परेशानी हो रही है। मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं। आप तो जानते ही हैं कि आजकल चूहों की संख्या भी कम हो रही है। दूध पीने के लिए घर-घर भटकना पड़ता है। और तो और मैं स्त्री जाति की भी हूं इसलिए हमारी इस जाति को विशेष आरक्षण मिलना चाहिए। मुझे लगता है कि हमारे लिए दूध की अलग से व्यवस्था होनी चाहिए।' रानी ने दबाव बनाते हुए कहा-'देखिए आप हमारी बात मान लिजिए, नहीं तो हमें मजबूरन आंदोलन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।'
इसके बाद कालू ने विरोध करते हुए कहा- 'साब! आपने अगर रानी के समाज को अधिक महत्व दिया तो अच्छा नहीं होगा। हमारे समाज ने भी अण्णा हजारे की तरह 'नाक दबाकर मुंह खुलवाने' की योजना बना ली है।' हमारा समाज आपकी नाक में दम कर देगा।
लेकिन रामदीन जी भी अपना चिडिय़ाघर चलाना अच्छी तरह जानते हैं। उन्होंने परेशान जानवरों को बताया कि मैं तो चाहता हूं कि आपके समाज को उन्नती, अच्छा भोजन, अच्छा रहन-सहन मिले लेकिन कम्बख्त आपके पड़ोसी (विपक्षी) हमें ऐसा करने ही नहीं देते। चिंता मत कीजिए कुछ दिन और सहन कीजिए मैं आपको आश्वासन देता हूं कि आपको आपका हक दिलाया जाएगा। एक काम कीजिए आपकी जो-जो मांगें हैं कृपया एक प्रस्ताव बनाकर मेरे समक्ष प्रस्तुत कीजिए। आरक्षण सभी को मिलेगा।
रामदीन जी के इस आश्वासन का लॉलीपॉप चूसते हुए कालू और रानी शांत हो गए। मैं तो पहले से ही शांत बैठा हुआ था। थोड़ी देर बाद मैं भी अपने बिल (घर) में आ गया।
Thursday, September 6, 2012
शाबाश...बेटा!
''उल्लू, गधा कहीं का, चल भाग यहां से, आज के बाद मुझे मुंह नहीं दिखाना।
क्या मैंने तुझे इस दिन के लिए बड़ा किया था कि तू अपने बाप की बात नहीं
मानेगा।'' -रामदीन जी आज जब अपने बेटे को बुरी तरह फटकार रहे थे तब इस तरह
की कुछ आवाजें मेरे जैसे कई पड़ौसियों के कानों में गूंज रही थीं। मुझसे
रहा नहीं गया तो मैं उनके घर पर पहुंच गया।
रामदीन जी मुझे देखते ही बोले-''अच्छा हुआ यार तुम आ गए। अब तू ही समझा मेरे बेटे को।''
चूंकि मामला थोड़ा गंभीर लग रहा था इसलिए मैंने अपनी आंखें बड़ी कर, माथे को सिकोड़ते हुए बड़ी सहजता से पूछा-''आखिर बात क्या है?''
तब रामदीन जी ने बताया कि ''आज मैंने अपने रवि से पूछा कि भविष्य को लेकर कुछ सोचा है कि नहीं? या फिर यूं ही टीवी पर फिल्में देखता रहेगा। तो रवि ने जवाब दिया कि हां! मैंने सोच लिया है, मैं देश की सेवा करूंगा, सेना में जाऊंगा। बस वहीं मैंने माथा ठोक लिया।''
तब मैंने कहा कि इसमें बुराई क्या है? रामदीन जी बोले- ये लो आप भी ना। मैं अपने रवि को इतनी देर से यही तो समझाने का प्रयास कर रहा हूं कि देश की सेवा में कुछ नहीं रखा। कोई खेल खेलना शुरू कर दे। कोई खिलाड़ी बन जा। करोड़ों में खेलेगा।
आपको नहीं पता कि हमारी सरकार सेना के जवानों से ज्यादा खिलाडिय़ों पर दिल खोल कर पैसा लुटाती है। कोई खिलाड़ी ओलंपिक का कोई पदक जीत आए तो देखो कैसे करोड़ों रुपए इनाम में मिलते हैं। आप तो जानते ही होंगे कि सायना नेहवाल को अभी क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने करोड़ों रुपए की कार बीएमडब्ल्यू उपहार में दी है। सरकार के खेल मंत्री भी राज्यसभा में बोल चुके हैं कि हमने लंदन ओलंपिक के लिए 142.43 करोड़ खिलाडिय़ों के प्रशिक्षण पर खर्च किए हैं। जानते हैं राष्ट्र मण्डल खेलों पर 70 हजार करोड़ रुपए से अधिक लुटा दिए। राष्ट्र मण्डल खेलों के शुभारंभ के मौके पर 60 करोड़ रुपए तो हमने केवल एक गुब्बारे पर ही फूंक दिए थे। इन सबसे अच्छा आईपीएल है। आईपीएल में कैसे खिलाडिय़ों की निलामी होती है। आईपीएल-5 के समय रविन्द्र जडेजा को 20 लाख डॉलर में खरीदा गया था।
रामदीन का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। वे बोले ये गधा सेना में जाना चाहता है। उस सेना में जिसमें पूर्व सेना अध्यक्ष जनरल वी.के. सिंह खुद पांच पेज की चिट्ठी प्रधानमंत्री को लिखकर बता चुके हैं कि सेना की स्थिति ठीक नहीं है। सेना में टेंक, गोला, बारूद खत्म हो चुका है। पैदल सेना के पास हथियारों तक की कमी है। हवाई सुरक्षा के 97 फीसदी उपकरण बेकार हो चुके हैं, युद्ध के समय काम आने वाले पैराशूट्स भी खत्म हो गए हैं।
हमारे देश के नेता एक ओर तो खिलाडिय़ों को पलकों पर बिठाते हैं, उधर सेना का कोई जवान जब किसी हमले में शहीद हो जाता है तो उनकी विधवाओं को देखकर मुंह मोड़ लिया जाता है। सैनिकों के लिए तैयार आदर्श सोसायटी के बंगलों पर नेताओं ने कब्जा कर लिया। कितने सैनिकों की विधवाओं को पेट्रोल पंप दिए जाने का आश्वासन दिया गया लेकिन कितने नेताओं के पंप चल रहे हैं।
इन बाप-बेटों के चक्कर में मेरा भी दिमाग घूम गया। कुछ देर बाद रवि अपने आंसू पोछते हुए बोला-''आई एम सॉरी डैडी!'', आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगा। देश की रक्षा के लिए मेरे दूसरे भाई हैं ना...!
रामदीन जी मुझे देखते ही बोले-''अच्छा हुआ यार तुम आ गए। अब तू ही समझा मेरे बेटे को।''
चूंकि मामला थोड़ा गंभीर लग रहा था इसलिए मैंने अपनी आंखें बड़ी कर, माथे को सिकोड़ते हुए बड़ी सहजता से पूछा-''आखिर बात क्या है?''
तब रामदीन जी ने बताया कि ''आज मैंने अपने रवि से पूछा कि भविष्य को लेकर कुछ सोचा है कि नहीं? या फिर यूं ही टीवी पर फिल्में देखता रहेगा। तो रवि ने जवाब दिया कि हां! मैंने सोच लिया है, मैं देश की सेवा करूंगा, सेना में जाऊंगा। बस वहीं मैंने माथा ठोक लिया।''
तब मैंने कहा कि इसमें बुराई क्या है? रामदीन जी बोले- ये लो आप भी ना। मैं अपने रवि को इतनी देर से यही तो समझाने का प्रयास कर रहा हूं कि देश की सेवा में कुछ नहीं रखा। कोई खेल खेलना शुरू कर दे। कोई खिलाड़ी बन जा। करोड़ों में खेलेगा।
आपको नहीं पता कि हमारी सरकार सेना के जवानों से ज्यादा खिलाडिय़ों पर दिल खोल कर पैसा लुटाती है। कोई खिलाड़ी ओलंपिक का कोई पदक जीत आए तो देखो कैसे करोड़ों रुपए इनाम में मिलते हैं। आप तो जानते ही होंगे कि सायना नेहवाल को अभी क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने करोड़ों रुपए की कार बीएमडब्ल्यू उपहार में दी है। सरकार के खेल मंत्री भी राज्यसभा में बोल चुके हैं कि हमने लंदन ओलंपिक के लिए 142.43 करोड़ खिलाडिय़ों के प्रशिक्षण पर खर्च किए हैं। जानते हैं राष्ट्र मण्डल खेलों पर 70 हजार करोड़ रुपए से अधिक लुटा दिए। राष्ट्र मण्डल खेलों के शुभारंभ के मौके पर 60 करोड़ रुपए तो हमने केवल एक गुब्बारे पर ही फूंक दिए थे। इन सबसे अच्छा आईपीएल है। आईपीएल में कैसे खिलाडिय़ों की निलामी होती है। आईपीएल-5 के समय रविन्द्र जडेजा को 20 लाख डॉलर में खरीदा गया था।
रामदीन का गुस्सा बढ़ता जा रहा था। वे बोले ये गधा सेना में जाना चाहता है। उस सेना में जिसमें पूर्व सेना अध्यक्ष जनरल वी.के. सिंह खुद पांच पेज की चिट्ठी प्रधानमंत्री को लिखकर बता चुके हैं कि सेना की स्थिति ठीक नहीं है। सेना में टेंक, गोला, बारूद खत्म हो चुका है। पैदल सेना के पास हथियारों तक की कमी है। हवाई सुरक्षा के 97 फीसदी उपकरण बेकार हो चुके हैं, युद्ध के समय काम आने वाले पैराशूट्स भी खत्म हो गए हैं।
हमारे देश के नेता एक ओर तो खिलाडिय़ों को पलकों पर बिठाते हैं, उधर सेना का कोई जवान जब किसी हमले में शहीद हो जाता है तो उनकी विधवाओं को देखकर मुंह मोड़ लिया जाता है। सैनिकों के लिए तैयार आदर्श सोसायटी के बंगलों पर नेताओं ने कब्जा कर लिया। कितने सैनिकों की विधवाओं को पेट्रोल पंप दिए जाने का आश्वासन दिया गया लेकिन कितने नेताओं के पंप चल रहे हैं।
इन बाप-बेटों के चक्कर में मेरा भी दिमाग घूम गया। कुछ देर बाद रवि अपने आंसू पोछते हुए बोला-''आई एम सॉरी डैडी!'', आप जैसा कहेंगे मैं वैसा ही करूंगा। देश की रक्षा के लिए मेरे दूसरे भाई हैं ना...!
काफी देर बाद
रामदीन जी के चेहरे पर मुस्कुराहट आई और बोले-''शाबाश...बेटा!'', मुझे तुमसे यही उम्मीद थी।
Tuesday, August 28, 2012
अपने रामदीन जी की 'सरकार'
सबसे पहले तो आपको सूचित करता हूं कि इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं।
इस कहानी का पिछले दिनों हुई केन्द्र सरकार की छीछालेदर से भी कोई लेना
देना नहीं है। मेरा मन एक फिल्म बनाने का कर रहा है। फिल्म का नाम भी सोच
लिया है। 'सरकार'...। इस 'सरकार' का मशहूर फिल्म निर्माता रामगोपाल वर्मा
की फिल्म 'सरकार' से भी कोई संबंध नहीं है। मेरी फिल्म कुछ अलग हटकर है।
आज सुबह रामदीन जी घर आए तो चाय पीते-पीते अपनी फिल्म बनाने की योजना के बारे में ऐसी ही कुछ बातें कह रहे थे। हालांकि मेरा मन तो नहीं कर रहा था उनकी स्टोरी सुनने का, लेकिन उन्होंने जब 'सरकार' कहा तो मेरी आंख एकदम खुल गई।
रामदीन जी बोले-'देखो भाईसाहब... मैं जो फिल्म बनाने जा रहा हूं उसमें एक प्रधानमंत्री है जो हमेशा किसी के इशारे पर चलता है। कभी कुछ बोलता भी नहीं है। वैसे तो इनको ईमानदार लोगों में गिना जाता है लेकिन एक समय ऐसा आता है जब ये अपने मंत्रियों की तरह बड़े-बड़े घोटालों में फंस जाते हैं।
इसके बाद इनके साथी कुछ मंत्री जो स्वयं बड़े-बड़े घोटालों को अंजाम दे चुके होते हैं वह देश को बताने की कोशिश करते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री ने कोई घोटाला नहीं किया है। वह तो देश की तरक्की में जी-जान से लगे हुए हैं। घोटालों का जिस प्रकार से सरकार एजेंसियां आंकलन कर रही हैं उनके बारे में सभी साथी मंत्री देश की जनता को बताते हैं कि सरकारी आंकड़े हमेशा झूठे होते हैं। वे तर्क देकर अपने प्रधानमंत्री का पूरी तरह बचाव करते नजर आते हैं।'
फिल्म की कहानी मुझे धीरे-धीरे पसंद आने लगी। इसलिए मैंने पूछा-'इसमें विपक्षी पार्टियों का रोल भी तो होगा?' रामदीन जी ने बताया कि-'अरे भाईसाहब...! विपक्षी पार्टियां भी हैं। लेकिन यह 'सरकार' है ना, 'एक कान से सुनती है और दूसरे से निकाल देती है।' 'चोरी और सीना जोरी' सब चलता रहता है।
फिर मैंने सवाल किया-'अच्छा ये बताओ कि इसमें मुख्य किरदार किसका है?' मुख्य किरदार के बारे में रामदीन जी चुप हो गए। और मुस्कुराते हुए बोले-'मुख्य किरदार के लिए तो आपको मेरी फिल्म देखने के लिए सिनेमाघर आना पड़ेगा। अभी पूरी स्टोरी सुना दूंगा तो मेरी फिल्म पर ठीक उसी तरह प्रतिबंध लग जाएगा जिस प्रकार सोशल नेटवर्किंग साइटों पर लग गया है।'
चाय नाश्ता खत्म हुआ। रामदीन जी के जाने के बाद मैं पूरे दिन यही सोचता रहा कि कितनी अजीब बात है। फिल्म भी काल्पनिक है और हमारी सराकर भी। क्योंकि आज जिस तरह देश चल रहा है वह मात्र कल्पना ही तो है। कोई लेपटॉप बांटने की बात करता है तो कोई गरीबों को मोबाइल, कोई 'आकाश' देकर आकाश में उडऩे के सपने दिखाता है तो कोई देश को महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, भूखमरी, कुपोषण से मुक्त करने की बात कहता है। रामदीन जी की फिल्म 'सरकार' और हमारी केन्द्र सरकार में कितनी समानताएं हैं। जब देश ही कल्पनाओं पर चल रहा है तो मुझे लगता है कि अपने रामदीन जी की फिल्म 'सरकार' भी हिट हो सकती है। क्योंकि वह भी तो कल्पनाओं पर आधारित है।
आज सुबह रामदीन जी घर आए तो चाय पीते-पीते अपनी फिल्म बनाने की योजना के बारे में ऐसी ही कुछ बातें कह रहे थे। हालांकि मेरा मन तो नहीं कर रहा था उनकी स्टोरी सुनने का, लेकिन उन्होंने जब 'सरकार' कहा तो मेरी आंख एकदम खुल गई।
रामदीन जी बोले-'देखो भाईसाहब... मैं जो फिल्म बनाने जा रहा हूं उसमें एक प्रधानमंत्री है जो हमेशा किसी के इशारे पर चलता है। कभी कुछ बोलता भी नहीं है। वैसे तो इनको ईमानदार लोगों में गिना जाता है लेकिन एक समय ऐसा आता है जब ये अपने मंत्रियों की तरह बड़े-बड़े घोटालों में फंस जाते हैं।
इसके बाद इनके साथी कुछ मंत्री जो स्वयं बड़े-बड़े घोटालों को अंजाम दे चुके होते हैं वह देश को बताने की कोशिश करते हैं कि हमारे प्रधानमंत्री ने कोई घोटाला नहीं किया है। वह तो देश की तरक्की में जी-जान से लगे हुए हैं। घोटालों का जिस प्रकार से सरकार एजेंसियां आंकलन कर रही हैं उनके बारे में सभी साथी मंत्री देश की जनता को बताते हैं कि सरकारी आंकड़े हमेशा झूठे होते हैं। वे तर्क देकर अपने प्रधानमंत्री का पूरी तरह बचाव करते नजर आते हैं।'
फिल्म की कहानी मुझे धीरे-धीरे पसंद आने लगी। इसलिए मैंने पूछा-'इसमें विपक्षी पार्टियों का रोल भी तो होगा?' रामदीन जी ने बताया कि-'अरे भाईसाहब...! विपक्षी पार्टियां भी हैं। लेकिन यह 'सरकार' है ना, 'एक कान से सुनती है और दूसरे से निकाल देती है।' 'चोरी और सीना जोरी' सब चलता रहता है।
फिर मैंने सवाल किया-'अच्छा ये बताओ कि इसमें मुख्य किरदार किसका है?' मुख्य किरदार के बारे में रामदीन जी चुप हो गए। और मुस्कुराते हुए बोले-'मुख्य किरदार के लिए तो आपको मेरी फिल्म देखने के लिए सिनेमाघर आना पड़ेगा। अभी पूरी स्टोरी सुना दूंगा तो मेरी फिल्म पर ठीक उसी तरह प्रतिबंध लग जाएगा जिस प्रकार सोशल नेटवर्किंग साइटों पर लग गया है।'
चाय नाश्ता खत्म हुआ। रामदीन जी के जाने के बाद मैं पूरे दिन यही सोचता रहा कि कितनी अजीब बात है। फिल्म भी काल्पनिक है और हमारी सराकर भी। क्योंकि आज जिस तरह देश चल रहा है वह मात्र कल्पना ही तो है। कोई लेपटॉप बांटने की बात करता है तो कोई गरीबों को मोबाइल, कोई 'आकाश' देकर आकाश में उडऩे के सपने दिखाता है तो कोई देश को महंगाई, भ्रष्टाचार, आतंकवाद, भूखमरी, कुपोषण से मुक्त करने की बात कहता है। रामदीन जी की फिल्म 'सरकार' और हमारी केन्द्र सरकार में कितनी समानताएं हैं। जब देश ही कल्पनाओं पर चल रहा है तो मुझे लगता है कि अपने रामदीन जी की फिल्म 'सरकार' भी हिट हो सकती है। क्योंकि वह भी तो कल्पनाओं पर आधारित है।
Tuesday, August 21, 2012
वाह! कमाल कर दिया
कोई कमाल कब हो जाए कहा नहीं जा सकता। ठीक उसी तरह जिस तरह आज रामदीन को
मोहल्ले में मिठाई बांटते हुए देखा। पूछने पर रामदीन ने बताया कि 'कल गृह
मंत्रालय में एक बड़े अफसर के पद के लिए साक्षात्कार दिया था, जिसका परिणाम
आज आया है। मिठाई नौकरी लगने की खुशी में बांटी जा रही है।' उसने बताया कि
'खुद देश के गृहमंत्री सामने साक्षात्कार ले रहे थे।'
पहले तो मैंने रामदीन को बधाई दी। उसके बाद उत्सुकतावश पूछा-'यार... रामदीन एक बात बता। गृहमंत्री जब तेरा साक्षात्कार ले रहे थे तो तुझे डर नहीं लगा?' इतना सुनते ही वह जोर-जोर से हंसने लगा और हंसते-हंसते बोला-'यार...डर तो मुझे बहुत लग रहा था लेकिन मुझसे इतना सरल सवाल किया कि मेरा जवाब सुनने पर उन्होंने स्वयं मुझे शाबाशी दी।'
'ऐसा क्या सवाल था?' -मैंने पूछा। तब रामदीन ने बताया कि उनका सवाल था कि यदि भारत में कोई बम धमाका हो जाएगा तो तुम क्या-क्या करोगे? सवाल की गंभीरता को समझते हुए मैंने पूछा-'तुमने क्या जवाब दिया।' मैं जितना गंभीर था वह उतना ही मस्ती में था। रामदीन ने जवाब दिया कि-'यदि भारत में कोई बम धमाका होगा तो हम हमेशा की तरह पहले मौके का मुआयना करेंगे। मीडिया के ज्यादा हो-होल्ला करने पर अपनी नाकामी पर चर्चा करने के बजाए गेंद पाकिस्तान के पाले में फेंक देंगे। हमेशा की तरह पाकिस्तान हमला करने की बात को खारिज कर देगा, हम हमेशा की तरह कहेंगे कि हमारे पास ठोस सबूत हैं। पाकिस्तान फिर हमसे हमेशा की तरह सबूत मांगेगा। फिर हम हमेशा की तरह सबूतों का पुलिंदा तैयार करेंगे। पाकिस्तान हमेशा की तरह थोड़े और सबूत की मांग करेगा तब हम हमेशा की तरह और सबूत भेज देंगे। जब तक हम सबूत का लेन-देन करेंगे तब तक आपका मंत्रालय बदल जाएगा और मेरा रिटायरमेंट भी हो जाएगा। मैं हर मामले को इस तरह उलझा कर रखूंगा कि न विपक्ष को मुद्दा याद रहेगा न मीडिया को और न ही देश की जनता को। सब भूल जाएंगे। हां! गड़बड़ वाली फाइलों में इतनी सावधानी से आग लगाऊंगा कि आप पर बिल्कुल भी आंच नहीं आएगी।'
रामदीन बोलता गया-'हम हमेशा की तरह पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी देंगे। ठीक वैसे ही जैसे देश के कोने-कोने से पलायन कर रहे असम के पूर्वोत्तर के नागरिकों को दिखाने के लिए पाकिस्तान को दी है। भले ही उनका सरकार के ऊपर से विश्वास उठ गया हो लेकिन हमारी कार्रवाई तो जारी है। हम हमेशा की तरह वैसे ही ठोस कदम उठाएंगे जैसे कि हमने संसद हमले, मुम्बई में सीरियल बम धमाके, मुम्बई में 26 /11 का हमला, वाराणासी बम धमाके, पुणे बेस्ट बेकरी काण्ड, दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर हुए बम धमाके को लेकर उठाए हैं। यदि कोई आतंकी धोखे से पकड़ा भी जाता है तो हम हमेशा की तरह उसे अपनी जेल में बंद रखेंगे।' रामदीन जी बोले-'मैं जानता था कि मैं जैसे ही आतंकवादियों को पकडक़र फांसी पर लटकाने की बात करूंगा तो मंत्री जी विदक जाएंगे और हाथ से नौकरी चली जाएगी। इसलिए मैंने मंत्री जी की तरह अपने स्वाभिमान, राष्ट्रभक्ति को दिमाग से निकाल दिया था।'
रामदीन के चुप होने पर आखिर में मुझे शर्म से झूठी मुस्कुराहट लाकर कहना पड़ा, 'वाह! रामदीन, तुमने तो कमाल कर दिया।'
पहले तो मैंने रामदीन को बधाई दी। उसके बाद उत्सुकतावश पूछा-'यार... रामदीन एक बात बता। गृहमंत्री जब तेरा साक्षात्कार ले रहे थे तो तुझे डर नहीं लगा?' इतना सुनते ही वह जोर-जोर से हंसने लगा और हंसते-हंसते बोला-'यार...डर तो मुझे बहुत लग रहा था लेकिन मुझसे इतना सरल सवाल किया कि मेरा जवाब सुनने पर उन्होंने स्वयं मुझे शाबाशी दी।'
'ऐसा क्या सवाल था?' -मैंने पूछा। तब रामदीन ने बताया कि उनका सवाल था कि यदि भारत में कोई बम धमाका हो जाएगा तो तुम क्या-क्या करोगे? सवाल की गंभीरता को समझते हुए मैंने पूछा-'तुमने क्या जवाब दिया।' मैं जितना गंभीर था वह उतना ही मस्ती में था। रामदीन ने जवाब दिया कि-'यदि भारत में कोई बम धमाका होगा तो हम हमेशा की तरह पहले मौके का मुआयना करेंगे। मीडिया के ज्यादा हो-होल्ला करने पर अपनी नाकामी पर चर्चा करने के बजाए गेंद पाकिस्तान के पाले में फेंक देंगे। हमेशा की तरह पाकिस्तान हमला करने की बात को खारिज कर देगा, हम हमेशा की तरह कहेंगे कि हमारे पास ठोस सबूत हैं। पाकिस्तान फिर हमसे हमेशा की तरह सबूत मांगेगा। फिर हम हमेशा की तरह सबूतों का पुलिंदा तैयार करेंगे। पाकिस्तान हमेशा की तरह थोड़े और सबूत की मांग करेगा तब हम हमेशा की तरह और सबूत भेज देंगे। जब तक हम सबूत का लेन-देन करेंगे तब तक आपका मंत्रालय बदल जाएगा और मेरा रिटायरमेंट भी हो जाएगा। मैं हर मामले को इस तरह उलझा कर रखूंगा कि न विपक्ष को मुद्दा याद रहेगा न मीडिया को और न ही देश की जनता को। सब भूल जाएंगे। हां! गड़बड़ वाली फाइलों में इतनी सावधानी से आग लगाऊंगा कि आप पर बिल्कुल भी आंच नहीं आएगी।'
रामदीन बोलता गया-'हम हमेशा की तरह पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी देंगे। ठीक वैसे ही जैसे देश के कोने-कोने से पलायन कर रहे असम के पूर्वोत्तर के नागरिकों को दिखाने के लिए पाकिस्तान को दी है। भले ही उनका सरकार के ऊपर से विश्वास उठ गया हो लेकिन हमारी कार्रवाई तो जारी है। हम हमेशा की तरह वैसे ही ठोस कदम उठाएंगे जैसे कि हमने संसद हमले, मुम्बई में सीरियल बम धमाके, मुम्बई में 26 /11 का हमला, वाराणासी बम धमाके, पुणे बेस्ट बेकरी काण्ड, दिल्ली हाईकोर्ट के बाहर हुए बम धमाके को लेकर उठाए हैं। यदि कोई आतंकी धोखे से पकड़ा भी जाता है तो हम हमेशा की तरह उसे अपनी जेल में बंद रखेंगे।' रामदीन जी बोले-'मैं जानता था कि मैं जैसे ही आतंकवादियों को पकडक़र फांसी पर लटकाने की बात करूंगा तो मंत्री जी विदक जाएंगे और हाथ से नौकरी चली जाएगी। इसलिए मैंने मंत्री जी की तरह अपने स्वाभिमान, राष्ट्रभक्ति को दिमाग से निकाल दिया था।'
रामदीन के चुप होने पर आखिर में मुझे शर्म से झूठी मुस्कुराहट लाकर कहना पड़ा, 'वाह! रामदीन, तुमने तो कमाल कर दिया।'
Tuesday, August 14, 2012
...तो फिर डाका कौन डालेगा
सरकारी कार्यालयों में सभी बाबू काम में व्यस्त थे, केवल रामदीन जी को
छोडक़र। पता किया तो मालूम हुआ कि सभी ने एक साथ मिलकर रामदीन जी को झाड़
दिया। बात तब बिगड़ गई जब रामदीन जी ने अपने साथी बाबुओं को काम
नहीं करने की सलाह दी।
शर्मा जी चश्मा टेबल पर रखते हुए बोले-''देखो भईया, हम तो अपने मंत्री जी के आदेश का पालन कर रहे हैं।'' कैसा आदेश?-रामदीन जी ने प्रश्न किया। तभी शर्मा जी बोले- ''लगता है कि आप उस बैठक में नहीं थे जब मंत्री जी ने कहा था कि- 'अगर काम करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हों लेकिन डाका मत डालना।'
रामदीन जी बोले-''हां! मैंने सुना तो था लेकिन सिरियसली नहीं लिया। तभी गुप्ता जी बीच में बोल पड़े- ''आपने सिरियसली नहीं लिया तो इसमें हमारी क्या गलती है, हमने तो लिया है। जिस दिन से आदेश निकला है तभी से हमने काम करना शुरू कर दिया है। हां! हम काम भी रहे हैं और चोरी भी।'' सभी एक साथ खिलखिला कर हंस पड़े।
लेकिन कुछ देर बाद जब रामदीन जी ने जो कुछ बोला उससे सभी की बोलती बंद हो गई। रामदीन जी बोले- ''अरे गुप्ता जी आप बड़े भोले हैं जो मंत्री जी की बातों में आए गए। मंत्री जी ने जो कहा था उनके शब्दों को पकडि़ए। मंत्री जी कह रहे हैं कि 'काम करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हों लेकिन डाका मत डालना।' इसमें ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है बल्कि प्रश्न यह उठता है कि आखिर डांका कौन डालेगा? लगता है यह मामला मंत्री जी ने अपने पास रखा है। आप लोगों को पता है क्या अभी हमारे प्रदेश को राष्ट्रपति चुनाव के समय योजना आयोग से 7 हजार करोड़ रुपए का विशेष पैकज मिला है। इस पैकेज के मिलते ही सारे मंत्रियों के मुंह में पानी आ गया है। इसलिए तो हमसे फुर्सत छीनकर फुर्ती में काम करने का लालच दिया जा रहा है।''
''अरे भाई लोगों अपना स्वाभिमान जगाओ। हम सरकारी बाबू हैं। आदेश पर इतनी जल्दी अमल करना हमारे आचरण के खिलाफ है। हमने तो सर्वोच्च न्यायालय के कई आदेशों के पालन करने में ही वर्षों बिता दिए। हमारे जैसे बाबुओं ने अफजल गुरू, कसाब की दया याचिका की फाइल को कबसे दबाकर रखा है। कितने ही लोग दफ्तरों के चक्कर काट-काटकर थक गए, लेकिन मजाल है कि हमने कभी उनका काम किया हो।
सबने ध्यान से रामदीन जी की बातें सुनीं। अब दफ्तर का माहौल एकदम बदल गया। अब गुप्ता जी ने कुर्सी को पीछे खिसकाते हुए दोनों पैर टेबल पर रख लिए। शर्मा जी ने भी अपनी टेबल से चश्मा उठाकर अपनी जेब में रखा और टेबल पर सर रखकर नींद लेने लगे। और अपने रामदीन जी रोज की तरह समय से पहले घर आ गए।
शर्मा जी चश्मा टेबल पर रखते हुए बोले-''देखो भईया, हम तो अपने मंत्री जी के आदेश का पालन कर रहे हैं।'' कैसा आदेश?-रामदीन जी ने प्रश्न किया। तभी शर्मा जी बोले- ''लगता है कि आप उस बैठक में नहीं थे जब मंत्री जी ने कहा था कि- 'अगर काम करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हों लेकिन डाका मत डालना।'
रामदीन जी बोले-''हां! मैंने सुना तो था लेकिन सिरियसली नहीं लिया। तभी गुप्ता जी बीच में बोल पड़े- ''आपने सिरियसली नहीं लिया तो इसमें हमारी क्या गलती है, हमने तो लिया है। जिस दिन से आदेश निकला है तभी से हमने काम करना शुरू कर दिया है। हां! हम काम भी रहे हैं और चोरी भी।'' सभी एक साथ खिलखिला कर हंस पड़े।
लेकिन कुछ देर बाद जब रामदीन जी ने जो कुछ बोला उससे सभी की बोलती बंद हो गई। रामदीन जी बोले- ''अरे गुप्ता जी आप बड़े भोले हैं जो मंत्री जी की बातों में आए गए। मंत्री जी ने जो कहा था उनके शब्दों को पकडि़ए। मंत्री जी कह रहे हैं कि 'काम करोगे तो थोड़ी बहुत चोरी कर सकते हों लेकिन डाका मत डालना।' इसमें ज्यादा उत्साहित होने की जरूरत नहीं है बल्कि प्रश्न यह उठता है कि आखिर डांका कौन डालेगा? लगता है यह मामला मंत्री जी ने अपने पास रखा है। आप लोगों को पता है क्या अभी हमारे प्रदेश को राष्ट्रपति चुनाव के समय योजना आयोग से 7 हजार करोड़ रुपए का विशेष पैकज मिला है। इस पैकेज के मिलते ही सारे मंत्रियों के मुंह में पानी आ गया है। इसलिए तो हमसे फुर्सत छीनकर फुर्ती में काम करने का लालच दिया जा रहा है।''
''अरे भाई लोगों अपना स्वाभिमान जगाओ। हम सरकारी बाबू हैं। आदेश पर इतनी जल्दी अमल करना हमारे आचरण के खिलाफ है। हमने तो सर्वोच्च न्यायालय के कई आदेशों के पालन करने में ही वर्षों बिता दिए। हमारे जैसे बाबुओं ने अफजल गुरू, कसाब की दया याचिका की फाइल को कबसे दबाकर रखा है। कितने ही लोग दफ्तरों के चक्कर काट-काटकर थक गए, लेकिन मजाल है कि हमने कभी उनका काम किया हो।
सबने ध्यान से रामदीन जी की बातें सुनीं। अब दफ्तर का माहौल एकदम बदल गया। अब गुप्ता जी ने कुर्सी को पीछे खिसकाते हुए दोनों पैर टेबल पर रख लिए। शर्मा जी ने भी अपनी टेबल से चश्मा उठाकर अपनी जेब में रखा और टेबल पर सर रखकर नींद लेने लगे। और अपने रामदीन जी रोज की तरह समय से पहले घर आ गए।
Wednesday, August 8, 2012
दल गठन में शक्ति है...
दिल्ली से लौट रहा था। मेरी सामने वाली सीट पर हमारे पड़ौसी रामदीन जी मिल गए। रामदीन जी सीधे-सादे इंसान हैं ऐसा दिखने के लिए उन्होंने अपना हुलिया भी बनाया हुआ था। सफेद खादी का कुर्ता, पैरों में हवाई चप्पल और सर पर गांधी टोपी जिस पर लिखा था मैं अण्णा। उनके हुलिए को देखकर यह समझने में देर नहीं लगी कि वह जंतर-मंतर अण्णा हजारे के अनशन से आ रहे हैं। अनशन समाप्ति की घोषणा के बाद वे वापस लौट रहे थे। उनके द्वारा मुझे पहचानते ही मन बड़ा प्रसन्न हुआ कि चलो सफर अच्छा कट जाएगा।
वैसे तो मैंने कभी भी रामदीन जी को गुस्सा होते हुए नहीं देखा लेकिन मुझे नहीं पता था कि मेरी एक चुटकी से वह इतना उखड़ जाएंगे। मैंने मजाक में उनसे कहा ''लो अब भ्रष्टाचार की समस्या को समाप्त करने के लिए नई पार्टी बनेगी। हम वैसे ही नेताओं से परेशान हैं और अण्णा हजारे ने भी नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी।'' इस बात पर वह एकदम नाराज हो गए। तपाक से बोले! ''देखो साहब यह तो भारत का इतिहास रहा है कि पार्टी या संगठन के बिना किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। वैसे भी हमारे यहां तो कहावत भी है कि 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।' हमने अंग्रजों से भारत को आजाद कराने के लिए भी तो कई दल बनाए थे। अब समय बदल गया है बाबूजी। पहले कहा जाता था-'संगठन में शक्ति है'। लेकिन अब नई सोच ने जन्म लिया है। इसलिए नई सोच पर चलो और यह मान लो कि 'दल गठन में शक्ति है।'
रामदीन जी के प्रभावी प्रवचन सुनते ही मेरे दिमाग ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। दिमाग में आइडिया आया कि जिस प्रकार अण्णा हजारे ने भ्रष्टाचर की समस्या के समाधान के लिए नई पार्टी बनाने की घोषणा की है तो क्यूं न अन्य समस्याओं को दूर करने के लिए भी दल बनाए जाएं। मैंने इस कल्पना को रामदीन जी के सामने रखा तो उन्होंने भी शाबाशी देकर मेरा हौंसला बढ़ाया।
कल्पना कुछ इस प्रकार है कि भारत में जो भी प्रमुख समस्याएं हैं उनको समाप्त करने के लिए लोग आगे आएं और नया दल बनाएं। उदाहरण के लिए बेरोजगारी। इस समस्या के समाधान के लिए पूरे देश के युवा एक पार्टी का निर्माण कर सकते हैं। उनकी पार्टी का नाम आरबीएस अर्थात् राष्ट्रवादी बेरोजगार सेना हो सकता है। इसी प्रकार नक्सली अपनी बात मनवाने के लिए एनडी (यू) अर्थात् नक्सली दल (यूनाइटेड) का गठन कर सकते हैं। नक्सलियों की समस्याएं खत्म होंगी तभी नक्सवाद की समस्या का समाधान हो सकता है। आतंकवाद भी भारत में एक बड़ी समस्या है। इसलिए जिन परिवारों के लोगों ने अपना बलिदान आतंकी घटनाओं में दिया है वह सब मिलकर एव्हीडी (आतंकवादी विरोधी दल) बना सकते हैं। गैस पीडि़त जीपीपी (गैस पीडि़त पार्टी), आरक्षण मांगने वाले आरडीडी (आरक्षण दिलाओ दल), भुखमरी दूर करने के लिए बीएमएम (भुखमरी मुक्ति मोर्चा), गरीबी की समस्या दूर करने के लिए गरीब जनता जीपीएच (गरीब पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान)जैसी नई पार्टी बना सकते हैं।
जिस प्रकार टीम अण्णा ने तैयारी कर ली है, इसी प्रकार सबको कर लेनी चाहिए। चुनाव आने वाला है। हमें संसद का शुद्धिकरण भी तो करना है और भारत को समस्याओं से मुक्त भी। इसलिए रामदीन जी की तरह मैं भी मानने लगा हूं कि- 'दल गठन में शक्ति है।' जय हिन्द!
वैसे तो मैंने कभी भी रामदीन जी को गुस्सा होते हुए नहीं देखा लेकिन मुझे नहीं पता था कि मेरी एक चुटकी से वह इतना उखड़ जाएंगे। मैंने मजाक में उनसे कहा ''लो अब भ्रष्टाचार की समस्या को समाप्त करने के लिए नई पार्टी बनेगी। हम वैसे ही नेताओं से परेशान हैं और अण्णा हजारे ने भी नई पार्टी बनाने की घोषणा कर दी।'' इस बात पर वह एकदम नाराज हो गए। तपाक से बोले! ''देखो साहब यह तो भारत का इतिहास रहा है कि पार्टी या संगठन के बिना किसी भी समस्या का समाधान नहीं हो सकता। वैसे भी हमारे यहां तो कहावत भी है कि 'अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता।' हमने अंग्रजों से भारत को आजाद कराने के लिए भी तो कई दल बनाए थे। अब समय बदल गया है बाबूजी। पहले कहा जाता था-'संगठन में शक्ति है'। लेकिन अब नई सोच ने जन्म लिया है। इसलिए नई सोच पर चलो और यह मान लो कि 'दल गठन में शक्ति है।'
रामदीन जी के प्रभावी प्रवचन सुनते ही मेरे दिमाग ने तुरंत प्रतिक्रिया दी। दिमाग में आइडिया आया कि जिस प्रकार अण्णा हजारे ने भ्रष्टाचर की समस्या के समाधान के लिए नई पार्टी बनाने की घोषणा की है तो क्यूं न अन्य समस्याओं को दूर करने के लिए भी दल बनाए जाएं। मैंने इस कल्पना को रामदीन जी के सामने रखा तो उन्होंने भी शाबाशी देकर मेरा हौंसला बढ़ाया।
कल्पना कुछ इस प्रकार है कि भारत में जो भी प्रमुख समस्याएं हैं उनको समाप्त करने के लिए लोग आगे आएं और नया दल बनाएं। उदाहरण के लिए बेरोजगारी। इस समस्या के समाधान के लिए पूरे देश के युवा एक पार्टी का निर्माण कर सकते हैं। उनकी पार्टी का नाम आरबीएस अर्थात् राष्ट्रवादी बेरोजगार सेना हो सकता है। इसी प्रकार नक्सली अपनी बात मनवाने के लिए एनडी (यू) अर्थात् नक्सली दल (यूनाइटेड) का गठन कर सकते हैं। नक्सलियों की समस्याएं खत्म होंगी तभी नक्सवाद की समस्या का समाधान हो सकता है। आतंकवाद भी भारत में एक बड़ी समस्या है। इसलिए जिन परिवारों के लोगों ने अपना बलिदान आतंकी घटनाओं में दिया है वह सब मिलकर एव्हीडी (आतंकवादी विरोधी दल) बना सकते हैं। गैस पीडि़त जीपीपी (गैस पीडि़त पार्टी), आरक्षण मांगने वाले आरडीडी (आरक्षण दिलाओ दल), भुखमरी दूर करने के लिए बीएमएम (भुखमरी मुक्ति मोर्चा), गरीबी की समस्या दूर करने के लिए गरीब जनता जीपीएच (गरीब पार्टी ऑफ हिन्दुस्तान)जैसी नई पार्टी बना सकते हैं।
जिस प्रकार टीम अण्णा ने तैयारी कर ली है, इसी प्रकार सबको कर लेनी चाहिए। चुनाव आने वाला है। हमें संसद का शुद्धिकरण भी तो करना है और भारत को समस्याओं से मुक्त भी। इसलिए रामदीन जी की तरह मैं भी मानने लगा हूं कि- 'दल गठन में शक्ति है।' जय हिन्द!
Tuesday, July 31, 2012
हमारे खेल, हमारा ओलंपिक
आज स्कूल में रामदीन मस्साब हमसे काफी नाराज हो गए। वैसे उनकी नाराजगी का
कारण भी सही ही था। बच्चों के सवालों का जवाब देते-देते समय का अंदाजा ही
नहीं लगा। बातचीत में हम उनका पीरिएड भी खा गए। सब कम्बख्त राहुल की वजह से
हुआ। न वह हमसे ओलंपिक के बारे में सवाल करता, न ही कुछ ऐसा होता।
मैं क्लास से बाहर आने की तैयारी कर ही रहा था कि राहुल ने पूछ लिया ''सर... ये ओलंपिक क्या होता है? हम चीन, अमेरिका या अन्य देशों की तरह मैडल क्यों नहीं जीत पाते हैं?''
पहले तो मैंने सभी बच्चों को ओलंपिक के बारे में बताया। इसके बाद दूसरे सवाल का जवाब दिया। मैंने कहा कि ''दरअसल हम ओलंपिक में इसलिए पीछे रह जाते हैं क्योंकि उसमें वह खेल ही शामिल नहीं हैं जिसमें भारतीयों को महारत हासिल है। हमारे परंपरागत खेल तो अलग ही हैं।
तभी विकास अपनी सीट से उठा और बोला- ''सर... फिर हमारे कौन-कौन से खेल हैं, उनके बारे में भी बताइए।'' अच्छा सवाल है विकास, मेरे मुंह से सहज ही निकल गया। तब मैंने बताया कि हमारे खेल वैसे तो कई सारे हैं लेकिन हम भारतीयों को जिनमें महारत हासिल है, वह खेल हैं भ्रष्टाचार, चापलूसी, दोगलेबाजी, ईर्ष्या, टांग खिंचाई। जिस दिन ये सारे खेल ओलंपिक में शामिल हो जाएंगे तब देखना ओलंपिक शुरू होते ही पहला स्वर्ण पदक हमें ही मिलेगा।
भ्रष्टाचार की प्रतियोगिता में हम सुरेश कलमाड़ी, ए.राजा जैसे कुछ नेताओं को भेज देंगे तो अच्छे-अच्छों की छुट्टी हो जाएगी। वैसे मुझे लगता है कि हमने श्री कलमाड़ी को लंदन ओलंपिक में जाने से रोककर अच्छा नहीं किया। कलमाड़ी जी कोई न कोई तिकड़म भिड़ाकर तीरंदाज तिकड़ी को बाहर नहीं होने देते।
इसी प्रकार चापलूसी में हमारा कोई मुकाबला नहीं कर सकता। अभी हमारे देश में ऐसे कई लोग हैं जो सोनिया गांधी की चापलूसी कर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की जुगाड़ भिड़ा रहे हैं। अगर चापलूसी की प्रतियोगिता होने लगे तो सच मानिए तीनों तमगे हमारे ही नेता जीतकर लाएंगे। दोगलेबाजी में स्वामी अग्निवेश जैसे व्यक्तियों की भागीदारी ठीक रहेगी।
हां! अगर ईष्र्या का मुकाबला होगा तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जैसे व्यक्ति ठीक रहेंगे। जिस तरह से आठ जिलों के नाम बदले गए हैं। अगर ऐसा ओलंपिक में किया तो विरोधी खिलाडिय़ों के हुलिए बदल जाएंगे।
कबड्डी में हम अभी विश्व चैम्पियन बने हैं। लेकिन हमारे इस खेल को ओलंपिक में सिर्फ इसलिए शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि आयोजक अच्छी तरह से जानते हैं कि भारतीय कितनी अच्छी तरह से 'टांग खिंचाई' करना जानते हैं। एक बार जब हम किसी को पकड़ लेते हैं तो तब तक नहीं छोड़ते जब तक सामने वाले खिलाड़ी का दम नहीं फूल जाता। रोहित शेखर ने भी एन.डी. तिवारी को अपना पिता साबित कराकर ही दम लिया।
इसलिए देखो बच्चो-''हमारे खेल बिल्कुल अलग ढंग के हैं। इसलिए हमारा ओलंपिक भी अलग ढंग का होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक मुझे लगता है कि हम ओलंपिक में चीन, अमेरिका जैसे देशों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। जिस दिन हमारे ये सारे खेल ओलंपिक में शामिल हो जाएंगे फिर देखना स्वर्ण, रजत और कांस्य तीनों पदक हमारी झोली में ही होंगे। यह भी हो सकता है कि हम किसी भी देश को कोई मुकाबला जीतने ही न दें।''
मैं क्लास से बाहर आने की तैयारी कर ही रहा था कि राहुल ने पूछ लिया ''सर... ये ओलंपिक क्या होता है? हम चीन, अमेरिका या अन्य देशों की तरह मैडल क्यों नहीं जीत पाते हैं?''
पहले तो मैंने सभी बच्चों को ओलंपिक के बारे में बताया। इसके बाद दूसरे सवाल का जवाब दिया। मैंने कहा कि ''दरअसल हम ओलंपिक में इसलिए पीछे रह जाते हैं क्योंकि उसमें वह खेल ही शामिल नहीं हैं जिसमें भारतीयों को महारत हासिल है। हमारे परंपरागत खेल तो अलग ही हैं।
तभी विकास अपनी सीट से उठा और बोला- ''सर... फिर हमारे कौन-कौन से खेल हैं, उनके बारे में भी बताइए।'' अच्छा सवाल है विकास, मेरे मुंह से सहज ही निकल गया। तब मैंने बताया कि हमारे खेल वैसे तो कई सारे हैं लेकिन हम भारतीयों को जिनमें महारत हासिल है, वह खेल हैं भ्रष्टाचार, चापलूसी, दोगलेबाजी, ईर्ष्या, टांग खिंचाई। जिस दिन ये सारे खेल ओलंपिक में शामिल हो जाएंगे तब देखना ओलंपिक शुरू होते ही पहला स्वर्ण पदक हमें ही मिलेगा।
भ्रष्टाचार की प्रतियोगिता में हम सुरेश कलमाड़ी, ए.राजा जैसे कुछ नेताओं को भेज देंगे तो अच्छे-अच्छों की छुट्टी हो जाएगी। वैसे मुझे लगता है कि हमने श्री कलमाड़ी को लंदन ओलंपिक में जाने से रोककर अच्छा नहीं किया। कलमाड़ी जी कोई न कोई तिकड़म भिड़ाकर तीरंदाज तिकड़ी को बाहर नहीं होने देते।
इसी प्रकार चापलूसी में हमारा कोई मुकाबला नहीं कर सकता। अभी हमारे देश में ऐसे कई लोग हैं जो सोनिया गांधी की चापलूसी कर राहुल गांधी को प्रधानमंत्री बनाने की जुगाड़ भिड़ा रहे हैं। अगर चापलूसी की प्रतियोगिता होने लगे तो सच मानिए तीनों तमगे हमारे ही नेता जीतकर लाएंगे। दोगलेबाजी में स्वामी अग्निवेश जैसे व्यक्तियों की भागीदारी ठीक रहेगी।
हां! अगर ईष्र्या का मुकाबला होगा तो मुख्यमंत्री अखिलेश यादव जैसे व्यक्ति ठीक रहेंगे। जिस तरह से आठ जिलों के नाम बदले गए हैं। अगर ऐसा ओलंपिक में किया तो विरोधी खिलाडिय़ों के हुलिए बदल जाएंगे।
कबड्डी में हम अभी विश्व चैम्पियन बने हैं। लेकिन हमारे इस खेल को ओलंपिक में सिर्फ इसलिए शामिल नहीं किया जाता है क्योंकि आयोजक अच्छी तरह से जानते हैं कि भारतीय कितनी अच्छी तरह से 'टांग खिंचाई' करना जानते हैं। एक बार जब हम किसी को पकड़ लेते हैं तो तब तक नहीं छोड़ते जब तक सामने वाले खिलाड़ी का दम नहीं फूल जाता। रोहित शेखर ने भी एन.डी. तिवारी को अपना पिता साबित कराकर ही दम लिया।
इसलिए देखो बच्चो-''हमारे खेल बिल्कुल अलग ढंग के हैं। इसलिए हमारा ओलंपिक भी अलग ढंग का होना चाहिए। जब तक ऐसा नहीं होगा तब तक मुझे लगता है कि हम ओलंपिक में चीन, अमेरिका जैसे देशों का मुकाबला नहीं कर पाएंगे। जिस दिन हमारे ये सारे खेल ओलंपिक में शामिल हो जाएंगे फिर देखना स्वर्ण, रजत और कांस्य तीनों पदक हमारी झोली में ही होंगे। यह भी हो सकता है कि हम किसी भी देश को कोई मुकाबला जीतने ही न दें।''
Tuesday, July 24, 2012
किटकिट दूर करेगा क्रिकेट...
थोड़ी सी भी समझदार पत्नी मिले तो जरा संभलकर रहना चाहिए। सुबह मैं पार्क
में बैठा यही प्रवचन अपने कुछ साथियों को दे रहा था। एक महाशय ने पूछ लिया
क्यूं तो बात आगे बढ़ गई। मैंने बताया कि 'यार 10 दिन पहले मेरा पत्नी से
सिर्फ इस बात के लिए झगड़ा हो गया था कि मैंने उसे मायके जाने से मना कर
दिया।' सुबह से शाम तक बात ही नहीं की। पिछले 10 दिन तक कोई बात ही नहीं
हुई। फिर कल ही बाजार गई और सब्जी भाजी के साथ एक बेट और बॉल ले आई। पहले
तो मुझे लगा कि मिंकू के लिए बेट-बॉल लाई होगी, लेकिन उसने तो कमाल ही कर
दिया।
मैंने आश्चर्य से पूछा-'यह किसलिए'? तब उसने बताया कि-'यह बेट-बॉल हम दोनों के खेलने के लिए खरीदा है। उसने बताया कि मैंने सुना है कि क्रिकेट खेलने से कटु रिश्ते सुधर जाते हैं।' फिर मैंने प्रश्न किया-'यह तुमने कब सुना?', तब उसने बताया कि-कुछ ही दिन पहले ही तो निर्णय हुआ है कि भारत और पाकिस्तान के बीच पांच साल बाद एक श्रृंखला दिसम्बर महीने में भारत में खेली जाएगी। मुम्बई हमले के पांच साल बाद पाकिस्तान की टीम क्रिकेट टीम भारत खेलने आएगी।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड जब इन दो देशों की कटु दुश्मनी को दोस्ती में बदलने के लिए क्रिकेट मैच करा सकता है तो हमारी बातचीत को तो अभी बंद हुए 10 दिन ही हुए हैं। पहले तो उसकी समझदारी पर मैं अपनी हंसी रोक नहीं सका, फिर मैंने उससे क्रिकेट खेलने से मना किया तो वह चिढ़ गई। पत्नी गुस्से से बोली- मैंने कौन सा मुम्बई हमले से भी बड़ा हमला कर दिया जो आप क्रिकेट खेलने के लिए मना कर रहे हो। उन आतंकवादियों ने 163 निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारा था, और तो और हमारे कुछपुलिस और सेना के जवानों को शहीद कर दिया था, उसके बाद भी तो दोनों देशों के बीच मैच हो रहे हैं हेना...। तुम्हारे दिल में कौन सा देशभक्ति का जुनून सवार हो रहा है, इतना तो हमारे खिलाडिय़ों में भी नहीं है। आतंकवादी हमले के बाद भी देखो ना कैसे क्रिकेट खेलने के लिए तैयार हो गए हैं, एक ने भी मना नहीं किया।
पत्नी का पारा और अधिक बढ़ता गया। कोई कुछ भी कहे, मुझे तो बीसीसीआई का यह निर्णय बहुत पसंद आया। फिर इतिहास पर आते हुए बोली- देखो यदि एक क्रिकेट मैच 1992 के समय हो जाता तो बाबरी विध्वंस का मामला भी शांति के साथ बैठकर सुलझा लेते। अब तो ऐसा लगता है कि अभी भी देर नहीं हुई है, नक्सलियों से भी बात होनी चाहिए। नक्सलियों की नाराजगी दूर करने के लिए, उनसे रिश्ते सुधारने के लिए भी सरकार को एक क्रिकेट मैच का आयोजन करना चाहिए।
कश्मीर का मामला भी कई वर्षों से अटका हुआ है। इस मसले को भी क्रिकेट मैच द्वारा सुलझा लेना चाहिए। कांग्रेस के लिए ममता, शरद पवार, अण्णा हजारे, बाबा रामदेव, अरविंद केजरीवाल कई बार परेशानी खड़ी करते हैं। यहां तक की मोहम्मद अफजल, कसाब भी इतनी दिक्कत नहीं देते जितने ये लोग देते हैं। इसलिए सरकार को एक मैच इनसे भी फिक्स कर लेना चाहिए। इस मैच के बाद हो सकता है कालाधन, टू-जी स्पेक्ट्रम जैसे बड़े-बड़े मामलों को लोग भूल जाएं।
मेरी पत्नी की समझदारी पर मेरे सभी साथी जोर-जोर से ठहाके मारकर हंसने लगे। मैंने कहा ज्यादा नहीं हंसिए, मुझे गुस्सा भी आ सकता है। तभी इतने में एक साथी बोला-'कोई बात नहीं, तुम गुस्सा होगे तो हम तुम्हारे साथ भी एक मैच खेल लेंगे...।'
मैंने आश्चर्य से पूछा-'यह किसलिए'? तब उसने बताया कि-'यह बेट-बॉल हम दोनों के खेलने के लिए खरीदा है। उसने बताया कि मैंने सुना है कि क्रिकेट खेलने से कटु रिश्ते सुधर जाते हैं।' फिर मैंने प्रश्न किया-'यह तुमने कब सुना?', तब उसने बताया कि-कुछ ही दिन पहले ही तो निर्णय हुआ है कि भारत और पाकिस्तान के बीच पांच साल बाद एक श्रृंखला दिसम्बर महीने में भारत में खेली जाएगी। मुम्बई हमले के पांच साल बाद पाकिस्तान की टीम क्रिकेट टीम भारत खेलने आएगी।
भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड जब इन दो देशों की कटु दुश्मनी को दोस्ती में बदलने के लिए क्रिकेट मैच करा सकता है तो हमारी बातचीत को तो अभी बंद हुए 10 दिन ही हुए हैं। पहले तो उसकी समझदारी पर मैं अपनी हंसी रोक नहीं सका, फिर मैंने उससे क्रिकेट खेलने से मना किया तो वह चिढ़ गई। पत्नी गुस्से से बोली- मैंने कौन सा मुम्बई हमले से भी बड़ा हमला कर दिया जो आप क्रिकेट खेलने के लिए मना कर रहे हो। उन आतंकवादियों ने 163 निर्दोष लोगों को मौत के घाट उतारा था, और तो और हमारे कुछपुलिस और सेना के जवानों को शहीद कर दिया था, उसके बाद भी तो दोनों देशों के बीच मैच हो रहे हैं हेना...। तुम्हारे दिल में कौन सा देशभक्ति का जुनून सवार हो रहा है, इतना तो हमारे खिलाडिय़ों में भी नहीं है। आतंकवादी हमले के बाद भी देखो ना कैसे क्रिकेट खेलने के लिए तैयार हो गए हैं, एक ने भी मना नहीं किया।
पत्नी का पारा और अधिक बढ़ता गया। कोई कुछ भी कहे, मुझे तो बीसीसीआई का यह निर्णय बहुत पसंद आया। फिर इतिहास पर आते हुए बोली- देखो यदि एक क्रिकेट मैच 1992 के समय हो जाता तो बाबरी विध्वंस का मामला भी शांति के साथ बैठकर सुलझा लेते। अब तो ऐसा लगता है कि अभी भी देर नहीं हुई है, नक्सलियों से भी बात होनी चाहिए। नक्सलियों की नाराजगी दूर करने के लिए, उनसे रिश्ते सुधारने के लिए भी सरकार को एक क्रिकेट मैच का आयोजन करना चाहिए।
कश्मीर का मामला भी कई वर्षों से अटका हुआ है। इस मसले को भी क्रिकेट मैच द्वारा सुलझा लेना चाहिए। कांग्रेस के लिए ममता, शरद पवार, अण्णा हजारे, बाबा रामदेव, अरविंद केजरीवाल कई बार परेशानी खड़ी करते हैं। यहां तक की मोहम्मद अफजल, कसाब भी इतनी दिक्कत नहीं देते जितने ये लोग देते हैं। इसलिए सरकार को एक मैच इनसे भी फिक्स कर लेना चाहिए। इस मैच के बाद हो सकता है कालाधन, टू-जी स्पेक्ट्रम जैसे बड़े-बड़े मामलों को लोग भूल जाएं।
मेरी पत्नी की समझदारी पर मेरे सभी साथी जोर-जोर से ठहाके मारकर हंसने लगे। मैंने कहा ज्यादा नहीं हंसिए, मुझे गुस्सा भी आ सकता है। तभी इतने में एक साथी बोला-'कोई बात नहीं, तुम गुस्सा होगे तो हम तुम्हारे साथ भी एक मैच खेल लेंगे...।'
Wednesday, July 18, 2012
मेरे भी तो फरमान सुन लो...
कल ही कुछ गांव वाले सुबह-सुबह घर पर आ पहुंचे। पहले तो मुझे लगा कि कौन सी गलती हो गई जो यह टोली आ पहुंची। किसी के कंधे पर बंदूक है तो कोई लट्ठ थामे मेरे सामने सीना ताने खड़ा हो गया। इतने में एक पहलवान सा आदमी दोनों हाथ जोडक़र बोला-''बाबूजी आप तो समझदार और पढ़े लिखे हैं क्या आप हमें एक बात समझा सकते हैं?'' जब उसने हाथ जोड़े तो मेरे शरीर में आत्मविश्वास का संचार तेजी से होने लगा और जब उसने मेरे सम्बोधन में समझदार शब्द जोड़ा तो मेरा सीना भी चौड़ा हो गया। मैंने कहा-''हां! हां! पूछो क्या पूछना है।''
गांव वाले बड़े भोले होते हैं ऐसा मैंने सुना था लेकिन देखा पहली बार। अबकी बार दूसरा बोल पड़ा-''बाबूजी हम पास के गांव से आए हैं।'' एक समाचार पता चला है कि आपकी पंचायत ने कुछ फरमान सुनाए हैं। जिसमें 40 वर्ष से कम उम्र की महिलाओं को सूर्य अस्त के बाद बाजार न जाने, मोबाइल पर बात न करने, प्रेम प्रसंग न करने और कान में लीड लगाकर गाने न सुनने का फरमान सुनाया गया है। हम भी चाहते हैं कि बढ़ते अपराधों को रोकने की इस दूरगामी योजना को अपनी पंचायत द्वारा अपने भी गांव में लागू कराएं।
अबकी बार मैंने उनके हाथ जोड़े और कहा-''हां! हमारी पंचायत ने फैसला सुनाया है लेकिन मैंने जितना इस फरमान का अध्ययन किया है उससे इसमें मुझे कई खामियां ज्ञात हुईं हैं।'' खामियां.... हां! हा! खामियां। अब मैं अपनी समझदारी की ओर बढ़ रहा था। मैंने उन्हें बताया कि देखो पंचायत ने फरमान दिया है कि 40 से कम उम्र की महिलाएं सूर्य अस्त होने के बाद घर से बाहर न जाएं। इस बात पर गौर करें तो पहला प्रश्न यह उठता है कि क्या पुरुष पूरे दिन भर घर के बाहर ही घूमते रहते हैं? दूसरा प्रश्न यह है कि सूर्य अस्त होने के बाद महिलाओं को क्या करना है और क्या नहीं यह नहीं बताया गया है? क्या महिलाओं को सूर्य अस्त के बाद घर में खाना बनाना है या नहीं। महिलाओं से कहा गया है कि वह अकेले बाजार न जाएं। इसमें साफ-साफ यह नहीं बताया गया है कि अब बाजार किसके साथ जाएं। क्या वह आपने साथियों, सहेलियों के साथ बाजार जा सकती हैं? इसी तरह का एक और फरमान दिया कि-महिलाएं प्रेम प्रसंग न करें। इसमें सवाल यह उठता है कि फिर क्या पुरुष को प्रेम प्रसंग करने की छूट दी गई है? पुरुष महिला से प्रेम प्रसंग कर सकता है? मोबाइल की लीड लगाकर गाना न सुनें। देखो कितनी अजीब बात है कि कोई व्यक्ति ध्वनि प्रदूषण होने से पर्यावरण को बचा रहा है तो इसमें भी उन्हें परेशानी है। उसके खिलाफ ही फरमान जारी कर दिया।
इसलिए देखो चच्चा..। कई खामियों से भरपूर इस फरमान को अभी से लागू करना ठीक नहीं। वैसे मुझे तो ऐसा लगता है कि ये पंचायतें इस तरह के फरमान जारी कर स्वयं अपनी फजीहत कराते हैं। अरे! कोई फरमान जारी ही करना है तो क्यूं ऐसा फरमान नहीं सुनाते जिससे कि कन्या भ्रूण हत्या, नशाखोरी, भ्रष्टाचार, दहेज प्रथा जैसी सामाजिक बुराइयों में कमी आए। फरमान सुनाना चाहिए कि पंचायत का सदस्य वही होगा जिसका एक बेटा फौज में होगा, फरमान होना चाहिए कि हमारे गांव का नेता और अधिकारी का बेटा सिर्फ सरकारी स्कूल में ही पढ़ेगा, तब जाकर कोई बात बनेगी।
हम अगर इन पंचायतों के ऐसे आलतू-फालतू फरमानों पर फैसले लेने लगे तो सोचो कोई साइना नेहवाल, ज्वाला गुट्टा, डोला बनर्जी, सुनीता विलियम्स, प्रतिभा पाटिल, कृष्णा पुनिया, मैरीकॉम जैसी लाखों प्रतिभाएं क्या पूरी दुनिया में भारत का झण्डा भविष्य में बुलंद कर सकेंगी। अगर ये भी सूर्य अस्त के बाद घर बैठने लगें तो भारत का क्या हाल होगा सोचो जरा...। क्या किसी के कोई अरमान नहीं होते हैं? महिलाओं के अरमानों पर फरमान सुनाने से देश की तरक्की नहीं होगी। मुझे तो कभी-कभी ऐसा लगता है कि ये पंचायत वाले कहीं सूरज-चांद के आने-जाने का समय ही निर्धारित न कर दें..।
Tuesday, July 10, 2012
कमजोर, फिसड्डी नहीं हैं...
कोई कुछ करे या न करे। लेकिन मैंने अमेरिका का विरोध करने का सोच लिया है। जब देखो तब यह अमरीका वाले अपनी दादागिरी दिखाते रहते हैं। अभी एक पत्र लिखने की सोच रहा हूं, अमेरिका की ''टाइम'' पत्रिका के सम्पादक को। वाकई में मुझे बहुत गुस्सा आ रहा है। हमारे भोले-भाले प्रधानमंत्री को ही फिसड्डी कह दिया। जिसने भी हमारे प्रधानमंत्री को ''अंडर अचीवर'' लिखा है वह यदि भारत में रहता तो पता चलता। इतनी महंगाई है कि ''अंडर वीयर'' तक खरीदने के लाले पड़ जाते।
बड़े आए फिसड्डी कहने वाले। भइया जिस देश का प्रधानमंत्री अपनी कुर्सी बचाने के लिए रोजाना विपक्षी दलों से कबड्डी खेल रहा हो, वह फिसड्डी कैसे हो सकता है, बताइए जरा। कमजोर, असफल और शिखण्डी कहना सब फालतू बातें हैं। इटली वाली मैडम के इशारों पर भारत को चलाना कितनी बहादुरी का काम है, इन्हें क्या पता!
जिस देश की विकास दर 8 प्रतिशत से 5.3 प्रतिशत पर आ गई हो उसका प्रधानमंत्री बने रहना कोई मजाक है क्या!! कोई भी, कुछ भी आरोप लगा रहा है। अमेरिका की सरकार के 15 मंत्रियों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हों तब समझ आता फिसड्डी कौन है और दमदार कौन! सरकार का कोई न कोई मंत्री इस्तीफा दे रहा है। जिसने इतने शानदार राष्ट्र मण्डल खेल का आयोजन कराया वह मंत्री भी जेल में 2 साल सजा काट कर आया है। संचार क्रांति लाने वाले मंत्री से संतरी तक जेल हो आए, फिर भी सरकार चल रही है। महंगाई भी दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। ऐसे में कोई देश चला रहा है तो उसकी तारीफ करने के बजाए बुरा भला कहना मुझे मूर्खों का काम लगता है।
एक बात और है। वह यह कि हमारे देश में गठबंधन धर्म भी तो निभाना पड़ता है। आए दिन कोई न कोई सहयोगी दल रूठ जाता है। सरकार बचाने के लिए फिर उनको मनाना पड़ता है कितनी ''टेढ़ी खीर'' होता है। इनके राष्ट्रपति को ममता, मुलायम जैसे नेता मिल जाते तो पता चलता। कितना साधकर चलना पड़ता है। राष्ट्रपति पद पर अपना उम्मीदवार जिताने के लिए कितनी मशक्कत करनी पड़ती है कोईसोच सकता है क्या!!
यह ''टाइम'' पत्रिका वाले कुछ तो भी छापते रहते हैं। जो छापने की बात है उसकी ओर तो किसी का ध्यान नहीं है। इसलिए मैंने भी दृढ़ निश्चय कर लिया है पत्रिका के सम्पादक को पत्र लिखकर अपनी भड़ास निकालने का। पत्र लिखकर कहूंगा कि वह अपना पहले दृष्टिकोण बदलें। नकारात्मक की जगह सकारात्मक सोचें । यहां आकर देखो, तब पता लगेगा कि हमारे प्रधानमंत्री कमजोर, फिसड्डी नहीं हैं बल्कि बहुत दमदार हैं। फिसड्डी तो वह हैं जिनका दिमाग ऐसी फिसड्डी बातें करता है।
Tuesday, July 3, 2012
महंगे देश में सस्ता जीवन
भइया भारत में तो अब रहना मुश्किल हो गया है। अब देखो ना- सरकार ने सेवाकर की दरें भी बढ़ा दी हैं। मोबाइल से बात करने से लेकर रेस्ट्रां में खाना खाना तक महंगा हो गया है। लेकिन मैंने इस महंगे देश में सस्ते जीवन की तलाश कर ली है। हां! इसके लिए काफी खोजबीन करनी पड़ी। अंत में समझ आया कि आम आदमी से बेहतर तो आतंकवादियों का जीवन है। पुलिस भी आए दिन कोई न कोई आतंकवादी को पकड़ कर रही है। आतंकवादियों की अच्छी खुशामद भी की जाती है।
खोज में मैंने पाया कि संसद हमले का मुख्य आरोपी मोहम्मद अफजल गुरू आज भी जेल में सुखी जीवन बिता रहा है। 11 साल तक कोई भी उसका बाल भी बांका नहीं कर पाया। इसी प्रकार मुम्बई में 26 /11 के आतंकवादी हमले में पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमीर कसाब पर आज तक करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। अभी हाल में महाराष्ट्र सरकार के गृहमंत्री आर.आर. पाटिल ने विधान परिषद में जो आंकड़ा प्रस्तुत किया उसमें भी बताया कि सरकार कसाब पर लगभग 21 करोड़ से अधिक खर्च कर चुकी है। पाटिल ने बताया कि 29 फरवरी 2012 तक सरकार ने कसाब के स्वास्थ्य पर 28,066 , सुरक्षा पर 1,22,18 ,406 रुपए, खाने पर 34,975 रुपए खर्च कर दिया है। इसके अलावा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस पर महाराष्ट्र सरकार ने 19 करोड़ 28 लाख रुपए खर्च कर दिए हैं। कसाब की इतनी सुरक्षा और खातिरदारी से मैं काफी प्रभावित हुआ हूं। भारत में इससे ज्याद सुरक्षित स्थान और कौन सा हो सकता है...।
अंदर की बात बताऊं तो पाकिस्तान भी इस बात को समझ गया है। इसलिए आए दिन रोज नए आतंकवादी पकड़ आ रहे हैं। अभी कुछ ही दिन पूर्व जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जंदल उर्फ अबू हमजा को हमारी पुलिस ने मुम्बई हमले के मास्टर माइंड के रूप में पकड़ा है। सऊदी अरब से एक और आतंकवादी फसीह महमूद को भारत लाने की तैयारी की जा रही है। अब इन आतंकवादियों को भारत की जेलों में बंद रखा जाएगा। जब तक जांच चलेगी तब तक मस्त खातिरदारी की जाएगी।
यही अब नई चाल है पाकिस्तान की! पाकिस्तान ने बम धमाकों से हमला करना बंद कर दिया है। अब वह आतंकवादियों को गिरफ्तार करा कर हमारी अर्थव्यवस्था को चौपट करना चाहता है। इसी चाल के तहत उसने 30 साल सजा काट चुके सुरजीत सिंह को रिहा कर दिया। वहां से हमारे लोग रिहा कर भारत भेजे जा रहे हैं।
हमारी सरकार भी ऐसी नासमझ है कि पूछो मत। जो जेल के बाहर हैं वह महंगाई से मरे जा रहे हैं तथा जेल के भीतर जाने वाले आतंकवादियों की एक-एक ख्वाहिश पूरी की जाती है। वो जो मांगते हैं उन्हें उपलब्ध करा दिया जाता है। इधर महंगाई कम नहीं हो रही उधर सरकार ने सेवाकर की दरें बढ़ा दीं। पता है जुआ, लॉटरी जैसी 38 सेवाओं को छोडक़र 119 सेवाएं महंगी कर दी गई हैं। इसलिए मैं इस महंगे देश में सस्ते जीवन जीने के लिए आतंकवादी बनने की सोच रहा हूं। सोच रहा हूं कि मुम्बई हमले में कहीं न कहीं कोई अपनी भूमिका बताकर एक बार जेल के भीतर पहुंच जाऊं। जब तक जांच चलेगी तब तक तो उम्र कट ही जाएगी...।
खोज में मैंने पाया कि संसद हमले का मुख्य आरोपी मोहम्मद अफजल गुरू आज भी जेल में सुखी जीवन बिता रहा है। 11 साल तक कोई भी उसका बाल भी बांका नहीं कर पाया। इसी प्रकार मुम्बई में 26 /11 के आतंकवादी हमले में पकड़े गए पाकिस्तानी आतंकवादी अजमल आमीर कसाब पर आज तक करोड़ों रुपए खर्च किए जा चुके हैं। अभी हाल में महाराष्ट्र सरकार के गृहमंत्री आर.आर. पाटिल ने विधान परिषद में जो आंकड़ा प्रस्तुत किया उसमें भी बताया कि सरकार कसाब पर लगभग 21 करोड़ से अधिक खर्च कर चुकी है। पाटिल ने बताया कि 29 फरवरी 2012 तक सरकार ने कसाब के स्वास्थ्य पर 28,066 , सुरक्षा पर 1,22,18 ,406 रुपए, खाने पर 34,975 रुपए खर्च कर दिया है। इसके अलावा भारत-तिब्बत सीमा पुलिस पर महाराष्ट्र सरकार ने 19 करोड़ 28 लाख रुपए खर्च कर दिए हैं। कसाब की इतनी सुरक्षा और खातिरदारी से मैं काफी प्रभावित हुआ हूं। भारत में इससे ज्याद सुरक्षित स्थान और कौन सा हो सकता है...।
अंदर की बात बताऊं तो पाकिस्तान भी इस बात को समझ गया है। इसलिए आए दिन रोज नए आतंकवादी पकड़ आ रहे हैं। अभी कुछ ही दिन पूर्व जबीउद्दीन अंसारी उर्फ अबू जंदल उर्फ अबू हमजा को हमारी पुलिस ने मुम्बई हमले के मास्टर माइंड के रूप में पकड़ा है। सऊदी अरब से एक और आतंकवादी फसीह महमूद को भारत लाने की तैयारी की जा रही है। अब इन आतंकवादियों को भारत की जेलों में बंद रखा जाएगा। जब तक जांच चलेगी तब तक मस्त खातिरदारी की जाएगी।
यही अब नई चाल है पाकिस्तान की! पाकिस्तान ने बम धमाकों से हमला करना बंद कर दिया है। अब वह आतंकवादियों को गिरफ्तार करा कर हमारी अर्थव्यवस्था को चौपट करना चाहता है। इसी चाल के तहत उसने 30 साल सजा काट चुके सुरजीत सिंह को रिहा कर दिया। वहां से हमारे लोग रिहा कर भारत भेजे जा रहे हैं।
हमारी सरकार भी ऐसी नासमझ है कि पूछो मत। जो जेल के बाहर हैं वह महंगाई से मरे जा रहे हैं तथा जेल के भीतर जाने वाले आतंकवादियों की एक-एक ख्वाहिश पूरी की जाती है। वो जो मांगते हैं उन्हें उपलब्ध करा दिया जाता है। इधर महंगाई कम नहीं हो रही उधर सरकार ने सेवाकर की दरें बढ़ा दीं। पता है जुआ, लॉटरी जैसी 38 सेवाओं को छोडक़र 119 सेवाएं महंगी कर दी गई हैं। इसलिए मैं इस महंगे देश में सस्ते जीवन जीने के लिए आतंकवादी बनने की सोच रहा हूं। सोच रहा हूं कि मुम्बई हमले में कहीं न कहीं कोई अपनी भूमिका बताकर एक बार जेल के भीतर पहुंच जाऊं। जब तक जांच चलेगी तब तक तो उम्र कट ही जाएगी...।
Wednesday, June 27, 2012
बड़े साहब की बड़ी कार्रवाई
बात करते-करते बात बोरवेल तक आ गई। बोरवेल आजकल जानलेवा हो गए हैं। बोरवेल में बच्चे गिर जाते हैं, उनकी जान तक चली जाती है। दो सिपाहियों की बातचीत चल ही रही थी कि इतने में थानेदार साहब भी आ गए। घुसते ही चिल्लाते हुए बोले-''रामकिशन इधर आओ, इस इंजीनियर को जेल में डाल दो।''
वाह! साहब आपने तो कमाल कर दिया-आपने तो माही की मौत के बाद तुरंत कार्रवाई कर दी। कहां से पकड़ लाए हो? तभी थानेदार साहब बोले-अरे यार! ये वो वाला इंजीनियर नहीं है। ये तो किसी दूसरे गांव से पकडक़र लेकर आया हूं। यह आज सुबह अपने कर्मचारियों के साथ गांव में मिल गया था। नया बोरवोल करने के लिए निरीक्षण कर रहा था तभी इसको मौके पर ही गिरफ्तार कर लिया।
वाह! साहब, आपकी दूरदृष्टि सोच को तो मानना पड़ेगा। आजकल बोरवेल में बच्चे काफी गिर रहे हैं। ये इंजीनियर गहरा गड्ढा करके चले जाते हैं कम्बख्त हमारी मुसीबत हो जाती है। कहीं कोई बच्चा गिर गया तो फिर बुलाओ सेना को, पुलिस को। मीडिया के सवालों के जवाब देना तक मुश्किल हो जाता है कि बोरवेल करने वाले इंजीनियर के खिलाफ पुलिस क्यों कुछ नहीं करती? आपने तो सभी आने वाली समस्याओं का तत्काल निराकरण कर दिया।
तुम ठीक कहते हो रामकिशन- थानेदार साहब बोले। मुझे तो लगता है सरकार को एक नया ''बोरवेल रोको कानून'' बनाना चाहिए। इसमें बोरवेल की बात करने वालों को तत्काल सजा दी जानी चाहिए। जो बोरवेल करता हुआ मिला उसके खिलाफ तो सख्त से सख्त कार्रवाई करना चाहिए। हां! साहब आप ठीक कह रहे हो- रामकिशन सिपाही भी हां में हां मिलाते हुए बोला।
थोड़ी देर बाद रामकिशन बोला- सर मेरे पास एक सुझाव है। साहब हम इस इंजीनियर को गुडग़ांव के मानेसर में बोरवेल में पांच साल की बच्ची माही की मौत का जिम्मेदार बता दे तो कैसा रहेगा। आप बस इसकी जमकर सुताई कर देना खुद व खुद गुनाह कबूल कर लेगा।
इतने में एक दूसरा सिपाही भी वहां पहुंच गया। वह दो मजदूरों को पकडक़र लाया था। थानेदार साहब ने पूछा तो उसने बताया कि- साहब ये दो मजदूर कल्लू और मुन्ना हैं। ये दोनों गांव में एक गड्ढा खोदने की योजना बनाते हुए पुलिया के पास मिले हैं। देखो इनके पास से ये गेती और फावड़ा भी मिला है। यह इस बात का सबूत है।ये दोनों गड्ढा खोदकर पानी निकालने की बात कर रहे थे। तभी कल्लू बोला- साहब हम लोग पानी के लिए कुंआ खोदने की योजना बना रहे थे। इतने में थानेदार साहब का पारा और चढ़ गया। चुप करो। बोरवेल में बच्चे गिर रहे हैं, अब कुंआ खोदकर क्या पूरे गांव को मारोगे....। तुम्हें तो इंजीनियर से भी ज्यादा कड़ी सजा मिलनी चाहिए।
शाम के वक्त थानेदार साहब अपने सिपाहियों की पीठ थपथपाते हुए बोले- आज हम लोगों ने अच्छा काम किया है। हमने आने वाली मुसीबतों पर जो कार्रवाई की है वह वाकई में काबिले तारीफ है। उम्मीद है हम ऐसे ही आगे भी कार्रवाई करते रहेंगे। यदि इसी प्रकार भविष्य में कार्रवाई होती रहें तो हम फिर किसी भी माही को मरने नहीं देंगे....। जी साहब! हम ऐसा ही करेंगे- सभी सिपाही एक साथ बोले।
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